डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान),इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,कांपा,जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)
हमारे देश
में रबी अर्थात शीत
ऋतु में मुख्य रूप से गेहूं, जौ, राई-सरसों, अलसी,चना, मटर,मसूर, गन्ना आदि फसलों की खेती की जाती हैं।
फसलोत्पादन
को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों यथा वर्षा जल,
तापक्रम, आद्रता, प्रकाश
आदि के अलावा जैविक कारकों जैसे कीट, रोग व खरपतवार प्रकोप से फसल उपज
का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है । इन सभी फसल नाशकों में से खरपतवारों
द्वारा फसल को सर्वाधिक नुकसान
होता है । खरपतवारों
के प्रकोप से दलहनी फसलों में 75 से
90 प्रतिशत, तिलहन फसलों में 25 से 35 प्रतिशत तथा गेहूं व जौ आदि खाद्यान्न
फसलों में 10 से 60 प्रतिशत तक पैदावार घट जाती है। सही समय पर खरपतवार
नियंत्रित कर लिया जावे तो हमारे खाद्यान्न के
लगभग एक तिहाई हिस्से को नष्ट होने से बचा कर देश की खाद्यान्न सुरक्षा को
अधिक मजबूत किया जा सकता है । खेत में खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्वों,
हवा, पानी और प्रकाश के लिए
प्रतिस्पर्धा करते है जिससे फसल उपज की मात्रा एवं गुणवत्ता में गिरावट हो जाती है
। प्रभावशाली ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए हमें खरपतवारों का ज्ञान होना अति आवश्यक है । रबी फसलों के साथ उगने वाले प्रमुख खरपतवारों को तीन वर्गों में विभाजित किया
गया है :
1.चौड़ी पत्ती वाले
खरपतवारः
बथुआ (चिनोपोडियम
एल्बम), कृष्णनील (एनागेलिस आरवेंसिस),
जंगली पालक (रूमेक्स डेन्टाटस), हिरनखुरी(कन्वावुलस
आर्वेंसिस), सफ़ेद सेंजी (मेलीलोटस
एल्बा), पीली सेंजी (मेलीलोटस इंडिका) जंगली रिजका (मेडीकागो डेन्टीकुलाटा),
अकरा-अकरी (विसिया प्रजाति), जंगली गाजर
(फ्यूमेरिया पारविफ़्लोरा), चटरी-मटरी (लेथाइरस अफाका),सत्यानाशी
(आरजीमोन मेक्सिकाना) आदि ।
3.मोथा कुल के खरपतवारः
मौथ (साइप्रस प्रजाति ) आदि ।
एक बीज पत्रिय घास एवं मोथा कुल के खरपतवारों को ऐसे पहचानें
रबी फसलों के संकरी पत्ती वाले एक बीज पत्रिय खरपतवार
रबी फसलों के संकरी पत्ती वाले एक बीज पत्रिय खरपतवार
रबी फसलों के संकरी पत्ती वाले एक बीज पत्रिय खरपतवार
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
रबी फसलों के चौड़ी पत्ती वाले द्विबीज पत्रिय खरपतवार |
बेहतर उपज के लिए सही समय पर खरपतवारों का नियंत्रण
रबी फसलों से
प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए इन फसलों की बुआई से लेकर
प्रारंभिक 25-30 दिन तक की अवस्था तक खेत को खरपतवार
मुक्त रखना आवश्यक रहता है। फसल की बुवाई से लेकर फसल कटाई तक खेत में खरपतवार नियंत्रण की विधियाँ अपनाना आर्थिक
दृष्टि से लाभदायक नहीं माना जा सकता है । इसलिए फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की
क्रान्तिक अवस्था में (सारणी-1 के अनुसार)
खरपतवार नियंत्रण अति आवश्यक है, अन्यथा
फसल उत्पादन में भारी क्षति होने की सम्भावना रहती है।
सारणीः खरपतवारों
द्वारा रबी फसलों की उपज में हांनि एवं फसल-खरपतवार
प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय
रबी फसलें |
उपज में संभावित कमीं (%) |
फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय |
गेंहू |
20-40 |
30-45 |
जौ |
10-30 |
15-45 |
रबी मक्का |
20-40 |
30-45 |
चना |
15-25 |
30-60 |
मटर |
20-30 |
30-45 |
मसूर |
20-30 |
30-60 |
राई-सरसों |
15-40 |
15-30 |
सूर्यमुखी |
30-45 |
33-50 |
कुसुम (करडी) |
15-45 |
35-60 |
अलसी |
20-40 |
30-40 |
गन्ना |
20-30 |
30-120 |
आलू |
30-60 |
20-40 |
गाजर |
70-80 |
15-20 |
प्याज व लहसुन |
60-70 |
30-75 |
मिर्च व टमाटर |
40-70 |
30-45 |
बैंगन |
30-50 |
20-60 |
खरपतावार
नियंत्रण के प्रमुख उपाय
खरपतवार
प्रबन्धन के अंतर्गत खरपतवारों का निरोधन, उन्मूलन तथा नियंत्रण सम्मिलित होता
है । खरपतवार नियंत्रण की सीमा में खरपतवारों की वृद्धि रोकना,
खरपतवार तथा फसलों के बीच प्रतिस्पर्धा को घटाना, खरपतवार का बीज
बनने से रोकना तथा बीजों तथा अन्य वानस्पतिक भागों का प्रसरण रोकने के अलावा
खरपतवारों का सम्पूर्ण विनाश आता है जो खरपतवार प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है ।
खरपतवार प्रबन्धन के अन्तर्गत निरोधी एवं चिकित्सकीय
विधियाँ आती है । चिकित्सकीय विधि के अंतर्गत उन्मूलन तथा नियंत्रण सम्मिलित होता है ।
परंपरागत रूप
से खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदाई, गुड़ाई ही कारगर विधि मानी जाती थी ।
परन्तु प्रतिकूल मौसम जैसे लगातार वर्षा अथवा मजदूर न मिलने के
कारण यांत्रिक या सस्यविधियों से खरपतवार
नियंत्रण कठिन होता जा रहा है । इन विषम परिस्थितियों में सीमित लागत तथा कम समय में अधिक क्षेत्रफल में फसल के इन
दुश्मनों पर नियंत्रण पाने के लिए रासायनिक विधियाँ कारगर साबित हो
रही है । शाकनाशियों के प्रयोग से खरपतवार
उगते ही नष्ट हो जाते है जिससे उनकी पुर्नवृद्धि,
फूल व बीज विकास रूक जाता है । शाकनाशियों को पमुख तीन वर्गों
में बांटा गया है अथवा शाकनाशियों को तीन तरह से उपयोग कर सकते है ।
1.बुवाई से पूर्व
प्रयुक्त शाकनाशक (पी.पी.आई.) : इस प्रकार के शाकनाशक बुवाई के पूर्व खेत की अंतिम जुताई
के समय छिड़काव कर मृदा में मिला दिये जाते है जिससे खरपतवार उगने से पूर्व
ही समाप्त हो जाते है अथवा उगने पर नश्ट हो जाते है । ये शाकनाषक उड़नषील
प्रकृति के होते है । अतः छिड़काव के साथ
या तुरन्त पश्चात इन्हें भूमि में मिलाना आवष्यक
रहता है, अन्यथा इनका प्रभाव कम हो जाता है । उदाहरण के
लिए फ्लूक्लोरेलिन, ट्राईफ्लूरेलीन आदि ।
2. अंकुरण पूर्व एवं
बुवाई पश्चात प्रयुक्त शाकनाशक (पी.ई.): इस प्रकार के शाकनाशकों बुवाई के तुरन्त पश्चात (24-36 घण्टे
तक) एवं अंकुरण से पूर्व पप्रयोग में लाये जाते है ।
चूंकि ज्यादातर खरपतवार फसल उगने से पहले उग जाते है । अतः ये शाकनाषक उगते हुए खरपतवारों
को नष्ट कर देते है तथा अन्य खरपतवारों को
उगने से रोकते है । ये चयनित प्रकार के शाकनाशक होते है अर्थात फसल को क्षति नहीं पहुंचाते है । इनका प्रयोग करते समय
भूमि में नमीं रहना अतिआवश्यक है अन्यथा इनकी क्रियाशीलता कम हो जाती है । उदाहरण
के लिए एट्राजीन, एलाक्लोर, पेन्डीमेथालीन
आदि ।
3.अंकुरण पश्चात खड़ी
फसल में प्रयुक्त शाकनाशक (पी.ओ .ई.): इस
प्रकार के शाकनाषक फसल उगने के पश्चात खड़ी फसल में छिड़के जाते है । ये चुनिंदा (वरणात्मक) प्रकार के शाकनाषक होते है, जो कि खरपतवारों को
विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा नष्ट करते है तथा फसल को नुकसान
नहीं पहुँचाते है । अनेक बार अन्य फसलों की बुवाई में व्यस्तता, लगातार वर्षा होने या अन्य किसी वजह से बुवाई पूर्व (पी.पी.आई.) या
अंकुरण पूर्व (पी.ई.) शाकनाशकों का प्रयोग नहीं संभव हो सके तो बुवाई पश्चात खड़ी फसल में (पी.अ¨.ई.) शाकनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है । खड़ी फसल में इनका प्रयोग
करते समय थोड़ी सावधानियाँ रखना आवश्यक रहता है, जैसे
विशिष्ट खरपतवारों के लिए संस्तुत उचित शाकनाषक की सही
मात्रा का उचित समय एवं सही विधि द्वारा
छिड़काव करना चाहिए अन्यथा फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । खड़ी फसल में इनका
प्रयोग करते समय चिपकने वाला पदार्थ (सर्फेक्टेन्ट) जैसे साबुन, शैम्पू, सैंडोविट आदि 0,5 प्रतिशत (500 मिली प्रति हैक्टर) को मिलाकर
छिड़काव करने से ये पदार्थ खरपतवारों की संपूर्ण पत्तियों पर फैलकर चिपक जाते
है एवं उनकी क्रियाशीलता को बढ़ाते है । ध्यान रखे कि स्प्रेयर की टंकी में पहले शाकनाषक
मिलाये तथा बाद में सर्फेक्टेन्ट को डाल कर
छिड़काव करें । जैसे 2,4-डी, मेटसल्फूरोन
मिथाइल, सल्फोसल्फुरान, क्यूजालोफ्प
इथाईल, क्लोडिनोफाप आदि फसल विशेष खरपतवारनाशक है ।
सारणी: विभिन्न रबी फसलों में खरपतवार
नियंत्रण हेतु प्रभावी शाकनाशी
शाकनाशी रसायन |
व्यवसायिक नाम |
फसल |
सक्रिय तत्व दर (ग्राम प्रति हेक्टेयर) |
व्यवसायिक मात्रा (ग्राम प्रति हेक्टेयर ) |
छिडकाव का समय |
||
फ्ल्युक्लोरेलिन 45 ईसी |
बासलिन |
सरसों,तोरिया,अलसी, रामतिल,चना,मटर व मसूर |
1000
|
2222
|
बीज बोने से पूर्व भूमि में मिला दें. |
||
ट्राईफ़्लूरालीन 48 ईसी |
टेफलान |
सरसों,तोरिया,अलसी, रामतिल,चना,मटर व मसूर |
1000
|
2083
|
बीज बोने से पूर्व भूमि में मिला दें. |
||
खरपतवार अंकुरण से पूर्व प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी |
|||||||
लिनुरान 50 डब्ल्यू पी |
अफलान |
मटर |
940 |
1880
|
बुवाई के 3 दिन के अन्दर उचित नमीं की अवस्था
पर |
||
एलाक्लोर 50 ईसी |
लासो |
राई एवं सरसों, कुसुम,सूरजमुखी |
625
|
1250
|
-तदैव- |
||
पेंडीमेथिलिन 30 ईसी |
स्टॉम्प |
प्याज,टमाटर,मिर्च |
750-1000
|
2500-3333
|
-तदैव- |
||
मैट्रीब्युजिन 70 डब्ल्यू पी |
सैन्कोर |
मटर |
250-750
|
367-1070
|
-तदैव- |
||
मेटोलाक्लोर 50 ईसी |
डुअल |
मटर,चना,मसूर |
1500
|
3000
|
-तदैव- |
||
मैट्रीब्युजिन 70 डब्ल्यू पी |
सैन्कोर |
गन्ना |
700-1400
|
1000-2000
|
-तदैव- |
||
एट्राजीन 50 डब्ल्यू पी |
एट्राटॉप |
गन्ना |
1000-2000
|
2000-4000
|
-तदैव- |
||
ऑक्जोडायजोन 25 ईसी |
रॉनस्टार |
अलसी,सूर्यमुखी, मूंगफली |
750
|
3000
|
-तदैव- |
||
ऑक्सीफ्लोरोफिन 23.5 ईसी |
गोल |
राई एवं सरसों,चना, मटर,मसूर,आलू |
100-200
|
425-850
|
-तदैव- |
||
खरपतवार अंकुरण के बाद प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी |
|||||||
मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 20 डब्ल्यू पी |
आलग्रिप |
गेंहू |
4.0
|
20
|
बुवाई के 30-40 दिन बाद |
||
2,4-डी डाईमिथाइल एमाइन साल्ट 58 डब्ल्यू एस सी |
जूरा |
गेंहू |
500
|
750
|
बुवाई के 30-40 दिन बाद |
||
फिनाक्साप्रॉप पी इथाइल 9.3 ईसी |
प्यूमा सुपर |
गेंहू |
100-120
|
1000-1200
|
बुवाई के 30-40 दिन बाद |
||
आइसोप्रोट्युरान 75 % डब्ल्यू पी |
आइसोगार्ड |
गेंहू |
1000
|
1333-2000
|
बुवाई के 25-30 दिन बाद |
||
कार्फेन्टाजोन 40 डी एफ |
एफेनिटी |
गेंहू |
20
|
50
|
बुवाई के 25-30 दिन बाद |
||
क्लोडिनाफॉप 15 डब्ल्यू पी |
टॉपिक |
गेंहू |
60
|
400
|
बुवाई के 30-40 दिन बाद |
||
पिनाक्साडिन 5 ईसी |
एक्सिल |
गेंहू |
50
|
1000
|
-तदैव- |
||
मीजो सल्फो सल्फ्यूरॉन मिथाइल 3% + आइडोसल्फ्यूरॉन
मिथाइल 0.6% |
एटलान्टिस |
गेंहू |
12
+2.4 |
400
|
-तदैव- |
||
सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यू जी |
लीडर |
गेंहू |
25
|
33
|
-तदैव- |
||
मैट्रीब्युजिन 70 डब्ल्यू पी |
सैंकोर |
गेंहू |
175-200
|
250-300
|
-तदैव- |
||
सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 % + मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल
5% 75.5 डब्ल्यू जी |
टोटल |
गेंहू |
30+2.0
|
40
|
-तदैव- |
||
क्लोडिनाफॉप
15 % + मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 1.0 % डब्ल्यू पी |
वेस्टा |
गेंहू |
60+4.0
|
400
|
-तदैव- |
||
फिनाक्साप्रॉप 8% + मैट्रीब्युजिन 22 % ईसी |
एकार्ड प्लस |
गेंहू |
120
+210 |
1500
|
-तदैव- |
||
सल्फोसल्फ्यूरॉन 25% + कार्फेन्टाजोन 20% |
ब्राडवे |
गेंहू |
45
|
250
|
-तदैव- |
||
इमेजाथापर 10 एस.एल. |
परसूट |
मटर,मसूर |
75-100
|
750-1000
|
बुवाई के 10-15 दिन बाद |
||
क्यूजेलाफॉप इथाइल 84 डब्ल्यू डी जी |
टरगा सुपर |
चना, मटर,मसूर |
40-50
|
800-1000
|
बुवाई के 15-20 दिन बाद |
||
मैट्रीब्युजिन 70 डब्ल्यू पी |
सैंकोर |
आलू |
350
|
500
|
बुवाई के 30-40 दिन बाद |
||
2,4-डी डाईमिथाइल एमाइन साल्ट 58 डब्ल्यू एस सी |
जूरा |
गन्ना |
3500
|
6034
|
2-4 पत्ती अवस्था |
||
2,4-डी डाईमिथाइल एमाइन साल्ट 80
डब्ल्यू पी |
वीड कट |
गन्ना |
2000-2600
|
2500-3250
|
2-4 पत्ती अवस्था |
||
हैक्साजिनॉन 13.2%+ डाईयूरोन 46.8 डब्ल्यू पी |
वेलपार के |
गन्ना |
1200
|
2000
|
2-4 पत्ती अवस्था |
||
प्रोपाक्यूजाफॉप 10 ईसी |
एजिल |
मिर्च,टमाटर |
75
|
750
|
5-7 पत्ती अवस्था |
||
क्युजेलाफॉप पी इथाइल 5 ईसी |
टरगा सुपर |
प्याज,टमाटर |
75
|
750
|
बुवाई के 10-15 दिन बाद |
||
शाखरपतवार नियंत्रण हेतु शाकनाशी की संस्तुत मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। कम मात्रा में प्रयोग से खरपतवारों पर ये कम प्रभावी तथा अधिक मात्रा होने पर फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है। फसलों में प्रयोग हेतु संस्तुत वर्णात्मक शाकनाशियों का ही प्रयोग करना चाहिए बुवाई से पूर्व तथा खरपतवार बीज अंकुरण से पहले प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी की क्रियाशीलता के लिए पर्याप्त नमीं का होना अति आवश्यक होता है।छिडकाव करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि शाकनाशीय घोल का समान रूप से खेत में वितरण हो जिससे सम्पूर्ण खरपतवारों पर नियंत्रण हो सकें।