डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में सूर्य, चन्द्रमा, तारे, नदी, पेड़-पौधे, पशु एवं पक्षियों की पूजा- अर्चना करने का विशेष महत्व है। पेड़-पौधों का धार्मिक, सामाजिक, पर्यावरण, वास्तु एवं आर्थिक महत्व से जुड़े तमाम पहलुओं से जुड़े तथ्य हमारे वैदिक ग्रन्थों में उपलब्ध है। सूर्य अथवा अन्य तारो के चारों तरफ जो खगोलीय पिंड चक्कर लगाते है, उन्हें गृह (प्लानेट) कहते है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु ये नव ग्रह हैं। इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड को छाया ग्रह माना गया हैं। ये नौ ग्रह प्राकृतिक सम्पदा के पोषक ही नहीं, अपितु प्रकृति से तदात्मय स्थापित कर ये ग्रह अनेकानेक दोषों को दूर भी करते हैं। ग्रह पर्यावरण को संरक्षित करने में अपना अपूर्व योगदान करते हैं। इन सभी ग्रहों का प्रतिनिधित्व अलग-अलग पौधे-वनस्पतियाँ करती है और वास्तु एवं शास्त्र निर्दिष्ट पेड़-पौधों का रोपण करने से अनेक बाह्य-आन्तरिक पीड़ा व दोषों को दूर कर समृद्धि एवं स्थिरता की प्राप्ति की जा सकती है। शारीरिक कष्ट से मुक्ति एवं वास्तु की शुद्धता के लिए कुछ महत्वपूर्ण औषधियाँ निर्दिष्ट हैं, जिनका ज्योतिष में नवग्रह के प्रतिनिधि-रूप में स्थान प्राप्त है। वास्तुशास्त्र में 9 ग्रहों के प्रतिनिधि वृक्ष-वनस्पतियों को नव गृहवाटिका के रूप में स्थापित किया जाता है।
नवग्रह अनुसार वनस्पतियां: यज्ञ द्वारा शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए
अलग-अलग विशिष्ट नवग्रह वनस्पतियों की समिधा (हवन) प्रयोग की जाती है, जैसा कि गरुण पूरण
के निम्न श्लोक में वर्णित है:
अर्कः पलाशः खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पलः।
औडम्बरः शमी द्रूवा कुशश्च समिधः क्रमात्।।
अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर
(खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल,
ओड़म्बर (गूलर), शमी,
दूब और कुश क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं। तदनुसार नवग्रह कि
वनस्पतियों की सूची फोटो में दी गयी है:
नवग्रह वाटिका की स्थापना
नवग्रह से संबंधित पेड़-पौधे एवं वनस्पतियों को ग्रहों के विशिष्ट स्थान और दिशा में उगाया जाता है ताकि इनका अधिक लाभ मिल सके। बीते
कुछ वर्षों से देश के विभिन्न राज भवनों,
सरकारी एवं निजी प्रतिष्ठानों में नव गृह वाटिकाओं की स्थापना की जा रही है। इससे
न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि लोगों में वृक्षारोपण एवं सेहत के लिए पेड़ पौधों के
उपयोग के प्रति उत्साह भी देखने को मिल रहा है। नव गृहवाटिका की स्थापना धार्मिक
स्थल, विद्यालय एवं सार्वजनिक पार्कों में करने से आम जन को पूजा अर्चना के लिए
शुद्ध सामग्री प्राप्त हो सकती है और ऐसा माना जाता है कि इन वृक्ष वनस्पतियों के संपर्क में आने पर नौ ग्रहों के कुप्रभाव शांत होते है।
नवग्रह मंडल में गृह के अनुसार वृक्ष/वनस्पतियों की स्थापना करने पर वाटिका की
स्थिति फोटो में बताये अनुसार होनी चाहिए।
1. आक : सूर्यगृह (सन) के प्रतिनिधि आक को मदार, अर्क, क्षीर-पर्ण तथा वनस्पति शास्त्र में केलोट्रोपिस प्रोसेरा कहते है। इसकी पत्तियों एवं तनों को तोड़ने से एक दूधनुमा रस निकलता है, जिसे लेटेक्स कहते है। इसकी पत्तियां, तना, जड़, फूल एवं फलों का इस्तेमाल विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है. भगवान् शिव को इसके पुष्प अर्पित किये जाते है। सूर्यदेव की उपासना से व्यक्ति बुद्धिमान होता है, याददास्त बढती है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
2. पलाश : चन्द्र गृह (मून) के प्रतिनिधि पलाश को टेसू, ढाक, किंशुक तथा वनस्पति शास्त्र में ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते है। इसका पेड़ मध्यम आकार का 10-16 मीटर लंबा एवं खुरदुरे तनेवाला होता है. होली के आस-पास वसंत ऋतु में पलाश के पेड़ पर गहरे लाल-नारंगी रंग के पुष्प खिलते है, जिनसे प्राकृतिक रंग प्राप्त किया जाता है। शिव रात्रि के दिन शिवजी को पलाश के फूल अर्पित किये जाते है. इसकी पत्तियां त्रिपत्रक (ढाक के तीन पात) होती है, जिनका उपयोग दोना-पत्तल बनाने में किया जाता है. इस पेड़ से प्राप्त गोंद को कमर-कस कहते है, जिसे स्त्री रोगों में लाभकारी माना जाता है। नोबल पुरुस्कार प्राप्त कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी कुटिया के चारो तरफ पलाश के वृक्ष रोपित किये और अपनी कुटिया का नाम पलाशी रखा. पलाश का छाल, जड़, फूल, फल व बीज का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयुक्त होता है। चन्द्र देव की कृपा होने पर मानशिक स्वास्थ अच्छा रहता है और परिवार में सुख और शांति का वास होता है।
3.
खैर: मंगल (मार्स) गृह के प्रतिनिधि खैर वृक्ष को खादिर
व कत्था एवं वनस्पति विज्ञान में अकेसिया कटेचू कहते है। शुष्क क्षेत्रों में उगने
वाले इस कांटेदार वृक्ष की पत्तियां बबूल सदृश्य छोटे-छोटे पत्रकों में लगी होती
है। इसी वृक्ष से पान के साथ उपयोग किया जाने वाला कत्था प्राप्त होता है। खैर की
पत्तियों, काष्ठ, छाल एवं बीज में औषधिय गुण पाए जाते है, जिनका उपयोग विभिन्न रोगों
के उपचार में किया जाता है। खैर की लकड़ी का उपयोग कृषि औजार बनाने तथा कोयला बनाने
के लिए किया जाता है. खेर की जड़ से दांतून करने से दांतों की समस्या से निजात
मिलती है। पत्तियों का उपयोग त्वचा रोग, जहरीले कीटों के दंश आदि में लाभकारी माना
जाता है। मंगल गृह के प्रभाव से व्यक्ति स्वस्थ रहता है और नाम एवं ख्याति बढती है।
4. अपामार्ग: बुध (मरकरी) का प्रतिनिधि अपामार्ग को लटजीरा, चिरचिटा तथा वनस्पति विज्ञान में एकीरेंथस अस्पेरा कहते है, जो एमेरेंन्थेसी कुल का स्वतः उगने वाला 2-3 फीट ऊंचा बढ़ने वाला झाड़ीनुमा पौधा है। इसके पुष्प व फल एक लंबी शाखा पर उलटे लगते है। इसके कांटेदार फल के संपर्क में आने पर शरीर व वस्त्रों पर चिपक जाते है। अपामार्ग पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग तमाम रोगों के उपचार में किया जाता है। श्वांस रोग जैसे शर्दी-खांसी, दमा आदि रोगों के उपचार में इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है। इसकी जड़ से दातुन करने से दांत स्वस्थ एवं मजबूत होते है।
5. पीपल: गुरु/बृहस्पति (जूपिटर) का प्रतिनिधि पौधा पीपल को अश्वत्थ तथा वनस्पति शास्त्र में फाइकस रेलिजिओसा कहते है। इसके वृक्ष विशालकाय होते है, जिसके पत्ते चिकने व ह्र्दयाकार होते है। इसे इसकी शखाओं को तोड़ने पर दूधिया रस निकलता है।भारत में बहुत पवित्र पेड़ माना जाता है. मान्यता है कि भगवान् बुद्ध ने इसी वृक्ष के नीचे बैठकर कठिन तपस्या की थी. इसे सुख, शांति, समृद्धि, सौभाग्य एवं दीर्ध जीवन का प्रतीक माना जाता है। मंद हवा में भी इसके पत्ते हिलने लगते है, इसलिए इसे अस्थिर मन का प्रतीक भी माना जाता है-पीपर पात सरिस मन डोला। पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले, वायु को शुद्ध करने वाले तथा पशु पक्षियों को आश्रय एवं भोजन प्रदान करने वाले पीपल के पेड़ की छाल, जड़, पत्ते, फूल और फल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। बुध गृह व्यक्ति को ज्ञानवान बनाता है और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
6. गूलर: शुक्र (वीनस) गृह का प्रतिनिधि गूलर को उदम्बर एवं वनस्पति शास्त्र में फाइकस रेसीमोसा कहते है, जो एक घना व छायादार वृक्ष है। इसके तने व शाखाओं पर हरे रंग के गोल फल गुच्छो में लगते है जो पकने पर गुलाबी लाल रंग के हो जाते है। इसके फल पौष्टिक एवं सेहत के लिए लाभकारी होते है। पशु-पक्षी गूलर के फलों का सेवन करते है। माना जाता है कि सत्यवादी रजा हरिश्चंद का मुकुट उदम्बर की टहनी से बना था जो सोने से जड़ी थी और उनका सिंहासन भी इसकी लकड़ी से बना था। अथर्ववेद में गूलर वृक्ष के औषधिय गुणों का विवरण मिलता है। शुक्र गृह की उपासना से ब्यक्ति के पूर्व जन्म के बुरे कर्मो से मुक्ति मिलती है।
7. शमी: शनिगृह (सैटर्न) का प्रतिनिधि पौधा शमी को खेजड़ी, छयोंकर तथा वनस्पति शास्त्र में प्रोसोपिस सिनेरिरिया कहते है। हमारे महाकाव्य महाभारत में शमी की महिमा का वर्णन मिलता है। माता सीता की खोज में निकले भगवान श्रीराम ने भी मनोकामना की पूर्ति हेतु शमी वृक्ष की पूजा की थी। आज भी दशहरे के दिन शमी वृक्स्थष की पूजा अर्लीचना की जाती है। भारत के मरुस्यथलीय क्षेत्रों का यह बहुपयोगी वृक्ष है। इस वृक्ष की फलियों से सब्जी बनाई जाती है। शमी वृक्ष की लकड़ी का प्रयोग धार्मिक हवन समग्री एवं विवाह मंडप तैयार करने में किया जाता है। इसकी पेड़ के सभी भागों का औषधिय महत्व है। शनि गृह की उपासना से व्यक्ति धनवान, ज्ञानवान एवं स्वस्थ रहता है।
8. दूब: छाया गृह राहु की प्रतिनिधि दूब घास को दुर्बा, हरियाली एवं वनस्पति विज्ञान में साइनोडॉन डेक्टिलोन कहते है. भगवान् गणेश को प्रिय दुर्बा घास का उपयोग पूजा-अर्चना में किया जाता है. प्रतिकूल परिस्थितयों में भी हमेशा हरी भरी रहने वाली इस घास पर नंगे पाँव चलने से शरीर की अनेक व्याधियां समाप्त हो जाती है। बुखार, सर दर्द, मधुमेह, जलन, दस्त आदि रोगों के उपचार में दूब घास को प्रभावकारी माना जाता है। राहू की उपासना से इस गृह के कुप्रभाव से बचा जा सकता है।
9. कुश: छायाग्रह केतु की प्रतिनिध कुश घास को दर्भ तथा वनस्पति शास्त्र में डेस्मोस्टेचिया बाईपिन्नेटा कहते है। शुष्क भूमियों में उगने वाली इस घास को सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है. कुशा घास से बनी पवित्री (अंगूठी) पहन कर यज्ञीय कार्य और पूर्वजों को तर्पण दिया जाता है. ऋषि मुनि इससे बने आसन पर बैठकर योग एवं ध्यान करते है। आयुर्वेद में अनेक असाध्य रोगों के उपचार में इस घास का प्रयोग किया जाता है। केतु की उपासना से व्यक्ति को मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है।
नवग्रह वाटिका के लाभ
1. नवग्रह वाटिका ऊर्जा एवं शान्ति का महत्वपूर्ण स्त्रोत मानी जाती है। जिस प्रकार से ग्रहों के लिए निर्धारित रत्नों के प्रभाव से ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है, उसी प्रकार ग्रहों के अराध्य वृक्ष वनस्पतियों के सामीप्य से उतनी ही अनुकूलता प्राप्त होती है। नव गृहवाटिका के प्रमुख लाभ है:
- नव गृह वाटिका वास्तु की सहायता से 9 ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सहायक है।
- इस वाटिका से वास्तु दोष को कम किया जा सकता है और इनसे ऊर्जा प्राप्त होती है।
- नव गृह वाटिका की स्थापना से लोगों में वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता और पेड़-पौधों के संरक्षण की भावना भी पैदा होती है।
- नव गृह वाटिका के पौधे मनुष्य की बहुत सी बीमारियों से रक्षा करते है।
- नवग्रह वाटिका पशु-पक्षियों को आश्रय देने के साथ-साथ मनुष्य को छाया एवं आरोग्य प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
- उचित समय एवं सही दिशा में उगाये जाने पर वाटिका के पौधे दिव्य ऊर्जा को अपनी और आकर्षित करते है और मनुष्य के लिए फलदायी होते है।
इस प्रकार से हम कह सकते है कि नव गृहवाटिका केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि इसके अनगिनत लाभ को देखते हुए भारत के सभी राज्यों के विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों, अस्पतालों के साथ-साथ सभी प्रकार के सरकारी और निजीं प्रतिष्ठानों पर इसकी स्थापना करने से वर्तमान में आसन्न जलवायु परिवर्तन के खतरे, पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है। इसके अलावा इसकी मदद से हम देश की बहुमूल्य जैव विविधता का भी संरक्षण कर सकते है।
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