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शुक्रवार, 25 मई 2018

प्लास्टिक-पॉलिथीन का प्रयोग बंद करो, प्रथ्वी को प्रदुषण मुक्त करों


डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

प्रकृति एवं मानव ईश्वर की अनमोल एवं अनुपम कृति हैं। प्रकृति अनादि काल से मानव की सहचरी रही है। बगैर पर्यावण के मानव जीवन की हम कल्पना भी नहीं कर सकते है लेकिन आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार के चलते मानव ने सबसे अधिक पर्यावरण को ही चोट पहुंचायी है। स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह पर्यावरण को प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है। मानव की सुविधा के लिए ईजाद किया गया पॉलिथीन आज मानव जाति के लिए सबसे बड़ा नासूर बनता जा रहा  है। वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण एक विश्वव्यापी त्रासदी बन गया है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का विषय, “प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति (बीट प्लॉस्टिक पॉल्युशन)’’ वर्तमान समय की एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती का मुकाबला करने का विश्व आह्वान है। सौभाग्य से  विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून,2018 की वैश्विक मेजबानी भारत को मिली है।  प्लास्टिक को एक गंभीर खतरा मानते हुए केन्द्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जोर देकर कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र एक प्रतीकात्मक समारोह नहीं बल्कि एक मिशन है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आंदोलन है। समूचे विश्व में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या की गंभीरता का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है, कि  इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय प्रथ्वी दिवस (22 अप्रैल,2018) का विषय भी  पृथ्वी पर प्लास्टिक प्रदूषण का खात्मा’ रखा गया यानि विश्व स्तर पर यह माना गया है कि प्लास्टिक पृथ्वी के लिए घातक है।  इस दिवस का भी मकसद आम इंसान को यह समझाना है कि वो पॉलिथीन और कागज का इस्तेमाल ना करे, पौधे लगाये क्योंकि धरा है तो जीवन है। विश्व प्रथ्वी दिवस और पर्यावरण दिवस-2018 का विषय हम सभी को इस बात पर  गहन विमर्श करने के लिए मजबूर  करता है कि हम अपने दैनिक जीवन में किस तरह बदलाव करें जिससे  हमारे प्राकृतिक स्थानों, वन्य जीवन और हमारे निजी स्वास्थ्य पर प्लास्टिक प्रदूषण का मंडराता खतरा कम हो सकें।
          जमीन या पानी में प्लास्टिक उत्पादों के ढेर को 'प्लास्टिक प्रदूषण' कहा जाता है जिससे मनुष्य, पक्षी और जानवरों के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह निर्विवाद सत्य है कि प्लास्टिक प्रदूषण का वन्यजीव और मनुष्य पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण भूमि, वायु, जलमार्ग और महासागरों को भी प्रभावित करता है। वास्तव में जब हम सड़क, नदी, समुन्द्र किनारे प्लास्टिक के कचरे के ढेर देखते है तो लगता है की हम प्लास्टिक की एक कृत्रिम दुनिया में रह रहे हैं।  अपनी विविध विशेषताओं के कारण प्लास्टिक आधुनिक युग का अत्यंत महत्वपूर्ण पदार्थ बन गया है, जिसे पुर्णतः छोड़ पाना एक मुश्किल कार्य प्रतीत होता है । सस्ता, टिकाऊ, मनभावन रंगों में उपलब्धता और विविध आकार-प्रकारों में मिलने के कारण प्लास्टिक का प्रयोग आज जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। गृहोपयोगी वस्तुओं से लेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, सुरक्षा, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक बस्तुओं का उपयोग हो रहा है। बाजार में खरीदारी के लिए रंग-बिरंगें कैरी बैग से लेकर, पेकिंग सामग्री, रसोईघर के बर्तन, कृषि उपकरण, यातायात के साधन, खिलौने आदि प्लास्टिक से ही बनाये जा रहे है।

प्लास्टिक प्रदुषण के कारण  
        प्लास्टिक सस्ता और सर्व सुलभ होने के कारण  प्लास्टिक निर्मित सामग्री का  दैनिक जीवन में  अधिक उपयोग किया जा रहा है। आज प्लास्टिक ने हमारी भूमि और पर्यावरण पर बेजा  कब्ज़ा कर लिया है, जब इसको समाप्त किया जाता है, तो यह आसानी से विघटित नहीं होता है, और इसलिए वह उस क्षेत्र की  भूमि और वातावरण को प्रदूषित करता है। पोलीथिन बैग, प्लास्टिक की बोतलें, बेकार या त्याग दिए गए  इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, खिलौने आदि, विशेषकर शहरी और ग्रामीण इलाकों में नालिओं, नहरों, नदियों और झीलों के जल निकास को अवरुद्ध कर रहे है। विडंबना यह है कि प्लास्टिक के दुष्परिणामों से परिचित होने के बाद भी हम इससे बच नहीं पा रहे हैं। इस समय  हम पिछले 50 साल की तुलना में 20 गुणा अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर रहे हैं और आगामी  20 साल में इसके दोगुना होने की संभावना है। वर्तमान समय में सम्पूर्ण पृथ्वी पर लगभग 1500 लाख टन प्लास्टिक एकत्रित हो चुका है जो पर्यावरण को लगातार क्षति पहुंचा रहा है .आज वैश्विक स्तर पर प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक का उपयोग जहां 18 किलोग्राम है वहीं इसका रिसायक्लिंग मात्र 15.2 प्रतिशत ही है. इसके अलावा प्लास्टिक रीसाइक्लिंग इतना सुरक्षित नहीं माना जाता है क्योंकि प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग के माध्यम से अधिक प्रदूषण फैलता है। दुनिया भर में 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें प्रति मिनट खरीदी जाती हैं। प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में 500 अरब प्लास्टिक बैगों का उपयोग किया जाता है।
दुनिया भर में लगभग 70,000 टन प्लास्टिक समुन्द्र में फैंक दिए जाते हैं। मछली पकड़ने के जाल और अन्य प्लास्टिक सामग्री को स्थलीय और जलीय जानवरों द्वारा भोजन समझकर खा लिया जाता है, जिससे उनके शरीर के अंदर प्लास्टिक के जैव- कण संचय हो जाने से उनके श्वसन मार्ग में अवरोध होता है जिससे प्रति वर्ष बड़ी तायदाद में नदी और समुन्द्र की मछलियों और कछुओं की असमय मौत हो जाती हैं। वर्ष 2013 में एक अमेरिकन औसतन 109 किलोग्राम प्लास्टिक का उपभोग कर रहा था, चीन में उपभोग की दर 45 किलोग्राम थी। भारत इस मामले में थोड़ा बेहतर था। यहां प्रति व्यक्ति 9.7 किलोग्राम प्लास्टिक का उपभोग किया जा रहा था। लेकिन इसमें सालाना 10 प्रतिशत का इजाफा भी हो रहा है।

प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या 

अनुसंधानों से ज्ञात होता है कि प्लास्टिक की बोतलों और कंटेनरों का उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। एक प्लास्टिक के पाउच  में गर्म भोजन या पानी ग्रहण करने  से कैंसर हो सकता है। जब अत्यधिक सूरज की रोशनी या तापमान के कारण प्लास्टिक गर्म हो जाता है तो उसमें हानिकारक रासायनिक डाईऑक्सीजन का रिसाव शरीर को भारी नुकसान पहुंचाता है . प्लास्टिक मुख्यतः पैट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाले कृत्रिम रेजिन से बनाया जाता है। रेजिन में अमोनिया एवं बेंजीन को मिलाकर प्लास्टिक के मोनोमर बनाए जाते हैं। इसमें क्लोरीन, फ्लुओरिन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के अणु होते हैं। लंबे समय तक अपघटित न होने के अलावा भी प्लास्टिक अनेक अन्य प्रभाव छोड़ता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। उदाहरणस्वरूप पाइपों, खिड़कियों और दरवाजों के निर्माण में प्रयुक्त पी.वी.सी. प्लास्टिक विनाइल क्लोराइड के बहुलकीकरण सें बनाया जाता है। रसायन मस्तिष्क एवं यकृत में कैंसर पैदा कर सकता है। मशीनों की पैकिंग बनाने के लिए अत्यंत कठोर पॉलीकार्बोंनेट प्लास्टिक फॉस्जीन बिसफीनॉल यौगिकों के बहुलीकरण से प्राप्त किए जाते हैं। इनमें एक अवयव फॉस्जीन अत्यंत विषैली व दमघोटू गैस है। फार्मेल्डीहाइड अनेक प्रकार के प्लास्टिक के निर्माण में प्रयुक्त होता है। यह रसायन त्वचा पर दाने उत्पन्न कर सकता है। कई दिनों तक इसके संपर्क में बने रहने से दमा तथा सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

  • प्लास्टिक का कचरा जिसे कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है. वह पर्यावरण के लिए कई जहरीले प्रभाव छोड़ सकता है। प्लास्टिक कैरी बैग ने आधुनिक सभ्यता में एक बड़ी समस्या पैदा की है। एक छोटे से शहर में पांच से सात क्विंटल बैग बेचे जाते हैं। प्रदूषण की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब उपयोग के बाद कचरे में ले जाने वाले सामान को कूड़े के रूप में फेंक दिया जाता है। बायोडिग्रेडेबल न होने के कारण प्लास्टिक के बैग कभी भी सड़ते नहीं हैं और पर्यावरण के लिए खतरा बन जाते हैं। कैरी बैग कृषि क्षेत्रों में फसलों के प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा डालते हैं।
  • प्लास्टिक की पैकिंग में लिपटे हुए खाद्य और ड्रग्स रासायनिक प्रक्रिया को शुरू कर इसे दूषित और ख़राब करते हैं। ऐसे भोजन की खपत मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है क्योंकि इससे भयानक रोग होते हैं।
  • हमारे द्वारा फेंके गये गंदे कचरे में प्लास्टिक की थैली और बोतलों को कई पालतू और आवारा जानवरों द्वारा खा लिया जाता है जिससे प्रति वर्ष लाखो पशु पक्षीओ की अकाल म्रत्यु हो जाती है।
  • बरसात के मौसम में, सड़क पर पड़ा हुआ प्लास्टिक का कचरा जो कि पास के जलाशय और नहरों और नालियों में वह जाता है,इस कचरे को मछलियों खाकर मर जाती है । इसके अलावा, प्लास्टिक सामग्री से पानी की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है।
  • समुद्री जल निकायों में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण जलीय जानवरों की असंख्य मृत्यु हो रही है, और इससे यह जलीय पौधे भी काफी हद तक प्रभावित हो रहे है।
  • प्लास्टिक संचय के कारण गंदगी बढ़ती है जो मच्छरों और अन्य हानिकारक कीड़े-मकोड़ों के लिए प्रजनन का  आधार बन जाता है, जो कि मनुष्यों में कई बीमारियों का कारण हो सकता है।
  • प्लास्टिक सामग्री से भूमि  की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और बीज अंकुरण प्रभावित होने से फसल उत्पादन कम होता है । दुनिया भर में अरबों प्लास्टिक के बैग हर साल फेंके जाते हैं। ये प्लास्टिक बैग नालियों के जल प्रवाह को रोकते हैं और आगे बढ़ते हुए नदियों और महासागरों तक पहुंचते हैं। चूंकि प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह प्रतिकूल तरीके से नदियों, महासागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण लाखों पशु और पक्षी वैश्विक स्तर पर मारे जाते हैं जो पर्यावरण संतुलन के मामले में एक अत्यंत चिंताजनक पहलू है। हम बचे खाद्य पदार्थों को पॉलीथीन में लपेट कर फेंकते हैं तो पशु उन्हें ऐसे ही खा लेते हैं जिससे जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां तक की पॉलिथीन खाकर हजारों की संख्या में पालतू और आवारा पशुओं की मौत हो जाती है ।

प्लास्टिक को जलाना ज्यादा घातक 
         प्लास्टिक को फेंकने और जलाने दोनों से ही पर्यावरण को समान रूप से हानि पहुँचती है। चाहे प्लास्टिक को जमीन में डाल दें या पानी में फेंक दें इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते हैं। प्लास्टिक सामग्री/अपशिष्ट जलाने से आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है जो श्वसन नालिका या त्वचा की बीमारियों का कारण बन सकता है। इसके अलावा पॉलीस्टाइन प्लास्टिक के जलने से क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का उत्पादन होता है जो वायुमंडल के ओजोन परत के लिए हानिकारक होता है। इसी तरह पोलिविनाइल क्लोराइड के जलने से क्लोरीन और नायलॉन का उत्पादन होता है और पॉलीयोरेथन नाइट्रिक ऑक्साइड जैसे विषाक्त गैसें निकलती हैं।
प्लास्टिक कचरे का निस्तारण
प्लास्टिक कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अब तक तीन उपाय अपनाए जाते रहे हैं। आमतौर पर प्लास्टिक के न सड़ने की प्रवृति को देखते हुए इसे गड्ढों में भर दिया जाता है। दूसरे उपाय के रूप में इसे जलाया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत प्रदूषणकारी है। प्लास्टिक जलाने से आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस नकलती है। उदाहरणस्वरूप, पॉलिस्टीरीन प्लास्टिक को जलाने पर कलोरो-फ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वायमुंडल की ओजोन परत के लिए नुकसानदायक हैं। इसी प्रकार पॉलिविनायल क्लोराइड को जलाने पर क्लोरीन, नायलान और पॉलियूरेथीन को जलाने पर नाइट्रिक ऑक्साइड जैसी विषाक्त गैसें निकलती हैं। प्लास्टिक के निपटान का तीसरा और सर्वाधिक चर्चित तरीका प्लास्टिक का पुनःचक्रण है। पुनःचक्रण का मतलब प्लास्टिक अपशिष्ट से पुनः प्लास्टिक प्राप्त करके प्लास्टिक की नई चीजें बनाना।

स्वच्छ धरा तो सबका भला

       इस वर्ष का  अन्तराष्ट्रीय प्रथ्वी दिवस और विश्व पर्यावरण दिवस हम सभी के लिए स्पष्ट सन्देश दे रहा है कि हम उन विभिन्न तरीकों को अपनाएं जिससे पूरी दुनिया से  प्लास्टिक प्रदूषण का  खात्मा किया जा सके । जरूरी नहीं है कि इसके लिए आप हर बार  प्रथ्वी दिवस और पर्यावरण दिवस का इंतजार करें। देश के नागरिकों को एकजुट होकर भारत सरकार के स्वच्छता मिशन कार्यक्रम   में बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभानी चाहिए और अपने आस-पास के गली मुहल्लों, सड़क, नदी नालों, तालाबों, सार्वजानिक स्थलों को साफ़ सुथरा रखने अपना योगदान देना चाहिए . पोलिथीन का प्रयोग बंद करो, प्रथ्वी को प्रदुषण मुक्त करों की मुहीम में हम सभी को जुटना होगा और हर एक व्यक्ति प्लास्टिक से होने वाले नुकसान और पर्यावरण प्रदूषण के प्रति अपने आस पास के १० लोगों को भी जागरूक करे तो रोजमर्रा में इस्तेमाल हो रहे प्लास्टिक से  बढ़ते  प्रदुषण के खतरे से जन जीवन को बचाया जा सकता है। 
प्लास्टिक के उत्पादन और वितरण पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार को सख्त  कदम उठाना चाहिए। प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट और कपड़े से बनी थैलियों और कागज की थैलियों को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए।  सिंगल-यूज प्लास्टिक बैग की जगह प्लास्टिक के ऐसे प्रकार के बैग बनाए जाएं, जो दोबारा उपयोग करने लायक हों। उन्हें रिसाइकल किया जा सके।अपने क्षेत्रीय प्राधिकरण जैसे नगर निगम, नगर समिति, ग्राम पंचयत पर शहर और गावों  के कूड़े के प्रबंधन में सुधार लाने का दबाव बनाएं। इसके अलावा जन सामान्य को भी अन्य विशेष उपाय अपनाना चाहिए :
  • शॉपिंग के लिए बाज़ार में खुद का बैग लेकर जाएं. दुकानदार/ सब्जी विक्रेताओं को भी  पॉलिथीन बैग प्रयोग न करने की सलाह देना चाहिए। 
  • खाने-पीने की वस्तुएं आपूर्ति करने वालों पर प्लास्टिक रहित पैकेजिंग का उपयोग करने का दबाव बनाएं
  • प्लास्टिक से बनी प्लेटों, ग्लास, चम्मचों आदि का इस्तेमाल करने से मना करें. इनके स्थान पर दोना-पत्तल और मिटटी के वर्तनो के प्रयोग करें। 
  • बाग़-बगीचों, मंदिरों, सार्वजानिक स्थलों,नदी किनारे, समुद्र तट पर टहलते हुए अगर आपको प्लास्टिक सामग्री  दिखे तो उसे उठा कर डस्ट बिन में डालना चाहिए। 
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