डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
पर्यावरण के प्रति मानव कर्तव्यों की ओर ध्यान आकर्षित करने, पर्यावरण की सुरक्षा, प्रदूषण की समस्या आदि विषयों पर मंथन एवं कार्यनीति लागू करने तथा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति जन जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से विश्व के सभी देशों में प्रति वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित सम्मेलन में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर गहन विचार विमर्श किया गया । इस सम्मेलन में 119 देशों ने भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया। दो वर्ष पश्चात 5 जून 1974 से इसे प्रत्येक वर्ष मनाना शुरू कर दिया गया। भारत में भी यह दिवस मनाया जाता है।
विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का श्रीगणेश स्वीडन से हुआ और इस वर्ष के अन्तराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस की मेजबानी भी स्वीडन द्वारा की गयी है। 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय “केवल एक पृथ्वी (Only One Earth)” रखा गया है अर्थात पूरे जगत के जीवन के लिए पृथ्वी एक ही है जिस पर मानव सहित असंख्य जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों का जीवन निर्भर है। पृथ्वी की हरियाली में ही विश्व का कल्याण है. पर्यावरण दिवस का विषय हम सब को प्रकृति के साथ सद्भावना से रहने प्रोत्साहित करता है । वास्तव में सौरमंडल के नौ ग्रहों में से पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा गृह है जिसमे जीव-जन्तु, वनस्पति आदि विद्यमान है।
अनादि काल से ही पृथ्वी को मातृभूमि की संज्ञा दी गई है । भारतीय अनुभूति में पृथ्वी आदरणीय बताई गई है… इसीलिए पृथ्वी को माता कहा गया है। महाभारत के यक्ष प्रश्नों में इस अनुभूति का खुलासा होता है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि आकाश से भी ऊंचा क्या है और पृथ्वी से भी भारी क्या है? युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया कि पिता आकाश से ऊंचा है और माता पृथ्वी से भी भारी है… हम उनके अंश हैं… यही नहीं पृथ्वी की महत्ता का साक्ष्य हमें वेदों में भी मिलता है।
अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है
कि ‘माता भूमि’:,
पुत्रो अहं पृथिव्या:। अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र
हूं… यजुर्वेद में भी कहा गया है- नमो मात्रे पृथिव्ये,
नमो मात्रे पृथिव्या:। अर्थात माता पृथ्वी (मातृभूमि) को नमस्कार है,
प्रणाम है। वाल्मीकि रामायण में भी
कहा गया है ‘जननी
जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात जननी और जन्मभूमि का
स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है। अतः हम सब को पृथ्वी अर्थात धरती के स्वास्थ्य का
ध्यान रखना चाहिए. भूमि कटाव, मृदा क्षरण, मृदा का अमलीकरण और क्षारीयकरण के
साथ-साथ वनों एवं जंगलों के विनाश को रोकने हेतु प्रभावकारी रणनीति पर ईमानदारी से
कार्य करना होगा तभी पृथ्वी की हरियाली एवं मानव की खुशहाली कायम रखी जा सकती है
सांसे हो रही कम आओ पेड़ लगायें हम
मृदा का निर्माण प्रकृति के
द्वारा होता है और एक इंच मिट्टी बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाते है. विज्ञान की सहायता
से हम मिट्टी, पानी और हवा नहीं बना सकते है। बढती जन संख्या और घटते प्राकृतिक
संसाधनों से मानव सहित अनेक जीव-जंतुओं का जीवन संकट में है। बढ़ते पर्यावरण प्रदुषण
से शुद्ध जल एवं वायु की मात्रा घटती जा रहीं है जिसके फलस्वरूप मानव अनेक रोगों
का शिकार हो रहे है। पेड़-पौधों ही धरती माता के श्रृंगार है. पृथ्वी से पेड़-पौधों
की कटाई एवं असीमित दोहन के कारण हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है. पृथ्वी
का तापमान बढ़ता जा रहा है और वर्षा की मात्रा अनियमित होती जा रही है। अतः हम सब
को मिलकर धरती को हरा भरा बनाये रखने का संकल्प लेना ही होगा. वातावरण में
प्राणवायु ऑक्सीजन के प्रवाह के लिए धरती पर पर्याप्त वृक्षारोपण करना और पेड़-पौधों
का पालन पोषण आवश्यक है। आज सड़कों के किनारे रोपे जा रहे अथवा पनपने वाले ऑस्ट्रेलियाई
बबूल और यूकेलिप्टस के पेड़ों से न राहगीरों को छाया मिलती है और न ही फल। इसलिए
सड़कों के किनारे आम, जामुन, अमरुद, अनार, पीपल,
महुआ, चिरोंजी (अचार),शीशम, विलायती इमली, खेजड़ी (शमी), कटहल, वट या बरगद, बेल,
अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा व इमली
जैसे पेड़ ही सबसे उपयुक्त रहते हैं। आंवला, आम, अशोक, नीम, गुलमोहर, बबूल, साल, कदंब, सागवान, बांस, बेर, महोगनी, चंदन आदि पौधे देश की धरती के लिए बेहद
लाभकारी हैं। ये न सिर्फ हवा को शुद्ध करते हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरकता भी बढ़ाते
हैं। इनकी गहरी जड़ें बारिश के पानी को धरती की गहराई तक ले जाती हैं, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है। जीव-जंतुओं की प्रजातियां इन पेड़-पौधों में
निवास करती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र भी मजबूत होता है।
इसके अलावा हमें इन पेड़ पौधों से बहुमूल्य
इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, फल और फूल भी प्राप्त होते है. कृषि बानिकी के तहत इन
वृक्षों की खेती अथवा खेत की मेंड़ों पर बहुपयोगी वृक्षों का रोपण कर आर्थिक लाभ भी
अर्जित किया जा सकता है