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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए लाभकारी है काले चावल की खेती

 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

चावल विश्व की आधी से अधिक आबादी का मुख्य भोजन है भारत में चावल की खेती 43.86 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है, जिससे 117.47 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त होता है. दानों के आकार,बनावट, सुगंध, पकने की अवधि, उगाये जाने वाले क्षेत्र एवं रंग (सफेद, भूरा, काला एवं  लाल चावल) के अनुसार विभिन्न प्रकार के होते है चावल की रंगीन प्रजातियां सेहत के लिए अधिक लाभप्रद मानी जाती है राजसाही जमाने में चीन में काले चावल का भंडारण एवं उपभोग केवल वहां के शासक एवं रॉयल परिवार ही कर सकते थे, इसलिए काले चावल को फॉरबिड्डन चावल (Forbidden rice) कहा जाता है

चावल में मुख्य पौष्टिक तत्व उसके ऊपरी परत में होते है, जिसे मिलिंग एवं पॉलिशिंग के दौरान निकालकर राइस ब्रान आयल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है मिलिंग के बाद प्राप्त चावल में कार्बोहाइड्रेट के अलावा बहुत कम पौष्टिक तत्व बचते है यही वजह है कि नियमित रूप से सफेद चावल का सेवन करने वाले लोग मोटापा, मधुमेह एवं अन्य रोगों से ग्रसित होते जा रहे है सेहत के लिहाज से रंगीन चावल सर्वोत्तम होते है. चीन एवं अन्य एशियन देशों के शासकों द्वारा खाए जाने वाले एवं आज सुपरफ़ूड के नाम से प्रसिद्ध काले चावल के पौष्टिक गुणों का खुलासा होने के बाद आज दुनिया में इस चावल की मांग निरंतर बढती जा रही है

काला चावल (ओराइजा सटीवा एल. इंडिका) एक विशेष प्रकार का चावल है. इसकी बाहरी परत (एल्युरोन लेयर) में एंथोसियानिन वर्णक (Cyanidin-3-glucoside, cyanidin-3-rutinoside, and peonidin-3-glucoside) अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिनके कारण  यह काले बैंगनी रंग का होता है भारत के मणिपुर में काले चावल की खेती परंपरागत रूप से की जाती है इसे मणीपूरी भाषा में चकहवो (स्वादिष्ट चावल) कहा जाता है भारत के अन्य राज्य मसलन ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में भी काले चावल की खेती प्रारंभ हो गई है. बाजार में काले चावल की कीमत 150-250 रूपये प्रति किलो के भाव से बेचा जा रहा है इस लिहाज से सामान्य चावल की अपेक्षा काले चावल की खेती से आकर्षक मुनाफा अर्जित किया जा सकता है

काले चावल का इतिहास

चीन, कोरिया एवं जापान में काले चावल का उपभोग शदियों से किया जा रहा है. राजसाही के जमाने में  चीन एवं इंडोनेशिया में बगेन सम्राट की अनुमति के आम आदमी काले चावल का भण्डारण, खेती एवं उपभोग  नहीं कर सकता था सिर्फ रॉयल परिवार एवं ख़ास लोग ही इसका सेवन कर सकते थे उस समय ऐसा माना जाता था, काले चावल के सेवन से राजा दीर्धायु एवं स्वस्थ रहते थे और इसलिए काले चावल को श्रेष्ठ एवं दुर्लभ माना गया था.  एंटीऑक्सीडेंट एवं तमाम पोषक तत्वों में परिपूर्ण काले चावल को अनेक नामों जैसे फॉरबिडन राइस, किंग्स राइस, हेवन राइस आदि से जाना जाता है। पौष्टिक महत्व को देखते हुए अब काले चावल की खेती एवं उपभोग अनेक देशों में किया जाने लगा है

काले चावल का पोषक मान

चावल का पोषक मान भूमि की उर्वरता, जलवायु, किस्म, मिलिंग आदि कारकों पर निर्भर करता है. काले धान की किस्मों में प्रोटीन एवं फाइबर की मात्रा अन्य किस्मों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है.  काले चावल में एवं अन्य चावल में पोषक तत्वों की मात्रा अग्र सारणी में दी गयी है. चावल की अन्य प्रजातियों की  अपेक्षा काले चावल में 6 गुना अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, उच्च प्रोटीन, न्यूनतम फैट पाया जाता है. यह ग्लूटिन मुक्त, पाचक एवं औषधीय गुणों से युक्त होता है. काले चावल में आवश्यक अमीनो अम्ल जैसे लायसीन, ट्रिप्टोफेन, सक्रिय लिपिड, डाइटरी फाइबर, विटामिन बी-1, विटामिन-बी-2, विटामिन ई, फोलिक अम्ल एवं फिनोलिक कंपाउंड पाए जाते है. इसमें तमाम खनिज तत्व जैसे आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, सेलेनियम पाए जाते है. काले चावल में कैलोरी कम होती है. यह चावल पकाने पर थोडा चिपचिपा होता है.

विभिन्न रंग के चावल में पायें जाने वाले पोषक तत्व

पौष्टिक तत्व

काला चावल

(Black rice)

लाल चावल

(Red rice)

भूरा चावल

(Brown rice)

सफेद चावल (Polished rice)

प्रोटीन (ग्राम)

9.0

7.2

8.4

6.1

वसा (ग्राम)

1.0

2.5

2.2

1.4

फाइबर (ग्राम)

0.51

0.45

0.42

0.33

आयरन (मिग्रा)

3.5

5.5

2.7

1.3

जिंक (मिग्रा)

0.0

3.3

1.7

0.5

 सेहत के लिए विशेष उपयोगी है काला चावल

काले चावल  को पकाने पर गहरा बैंगनी रंग का हो जाता है काले चावल को उबाल कर भात अथवा पुलाव  के रूप में खाया जाता है इसके अलावा इससे खीर, ब्रेड, केक, नूडल्स आदि तैयार कर खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है  काले चावल की ऊपरी परत में एंथोसायनिन (cyanidin-3-O-glucoside and peonidin-3-O-glucoside) पाया जाता है जो शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है.  यह गंभीर संक्रमणों से (ह्रदय रोग)  सुरक्षा प्रदान करता है यह रक्त धमनियों कि रक्षा, कोलेस्ट्राल के स्तर को नियंत्रित करने, खराब कोलेस्ट्राल को घटाने एवं  कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने में सहायक होता है. इसमें मौजूद विटामिन ई नेत्र एवं त्वचा को स्वस्थ बनाये रखने में लाभकारी है काले चावल में कैलोरी,कार्बोहाइड्रेट एवं वसा  कम  होने की वजह से यह वजन  नियंत्रित करने में सहायक  होते है इसमें विद्यमान फायटोन्यूट्रीएन्ट विभिन्न रोगों से सुरक्षा एवं दिमाग को कार्यशील बनाये रखते है अन्य चावलों की तुलना में काले चावल में फाइबर की प्रचुरता होने की वजह से इसके सेवन से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है प्रोटीन और खनिज तत्वों की बहुलता के साथ-साथ यह चावल ह्रदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्त चाप, मोटापा, किडनी, लिवर  व उदर रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए फायदेमंद होते है । सफेद चावल की अपेक्षा काले चावल में प्रोटीन एवं विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा प्रदान करने वाला खाद्यान्न है विश्व में बढते  कुपोषण और मोटापा  जैसी गंभीर समस्याओं को  कम करने के लिए काले चावल के सेवन को प्रोत्साहन दिया जाना आवश्यक है

काले चावल के अन्य उपयोग

     ब्लूबेरी की तुलना में काला चावल  एंथोसायनिन का उत्तम स्त्रोत है जल में घुलनशील होने के कारण, इसे प्राकृतिक डाई के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है खाद्य एवं कॉस्मेटिक उत्पाद में इसे एंटीएजिंग एजेंट के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है पॉलीफेनोल की प्रचुरता होने की वजह से काले चावल को पौष्टिक पेय तैयार करने में इस्तेमाल किया जा सकता है

काले चावल की खेती का भविष्य उज्जवल   

पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण एवं सेहत के लिए फायदेमंद होने के कारण खाद्य, कॉस्मेटिक, न्यूट्रास्यूटिकल एवं फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में काले चावल की बढती मांग  एवं कम उत्पादन के कारन बाजार में काला चावल 150 से 200 रूपये तक बेचा जा रहा है इसलिए किसानों को काले चावल की खेती काफी फायदेमंद सिद्ध हो रही हैचीन के बाद  भारत के पूर्वोत्तर राज्यों यथा असम, मणिपुर और सिक्किम में काले चावल की खेती की जाती थी। लेकिन अब इसकी खेती उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, आदि कई राज्यों में सफलतापूर्वक की जा रही है। चंदौली का काला चावल तो अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है. भारत के प्रधानमंत्री के अलावा अंतरराष्ट्रीय संस्था-UNDP भी चंदौली के काले चावल कि प्रसंशा की जा चुकी है

 मणिपुरी ब्लैक राईस जिसे स्थानीय रूप से चक-हाओ कहा जाता है, को वर्ष 2020 में भौगोलिक सूचक (जीआई) टैग प्रदान किया गया है।उड़ीसा में  काले चावल को कलाबाती –कालाबैंशी  एवं छत्तीसगढ़ में करियाझिनी के नाम से जाना जाता है

काले चावल कि प्रमुख किस्में

चक हओ :  यह मणीपुर में परंपरागत  रूप से उगाई जाने वाली काले चावल की प्रजाति है. इसकी पत्तियां एवं धान के छिलके काले रंग के होते है यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है

कालाभाती: यह ओडिशा में उगाई जाने वाली काले चावल की किस्म है यह 150 दिन में तैयार होने वाली किस्म है, जिसके पौधे 5 से 6.5 फीट ऊंचे बढ़ते है. इसके पौधे एवं भूसी बैंगनी  रंग तथा चावल काले रंग के होते है अधिक उत्पादन लेने एवं कंशों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से इसके पौधों की ऊँचाई 2-3 फीट की होने पर ऊपर से कटाई-छटाई कर दी जाती है. इस किस्म से 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त की जा सकती है.

बुआई का समय

सामान्य चावल की भांति काले चावल को भी गर्म एवं नम जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है. बीजों के अंकुरण के लिए कम से कम 210 C तापक्रम की आवश्यकता होती है. फसल पकते समय वातावरण का तापमान कम होने से उपज एवं चावल की गुणवत्ता में सुधार होता है. सामान्य तौर पर जून-जुलाई में बोई गयी काले चावल की फसल जनवरी में कटाई के लिए तैयार हो जाती है.  

बीज एवं बुआई

काले चावल के स्वस्थ  बीज विश्वसनीय प्रतिष्ठानों से  ही लेना चाहिए. रोपण विधि से 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज पर्याप्त रहते है. बीजोपचार करने के बाद बीज को अंकुरित कर लेही विधि से भी बुवाई  की जा सकती है, बेहतर उपज के लिए नर्सरी तैयार कर 30 x 30 सेमी की दूरी पर रोपाई करना अच्छा रहता है. काले धान के पौधे अधिक ऊंचे बढ़ते है एवं इनके गिरने कि संभावना रहती है. उचित दूरी पर बुआई अथवा रोपाई करने से पौधे स्वस्थ एवं मजबूत होते है, जिससे उनके गिरने की आशंका कम रहती है.  अतः बुआई अथवा रोपाई ईष्टतम दूरी पर करना उचित होता है.  काले चावल की खेती में रासायनिकों का उपयोग सीमित किया जाता है. अधिक उपज के लिए गोबर की खाद, कम्पोस्ट एवं हरी खाद का उपयोग करने से चावल की गुणवत्ता में सुधार होता है. खरपतवार नियंत्रण हेतु आवश्यक निराई गुड़ाई करना जरुरी है.

काले चावल का उत्पादन एवं उपलब्धता बढ़ाना जरुरी

काले चावल के पौधे अधिक ऊंचे होने के कारण इसकी फसल गिरने की आशंका बनी रहती है. इसके अलावा देरी से पकने एवं उन्नत जातियों के आभाव के कारण किसान इसकी खेती की तरफ उन्मुख नहीं हो रहे है. अधिक मूल्य मिलने की वजह से कुछ राज्यों के किसान इसकी खेती कर रहे है. उत्पादन कम होने के कारण यह चावल, सफेद चावल से काफी मंहगा है, जो आम आदमी की पहुँच से बाहर है.  बढती मांग के कारण काले चावल का उत्पादन बढ़ाना जरुरी है, तभी आम आदमीं को उचित मूल्य पर यह पौष्टिक आहार उपलब्ध हो सकता है.  काले चावल की खेती  को बढ़ावा देने के लिए भारत की विभिन्न जलवायुविक परिस्थितियों में शोध करना आवश्यक है. इसकी उन्नत प्रजातियां का विकास एवं खेती की उन्नत सस्य विधियों के प्रचार प्रसार से खेती के अंतर्गत क्षेत्र एवं उत्पादन को बढाया जान चाहिए.

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