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रविवार, 2 फ़रवरी 2020

पशुओं के लिए स्वादिष्ट एवं रसीला हरा चारा मकचरी


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,महासमुंद (छत्तीसगढ़)

अमेरिकी मूल की टियोसिंट को मकचरी के नाम से जाना जाता है। मक्का की पूर्वज मकचरी  ज्वार एवं मक्का के बीच की एक वर्षीय चारा फसल जो मक्का के समान दिखती है।  मकचरी सूखा एवं अस्थाई जलभराव को सहन करने वाली शीघ्र बढ़ने वाली फसल है।   मक्का से सिर्फ एक कटाई प्राप्त होती है  जबकि ग्रीष्मकाल में मकचरी से 2-3 कटाई  प्राप्त की जा सकती है । सामान्य रूप से इसका चारा विषैले  पदार्थों से मुक्त होता है। इसमें एक ही कल्ले से अनेक कल्ले फटूते है जिसके कारण एक समूह बन जाता है। उपजाऊ भूमियों में इसके पौधे 2.5 से 4 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते है।  मकचरी की खेती अपेक्षाकृत अधिक वर्षा  एवं जलभराव वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जा सकती है, जबकि मक्का की फसल बिल्कुल ही जलमग्नता को सहन नही कर सकती है । मकचरी को चारे के लिए बुवाई के 70-75 दिन बाद काटते है  । इसमें  मक्के की तुलना में अधिक शाखाएं होती है, जिसके कारण यह मक्का से अधिक चारे की पैदावार देती है। यह मक्के की अपेक्षा अधिक दिन तक हरी रहती है । मकचरी दुधारू एवं कार्यशील पशुओं  के लिए स्वादिष्ट, रसीला  एवं पोषक चारा है  जिसमें लगभग  7-9 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, पाचकता 60-62 प्रतिशत, वसा 2-3 प्रतिशत, कैलिसयम 0.16 प्रतिशत फासफोरस, 0.09 प्रतिशत एवं पोटाश 1.25 प्रतिशत पाया जाता है । चारे की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए मकचरी को लोबिया अथवा ग्वार के साथ मिलाकर बोना चाहिए । 
मकचरी की फसल फोटो साभार गूगल 
ग्रीष्मकाल में मकचरी से अधिकतम हरा चारा प्राप्त करने के लिए किसान भाई अग्र प्रस्तुत सस्य तकनीक का अनुशरण करना चाहिए। 
जलवायु एवं भूमि: मकचरी की खेती ग्रीष्म एवं खरीफ ऋतु में सफलता पूर्वक की जा सकती है इसके लिए नम दोमट व बलुई-दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है । भूमि का  पी एच मान 5.5-7.0 के मध्य उपयुक्त होता  है । खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के उपरान्त कल्टीवेटर अथवा रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना कर बुवाई करना चाहिए। 
उन्नत किस्में : मकचरी  की उन्नत किस्मों में टीएल-1, सिरसा एवं इम्प्रूव्ड मकचरी प्रमुख है। 
बुवाई का समय:  गेंहू, गन्ना, आलू,सरसों आदि फसलों के बाद मकचरी की बुवाई की जा सकती है। मकचरी को सिंचित क्षेत्रों में 15 मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है. वर्षा ऋतू में मानसून आगमन से लेकर जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बोया जा सकता है। 
बीज की मात्रा:  मकचरी की बुवाई के लिए 35-40  कि. ग्रा.  बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है । बीज को 3 ग्राम थीरम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करन चाहिए। मकचरी की बुवाई मक्का की तरह कतारों में करना चाहिए।  कतार से कतार की दूरी  30  से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 15 से.मी. रखना चाहिए।  बीज 2-3 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक प्रबंधन: बुवाई के 15 दिन पहले 10 टन गोबर की खाद अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।  बेहतर चारा उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर  100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस एवं 20 किग्रा पोटाश  की आवश्यकता पड़ती है। आधा नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा  बिजाई के समय व शेष नाइट्रोजन  बिजाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद देनी चाहिए।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण :  मकचरी की अच्छी बढ़वार के लिए नम भूमि की आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकालीन फसल में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए । कटाई बाद सिंचाई अवश्य करें।   मकचरी की प्रारंभिक वृद्धि धीमी होने के कारण खरपतवार प्रकोप हो सकता है।  अतः फसल की बुवाई के 15-20 दिन बाद एक बार निराई-गुड़ाई करना चाहिए. बूवाई के 2-3 दिन बाद एट्राजीन 0.5-0.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकने से खरपतवार प्रकोप कम होता है। 
चारा कटाई एवं उपज : मक्का एवं ज्वार की अपेक्षा इसकी पाचकता बहुत तेजी से घटती है, इसलिए इसकी कटाई उचित समय पर कर लेनी चाहिए । चारे की अच्छी गुणवता के लिए मकचरी में जब झंडे दिखाई देने लगे यानि बुवाई के 60-65 दिन बाद प्रथम कटाई करनी चाहिए एवं अन्य कटाईयां 40-45 दिन के अंतराल पर लेनी चाहिए । फसल की कटाई जमीन की सतह से 10-12 से.मी. की ऊंचाई पर करना चाहिए जिससे फसल में पुनार्वृद्धि अच्छी तरह हो सकें।  ग्रीष्मऋतू में मकचरी की 2-3 कटाई में कुल 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। बीज के लिए उगाई गई फसल से 10-15 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर बीज उपज   प्राप्त होती है ।

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1 टिप्पणी:

गिरधर दास ने कहा…

कृपया मकचरी के बीज की उपलब्धता के बारे में जानकारी दें ।यह कहाँ से और कैसे मिलेगा ?