सादर प्रस्तुति डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर
भगवान श्री राम जब अयोध्या के सिंहासन पर बैठे तो वहां के नागरिको को संबोधित करते हुए उन्होने अपने भाषण के आरंभ में कहा-मित्रो ! मेरे राज्य की सच्ची प्रजा वह है जो मेरा अनुशासन माने और मेरा अनुशान मानकर मेरे अनुशासन में रहे । तो प्रजा ने कहा “बताइये-अनुशासन का पालन हम लोग क्या करें ? तो भगवान श्रीराघवेन्द्र कहते है-
और मेरा अनुशासन क्या है । भगवान श्रीराम ने कहा-
जौ अनीति कछु भाषौ भाई । तौ मोहि बरजहु भय बिसराई ।।
"अगर मेरे जीवन में, मेरी वाणी में, मेरे चरित्र में, कही नीति के विरूद्ध आचरण हो तो आप लोग
भय छोड़ करके मुझे रोक दीजियेगा" । भगवान श्रीराम की अनुशासन की परिभाषा कितनी अद्धभुत है । अनुशासन में वे कहते है-"तुम बोलो ! अगर मुझमें कुछ दोष समझते हो तो तुम उसकी आलोचना करो ! तुम
मिर्भय हो जाओ ! तुम्हारे अतःकरण का संचालन विवेक के द्वारा हो, लोभ और भय के द्वारा नहीं" !कितने सुंदर और प्रेणादायक वचन कहे है श्रीरामजी ने।
भय छोड़ करके मुझे रोक दीजियेगा" । भगवान श्रीराम की अनुशासन की परिभाषा कितनी अद्धभुत है । अनुशासन में वे कहते है-"तुम बोलो ! अगर मुझमें कुछ दोष समझते हो तो तुम उसकी आलोचना करो ! तुम
मिर्भय हो जाओ ! तुम्हारे अतःकरण का संचालन विवेक के द्वारा हो, लोभ और भय के द्वारा नहीं" !कितने सुंदर और प्रेणादायक वचन कहे है श्रीरामजी ने।
आज हमारे देश में सभी जगह भ्रस्टाचार और कुशासन का बोलबाला है। भारत में उच्च पदों पर सोभायमान राज नेता, अधिकारी, सचिव, कुलसचिव, कुलपति, विभाग प्रमुख इस प्रकार के अनुशासन का थोड़ा सा भी अनु पालन करने लगें तो उनके मातहत अधिकारी-कर्मचारी पूरी ईमानदारी से राष्ट्र हित और लोकहित में अपनी सेवाएँ देने में अपना सबकुछ अर्पण कर देंगे जिसके फलसवरूप भ्रष्टाचार पर भी लगाम कस सकता है और तभी सही मायने में रामराज्य -स्वराज्य स्थापित हो पायेगा।
भगवान श्री राम से प्रार्थना करता हूँ कि जिन के हाथो देश के बिभिन्न मंत्रालयों, बिभागो और संस्थानो की बागडोर है उन्हें इस तरह के अनुशाषन पालन की सदबुद्धि और कड़ी नशीहत प्रदान करेंगे जिससे भारत भूमि अपनी खोई हुई गरिमा पुनः प्राप्त कर सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें