डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
इंदिरा गांधी कृषि विश्कृवविद्षियालय,
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी के पुण्य जन्मदिन के शुभ अवसर पर ICAR के तत्वाधान में प्रति वर्ष देश के समस्त कृषि विश्व विद्यालयों एवं कृषि संस्थानों में 3 दिसंबर को राष्ट्रिय कृषि शिक्षा दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा युवाओं को कृषि की शिक्षा से जोड़ना और देश को कृषि क्षेत्र मे समृद्ध बनाना है। इसी तारतम्य में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविध्यालय द्वारा कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.एस.एस. सेंगर के मुख्य आतिथ्य में राष्पूट्रेरिय कृषि शिक्षा दिवस 3 दिसम्बर 2021 को उत्साह से मनाया गया जिसमें विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं सहित स्कूलों के छात्र, विश्वविध्यालय के प्राध्यापक गण, अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों ने भाग लिए.
राष्ट्रिय कृषि शिक्षा दिवस के अवसर पर विवि के कुलपति डॉ.सेंगर सभा का संबोधित करते हुए
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर राष्ट्रिय शिक्षा दिवस मनाया गया जिसके माध्यम से कृषि शिक्षा की उपादेयता एवं कृषि विज्ञान के क्षेत्र में रोजगार एवं नवाचार के अवसर विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सेंगर ने कृषि शिक्षा दिवस कार्यक्रम आयोजन के उद्देश्य एवं महत्त्व पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. राजेंद्र
प्रसाद जी का जन्म 3 दिसंबर 1884 को
बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र
भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह उस संविधान सभा के अध्यक्ष थे जिसने संविधान की
रूपरेखा तैयार की। उन्होंने कुछ समय के लिए स्वतन्त्र भारत की पहली सरकार में
केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में भी सेवा की थी।उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
डॉ राजेंद्र
प्रसाद बेहद लोकप्रिय थे, इसी वजह से उन्हें राजेंद्र बाबू या देश रत्न कहकर पुकारा जाता था । पढ़ाई लिखाई में उनका श्रेष्ठ स्थान रहता था,
उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था. एक बार एक परीक्षक ने उनकी परीक्षा कॉपी में लिखा था, कि यह "परीक्षार्थी परीक्षक
से बेहतर है"।
वैसे तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी पेशे से वकील थे परन्तु गांधी जी की प्रेरणा से उन्होंने वकालत छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में
उतरने का फैसला किया। व्यक्तिगत भावी
उन्नति की सभी संभावनाओं को त्यागकर उन्होंने गांवों में गरीबों और दीन किसानों के बीच काम
करना स्वीकार किया।
भारत में शिक्षा एवं कृषि के विकास
में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण
मंत्रालय, द्वारा उनके जन्म दिन को कृषि शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का सराहनीय
निर्णय लिया गया है। विनम्रता और विद्वता
से भरा उनका व्यक्तित्व देशवासियों को सदा प्रेरित करता रहेगा । उनकी जन्म-जयंती के अवसर पर हम उन्हें शत-शत नमन करते है ।
कृषि महाविद्यालय, कांपा,महासमुंद द्वारा विद्यालय में कृषि शिक्षा दिवस का आयोजन
आजादी के समय देश
की लगभग 30 करोड़ आबादी के लिए भी खाद्यान्न उपलब्ध नहीं था लेकिन कृषि वैज्ञानिकों
के अथक प्रयास, किसानों की कड़ी मेहनत तथा
सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के फलस्वरूप आज भारत में न केवल अन्न के
भंडार भरे हुए है बल्कि विदेशों को हम अनाज एवं अन्य कृषि उत्पाद निर्यात कर
विदेशी मुद्रा अर्जित भी करने लगे है.
बढती जनसँख्या एवं सीमित हो रहे प्राकृतिक संसाधनों यथा भूमि, जल आदि तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की वजह से
आज कृषि क्षेत्र की उत्पादकता स्थिर होती जा रही है और जमीनों की उर्वरता घटती जा
रही है. विकसित देशों की तुलना में हमारे
देश में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विस्तार अधिकारीयों की बेहद कमीं महशूस की जा
रही है।
एक अनुमान के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सभी केंद्रों को मिलाकर देश में अभी केवल 6000 वैज्ञानिक कार्यरत हैं, जबकि जनसँख्या के हिसाब से दो लाख कृषि वैज्ञानिकों की जरुरत है । भारत में प्रति 10 लाख व्यक्तियों पर 48 कृषि वैज्ञानिक हैं जबकि जापान के पास प्रति 10 लाख पर साढ़े तीन हज़ार और अमेरिका में साढ़े चार हज़ार कृषि वैज्ञानिक प्रति दस लाख जनसंख्या पर हैं। इस कमी का सबसे बड़ा कारण तो देश में मूलभूत कृषि शिक्षा की कमी है। आज हमारे देश की जनसंख्या का कुल 5.6 प्रतिशत लोग ही स्नातक हैं। हमारे देश में 74 के आस-पास कृषि विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से हर साल 25 हज़ार के आस-पास कृषि में स्नातक या परा-स्नातक निकल पाते हैं. अब इतने बड़े कृषि पर आधारित देश में 25 हज़ार की संख्या का क्या महत्व है । इसलिए देश में गुणवत्तायुक्त कृषि शिक्षा के विस्तार की महती आवश्यकता है। कृषि शिक्षा की प्रगति, कृषि को संमृद्धशाली बनाने और किसानों की आमदनी बढाने के लिए केन्द्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय ने अनेक महत्वाकांक्षी परियोजनाएं एवं कार्यक्रम प्रारंभ किये है जिनके उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हो रहे है।
छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय मुख्यमंत्री
श्री भूपेश बघेल जी भी कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार को प्राथमिकता दे रहे है।
राज्य स्थापना के समय छत्तीसगढ़ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत केवल एक कृषि महाविद्यालय हुआ करता था। आज कृषि-31, उद्यानिकी-11, कृषि अभियांत्रिकी-4, वानिकी-1 तथा खाद्य प्रौद्योगिकी महविद्यालय-1 (कुल 48 महाविद्यालय)
संचालित किये जा रहे है अर्थात प्रति वर्ष 2 से अधिक महाविद्यालय प्रारंभ किये गए
जो कृषि शिक्षा के महत्त्व के साथ-साथ विश्वविद्यालय एवं राज्य सरकार की कृषि
क्षेत्र तथा किसानों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध करता है। इसके
अलावा कृषि को समोन्नत करने के उद्देश्य से 8 अनुसंधान केंद्र एवं कृषि तकनीकी प्रसार के वास्ते 27 कृषि विज्ञान केंद्र इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत काम कर रहे हैं। पिछले वर्ष राज्य शासन ने महात्मा गांधी
उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय का शुभारम्भ किया है जिससे प्रदेश में
फल-फूल-सब्जी एवं वानिकी क्षेत्र में तेजी से विकास होगा । हमारे प्रदेश में कामधेनु
विश्वविद्यालय भी कार्यरत है जिसके तहत पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान में
शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार भारत
सरकार एवं प्रदेश सरकार की सहायता से छत्तीसगढ़ के उत्तर में बलरामपुर से लेकर
दक्षिण में सुकमा तक कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार का एक
मजबूत नेटवर्क तैयार हो गया है। कृषि की शिक्षा में प्रदेशवासियों के रुझान को
देखते हुए हमने विश्वविद्यालय के सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश क्षमता में भी वृद्धि की है।
कृषि शिक्षा को
ज्य़ादा आकर्षक और रोजगार परक बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि ज्यादा समझदार और
योग्य छात्र देश में कृषि शिक्षा को चुने। कुछ वर्ष पूर्व प्रतिभाशाली छात्र मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे
क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हैं, परन्तु अब कृषि शिक्षा में भी छात्रों का रुझान
देखने को मिल रहा है । अब कृषि
विश्वविद्यालयों में कृषि की उच्च शिक्षा के
लिए आधारभूत सुविधाओं और संरचनाओं के विकास की ओर ध्यान दिया जा रहा हैं। भारतीय
कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा चार वर्षीय स्नातक कृषि शिक्षा को प्रोफेशनल डिग्री
का दर्जा दिया गया है। कृषि शिक्षा के
पाठ्यक्रम को आधुनिक एवं व्यवहारिक बनाकर उसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा रहा
है। छात्रों के कौशल विकास हेतु ‘स्टूडेंट रेडी’ स्कीम की शुरुआत
की गई है जिसके अंतर्गत छात्रों को किसानों से कृषि पध्दतियों को सीखने-समझने का
अवसर मिल रहा है। अब नई शिक्षा नीति के तहत
हम शीघ्र ही कृषि के महत्वपूर्ण विषयों में सर्टिफिकेट कोर्स एवं 1 व 2 वर्षीय
डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी प्रारंभ करने जा रहे है जिससे प्रदेश के ग्रामीण युवाओं को
रोजगार और व्यवसाय के क्षेत्र में नये अवसर प्राप्त होंगे।
शिक्षा, उद्यमिता और रोज़गार ये तीन अंग
ऐसे हैं जिन्हें देश की कृषि शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना होगा और इसी के अनुरूप
कृषि शिक्षा में बदलाव किये जा रहे है । हमारे प्रधानमंत्री चाहते हैं कि हमारे
कृषि स्नातक नौकरी खोजने वाले न बनें, वो नौकरी देने वाले
बनें अर्थात वो खुद उद्यमी बनें. इसके लिए
हम भारत में लागू नई शिक्षा नीति के
अनुरूप कृषि शिक्षा प्रणाली में ज़रूरी बदलाव करने जा रहे हैं।
कृषि प्रधान भारत की आधी से अधिक
आबादी तथा छत्तीसगढ़ की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी की आजीविका कृषि अथवा कृषि से
सम्बंधित व्यवसाय पर निर्भर करती है. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम् योगदान
है। आमतौर पर पहले लोग एग्रीकल्चर यानि कृषि शिक्षा का नाम सुनते ही
किसान बनने की बात सोचते थे लेकिन आज कृषि शिक्षा ग्रहण करने के बाद कृषि और उद्यानिकी क्षेत्र में रोजगार और नवाचार
की असीम संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण
करने के बाद युवा कृषि विश्वविद्यालय एवं अन्य शोध संस्थानों में वैज्ञानिक/
प्रोफ़ेसर बनने के अलावा राज्य के कृषि एवं सम्बंधित विभागों में कृषि विस्तार
अधिकारी, विषय वास्तु विशेषग्य के रूप में
अपना कैरियर चुन सकते है। इसके अलावा हमारे कृषि स्नातक बैंक व बीमा क्षेत्रो के साथ-साथ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अच्छे पॅकेज पर
नौकरी प्राप्त कर रहे है। नौकरी के अलावा व्यवसाय के रूप में खाध्य प्रसंकरण उद्योग,
कृषि सेवा केंद्र, बागवानी, डेयरी, मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम
की खेती, आधुनिक तरीके से व्यवसायिक फसल उत्पादन आदि को व्यवसाय के रूप में अपनाकर
खुशहाल जीवन जी रहे है. व्यवसाय केंद्र संचालित करने के लिए सरकार द्वारा आर्थिक
सहायता दी जाती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा नवाचार एवं कृषि उद्यमिता
को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रिय विकास योजना– रफ्तार योजना के तहत कृषि
व्यवसाय इन्क्यूबेटर केंद्र का संचालन किया जा रहा है। इस योजना के तहत छत्तीसगढ़
राज्य में कृषि में स्टार्टअप उद्योग एवं व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए कृषि
विश्वविद्यालय के एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन केन्द्र के माध्यम से स्टार्टअप योग्य नवाचारी विचारों के लिए पांच लाख रूपये की
प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
भारतीय कृषि
अनुसंधान परिषद (ICAR) ने देश में प्रतिभा को आकर्षित करने और उच्च कृषि शिक्षा को मजबूत करने के
लिए राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (NAHEP) शुरू किया है। भारत की नई शिक्षा नीति के
तहत मिडल स्कूल स्तर पर कृषि शिक्षा की
शुरुआत की जा रही है जिससे बच्चो में खेती को लेकर वैज्ञानिक सोच बढ़ेगी और कृषि से
जुड़े कारोबार की जानकारी भी ग्रामीण परिवारों को मिल सकेगी ।
कृषि शिक्षा को
आधुनिक बनाने एवं किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए देश के
प्रधानमंत्री तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जी ने अनेक नीतिगत निर्णय लिए है जो
अभिनंदनीय है और मै आशा करता हूँ की आने वाले समय में हमारा कृषि तंत्र और भी
सशक्त होगा, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी तथा कृषि शिक्षा प्राप्त
छात्र-छात्राओं के लिए रोजगार एवं स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने के अनेक अवसर
प्राप्त होंगे।
पिछले दो वर्ष
से पूरा विश्व कोविड-19 महामारी की चपेट में है और अभी भी कोरोना का संक्रमण फ़ैल
रहा है। उद्योग
धंधे बंद होने से लाखों लोगों को रोजगार से विमुख होना पड़ा। कृषि क्षेत्र ही ऐसा
था जिसने पूरे विश्व सहित भारत में बेरोजगारों/ग्रामीणों को रोजगार दिया और जीविकोपार्जन
हेतु लोगों को काम दिया। आप सभी
से निवेदन है की माननीय प्रधानमंत्री के ‘जान है तो जहान है’ के सूत्र वाक्य को भूलिए
नहीं । कोविड
महामारी से बचने के आवश्यक उपाय यथा केंद्र और राज्य शासन द्वारा जारी दिशा
निर्देशों का पालन करते रहिये ।
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