Powered By Blogger

शनिवार, 19 नवंबर 2022

जंगली धान खरपतवार नहीं स्वास्थ्य के लिए शक्तिमान है पसहर चावल

 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

सृष्टि के सृजन के शुरूआती वर्षों में हमारे पूर्वज प्रकृति में स्वमेय उगने वाले पेड़-पौधों एवं उनके फल एवं बीजों से ही अपना और परिवार का उदर पोषण किया करते थे. खाद्यान्न में मोटे अनाज मसलन सावां, कोदो, कुटकी, लाल या पसर चावल खाकर हृष्ट पुष्ट बने रहकर लम्बा जीवन जी लेते थे युग परिवर्तन के साथ-साथ आधुनिक जीवन शैली के अनुरूप कृषि क्षेत्र में भी उन्नत तकनीकों  का इजाफा होने लगा  इसके चलते हम प्राचीन परम्पराएँ एवं फसलों को भी तिलाजंली देते जा रहे है मोटे अनाज एवं उनके प्रसंसकरण के तौर-तरीके से उपजे अन्न स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी हुआ करते थे उदाहरण के लिए  जिस चावल का सेवन हमारे पूर्वज करते थे, वह अब हमें  व्रत एवं उपवास के समय ही खाने को मिल पाता है बाकी समय  हम सब आधुनिक खेती से उपजे एवं  मॉडर्न राइस मिलों से प्रसंस्कृत निम्न  पोषक तत्वों वाला चावल खाकर ही गुजारा कर रहे है  देशी पद्धति अर्थात हलर अथवा धनकुट्टी (ढेकी) का चावल देखने में जरुर आकर्षक नहीं लगता है परन्तु स्वाद और सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है  इसकी पैदावार कम होने के कारण  यह  सिर्फ  उपवास के समय ही मंहगी दर पर मिलता है  प्रकृति प्रदत्त  लाल चावल या पसहर चावल को एकत्रित करने एवं इसके प्रसंस्करण के लिए ग्रामीण समुदाय को प्रेरित करने कि आवश्यकता है और किसानों को भी इस बहुमूल्य चावल की खेती के लिए  उन्हें शिक्षित प्रशिक्षित करने का प्रयास करना जरुरी है तभी बेरोजगार  ग्रामीणों एवं  साधन विहीन किसानों की आमदनी में इजाफा  के साथ-साथ लोगों को वर्ष भर  पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक चावल खाने के लिए उपलब्ध हो सकते है   


पसहर चावल को  कहीं-कहीं पसई चावल, तिन्नी के चावल, लाल चावल, करगा धान  अंग्रेजी में वाइल्ड राइस, रेड राइस  तथा वनस्पति विज्ञान में  ओराइजा रफीपोगाँन कहा जाता है, जो घास (पोयेसी) कुल की  स्वतः उगने वाली वार्षिक फसल है

जिस प्रकृति प्रदत्त पौधे से  विश्व की बहुसंख्यक आबादी के भरण-पोषण के लिए चावल की किस्मों का विकास किया गया और किया जा रहा है, उसे हम यूँ ही जंगली धान और खरपतवार कह कर तिरस्कृत ही नहीं कर रहे है, बल्कि नाना प्रकार की खरपतवारनाशक दवाओं का उपयोग कर उसे जड़-मूल से नष्ट करने पर भी  तुले है यह मानव हित में नहीं कहा जा सकता है क्योंकि  सामान्य उगाये जा रहे चावल की अपेक्षा प्रकृति से उपहार स्वरूप मिले पसहर चावल में मानव के लिए जरुरी पौष्टिक तत्वों का भंडार छुपा हुआ है, तभी तो हमारे पूर्वज शदियों से इस चावल का सेवन कर स्वस्थ और दीर्धायु बने रहते थे अतः अत्यधिक आनुवंशिक विविधताओं से परिपूर्ण और विषम जलवायु एवं परिस्थितयों में भी उगने और पनपने के अद्भुत गुणों से ओतप्रोत नैसर्गिक चावल को भविष्य का पौष्टिक खाद्यान्न मानक़र और चावल की नित-नई किस्में ईजाद करने  के लिए इसकी प्रजातियों का संरक्षण, संवर्धन एवं खेती करना नितांत आवश्यक है

सम्पूर्ण विश्व में बहुतायत में उगाये जाने वाले और खाए जाने वाले सामान्य चावल की उत्पत्ति आज से 6000  वर्ष (BC) जंगली धान की ओराइजा रफ़ीपोगोन  एवं  ओराइजा निवारा नामक प्रजातियों से हुई है  जंगली धान की  ये प्रजातियाँ  अर्द्ध जलिय स्वभाव की है और भारत की विभिन्न  जलवायुविक परिस्थितयों में दलदली, नम भूमि, सडक किनारे  एवं धान के खेतों में  खरपतवार की भाँती उगती है  सामान्य धान के खेत में अथवा खेत के पास करगा या जंगली धान उगकर धान की उन्नत जातियों के साथ संकरण कर अलग प्रकार की जंगली धान भी प्राकृतिक रूप से  पैदा हो रही है यही वजह है कि विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले जंगली धान/लाल चावल के रूप और रंग में विबिधता देखने को मिलती है

पसहर चावल का पौधा/फसल  

पसहर चावल (जंगली धान) के पौधे  उगाये जाने वाले धान के पौधों से अधिक लम्बे एवं ज्यादा कंशे (टिलर्स) वाले होते है.  इसका तना 80 सेमी लम्बा एवं अन्दर से खोखला होता है. तने की निचली  गांठो से जड़े निकलती है इसकी पत्तियां 15-35 सेमी लम्बी होती है  पसहर चावल यानी जंगली धान में बालियाँ पहले निकलती है और परिपक्वता भी शीघ्र होती है, परन्तु परिपक्वता असीमित होती है अर्थात सभी बालियाँ एक साथ नहीं पकती है  पकने के बाद इनके दाने शीघ्र झड़ने लगते है. जंगली धान कि बालियाँ 12-25 सेमी लम्बी  जिनमें 5-10 मिमी लम्बी सुक (awn) होती है इसके दाने लाल-भूरे रंग के  5-7 मिमी लम्बे होते है

पसहर चावल तैयार करने की जटिल प्रक्रिया

बिना हल के जोते और बिना बोये खेतों एवं अन्य पानी भरी जमीनों में स्वतः उगने वाले घास कुल के खरपतवार से चावल तैयार करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है. चूँकि इसके दाने पकने पर शीघ्र झड़ जाते है, इसलिए स्थानीय लोग और वनवासी इनके पौधों को आपस में बांधकर इसकी बालियों को पॉलिथीन की थैलियों अथवा कपड़े से बाँध देते है पूर्ण पक जाने पर इनकी कटाई एवं मड़ाई की जाती है कठिन परिश्रम के बाद प्राप्त को मंहगे दामों में बेचना ग्रामीणों एवं वनवासियों कि मजबूरी है। त्यौहार अथवा उपवास के दिनों  में ही यह बहुमूल्य अनाज  बाजार में  देखा जाता है। इसकी खेती को बढ़ावा देने से ग्रामीणों को रोजगार और आमदनी के अवसर प्राप्त हो सकते है।

व्रत-उपवास में खाने की प्राचीन प्रथा

व्रत एवं उपवास के समय पसहर चावल खाने शदियों पुरानी परंपरा  के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी है पसहर चावल का सेवन  हलषष्ठी यानी कमरछठ  व्रत में किया जाता है संतान की प्राप्ति एवं उनके सुखमय जीवन के लिए महिलाएं यह व्रत रखती है भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था और श्री बलराम का मुख्य अस्त्र हल है इसलिए इसे हलषष्ठी कहते है. इस दिन हल  की पूजा करने का विधान है और इसलिए हल से जुते खेत से उपजे अन्न का सेवन इस दिन नहीं किया जाता है

हलषष्ठी के  अलावा देश के विभिन्न भागों में उपवास के समय विशेषकर एकादशी, नव रात्रि, ऋषि पंचमी, छठ पूजा आदि अवसरों में  भी पसहर चावल या उससे तैयार पकवान खाए जाते है व्रत या उपवास में खेती वाले अनाज  को नहीं खाया जाता बल्कि बिना हल चलाये अर्थात बिना बोये उगे चावल को  खाने की पुरानी परंपरा है जो आज भी जीवंत है पौष्टिक गुणों से युक्त इस चावल को प्रकृति का वरदान माना जाता है दरअसल सामान्य उगाये जाने वाले चावल की  तुलना में पसहर चावल अधिक पौष्टिक एवं स्वास्थवर्धक होते है  प्राकृतिक रूप से उगे ये चावल रासायनिक खाद-उर्वरक एवं कीटनाशकों से मुक्त होते है अर्थात यह जैविक उत्पाद है

पौष्टिकता में सुपरफ़ूड-स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम खाद्यान्न  

पोषण मान कि दृष्टि से सामान्य चावल की अपेक्षा लाल/पसहर चावल में सभी मानव के लिए आवश्यक लगभग सभी  पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है एक कप पकाए हुए लाल चावल में औसतन 9 ग्राम  प्रोटीन, 0.8 ग्राम वसा, 4 ग्राम फाइबर, 11 मिग्रा कैल्शियम, 8.4 मिग्रा मैग्नीशियम, 3.8 मिग्रा आयरन, 2.8 मिग्रा जिंक, 2 मिग्रा मैंगनीज, 0.3 ग्राम पोटैशियम,  6 मिग्रा नियासिन, 5 मिग्रा थायमिन, 0.3 मिग्रा विटामिन बी-6 एवं 0.2 मिग्रा कॉपर पाया जाता है इसमें इस चावल में लाल रंग एंथोसायनिन के कारण होता है जो इसे एंटीकैंसर खाध्य बनाता है लाल चावल में फाइबर की अधिकता से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता हैइसमें  आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो शरीर को खून की कमीं  यानी एनेमिया रोग से मुक्त रखने में सहायक है  इसमें कैल्शियम एवं कॉपर की  उपस्थिति से हड्डियाँ मजबूत होती है और दिमाग को तरोताजा बनाये रखने में सहायक होता है।  इसमें विद्यमान जिंक क्षय रोग और मलेरिया से बचाव करता है इसमें उपस्थित मैंगनीज मधुमेह से रक्षा करती है एवं रक्त में शर्करा स्तर कम करने में सहायक होती   है इसमें पोटैशियम की मौजूदगी उच्च रक्त चाप एवं ह्रदय रोग के खतरों से बचाने में मदद करती है लाल चावल में थायमिन, विटामिन बी-1, बी-6, नियासिन  पाए जाते है जो तंत्रिका प्रणाली को मजबूती प्रदान करते है इसके दानों में टोकोक्रॉमनल तत्व की प्रचुरता होने के कारण इसे दाने अधिक पौष्टिक हो जाते है। पसहर चावल में विद्यमान एंटीओक्सिडेंट गुणों के कारण  पसहर चावल के सेवन से शरीर को इंस्टेंट एनर्जी मिलती है और  रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है

लाल चावल का प्रसंस्करण देशी पद्धति (हाथ कुटाई) से प्राप्त किया जाता है, जिसमें चावल का कदा छिलका हटाया जाता है. दाने के ऊपर पोषक तत्वों से परिपूर्ण परत इस चावल में बनी रहती है सफेद चावल अर्थात मिल से प्रसंस्कृत चावल में इस परत को हटा ली जाती है, जिससे राइस ब्रान तेल निकाला जाता है इसलिए पोषण मान कि दृष्टि से सफेद चावल (मिल में तैयार) में पोषक तत्व न्यूनतम मात्रा में रह जाते है. यही वजह कि सफेद चावल का सेवन करने वाली बहुसंख्यक आबादी मधुमेह, ह्रदय रोग, रतौधी, किडनी रोग, उच्च रक्तचाप जैसे खतरनाक रोगों कि गिरफ्त में आती जा रही है एक आंकलन के हिसाब से आगामी  वर्ष 2035  तक मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में 55 फीसदी का इजाफा हो सकता है इसके पीछे खानपान कि बदलती शैली एवं गुणवत्ता (आवश्यक पोषक तत्व) विहीन सफेद चावल का सेवन माना जा रहा है इसलिए अब हमें अपनी जड़ों की  तरफ (बैक टू बेसिक) लौटना  होगा  अर्थात खान पान के पुराने तौर तरीको जैसे प्राकृतिक ढंग से उग रहे अथवा जैविक तरीके से उगाये जाने वाले खाद्यान्न के साथ-साथ खाध्य प्रसंस्करण की प्राचीन विधियों से तैयार खाद्यान्न का उपयोग/उपभोग करना होगा  तथा  लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना होगा। इससे रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकते है तथा स्वस्थ भारत की कल्पना साकार हो सकती है

पसहर चावल का संरक्षण एवं संवर्धन जरुरी  

प्रकृति की धरोहर लाल चावल में  सूखा सहने, कीट-रोग प्रतिरोधकता, शीघ्र तैयार होने के साथ-साथ  दानों में  पौष्टिक तत्वों कि प्रचुरता जैसे तमाम अनुवांशिक  विशेषताओं के कारण भविष्य में चावल की गुणवत्ता युक्त एवं अधिक उपज देने वाली किस्मों  के विकास के लिए इनका संरक्षण एवं संवर्धन  निहायत जरुरी है यही नहीं  यह चावल विपरीत मौसम एवं असामान्य परिस्थियों में भी  किसानों के लिए रोजगार  के अवसर तथा देश की खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम योगदान दे सकता है  

नोट :कृपया  लेखक/ब्लोगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्य पत्र-पत्रिकाओं अथवा इंटरनेट पर प्रकाशित न किया जाए. यदि इसे प्रकाशित करना ही है तो आलेख के साथ लेखक का नाम, पता तथा ब्लॉग का नाम अवश्य प्रेषित करें

कोई टिप्पणी नहीं: