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गुरुवार, 10 जनवरी 2019

पौष्टिकता और आमदनी में श्रेष्ठ : कठिया गेंहू


                पौष्टिकता और आमदनी में श्रेष्ठ : कठिया गेंहू
                                      डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
     इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
                                                 अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार के गेहूं अर्थात साधारण गेहूं  (एस्टविम)  और कठिया गेहूं  (ड्यूरम) की खेती प्रचलित हैं । कठिया गेहूं के के दाने बड़े और लंबे होते हैं। भारत में अमूमन 300 लाख हेक्टेयर में गेंहू की खेती प्रचलित है, जिसमे से मात्र 4 प्रतिशत क्षेत्र में कठिया गेहूँ की खेती की जाती है। पौष्टिकता में सामान्य गेंहू से कठिया गेंहूँ बेहतर होने के कारण विश्व बाजार में इसकी खासी मांग है । पहले कठिया गेहूँ की खेती पारम्परिक तरीके से  असिंचित अवस्था में हुआ करती थी। काठियां गेंहूँ की कम उपज क्षमता एवं लम्बी अवधि की देशी किस्मों का इस्तेमाल किया जाता था।  इसलिए इस गेंहूँ की  पैदावार भी अनिश्चित रहती थी । अब कम पानी और संतुलित उवरर्क प्रबंधन में अधिक ऊपज देने वाली  कठिया गेहूं की उन्नत किस्में उपलब्ध है, जिनकी खेती कर किसान भाई अधिकतम उपज और आमदनी प्राप्त कर सकते है।  घरेलु तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कठिया गेहूं की मांग तेजी से बढ़ रही है और  साधारण गेहूं की अपेक्षा कठिया गेहूं की बाजार में  20-30 प्रतिशत अधिक कीमत मिलती है। मध्य भारत की मृदा-जलवायुविक परिस्थितियों में  कठिया गेहूँ उत्पादन की अपार क्षमता मौजूद है। मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र तथा बुंदेलखंड में कठिया गेंहूँ की खेती प्रचलित है।  कठिया गेंहू की खेती के अंतर्गत भारत के अन्य गेंहू उत्पादक प्रदेशों में भी क्षेत्र विस्तार की आवश्यकता है।  इससे एक तरफ कृषि में विविधिकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है तो दूसरी ओर हमारे किसानों  को बेहतर आमदनी मिलने के साथ-साथ  हमारा देश कठिया गेंहू के उत्पादन तथा निर्यात में अग्रणी राष्ट्र बन सकता है।  इसकी किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो सकता है। 
सामान्य गेंहू से श्रेष्ठ है कठिया गेहूँ
  • कठिया गेंहू प्रशंस्करण एवं लघु कृषि आधारित उद्योगों के सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इससे बनने वाले सिमोलिना (सूजी, रबा) से नाना प्रकार के लोकप्रिय व्यंजन यथा पिज्जा, पास्ता, नूडल,वर्मिसेल, सिवैयां आदि तैयार किये जाते है।
  • कठिया गेहूँ की किस्में में सूखा प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है। असिंचित क्षेत्रों में भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है और सिंचाई की सुविधा होने पर  3 सिंचाई से 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक  पैदावार हो जाती है।
  • शीघ्र पचनीय  पौष्टिक आहारों  में कठिया गेहूं बेहतर होता है। शरबती (एस्टिवम) की अपेक्षा कठिया गेहूँ  में प्रोटीन 1.5-2.0 प्रतिशत अधिक होने के साथ-साथ  विटामिन , बीटा कैरोटीन एवं ग्लूटीन पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। कठिया गेंहू का दलिया एवं रोटी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है।  शुगर रोगियों के लिए कठिया गेंहूँ का आहार बेहद फायदेमंद होता है।
  • कठिया गेहूँ में गेरूई या रतुआ जैसे रोग एवं कीड़ों का प्रकोप कम होता है। नवीन प्रजातियों का उगाकर इनका प्रकोप कम किया जा सकता है।
ऐसे करें कठिया गेंहू की खेती
          सामान्य गेंहूँ की भाति कठिया गेंहू की खेती की जाती है।  प्रस्तुत बिन्दुओं  को ध्यान में रखकर खेती करने से कठिया गेंहू से बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 
बुआई का समय
असिंचित अवस्था  में कठिया गेहूँ की बुआई 25 अक्टूबर से  5 नवम्बर तक संपन्न कर लेना चाहिए।  सिंचित अवस्था में नवम्बर के अंतिम सप्ताह  तक बुआई कर भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है ।
कठिया गेंहू की उन्नत किस्में
                उन्नत किस्मों की उपज क्षमता पुरानी किस्मों से अधिक होती है।  अतः अधिक उतपादन के लिए कठिया गेहूँ की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए।  सिंचित एवं असिंचित परिस्थितियों के लिए काठियां गेंहूँ की प्रमुख उन्नत किस्मे अग्र प्रस्तुत है ।
सिंचित दशा हेतु - पी.डी.डब्लू. 34, पी.डी.डब्लू 215, पी.वी.डब्लू 233, राज 1555, डब्लू. एच. 896, एच.आई 8498 एच.आई. 8381, जी.डब्लू 190, जी.डब्लू 273, एम.पी.ओ. 1215, एचआई 8713, एच.आई.-8759 (पूसा तेजस) आदि.
असिंचित दशा हेतु : मेघदूत, मैक्स-9, जी.डब्लू 2, जे.यू.-12, एच.डी. 4672, सुजाता, एच.आई. 8627,एमपी 3336 आदि  किस्में उपयुक्त रहती  है.
संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन
संतुलित उर्वरक एवं खाद का उपयोग दानों के श्रेष्ठ गुण तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अति-आवश्यक है।  सिंचाई की व्यवस्था होने पर 80 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस  एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूंडों में देना चाहिए।  नत्रजन की  आधी मात्रा  पहली सिंचाई के बाद टापड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिए। असिंचित दशा में 60:30:15 के अनुपात में नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रयोग बुवाई के समय कूंडों में  करना चाहिए।
बेहतर उपज के लिए सिंचाई
बुवाई के समय खेत में नमीं होना आवश्यक है.सिंचित दशा में कठिया गेहूँ  में तीन सिंचाई देने से भरपूर उत्पादन प्राप्त होता है । पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन पर (ताजमूल अवस्था), दूसरी सिंचाई बुआई के 60-70 दिन पर (दुग्धावस्था) एवं तीसरी सिंचाई बुआई के 90-100 दिन पर अर्थात दाने पड़ते समय देना चाहिए।  फसल पकते समय खेत में नमीं कम रहने से दानों में चमक बढती है।       
कटाई, मड़ाई एवं उपज
             कठिया गेहूँ की कटाई विलंब से करने पर बालियाँ झड़ने की संभावना रहती है। अतः पक जाने पर शीघ्र कटाई तथा मड़ाई कर लेना चाहिए। उत्तम सस्य विधियाँ अपनाकर काठियां गेंहू की उन्नत किस्मों से 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

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