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मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

संकर धान की खेती से ही संभव है भारत की खाद्यान्न सुरक्षा


डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर,  
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 

चावल विश्व की 2.7 बिलियन से अधिक आबादी का मुख्य भोजन है। विश्व में खद्यान्न सुरक्षा में चावल की अहम् भूमिका है। धान ही एक मात्र ऐसी फसल है जिसकी खेती सभी परिस्थितियों यथा सिंचित, असिंचित, जल प्लावित, ऊसरीली और बाढ़ ग्रस्त भूमियों में सुगमता से की जा सकती है। हरित क्रांति की सफलता में मुख्य भूमिका निभाने वाली इस फसल की उत्पादकता में जनसँख्या वृद्धि दर के अनुरूप बढ़त नहीं हो पा रही है अपितु भारत के अनेक राज्यों में धान की औसत उपज राष्ट्रिय औसत से काफी काम बनी हुई है। भारत में धान की खेती 43.86 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में प्रचलित है जिससे 2390 किग्रा./हेक्टेयर के औसत मान से 104.80 मिलियन टन उत्पादन (2014-15) प्राप्त हुआ. धान की औसत उपज की दॄष्टि से हम अन्य देशो यथा चीन (6710 किग्रा/हे.), इंडोनेशिया (5152 किग्रा/हे.) ही नहीं बांग्लादेश (4376 किग्रा/हे.) और विश्व औसत (4486 किग्रा/हे.) से भी काफी पीछे है। देश में लगभग 58 % क्षेत्र में धान की खेती सिंचित परिस्थितियों में की जा रही है। धान की औसत उपज के मामले में क्षेत्रीय विभिन्नता बहुत अधिक है। पंजाब में चावल की औसत उपज 3838 किग्रा/हे. ली जा रही है तो धान के कटोरा छत्तीसगढ़ में महज 1581 किग्रा/हे. की दर से चावल पैदा किया जा रहा है।धान की उपज में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए हमें धान उत्पादन की उन्नत तकनीक को व्यवहार में लाने के लिए किसान भाइयों को प्रेरित करना होगा और इसके लिए उन्हें खेती में लगने वाले आदानों जैसे उन्नत किस्म/संकर प्रजातियों के प्रमाणित बीज और उर्वरक सही समय पर उपलब्ध कराना होगा।  खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भरता बरक़रार रखने के लिए हमें प्रति वर्ष 5 मिलियन टन की दर से खाद्यान्न (जिसमे 2 मिलियन टन धान) उत्पादन बढ़ाना होगा।  घटती कृषि योग्य भूमि, पानी, श्रम और अन्य प्राकृतिक स्त्रोतों की कमी होते हुए भी धान की उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य को हासिल करना ही होगा। बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रति इकाई उत्पादन में वृद्धि करना अति आवश्यक हो गया है। उन्नतशील किस्मों विशेषकर संकर धान के अतंर्गत क्षेत्र विस्तार तथा उन्नत तकनीकी के प्रचार-प्रसार से धान की उत्पादकता दो गुना बढ़ाई जा सकती है। चीन में संकर धान की खेती बढ़े पैमाने पर प्रचलित है तथा वहाँ के कृषक सामान्य किस्मों की अपेक्षा संकर किस्मों से 30 प्रतिशत अधिक उपज ले रहे हैं। भारत में 1990 में महज 10000 हेक्टेयर क्षेत्र में संकर धान की खेती प्रचलित थी जिसका रकबा बढ़कर  (वर्ष 2014 में)  2.5 मिलियन हेक्टेयर पहुँच गया।  देश में खाद्यान्न सुरक्षा कायम रखने के लिए हमें भी पड़ौसी देश चीन की भाँती संकर धान के अंतर्गत  क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित करना होगा और इस बावत उन्हें संकर प्रजातियों के प्रमाणित बीज समय पर मुहैया करना होगा।  इसमें कोई संदेह नहीं की संकर धान की खेती से हम भी प्रति इकाई अधिक उपज ले सकते है, परन्तु किसान भाइयों को इसकी खेती में अग्र प्रस्तुत उन्नत तकनीक व्यवहार में लानी होगी तभी उन्हें मनबांक्षित उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

संकर धान क्या है ?

          संकर धान दो किस्मों में बिखरे गुणों के संयोग द्वारा एक कच्चे बंधन के रूप में सृजित धान का बीज है। सामान्यः संकर धान प्रति इकाई क्षेत्र में असंकर (साधारण) प्रजातियों से 15-20 प्रतिशत अधिक उपज देती है। परन्तु विडंबना यह है कि अपनी अगली पीढ़ी में गुणों का बंधन बिखर जाता है और संकर धान अपनी अद्भुत क्षमता खो देता है और यही वजह है कि इसके बीज की आवयकता हर वर्ष होती है। कभी भी संकर धान के बीज हेतु पुनः उपयोग में न लें। भारत में भी संकर धान के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार की व्यापक संभावना है। भविष्य में धान की बढ़ती माँग की पूर्ति की दशा में संकर किस्मों के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार एक सार्थक कदम होगा।
संकर धान उत्पादन तकनीक 
संकर धान की उन्नत खेती के लिए भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी सामान्य धान की भांति ही करते है। इसके रोपण हेतु पौध की तयारी, खाद एवं उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन सामान्य धान से भिन्न है जिसका विवरण यहां प्रस्तुत है :

संकर धान की प्रजातियां : भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने भी संकर धान की अनेक किस्में विकसित कर ली हैं तथा देश की विभिन्न परिस्थितियों के लिए  अनुमोदन किया जा चुका है।  विभिन्न परिक्षणों के आधार पर निम्न संकर किस्में छत्तीसगढ़ एंव म. प्र. के लिए उपयुक्त पायी गयी हैं-
1. के.आर. एच.-2: इस किस्म की  उपज क्षमता 7 टन प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना लम्बा पतला होता है। पकने की अवधि 130-135 दिन है।इस किस्म में भूरा माहो कीट एंव ब्लास्ट (झुलसा) रोग के लिये निरोधकता होती     है।
2. पी. एच. वी.-71: यह किस्म केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जारी की गयी है।इस किस्म के पकने की अवधि 130 दिन है। दाना लम्बा पतला होता है। भूरा माहो कीट के लिये इस किस्म में प्रतिरोधकता होती है।उसकी उपज क्षमता 7-8 टन प्रति हेक्टेयर है।
3. सह्याद्रि : यह मध्यम अवधी (125-130 दिन) में तैयार होकर 6-7 क्विंटल/हे. उपज देती है।  इसका  दाना लम्बा पतला होता है।
4. प्रो एग्रो- 6201: यह किस्म मध्यम अवधि (125-130 दिन) में तैयार होती है। इसका लम्बा पतला तथा अच्छी गुणवत्ता वाला होता है। इसकी उपज क्षमता 7 टन प्रति हे. है।
5. एराइज - 6444:  यह किस्म 135-140 दिन में तैयार होती है।  इसका दाना लम्बा एंव पतला होता है। यह प्रति हेक्टेयर 6-7 टन उपज देती है। 
6. सुरुचि-5401: यह किस्म 130-135 दिन में पक कर 6 टन/हे. उपज देती है। 
धान की इन संकर प्रजातियों के अलावा अंकुर-7434,पीएसी-837, पीएसी-807, 27 पी63, केपीएच-371, जेआरएच-4, जेआरएच-5, पूसा आरएच-10, व्हीएनआर-2245 आदि का चयन कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।  

नर्सरी प्रबंधन

          सामान्य धान की भाँति नर्सरी प्रबंधन करें। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 700-800 वर्गमीटर नर्सरी क्षेत्र पर्याप्त होता है।संकर धान का बीज 20-25 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से 15-20 किग्रा प्रति हेक्टेयर लगता है।  पौधशाला में बीज को बिरला बोया जाना चाहिए जिससे पौध का विकास अच्छा हो सकें।  बीज को अंकुरित कर बोने से पौधों का विकास शीघ्रता से होता है।  नर्सरी में प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल के हिसाब से 5-6 ग्राम नत्रजन, स्फुर व पोटॉश डालना चाहिए। प्रारंभिक अवस्था में नर्सरी की मृदा को संतृप्त अवस्था में रखना चाहिए एंव पौधे वृद्धि के समय 2.50-3.00 सेमी जल स्तर रखना चाहिए। इस तरह से नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण भी हो जाता है। यदि नर्सरी के पौधों में नत्रजन की कमी हो तो 15-18 दिन बाद पुनः नत्रजन का छिड़काव किया जा सकता है। पौधों में जिंक या लोहे की कमीं के लक्षण दिखने पर तो 0.5 % जिंक सल्फेट एवं 0.2  % फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

रोपाई का समय एंव विधि   

          संकर धान में रोपाई के समय का बहुत महत्व होता है,क्योकि रोपाई के समय में देरी होने से उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।प्रयोगों के द्वारा यह देखा गया है कि संकर धान की रोपाई 25 जुलाई तक अवश्य कर लेनी चाहिए। देर से रोपाई करने पर कंशे काम बनने के कारण  उपज में व्यापक कमीं आ जाती है। रोपाई के लिए 25-30 दिन उम्र के  स्वस्थ पौधों को चुनना चाहिए।  प्रति हिल (स्थान) 1-2 पौधे की रोपाई 2-3 सेमी. गहराई पर कतार से कतार 15 सेमी. तथा पौध से पौध 15 सेमी. की दूरी पर करें। पौध रोपण से एक सप्ताह के अंदर मरे हुए पौधों के स्थान पर उसी संकर प्रजाति के पौधों की रोपाई अवश्य संपन्न क्र लेवें जिससे  प्रति वर्गमीटर में कम-से-कम 45-50 पूँजे (हिल्स) अवश्य स्थापित हो जाएँ ।

उर्वरक प्रबंधन

          संकर धान की गुणवत्ता (कम टूटने वाली, लंबे चावल एंव पोषक तत्वों से भरपूर) बनाये रखने तथा अधिकतम उपज प्राप्त करने में उर्वरक प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। उर्वरकों का प्रयोग मृदा  परीक्षण के आधार पर करें। सामान्य तौर पर गोबर की खाद 10 टन तथा रासायनिक उर्वरक के रूप में 150 किलो नत्रजन, 75 किलो स्फूर एंव 60 किलो पोटॉश  प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। जिंक की कमी वाले क्षेत्र में 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना लाभकारी पाया गया है। कुल नत्रजन का 40 प्रतिशत भाग आधार के रूप में (रोपाई के समय), 20 प्रतिशत कंसे निकलते समय, 30 प्रतिशत गभोट अवस्था में तथा शेष 10 प्रतिशत मात्रा फूल आने के समय देना चाहिए। रबी मौसम में नत्रजन को 3 भागों की तुलना में 4 भागों (40:20:30:10 प्रतिशत) में देने से संकर धान के उत्पादन में आशीतीत वृद्धि पाई गई।
          स्फुर को आधार के रूप में तथा पोटॉश को दो भागों में बाँट कर देना चाहिए। पोटॉश  की आधी मात्रा रोपाई के समय आधर खाद के रूप में तथा आधी मात्रा गभोट अवस्था में देने से संकर धान के बीज उत्पादन में वृद्धि पायी जाती है।

जल प्रबंधन

          संकर धान की खेती में जल प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। रोपाई के बाद सामान्यतया धान वृद्धि एंव जनन अवस्था में रहती है तथा इसके बाद पकने की अवस्था में प्रवेश करती है। वृद्धि अवस्था में धान की जड़ एंव तना का विकास होता है।वृद्धि अवस्था में जल की कमी या अधिकता से पौधों में कन्सों की संख्या कम हो जाती है, जिससे कि उपज में कमी आती है। पुष्पन और दाना भरने की अवस्था में जल प्रबंधन अति महत्वपूर्ण है क्योकि इस अवस्था में कंसों में बालियों का निर्माण  एंव दाने की संख्या का निर्धारण होता है।
          धान की रोपाई  के समय खेत में 1-2 सेमी. पानी होना चाहिए तथा अनावश्यक जल को खेतों से बाहर निकाल देना चाहिए। वर्धी अवस्था में पौधों की ऊँचाई के अनुसार  2-5 सेमी. जल स्तर रखना लाभकारी होता है। कंसे फूटने वाली स्थिति से लेकर बाली निकलने तक खेतों में 5-7 सेमी. पानी का स्तर रखना उचित रहता है । गभोट की अवस्था में भी पानी का उथला स्तर खेतों में रखना चाहिए। कटाई से 7-10 दिन पहले खेतों से पानी निकाल देना चाहिए।

खरपतवार निंयत्रण एवं फसल सुरक्षा 

        संकर धान की पर्याप्त बढ़वार और उपज के लिए खेत खरपतवार मुक्त रहना आवश्यक होता है।   रोपाई के एक सप्ताह के अन्दर ब्यूटाक्लोर 3 लीटर या एनीलोफॉस  एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें अथवा रोपाई के 40 दिन के अन्दर 1-2 निंदाई करने से खरपतवार नियंत्रित रहते हैं। धान की सामान्य किस्मों की तरह एकीकृत कीट एंव रोग प्रबंधन की विधियाँ आवश्यकतानुसार अपनाएँ।

कटाई, मड़ाई और उपज 

          धान फसल में  50 प्रतिशत बाली निकलने के 20-25 दिन बाद या बालियों के निचले दानों  दूध बन जाने पर खेत से पानी बाहर निकाल देना चाहिए।  जब फसल में 80-85  प्रतिशत दाने सुनहरे रंग के हो जाए अथवा बाली निकलने के 30-35 दिन पश्चात फसल की कटाई कर लेना चाहिए। इसके पश्चात फसल को सुखा कर मड़ाई संपन्न कर लेवें आज कल कंबाइन हार्वेस्टर की मदद से काम समय में कटाई और मड़ाई कार्य सुगमता से संपन्न हो जाता है। उपरोक्तानुसार शस्य तकनीक के अनुसार खेती करने पर सामान्यतौर पर 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक  धान की उपज प्राप्त हो सकती है। 
ध्यान रखें: संकर धान का बीज एक ही बार फसल उत्पादन के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। अतः संकर किस्मों से वास्तविक आनुवंशिक उपज क्षमता प्राप्त करने के लिए इसका बीज हर साल नया विश्वसनीय संस्थान से ही खरीदना चाहिए।


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