डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसंधान केंद्र,
कोडार रिसोर्ट, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त और रात्रि तक महिलाएं विविध
घरेलू कार्यों एवं पारिवारिक-सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सुचारू व व्यवस्थित ढंग
से करते हुए अपनी कार्यकुशलता, सहनशीलता, धैर्य व समर्पण का परिचय बखूबी से देती आ
रही है। यही नहीं, ग्रामीण महिलाएं घर एवं रसोई के कार्यों के अतिरिक्त खेती-बाड़ी,
बागवानी,पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन से सम्बंधित बहुआयामी कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाती है।
निर्माण सम्बन्धी कार्यों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी कं नहीं है। इसके अलावा
लघु, कुटीर, हस्तकला व् दस्तकारी उद्योगों में भी अपने कौशल, सृजनात्मक शक्ति व
चातुर्य के बलबूते पर अपना वर्चस्व कायम किये हुए है। शहरों की तुलना में ग्रामीण
महिलाओं के पास कार्य की अधिकता है,
इसके विपरीत आज भी महिलाओं की स्थिति दयनीय है। सबसे अधिक कार्य का
बोझ होने के बावजूद महिलाओं को पुरुषों से कम पारिश्रमिक मिलता है जो उनकी दयनीय स्थिति को दर्शाता है।
महिलाओं द्वारा धान की रोपाई फोटो साभार गूगल |
कृषि
में महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान
भारत अपने अस्तित्वकाल से ही कृषि प्रधान देश रहा है। महिलाओं के बगैर
खेती-किसानी, बागवानी, पशुपालन और कुटीर उद्योगों की सफलता संभव नहीं हो सकती है. पिछली
जनगणना (2011) के अनुसार, देश की कुल महिला श्रमिकों की संख्या का 55% कृषि कार्य में और 24% कृषि मज़दूर के अंतर्गत कार्यरत थीं। किंतु भू-स्वामित्व
पर महिलाओं का स्वामित्व केवल 12.8% है
जो लैंगिक असमानता को दर्शाता है। विश्व खाद्य
एवं कृषि संगठन के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत के 48 प्रतिशत कृषि संबंधित रोजगार
में महिलाएं हैं, जबकि करीब 7.5 करोड़ महिलाएं दुग्ध उत्पादन
तथा पशुधन व्यवसाय जैसी गतिविधियों में सार्थक भूमिका निभाती हैं। कृषि क्षेत्र
में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी महिलाओं की है। पहाड़ी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तथा केरल
राज्य में महिलाओं का योगदान कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुरुषों से कहीं
ज्यादा है। भारत वर्ष में उसके भूगोल और जनसंख्या के अनुपात से कृषि में महिलाओं
के योगदान का आंकलन करें, तो यह करीब 32 प्रतिशत
है। घरेलू कार्यो के अतिरिक्त बुवाई से लेकर रोपाई, सिंचाई, गुड़ाई, उर्वरक डालना,
पौध संरक्षण, कटाई, गहाई,
भंडारण और कृषि से जुड़े अन्य कार्य जैसे कि मवेशी प्रबंधन, चारे का संग्रह, दुग्ध संग्रहण, मधुमक्खी पालन, मशरुम उत्पादन, बकरी पालन, मुर्गी पालन आदि में महिलाओं का अधिक
योगदान हैं। वर्षों से इतना भारी-भरकम कृषि कार्य करने वाली अधिकांश भारतीय
महिलाओं को घर और खेत में कोई हक नहीं है अर्थात भू-स्वामित्व में उनकी हिस्सेदारी
नहीं है. महिला सशक्तिकरण का नारा देने वाले देश में खेती-किसानी में हाड़तोड़ मेहनत
करने वाली महिलाओं को किसान का दर्जा भी अभी तक नहीं मिल सका है। दरअसल, खेती-किसानी
में कार्यरत महिलाओं के कार्य का आर्थिक मूल्यांकन नहीं होने के कारण हम अपनी मातृशक्ति की श्रमपूंजी के साथ न्याय नहीं
कर पा रहे है। आज भी किसान भाइयों को ही अन्नदाता की मान्यता है, जबकि बहिनों के
बलबूते खेती हो रही है। आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी महिलाओं को कृषि
क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उचित अवसर नहीं दिए जा रहे हैं। आज भी खेती की सफलता से
सम्बंधित प्रशिक्षण हो या फिर पुरुष्कार, सभी पर पुरुष वर्ग का ही कब्ज़ा है।