डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्रधान वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
रा.मो. देवी कृषि महाविद्यालय, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारतीय ग्रंथो और वेद पुराणों कि मानें तो इस चराचर जगत में जो भी घटता है, वह सब ग्रह-नक्षत्रों द्वारा संचालित, प्रभावित और
नियंत्रित होता है। ज्योतिष शास्त्र के मतानुसार मानव जीवन में गृह और नक्षत्रों का बड़ा महत्त्व होता है और अब शासन-प्रशासन भी इस बात को मानने लगा है। इसी तर्ज पर म.प्र. सरकार ने प्रदेश के अनेक विद्यालयों में गृह नक्षत्रों के हिसाब से पौध रोपण का उत्कृष्ट कार्य प्रारंभ किया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं दिल्ली में अनेक स्थानों पर नक्षत्र और नव ग्रह वाटिका स्थापित की जा चुकी है। नवग्रह वाटिका में नवग्रह से संबंधित नौ पौधों और नक्षत्र वाटिका में 27 नक्षत्रों से संबंधित 27 पौधों का रोपण किया जाता है। यह सभी पौधे-वनस्पतियां हमें औषधि, फल-फूल, शीतल छाया और शुद्ध वायु प्रदान करने के साथ-साथ पर्यावरण सरंक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देती है।पृथ्वी से आकाश की ओर देखने पर आसमान में स्थिर दिखने वाले पिण्डों/छायाओं को नक्षत्र और स्थिति बदलने वाले पिण्डों/छायाओं को गृह कहते है। ग्रह का अर्थ है पकड़ना। संभवतः अन्तरिक्ष से आने वाले प्रवाहों को धरती पर पहुँचने से पूर्व ये पिण्ड और छायायें अपनी ओर आकर्षित कर पकड़ लेती है और पृथ्वी के जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करती है। इसलिए इन्हें ग्रह कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या 9 होती है जिनमे सूर्य, चन्द्र, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु सम्मलित है जिन्हें मिलाकर नव ग्रह कहा जाता है।
नव ग्रह वाटिका
नव ग्रह मंडल में ग्रहानुसार वनस्पतियों की स्थापना करने पर वाटिका की स्थिति निम्नानुसार होनी चाहिए
सौर मंडल का सम्राट सूर्य है और सौर मंडल में जो गृह है वे भी सूर्य के अंश है। सूर्य से प्रथ्वी और प्रथ्वी से समस्त प्राणी, वृक्ष और वनस्पति निर्मित है। ज्योतिषीय आधार की भविष्यवाणियो और फल-कथन में इन ग्रहों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सर्वप्रथम नक्षत्रों की पहचान आचार्य वराहमिहिर, पाराशर, जैमिनी आदि ऋषियों द्वारा की गई थी। ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों,नक्षत्रों और राशियों के आराध्य 'वृक्ष' है तथा इनके पर्यायवृक्ष भी है। इनके माध्यम से ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए उपासना आराधना की जाती है। पापनाश, भाग्योदय और शारीरिक कष्ट निवारण के लिए ग्रहों के अनुसार रत्न धारण करना तथा गृह वृक्षों का सान्निध्य और उपासना-आराधना का हमारे ज्योतिसशास्त्र में विस्तृत विवरण मिलता है। जिस प्रकार ग्रहों के लिए निर्धारित रत्नों के प्रभाव से ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है, उसी प्रकार ग्रहों के आराध्य वृक्षों के सामीप्य से उतनी ही अनुकूलता प्राप्त होती है। जिस प्रकार रत्नों के उपरत्न होते है, उसी प्रकार आराध्य वृक्षों के पर्यायी वृक्ष भी होते है। वे भी कमोबेश उतना ही फल प्रदान करते है। रत्नों की शुद्धता के आभाव में कभी-कभी विपरीत असर भी होता है तथा वे सामान्य जनता की पहुँच के बाहर भी होते है। हमारे ऋषि-महऋषियों ने ग्रहों से सम्बंधित रत्नों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावी और सर्वसाधारण की पहुँच के भीतर प्रकृति प्रद्दत वृक्षों के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। गृह-नक्षत्रों के आराध्य वृक्षों और जड़ों के द्वारा ग्रहों के कुप्रभावों का शमन और उन्हें शांत किया जा सकता है तथा वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, जो रत्नों के प्रयोग से संभव है। वृक्षों का सानिध्य किसी भी स्थिति में प्रतिकूलता प्रदान नहीं करता है अपितु ग्रहों के बुरे प्रभाव से हमें बचाते है।
नवग्रह वनस्पतियों की सूची
ग्रह
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वनस्पतियाँ
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हिंदी नाम
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संस्कृत नाम
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वैज्ञानिक
नाम
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1.सूर्य
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आक
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अर्क
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कैलोट्रपिस
प्रोसेरा
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2.चन्द्र
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ढांक
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पलाश
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ब्यूटिया
मोनोस्पर्मा
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3.मंगल
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खैर
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खदिर
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अकेसिया कटेचू
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4.बुध
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चिचिड़ा
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अपामार्ग
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अकाइरेंथस
एस्पेरा
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5.बृहस्पति
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पीपल
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पिप्पल
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फाइकस
रिलीजिओसा
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6.शुक्र
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गूलर
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औडम्बर
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फाइकस
ग्लोमरेटा
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7.शनि
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छ्योकर
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शमी
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प्रोसोपिस
सिनरेरिया
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8.राहु
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डूब
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दुर्वा
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साइनोडान डेक्टाइलान
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9.केतु
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कुश
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कुश
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डेस्मोस्टेचिया
बाईपिन्नेटा
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नव ग्रह वाटिका
नव ग्रह मंडल में ग्रहानुसार वनस्पतियों की स्थापना करने पर वाटिका की स्थिति निम्नानुसार होनी चाहिए
केतु
कुश
|
बृहस्पति
पीपल
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बुध
लटजीरा
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शनि
शमी
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सूर्य
आक
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शुक्र
गूलर
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राहु
दूब
|
मंगल
खैर
|
चन्द्र
ढाक
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सौर मंडल का सम्राट सूर्य है और सौर मंडल में जो गृह है वे भी सूर्य के अंश है। सूर्य से प्रथ्वी और प्रथ्वी से समस्त प्राणी, वृक्ष और वनस्पति निर्मित है। ज्योतिषीय आधार की भविष्यवाणियो और फल-कथन में इन ग्रहों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सर्वप्रथम नक्षत्रों की पहचान आचार्य वराहमिहिर, पाराशर, जैमिनी आदि ऋषियों द्वारा की गई थी। ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों,नक्षत्रों और राशियों के आराध्य 'वृक्ष' है तथा इनके पर्यायवृक्ष भी है। इनके माध्यम से ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए उपासना आराधना की जाती है। पापनाश, भाग्योदय और शारीरिक कष्ट निवारण के लिए ग्रहों के अनुसार रत्न धारण करना तथा गृह वृक्षों का सान्निध्य और उपासना-आराधना का हमारे ज्योतिसशास्त्र में विस्तृत विवरण मिलता है। जिस प्रकार ग्रहों के लिए निर्धारित रत्नों के प्रभाव से ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है, उसी प्रकार ग्रहों के आराध्य वृक्षों के सामीप्य से उतनी ही अनुकूलता प्राप्त होती है। जिस प्रकार रत्नों के उपरत्न होते है, उसी प्रकार आराध्य वृक्षों के पर्यायी वृक्ष भी होते है। वे भी कमोबेश उतना ही फल प्रदान करते है। रत्नों की शुद्धता के आभाव में कभी-कभी विपरीत असर भी होता है तथा वे सामान्य जनता की पहुँच के बाहर भी होते है। हमारे ऋषि-महऋषियों ने ग्रहों से सम्बंधित रत्नों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावी और सर्वसाधारण की पहुँच के भीतर प्रकृति प्रद्दत वृक्षों के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। गृह-नक्षत्रों के आराध्य वृक्षों और जड़ों के द्वारा ग्रहों के कुप्रभावों का शमन और उन्हें शांत किया जा सकता है तथा वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, जो रत्नों के प्रयोग से संभव है। वृक्षों का सानिध्य किसी भी स्थिति में प्रतिकूलता प्रदान नहीं करता है अपितु ग्रहों के बुरे प्रभाव से हमें बचाते है।
वर्तमान में वैज्ञानिक अनुसंधान में भी पाया गया है की वृक्ष अपने अन्दर किसी
अदृश्य ओरा (प्रभामंडल) को प्रभाहित करने की अद्भुत क्षमता रखते है। जहाँ पेड़-पौधे
ग्रहजनित अमंगलनाश तथा मंगल प्राप्ति का माध्यम हैं, वहीं वायु प्रदूषण समाप्त
करने और शुद्ध वायु प्रदान करने में हमारे इन वृक्षों का अतुलनीय योगदान है। आज
वायु प्रदूषण एक समस्या बन गई है जिससे अनेक प्रकार की संघातिक बीमारियाँ फ़ैल रही
है और शुद्ध हवा दुर्लभ होती जा रही है। देश में आज मोबाइल ऑक्सीजन गैस किट की
चर्चा होने लगी है। वाहन चलते समय सामान्यतः मास्क प्रयोग का चलन प्रारंभ हो गया
है। स्वस्थ शरीर और दीर्ध जीवन के लिए पर्यावरण शुद्ध होना बेहद जरुरी है। वायु प्रदूषण
समाप्त करने और शुद्ध वायु प्राप्त करने के लिए इन गृह-नक्षत्रों के आराध्य
वृक्षों में अद्भुत क्षमता है। आज देश के अनेक क्षेत्रों में गृह-नक्षत्र वाटिकाएं
स्थापित हो रही है।
वनवास काल में भगवान् राम की पंचवटी का उल्लेक्ष भी ग्रंथों में मिलता है। शास्त्रों में वृक्षों के बारे में कहा गया है की ‘एको वृक्षो दश्पुत्र समो भवेत’ अर्थात एक वृक्ष दस पुत्रों के सामान होता है। पुत्र से तो कभी निराशा भी हो जाती है किन्तु वृक्षों से कभी निराशा नहीं हो सकती है। कहा गया है ‘धन्या महिरुहायेभयो निराशा यांती नार्थिन:’. हमारे यहाँ वृक्षों और वनस्पतियों की बहुत बड़ी महिमा है। विष्णु पुराण और पदम् पुराण में तो पेड़ पौधों में जीवन माना गया है। भूगर्भशास्त्रियों ने वृक्षों की वैज्ञानिक महत्ता प्रतिपादित की है। गृह-नक्षत्र वृक्षों के पर्यायी, क्षेमकर तथा औषधीय वृक्ष भी है। आर्युवेद में जितनी भी काष्ठादि औषधिया है, वे सभी पेड़ पौधों और वनस्पतियों से मिलती है और उनका प्रभाव भी अचूक है। बताया गया है ; ‘नास्ति मुलं अनौषधम’ अर्थात ऐसी कोई वनस्पति नहीं होती जिसमे औषधीय गुण न हो। इन वृक्षों में कई ऐसे वृक्ष है जिनके सान्निध्य में बैठने से कई प्रकार के असाध्य रोगों का निवारण और उनके उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से मुक्ति का आयुर्वेदीय ग्रंथों में विसद विवरण दिया गया है। इनमे अनेक वृक्ष आय के अच्छे साधन भी है. इनके सभी भाग जड़,पल्लव,पुष्प और फल का अपना अपना महत्त्व है। यज्ञ, हवन, औषधि और पर्यावरण में इनका अपना विशेष स्थान है. तंत्र शास्त्र में वृक्षों की जड़ों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। ये जड़े उतना ही प्रभाव रखती है जितना रत्न रखते है और कई बार तो ये रत्नों से भी अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों की महिमा
भारतीय संस्कृति में वृक्षारोपण और वृक्ष पूजन की सुदीर्ध परंपरा है। वृक्षरोपण को शास्त्रों में वृष्टि यज्ञ कहा गया है, तथा इसे भक्ति, शक्ति तथा मुक्ति का दाता माना गया है। महाभारत में वृक्षों को जीवनदाता माना गया है और वृक्ष काटने वाले के लिए दण्ड निर्धारित किया गया है।- पीपल का पेड़ अहर्निश प्राण वायु (ऑक्सीजन) प्रदान करता है। इसके नीचे अन्य पेड़ पनप जाते है, भगवान् ने भी इस अपनी विभूति बताया है। इतना ही नहीं श्रीमदभगवतगीता के दशवे अध्याय के छबीसवें श्लोक में “अश्वत्थ: सर्ववृक्षणां” अर्थात सभी वृक्षों में मै पीपल हूँ। पीपल को वृक्षों का राजा माना जाता है। वृक्षों के राजा पीपल को जलाशय के समीप लगाने से सैकड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है, उसके दर्शन से पापनाश, स्पर्श से लक्ष्मी और प्रदक्षिणा से आयु बढती है। पीपल का वृक्ष लगाने से दरिद्रता दूर होकर मनुष्य धनी बनता है। तंत्र शास्त्र में पीपल ही ऐसा वृक्ष है, जिसमे कोई रोग नहीं लग सकता।
- अमरता का प्रतीक वाट वृक्ष और फलों का राजा आम के पेड़ लगाने से पितृगण प्रसन्न होते है. प्रयाग का अक्षय वट, उज्जैन का सिद्ध वट, नासिक का पंचवट, गया का वोधिवृक्ष, भड़ूच के पास कबीर वट, वृन्दावन का बंसीवट हमारे श्रद्धा के केंद्र है।
- अशोक शोक का नाश करता है। पाकर वृक्ष यज्ञ का फल देता है। श्री कृष्णलीला का साक्षी कदम्ब, शीतलता का प्रतीक चन्दन, ऋद्धि-सिद्धि का दाता श्रीफल तथा नीम आयु प्रदान करता है। अनार के वृक्ष के पूजन से सदगृहणी मिलती है।
- पलाश ब्रह्म तेज देने वाला, मौलश्री कुल वृद्धि करता है। चंपा का वृक्ष सौभाग्यदाता है। बेल के वृक्ष में भगवान् शिव शंकर और गुलाब में भगवती पार्वती का निवास माना गया है। खैर का वृक्ष आरोग्यवर्धक है, वही अर्जुन का वृक्ष की छाल ह्रदय रोग में राम वाण सिद्ध हो रही है।
- कटहल के वृक्ष को लक्ष्मी प्रदाता कहा गया है। नीम और आक का वृक्ष लगाने से सूर्य भगवान् प्रसन्न होते है। तुलसी और नीम के गुणों से सारा संसार परिचित है।
वनवास काल में भगवान् राम की पंचवटी का उल्लेक्ष भी ग्रंथों में मिलता है। शास्त्रों में वृक्षों के बारे में कहा गया है की ‘एको वृक्षो दश्पुत्र समो भवेत’ अर्थात एक वृक्ष दस पुत्रों के सामान होता है। पुत्र से तो कभी निराशा भी हो जाती है किन्तु वृक्षों से कभी निराशा नहीं हो सकती है। कहा गया है ‘धन्या महिरुहायेभयो निराशा यांती नार्थिन:’. हमारे यहाँ वृक्षों और वनस्पतियों की बहुत बड़ी महिमा है। विष्णु पुराण और पदम् पुराण में तो पेड़ पौधों में जीवन माना गया है। भूगर्भशास्त्रियों ने वृक्षों की वैज्ञानिक महत्ता प्रतिपादित की है। गृह-नक्षत्र वृक्षों के पर्यायी, क्षेमकर तथा औषधीय वृक्ष भी है। आर्युवेद में जितनी भी काष्ठादि औषधिया है, वे सभी पेड़ पौधों और वनस्पतियों से मिलती है और उनका प्रभाव भी अचूक है। बताया गया है ; ‘नास्ति मुलं अनौषधम’ अर्थात ऐसी कोई वनस्पति नहीं होती जिसमे औषधीय गुण न हो। इन वृक्षों में कई ऐसे वृक्ष है जिनके सान्निध्य में बैठने से कई प्रकार के असाध्य रोगों का निवारण और उनके उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से मुक्ति का आयुर्वेदीय ग्रंथों में विसद विवरण दिया गया है। इनमे अनेक वृक्ष आय के अच्छे साधन भी है. इनके सभी भाग जड़,पल्लव,पुष्प और फल का अपना अपना महत्त्व है। यज्ञ, हवन, औषधि और पर्यावरण में इनका अपना विशेष स्थान है. तंत्र शास्त्र में वृक्षों की जड़ों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। ये जड़े उतना ही प्रभाव रखती है जितना रत्न रखते है और कई बार तो ये रत्नों से भी अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है।
वृक्ष और वनस्पतियों के रोपण से तो अनेकानेक लाभ है। श्रीमदभागवत में आंवला,
पीपल, तुलसी, गाय और श्रीमदभगवतगीता को कल्पवृक्ष बताया गया है। इन्हें हर घर में लगाना चाहिए। वृक्ष हमारे लिए कामधेनु है, ये जहाँ दैहिक दैविक कष्टों को दूर करते
हैं वहीं भौतिक रूप से आय के प्रबल स्त्रोत के रूप में स्थापित है। इसलिए कहा गया है की पेड़ पौधे
लगाने वाला कभी दरिद्र नहीं हो सकता है, उसके यहाँ लक्ष्मी का स्थाई निवास होता
है। अतः हम सब को अपने परिवेश और पर्यावरण को हरा भरा और सुन्दर बनाने का संकल्प लेना होगा और वृक्ष वनस्पतियों के महत्त्व को लेकर जन जागृति अभियान चलाना चाहिए। अपने आस पास के पेड़ पौधों की सुरक्षा और उनका प्रबंधन करना चाहिए। जन्म दिवस और विवाह की साल गृह के शुभ अवसर पर पौधे लगायें, आवश्यकतानुसार उनमें पानी देवें तथा सुरक्षा प्रदान करें। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी वृक्षारोपण करने के लिए प्रेरित करिए तभी हम अपना वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के सुन्दर भविष्य की कल्पना साकार कर सकते है।