कृषि कला ही नही अपितु एक सुदृढ़ एवं सफल विज्ञान है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कृषि कार्य अब जीविकोपार्जन का साधन न रहकर, एक वृहद उद्योग का रूप लेता जा रहा है । परंतु व्यवहारिक स्तर पर हमारे देश में कृषि का ओद्योगिक स्वरूप अभी भी उभर कर सामने नहीं आ पाया है । सैद्धांतिक रूप से कृषि शिक्षा को तकनीकी शिक्षा भले ही मान ले परन्तु यथार्थ के धरातल पर कृषि का चिकित्सकीय दृष्टिकोण हमसे अभी भी दूर है । आज भी कृषि स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण कर खेती किसानी अथवा स्वंय का व्यवसाय न कर नौकरी की तलाश में रहते है क्योकि शिक्षा के दरम्यान उन्हे कृषि व्यवसाय और खेती किसानी की ओर अग्रसर होने की व्यवहारिक शिक्षा और संस्कार देने में कहीं न कहीं हमसे चूक हो रही है । मृदा प्रबंध भू-प्रबंध, जल प्रबध और पौध संरक्षण की शिक्षा तो दी जाती है परन्तु मृदा और पादप स्वास्थ्य अभी भी आम चर्चा का विषय नहीं बन पाया है । विकसित देशो में मानव स्वास्थ्य व पशु स्वास्थ्य की भांति पादप और मृदा स्वास्थ्य की अवधारणा विकसित हो चुकी है जिसके फलस्वरूप वहां के गांवो व नगरो में बड़ी तादाद में कृषि चिकित्सालय स्थापित हो रहे है । विकसित और अनेक विकासशील देशो के किसानो व जनसामान्य ने पादप व मृदा स्वास्थ्य की अवधारणा को आत्मसात कर लिया है । हमारे देश में भी कृषि शिक्षा को स्वरोजगारोन्मुखी बनाने की दिशा में केंद्र व राज्य सरकारो ने कारगर कदम उठाये है ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई दिल्ली ने कृषि शिक्षा को स्वरोजगारोन्मुखी बनाने के उद्देश्य से स्नातक उपाधि के अंगीभूत ग्राम्य कृषि कार्य अनुभव एक ग्रामोन्मुखी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम लागू किया है । इस प्रशिक्षण का उद्देश्य किसानो की समस्याओ के समाधान की दिशा में कृषि छात्र-छात्राओं को ¨ स्वावलंबी बनाते हुए सर्वांगीण ग्राम्य विकास का पथ प्रशस्त करना है । सम्पूर्ण भारत में कृषि शिक्षा में एकरूपता लाने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् नई दिल्ली की चतुर्थ अधिष्ठाता समिति ने कृषि स्नातक शिक्षा के लिए नवीन पाठ्यक्रम की अनुशंसा की है जिसमें ग्राम्य कृषि कार्य अनुभव पाठ्य्रम में भी संसोधन किया गया है । इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में स्नातक उपाधि हेतु अध्ययनरत विद्यार्थियो के लिए गाम्य कृषि कार्य अनुभव (Rural Agriculture Work Experience Programme) नाम से महत्वाकांक्षी व्यवहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चतुर्थ अधिष्ठाता समिति की अनुशंसा के अनुरूप सभी महाविद्यालयो में प्रारंभ किया है । इसका लक्ष्य ग्राम्य जीवन के परिवेश में तथा कृषक परिवार की पृष्ठभूमि मे छात्र-छात्राओं को कृषि की वर्तमान स्थिति से अवगत कराना है । स्नातक उपाधि के अंतिम वर्ष में विद्यार्थियो को इस छःमाही व्यवहारिक प्रशिक्षण में अनिवार्य रूप से भाग लेना होता है। सीखने और सिखाने की अवधारणा के निमित्त विद्यार्थिओ को ¨ तीन माह के लिए कृषक परिवारो के साथ संलग्न किया जाता है । इस दोरान उन्हे फसल उत्पादन उद्यानिकी, फसल संरक्षण (कीट व रोग प्रबंधन), ग्रामीण कृषि अर्थशास्त्र और कृषि प्रसार शिक्षा से संबधित विषयो पर वरिष्ठ प्राध्यापको द्वारा प्रायो गिक प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा कृषको के खेत पर कृषि तकनीक प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण आयोजित किये जाते है । इस कार्यक्रम के तहत छात्र-छात्राओं को कृषि शोध संस्थान, कृषि विज्ञान केन्द्रो और कृषि संबंधित उद्यमिता केन्द्रो के साथ भी संलग्न किया जाता है जिससे वे कृषि अनुसंधान, प्रसार और उद्यम से संबंधित गतिविधियो के बारे में ज्ञान अर्जित कर सकें । अंत में संबंधित विषयो में छात्र-छात्राओं द्वारा अर्जित ज्ञान और कोशल की प्रायोगिक परीक्षा आयोजित की जाती है जिसमें सफल होने के पश्चात ही उन्हें कृषि स्नातक की उपाधि प्रदान की जाती है । सीखो और सिखाओ तथा देखो फिर करो की मूल भावना के निमित्त संचालित ग्राम्य कृषि कार्य अनुभव के पमुख उद्देश्य हैः
1. विद्यार्थियो को गाँव में रहकर किसान परिवारो की जीवनशैली, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पहलुओ के बारे में अध्ययन का अवसर प्रदान करना ।
2. छात्र-छात्राओं एवं किसानो को फसलोत्पादन, उद्यानिकी, फसल सुरक्षा, कृषि अर्थशास्त्र तथा कृषि प्रसार शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयो पर व्यवहारिक प्रशिक्षण।
3. गाँव में अपनाई जा रही कृषि प्रणाली का अध्ययन करना एवं स्थानीय भूमि एवं जलवायु के आधार पर आदर्श फसल पद्धति तैयार कर उसके क्रियान्वयन हेतु कृषको को प्रेरित करना ।
4. कृषि तकनीक को कुशलता से हस्तान्तरित करने हेतु विद्यार्थियो को सक्षम बनाना ।
5. केन्द्र व राज्य शासन द्वारा संचालित कृषि एवं किसान हितैषी विभिन्न योजनाओं के बारे में किसानो एवं छात्र-छात्राओं को अवगत कराना ।
6. कृषि चिकित्सा एवं कृषि व्यवसाय से संबंधित व्यवहारिक तत्वों का अध्ययन एवं स्वरोजगार स्थापित करने किसानो व छात्र-छात्राओं को प्रेरित करना ।
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