डॉ.
जी.एस. तोमर, प्राध्यापक
सस्य विज्ञान विभाग,
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर
हरित क्रांति की सफलता के फलस्वरूप कृषि प्रधान भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में भले ही आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है परन्तु तिलहन और दलहन उत्पादन के मामले में हम अभी भी फिसड्डी बने हुए है। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक राष्ट्र है। खाध्य तेलों के आयात में देश न केवल करोड़ों रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है, बल्कि देश के किसानों को उनके द्वारा उत्पादित तिलहन का बाजिब मूल्य भी नहीं मिल पाता है। विदेशों से आयातित वनस्पति तेल में 80 फीसदी तक पाम ऑयल होता है, जो सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता है, परन्तु सस्ता होने की वजह से अधिकांश मध्यम वर्गीय लोगों की रसोई, होटल और रेस्टोरेंट में इसी तेल का इस्तेमाल किया जाता है। जनसंख्या वृद्धि एवं लोगों की बदलती जीवन शैली के कारण भारत में खाद्य तेलों की खपत बढ़ना सुनिश्चित है। खाद्य तेलों की मांग के अनुरूप तिलहनी फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना निहायत जरुरी है। भारत में खरीफ में उगाई जा रही तिलहनों के क्षेत्रफल में विस्तार होने की संभावना बहुत ही कम है क्योंकि खद्यान्न फसलें, दलहन, कपास और गणना फसल के क्षेत्र में कटौती कर तिलहनों को उगाना बुद्धिमानी नहीं हो सकती है। धान उत्पादक राज्यों में धान के बाद पड़ती पड़ी भूमियों में रबी तिलहनों की खेती को बढ़ावा देने और उनसे अधिकतम उत्पादन लेने के लिए किसान भाइयों को प्रेरित करना होगा। इसके अलावा किसान भाइयों द्वारा उत्पादित तिलहनों को उत्पादन लागत मूल्य से दो गुनी कीमत पर तिलहन फसल की उपज खरीदने की पुफ्ता व्यवस्था करना होगी। विदेशों से आयातित पाम आयल और सोयाबीन आयल पर आयात शुल्क बढ़ाना होगा जिससे खाद्यान्न तेलों में मिलावट पर अंकुश लग सकेगा और किसानों द्वारा उत्पादित तिलहनों का सही मूल्य प्राप्त हो सकेगा। भारत में रबी तिलहनों में राय-सरसों सबसे महत्वपूर्ण फसल है। इसके बीज में 40-42 % तक तेल पाया जाता है और सरसों का तेल स्वास्थ के लिए लाभकारी है। सरसों का तेल खाने से लेकर शरीर में लगाने और औद्योगिक प्रयोजनों में भी इस्तेमाल होता है। अतः आने वाले समय में सरसों के तेल की मांग बढ़ना सुनुश्चित है।
सरसों फसल फोटो साभार गूगल
भारत
मे राई-सरसों समूह के अन्तर्गत विभिन्न फसलें यथा तोरिया,
गोभी सरसों, भूरी सरसों, पीली सरसों, तारामिरा, करन राई तथा काली सरसों की खेती प्रचलित है परन्तु राई-सरसों वर्ग की
फसलों के कुल क्षेत्रफल का 85 से 90 प्रतिशत
हिस्सा सरसों (राई या लाहा) के अन्तर्गत
आता है। राई-सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसका देश की अर्थ व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में राई-सरसों की खेती 57.62 लाख हेक्टेयर में की गई जिससे 1184
किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 68.22 लाख टन उत्पादन लिया गया। विश्व औसत उपज
2144 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की तुलना में हमारे देश की औसत उपज बहुत कम है। उपयुक्त
किस्मों का चयन न करना, असंतुलित उर्वरक प्रयोग, पौध सरंक्षण उपायों को न अपनाने
की वजह से राई-सरसों की उपज कम आती है। राई-सरसो
के उत्पादन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाना, मध्य
प्रदेश तथा गुजरात अग्रणीय राज्य है ।
वर्ष 2015-16 के दौरान मध्य प्रदेश में सरसों-राई की खेती 6.17 लाख हेक्टेयर मे की गई जिससे 1134 किग्रा. प्रति
हेक्टेयर उपज की दर से 7.00 लाख टन
उत्पादन प्राप्त हुआ । छत्तीसगढ़ में राई-सरसो
की खेती 0.43 लाख हैक्टर में की गई जिससे 517 किग्रा.
प्रति हेक्टेयर की दर से 0.22 लाख टन उत्पादन लिया गया । जाडे की अवधि कम होने तथा
सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण प्रदेश मे सरसों की औसत उपज कम ही आती है। मध्य प्रदेश एवं
छत्तीसगढ़ में सही समय पर बुवाई और वैज्ञानिक प्रबंधन से राई-सरसों से आसानी से 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज लेकर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते है । राय-सरसों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने हेतु सस्य तकनीक अग्र प्रस्तुत है :
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी
राई-सरसों के लिए समतल और उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिटटी सर्वोत्तम है। अच्छी पैदावार के लिए
भूमि का पीएच मान 7-8 के मध्य होना चाहिए । राई-सरसों की
अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी भली भांति करना आवश्यक रहता है.इसके लिये प्रायः
एक जुताई मिट्टी पलट हल से करनी चाहिए तथा 3 - 4 जुताइयाँ
देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को महीन, भुरभुरी तथा समतल कर लेते हैं। इससे जमीन में नमीं लम्बे समय तक संचित
रहती है, जो कि सरसों व राई के उत्तम अंकुरण एवं पौध बढ़वार
के लिये आवश्यक है। फसल को भूमिगत कीड़ों से बचाने के लिए अंतिम जुताई के समय 1.5 %
क्युनालफ़ॉस 20-25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिटटी में मिला देना चाहिए.
उन्नत
किस्में
किसान भाइयों को उनके क्षेत्र की भूमि एवं जलवायु के अनुसार ही उन्नत
किस्मों के बीज का चयन करना चाहिए. प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है कि अकेले उन्नत
किस्मों के प्रयोग से पुरानी प्रचलित किस्मों की अपेक्षा 20-25 प्रतिशत अधिक उपज ली जा सकती है।
राई-सरसों की प्रमुख उन्त किस्मो की विशेषताएं
किस्म
अवधि (दिन) उपज (क्विं/हे.) प्रमुख विशेषताएँ
टायप-151 120 -
125 14 -
15 46 % तेल,
सिंचित क्षेत्र हेतु, पीली सरसों
क्रांति
125
- 135 25 -
28 सिंचित
क्षेत्र हेतु, तेल 40 प्रतिशत
वरदान
120 -
125 13 -
18 40 % तेल,
देर बोने हेतु उपयुक्त।
वैभव
120
- 125 13 -
18 तेल की
मात्रा 38 प्रतिशत
कृष्णा
125 -
130 25 -
30 सिंचित
क्षेत्र हेतु, 40 प्रतिशत तेल
आरएलएम-514 150 -
155 15 - 20
40 % तेल, शुष्क दशा के लिए उपयुक्त।
आरएलएम-198 152 -
166 17 - 18
38 % तेल, सिंचित दशा के लिए।
वरूणा (टी-59)
125 -
130 20 - 25
42% तेल, दाना बड़ा।
पूसा बोल्ड
130 -
140 18
- 26 सिंचित
क्षेत्र हेतु, 40% तेल, दाना बड़ा
माया 125-136 20-23 अगेती बुवाई हेतु, उच्च तापमान सहनशील
माया 125-136 20-23 अगेती बुवाई हेतु, उच्च तापमान सहनशील
वसुन्धरा
130 -
135 20 - 21
तेल 38 - 40 प्रतिशत
जेएम-1
120 -
128 20 - 21
काला कत्थई बीज, सिंचित दशा हेतु।
जेएम-2
135 -
138 15
- 20 बीज
गोल कत्थई काला, तेल 40%
जवाहर सरसों-3 130-132 18-20 तेल की मात्रा 40 %, पछेती बुआई हेतु उपयुक्त
राज विजय सरसों-2 120-140 25-30 तेल की मात्रा 37-41 %, समय पर बुवाई हेतु
आर.जी.एन.-73 127-136 18-22 देर से बुवाई हेतु उपयुक्त, बीज में तेल 39 %
कोरल-432 113-147 18-26 सिंचित क्षेत्रों के लिए, बीज में तेल 40-42 %
जवाहर सरसों-3 130-132 18-20 तेल की मात्रा 40 %, पछेती बुआई हेतु उपयुक्त
राज विजय सरसों-2 120-140 25-30 तेल की मात्रा 37-41 %, समय पर बुवाई हेतु
आर.जी.एन.-73 127-136 18-22 देर से बुवाई हेतु उपयुक्त, बीज में तेल 39 %
कोरल-432 113-147 18-26 सिंचित क्षेत्रों के लिए, बीज में तेल 40-42 %
बोआई उचित समय पर
समय पर बुआई करना खेती में सफलता की प्रथम सीढ़ी है। सरसों की बुआई
का समय मुख्यतः तापक्रम पर निर्भर करता है। बुआई के समय दिन का अधिकतम तापमान औसतन 30 डि.से. होना आवश्यक है। सरसों
और राई की बुआई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े से लेकर मध्य नवम्बर तक संपन्न कर लेना
चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार
खेत में उचित पौध संख्या स्थापित करने के लिए बुवाई में सही बीज दर का
प्रयोग करना आवश्यक रहता है । बुवाई हेतु स्वस्थ एवं रोग मुक्त प्रमाणित बीज का
इस्तेमाल करना चाहिए। बीज दर बुवाई के समय, किस्म का प्रकार, एवं मिटटी की नमीं पर
निर्भर करते है. सामान्य तौर पर राई-सरसों
की शुद्ध फसल हेतु 4-5 किलो प्रति हेक्टेयर तथा मिश्रित फसल उगाने के
लिए 1-1.5 किलो
प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है। बोने के पूर्व बीज को फफूंदीनाशक रसायन जैसे कार्बेन्डिजिम
(वाविस्टिन) 1.5 ग्राम और मैंकोजेब 1.5 ग्राम मिलकर प्रति किग्रा. बीज के हिसाब से
उचारित करना चाहिए. बीज को ट्राईकोडर्मा 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से
उपचारित करने से भी मृदा जनित रोगों से
फसल की सुरक्षा की जा सकती है। प्रारंभिक अवस्था में चितकबरा कीट अथवा पेंटेड बग
से बचाव हेतु इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू पी 7 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से
उपचारित कर बुवाई करना चाहिए. राई-सरसों के बीज को बुवाई पूर्व स्फुर घोलक जीवाणु
(पी एस बी) एवं एज़ोटोबेक्टर (10-15 ग्राम प्रत्येक जीवाणु खाद प्रति किग्रा बीज
दर) से उपचारित करने से फसल को नत्रजन और फॉस्फोरस तत्व की उपलब्धता बढ़ जाती है और
उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है.
बोआई कतारों में
राई-सरसों की बुवाई खेत में बीज बिखेर कर न करें. अच्छी पैदावार के लिए
बुवाई कतारों में ही करें. फसल की बुवाई पंक्तियों में 30-45 सेमी. और पौधों में 15 - 20 सेमी. के अन्तर से करना
चाहिये। बुवाई हल के साथ लगे नाई या पोरा अथवा यांत्रिक सीड ड्रिल से करना चाहिए.
पोरा द्वारा बुवाई करने के बाद खेत में पाटा नहीं चलाये अन्यथा बीज अधिक गहराई में
जा सकता है.बुआई के समय यह ध्यान रखना चाहिये कि बीज उर्वरक के सम्पर्क में न आये
अन्यथा अंकुरण प्रभावित होगा। अतः बीज 3- 4 सेमी. गहरा तथा
उर्वरक को 7 - 8 सेमी. गहराई पर देना चाहिए। अच्छे अंकुरण
एवं उचित पौध संख्या के लिए बुआई से पूर्व बीजों को पानी में भिगोकर बोया जाना
चाहिए।
संतुलित पोषक प्रबंधन
राई-सरसों अधिक मात्रा में और शीघ्रता से भूमि से पोषक तत्व ग्रहण
करती है। अतः खाद और उर्वरकों के माध्यम से फसल के लिए आवश्यक पोषक
तत्वों की प्रतिपूर्ति आवश्यक है। बुआई के 15 - 20 दिन पूर्व
4-5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद खेत
मे मिलाने से पौध वृद्धि और उपज में बढ़ोत्तरी होती है।
राई व सरसों की सिंचित फसल में 80-100
किग्रा. नत्रजन, 50-60 किग्रा. स्फुर, 20-30 किग्रा. पोटाश तथा 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन की
आधी मात्रा तथा फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बुआई के समय कूड़ो में बीज के नीचे देना चाहिए। शेष नत्रजन पहली सिंचाई के बाद देना
चाहिए। नत्रजन को अमोनियम सल्फेट तथा फास्फोरस सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में देने
से फसल को आवश्यक सल्फर तत्व भी मिल जाता है जिससे उपज और बीज में तेल की मात्रा
बढ़ती है। शोध परीक्षणों से ज्ञात होता है कि जैव नियामक-थायोयूरिया के पर्णीय
छिडकाव से राई-सरसों की उपज में 15-20 % की बढ़ोत्तरी हो सकती है। अतः थायोयूरिया
0.1 % घोल (500 ग्राम थायोयूरिया 500 लीटर पानी) तैयार कर पहला छिडकाव फूल आने के
समय (बुवाई के 40-50 दिन बाद) एवं दूसरा छिडकाव फलियाँ बनने के समय करना चाहिए।
अधिक पैदावार के लिए करे सिंचाई
राई-सरसों में फसल की क्रांतिक अवस्थाओं में सिंचाई देने से उपज मे वृद्धि होती
है। अच्छे अंकुरण के लिए भूमि मे 10-12 प्रतिशत नमी होना
आवश्यक रहता है। कम नमी होने पर एक हल्की सिंचाई देकर बुआई करना लाभप्रद रहता है।
सरसों फसल में 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। इस फसल को
औसतन 40 सेमी. जल की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुआई के 25
- 30 दिन बाद (4 - 6 पत्ती अवस्था) और दूसरी
सिंचाई फूल आते समय (बुआई के 70 - 75 दिन बाद) करनी चाहिए।
प्रथम सिंचाई देर से करने पर पौधों में शाखायें, फूल व
कलियां अधिक बनती है। सरसों में पुष्पागम और शिम्बी
लगने का समय सिंचाई की दृष्टि से क्रांतिक होता है। इन अवस्थाओं पर भूमि
में नमी की कमी होने से दानें अस्वस्थ तथा उपज और दाने में तेल की मात्रा में कमी
होती है। फव्वारा पद्धति में 12 मीटर की
दूरी पर नोज़ल रख कर 7-8 घंटे की दो सिंचाई करने से उपज बढती है और पानी की बचत भी
होती है। सीमित पानी की उपलब्धता होने पर टपक यानि बूँद बूँद सिंचाई पद्धति बहुत
कारगर सिद्ध हो रही है.
उचित पौध संख्या एवं खेत रहें खरपतवार मुक्त
खेत में पौधों की इष्टतम संख्या स्थापित होने से प्रत्येक पौधों का विकास
अच्छा होता है, शाखायें अधिक निकलती है जिससे पौधों पर फलियाँ
अधिक बनती है क्योंकि पौधो को उचित प्रकाश, जल और पोषक तत्व
समान रूप से उपलब्ध होते है। खेत में प्रति इकाई पौधों की उचित संख्या स्थापित
करने के लिए बुआई के 15-20 दिन बाद पहली निंदाई-गुड़ाई के साथ
पौधों का विरलीकरण यानी घने पौधों की छटनी करें तथा पौधों-से-पौंधें के मध्य 15-20
सेमी. का फांसला कर देना चाहिए। सिंचित
अवस्था में प्रति वर्ग मीटर 33 एवं असिंचित अवस्था में 15 पौधे रहना चाहिए. इसके अलावा
जब फसल में पहली फूल की शाखा निकल आये तब ऊपरी हिस्सा तोड़ देने से शाखाये,
फूल व फलियाँ अधिक बनती है जिससे उपज मे वृद्धि होती है। पौधों के
इस कोमल भाग को भाजी के रूप में बाजार में बेचा जा सकता है या पशुओं को खिलाया जा
सकता है।
अनियंत्रित
खरपतवारों के कारण राई-सरसों की उपज में 20-30 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। इन फसलों में बथुआ, चटरी - मटरी, सैंजी, सत्यानाशी,
मौथा, हिरनखुरी आदि खरपतवारों का प्रकोप होता
है। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालिन 30 ई सी (स्टाम्प) ई लीटर सक्रिय तत्व अर्थात 3.3 लीटर दवा को 800
लीटर पानी में घोलकर बुआई के तुरंत बाद अंकुरण से पहले छिड़काव करना चाहिए। यदि
सरसों को चने क साथ लगाया गया है तब खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरालिन 45 ई
सी (बेसालिन) 1 लीटर सक्रिय तत्व अर्थात 2.2 लीटर दवा प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में
घोलकर बुआई के पूर्व खेत मे छिड़काव कर मिटटी में मिला देना चाहिए। आज कल सरसों के
खेतों में ओरोबैन्की (जड़ परजीवी खरपतवार) की समस्या भी हो रही है. यह खरपतवार फसल
की 40-50 दिन की अवस्था पर उगता है और फसल को क्षति पहुंचाता है. इसके नियंत्रण
हेतु फसल चक्र में बदलाव करें तथा ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करें. कड़ी
फसल में इसके नियंत्रण हेतु ग्लाईफोसेट 60 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर बुवाई के 30
दिन बाद और 125 मिली मात्र प्रति हेक्टेयर बुवाई के 50 दिन बाद 150 लीटर पानी में
घोलकर खेत में पर्याप्त नमीं होने की दशा में छिड़काव करने से काफी हद तक इस
खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
समय पर करें कटाई एवं गहाई
राई सरसों की कटाई उपयुक्त
समय पर करने से फलियों से बीजों के बिखरने, हरे बीज की समस्या तथा सिकुड़े हुए
बीजों की समस्या नहीं रहती है. सामान्य तौर पर राई-सरसों की फसल 120-150 दिन में
पककर तैयार हो जाती है। पकने पर पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और बीजों का प्राकृतिक
रंग आ जाता है। अपरिपक्व अवस्था में कटाई करने पर उपज में कमीं आ जाती है और तेल की मात्रा भी घट जाती है। फलियों के अधिक पक जाने
पर वे चटख जाती हैं और बीज झड़ने लगते है। फसल की 75 % फल्लियों
एवं पत्तियों के पीले-भूरे पड़ने और बीज में नमीं का अंश 30-35 % होने पर फसल की कटाई
हँसिये से या फिर पौधों को हाथ से उखाड़ लेना चाहिये। कटाई उपरान्त फसल को 2-3 सप्ताह तक खलिहाँन में सुखाया जाता है। बीज में नमीं का अंश
12-20 % होने पर फसल को डंडो से पीटकर या बैलो की दाय
चलाकर या ट्रेक्टर से गहाई (मड़ाई) की जाती है। आज कल मड़ाई के लिए बहु फसली गहाई
यंत्र (थ्रेसर) का भी प्रयोग किया जाता है। मड़ाई के बाद बीजों को भूसे से अलग करने
के लिए पंखे का प्रयोग करते है या हवा में ओसाई करते है। थ्रेशर से गहाई करने से
बीज तथा भूसा अलग-अलग निकल जाते है तथा गहाई में समय और श्रम कम लगता है। गहाई के
बाद बीजों के भण्डारण हेतु 8 % नमीं के स्तर पर लाने के लिए घूप में लगभग 5-6 दिन
तक सुखाना चाहिए।
उपज अधिक कमाई भरपूर
सरसों एवं तोरिया की उन्नत सस्य तकनीक
अपनाकर सिंचित अवस्था में 20-25 क्विंटल तथा असिंचित अवस्था में 15 - 20 क्विंटल
प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। भूसा भी लगभग 15-20 क्विंटल
प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।बीज को अच्छी तरह धूप में सूखाना
चाहिए। सरसों के दानों में भण्डारण के समय नमी की मात्रा 7-10 प्रतिशत
होना चाहिए। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 के लिए घोषित रबी फसलों के समर्थन मूल्य के आधार पर यदि सरसों की उपज की बिक्री 4200 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से की जाती है और किसान भाई 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी पैदावार लेते है तो उन्हें 84000 रूपये की कुल आमदनी होती है जिसमे से 24000 रूपये प्रति हेक्टेयर की उत्पादन लागत घटाने पर उन्हें 60000 रूपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है। इसके अलावा सरसों का भूषा बेचकर किसान भाई कम से कम 3-4 हजार का अतिरिक्त मुनाफा भी अर्जित कर सकते है।
नोट: कृपया लेखक की अनुमति के बिना इस आलेख की कॉपी कर अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है, तो ब्लॉगर/लेखक से अनुमति लेकर /सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य देंवे एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
नोट: कृपया लेखक की अनुमति के बिना इस आलेख की कॉपी कर अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है, तो ब्लॉगर/लेखक से अनुमति लेकर /सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य देंवे एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
1 टिप्पणी:
नमस्ते सर। आपका सरसों की कृषि करने वालो के लिए काफी उपयोगी है।मुझे आपसे एक जानकारी चाहिए थी कि rape or mustard में क्या अंतर है तथा इनको साथ मे ही क्यों लेते है
एक टिप्पणी भेजें