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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

खेतों में सूर्यमुखी की बहार:नव वर्ष में खुशियाँ अपार


खेतों में सूर्यमुखी की बहार: नव वर्ष में खुशियाँ अपार
डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर

भारत में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग और  तिलहनों के कम उत्पादन के कारण खाद्य तेलों का सालाना 1.40 से 1.50 करोड़ टन आयात करना पड़ रहा है। वर्ष 2017-18 में खाद्य तेलों का उत्पादन 1.05 करोड़ टन रहा और घेरलू आपूर्ति के लिए लगभग 74.996 करोड़ मूल्य का 1.53 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात किया गया।  देश में खाद्य तेलों की कमीं को देखते हुए केंद्र सरकार ने आगामी वर्ष 2022 तक 4.6 करोड़ टन तिलहन उत्पादन का लक्ष्य रखा है जिससे लगभग 1.6-1.7 करोड़ टनखाद्य तेल प्राप्त होने की उम्मीद है।  भारत में तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने  के लिए तिलहनी फसलों की खेती के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार एवं प्रति इकाई उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। सिंचित क्षेत्रों में तिलहनों की खेती खरीफ/रबी  के साथ-साथ ज़ायद (ग्रीष्म ऋतू)  में भी करना होगा।  खरीफ की अपेक्षा अनुकूल मौसम होने के कारण  ग्रीष्मकाल में सूर्यमुखी/सोयाबीन/तिल फसलों में कीट/रोग का प्रकोप कम होता है और भरपूर प्रकाश उपलब्ध होने के कारण फसल  उत्पादन अच्छा होता है।  तो आइये इस नव वर्ष 2019 में खेती का श्रीगणेश सूर्यमुखी की खेती से करें।
 सूरज को निहारते सूरजमुखी के फूल देखने में जितने सुन्दर और आकर्षक लगते है वही इसके बीज खाने में स्वादिष्ट और बीजों से प्राप्त तेल भी सेहत के लिए गुणकारी समझा जाता है. भारत में मूंगफली, सरसों एवं सोयाबीन के बाद तिलहनी फसलों में सुर्मुखी का चौथा स्थान है।   हमारे देश में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में सबसे अधिक सूरजमुखी की खेती होती है।  इसके बीजों में 45-50 % तक उच्च गुणवत्ता वाला तेल पाया जाता है. सुर्मुखी के तेल में 64 % लिनोलिक अम्ल पाया जाता है, जो मनुष्य के ह्रदय में कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक होता है. इसके तेल को वनस्पति घी तैयार करने में किया जाता है. इसकी खली में 40-44 % प्रोटीन पाई जाती है, जो की मुर्गियों एवं पशुओं के लिए उत्तम आहार है।  सूर्यमुखी की गिरी खाने में स्वादिष्ट होती है जिसे कच्चा एवं भूनकर भी खाया जाता है।  इसके दानों में विटामिन ए,डी एवं ई पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।  सूरजमुखी की खेती खरीफ ,रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है। परन्तु खरीफ में सूरजमुखी की फसल पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप होता है। फूल छोटे होने के साथ-साथ उनमें दाना भी कम पड़ता है। जायद में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में किसान  भाई  कम समय और न्यूनतम लागत से ग्रीष्मकाल  में सूर्यमुखी की खेती सफलता पूर्वक कर  नए वर्ष 2019 को खुशहाल बना सकते है । सूर्यमुखी से अधिकतम उपज और आमदनी लेने के लिए उन्नत सस्य तकनीकी अग्र प्रस्तुत है ।   
सूर्यमुखी की लहलहाती फसल फोटो साभार गूगल

खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सूर्यमुखी की वृद्धि एवं विकास पर प्रकाश अवधि का प्रभाव नहीं पड़ता है और इसलिए इसे खरीफ, रबी और बसन्त (ग्रीष्मकाल) में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है।  वर्षा ऋतु में वातावरण में अधिक आद्रता एवं बदल छाये रहने के कारण इसकी उपज कम आती है।  अच्छी फसल बढ़वार और उपज के लिए 20-25 डिग्री से.ग्रे.तापमान उपयुक्त होता है।

भूमि का चयन  

सूरजमुखी की खेती अम्लीय व क्षारीय भूमि को छोडकर सुनिश्चित सिंचाई वाली सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परन्तु  उचित जल निकास वाली दोमट एवं  भारी भूमि सर्वथा उपयुक्त रहती है।

खेत की तैयारी

खेत में पर्याप्त नमीं न होने की दशा में हलकी सिंचाई कर  जुताई करनी चाहियें। आलू, राई, सरसों अथवा गन्ना आदि के बाद खेत खाली होते ही एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा देशी हल या कल्टीवेटर से एक-दो जुताई करने के उपरांत पाटा चलाकर  मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए। रोटावेटर से खेत की तैयारी शीघ्र हो जाती है।

उन्नत किस्म के बीज

सूर्यमुखी की फसल से अधिकतम उपज और आमदनी के लिए संकर प्रजातियों के बीज का इस्तेमाल करना चाहिए परन्तु ध्यान रखें इन प्रजातियों का बीज प्रति वर्ष उपयोग नहीं करना है अर्थात ने बीज बुवाई में प्रयोग करें।  संकुल किस्मों का बीज 2-3 वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है परन्तु इनसे उत्पादन कम प्राप्त होता है।  सूर्यमुखी की प्रमुख संकुल किस्मों एवं संकर प्रजातियों की विशेषताए अग्र सारणी में प्रस्तुत है।
क्र.सं.
किस्म/प्रजाति
पकने की अवधि (दिन में)
मुंडक का आकार (सेमी.)
अधिकतम उपज क्षमता (कु./हे.)
तेल प्रतिशत
(क)
संकुल




1
मार्डन
75-80
12-15  
06-08
34-38
2
ई सी 68414
100-110  
15-20
12-15
35-37

टी एन ए यू एस यू एफ-7
90-95
16-20
08-12
38-42
(ख)
संकर




1
के.वी. एस.एच-1
90-95
15-20
12-15
42-44  
2
डी आर एस एच-1  
95-110  
18-21
15-20  
40-44
3
के.वी. एस.एच-44
95-100  
20-22
14-18  
36-38  
4
डी आर एस एफ-108
95-100
18-20
15-18
36-39

बुवाई का उपयुक्त समय

सूर्यमुखी की खेती वर्ष पर्यन्त सफलतापूर्वक की जा सकती है।  सामान्यतः सूर्यमुखी खरीफ में 80-90, रबी में 105-130 दिनों एवं जायद में 110-115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।  जायद में सूरजमुखी की बुवाई का उपयुक्त समय जनवरी के अंतिम सप्ताह से फरवरी का दूसरा पखवारा होता है, जिससे फसल वर्षाकाल के पहले पक जायें। बुवाई में देर करने से वर्षा शुरू हो जाने के बाद उपज और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

बुवाई कतार विधि से 

सूर्यमुखी की अधिकतम उपज के लिए बुवाई कतारों मे करें. कतार से कतार की दूरी 60 सेमी. एवं पौधे से पौधे के मध्य 30 सेमी. का फासला रखना चाहिए . शीघ्र तैयार होने वाली एवं संकर प्रजातियों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेमी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. रखना उचित रहता है।  बीजों की बुवाई 4-5 सेमी. की गहराई पर करनी चाहियें। बुवाई के 10-15 दिन बाद सिंचाई से पूर्व थिनिंग (विरलीकरण) द्वारा पौधे से पौधे की आपसी दूरी 15 सेमी स्थापित  कर लेनी चाहियें।

सही बीज दर

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 12 से 15 किग्रा स्वस्थ संकुल प्रजाति का प्रमाणित बीज पर्याप्त होता है। सूर्यमुखी लो संकर प्रजाति का 5-6 किग्रा. बीज प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए । यदि बीज का जमाव 70 प्रतिशत से कम हो तो तद्नुसार बीज की मात्रा बढ़ा देना चाहिये।

फसल सुरक्षा के लिए बीज शोधन

शीघ्र और एकसार अंकुरण के लिए बीजों को 12-14  घण्टे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घण्टे सुखाने के पश्चात बीज जनित रोगों से सुरक्षा हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग से बचाव हेतु मेटालाक्सिल 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित कर बुवाई करना चाहिए। बीज की दीमक एवं अन्य कीटों से सुरक्षा हेतु बुवाई से पूर्व इमिडाक्लोप्रिड 5-6 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने के उपरान्त बुवाई करें। 

अच्छी उपज के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन 

सामान्यतः उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसकी खेती में बुवाई से 15 दिन पूर्व 6 से 8  टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टर का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है। मिट्टी परीक्षण की सुविधा न होने की दशा में संकुल किस्मों में 80 किग्रा एवं संकर प्रजाति में 100 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा० फास्फेारस एवं 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंडों में प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन की शेष मात्रा बुवाई के 30 एवं 45  दिन बाद सामान भागों में प्रयोग करें । फॉस्फोरस तत्व की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट के माध्यम से करना चाहिए जिससे फसल को आवश्यक सल्फर की पूर्ति हो सके।

जायद में सिंचाई आवश्यक  

वर्षा काल में सूर्यमुखी को असिंचित अवस्था में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है, परन्तु जायद में सूर्यमुखी की खेती के लिए सिंचाई आवश्यक होती है। हल्की भूमि में जायद मे सूरजमुखी की अच्छी फसल के लिए 4-5 सिचांईयो की आवश्यकता पडती है। तथा भारी भूमि में 3-4 सिंचाइयां क्यारियों बनाकर करनी चाहिेयें. खेत में नमीं के आभाव में बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें । ध्यान रखें कि कलिका बनते समय, फूल निकलते समय तथा दाना भरते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। इस अवस्था में सिंचाई बहुत सावधानी पूर्वक करनी चाहिए ताकि पौधे न गिरने पायें। सामान्यतः ग्रीष्मकाल में 10-15 दिनों के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रारम्भिक अवस्था की सिंचाई स्प्रिकलर द्वारा किया जायें। तो लाभप्रद होती है।

जरुरी है खरपतवारों की रोकथाम 

            सूर्यमुखी  की फसल को बुवाई से 60 दिनों तक खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है. इसके लिए बुवाई के 15-20 दिनों बाद 15 दिन के अंतराल पर हाँथ या यांत्रिक विधि से निराई –गुड़ाई करना चाहिए । सूर्यमुखी के मुंडक काफी वजनदार होते है और तना कमजोर होता है।  अतः फसल की ऊंचाई 50-60 सेमी होने पौधों पर 10-15 सेमी मिटटी चढ़ाना आवश्यक है, जिससे फसल को गिरने से बचाया जा सके।  रासायनिकों द्वारा  खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डिमैथेलिन 01 किग्रा अथवा एलाक्लोर 01-1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर के हिसाब से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद 2-3 दिन के अन्दर छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रित रहते है।

भरपूर फसल के लिए परसेचन क्रिया

सूरजमुखी एक परसेचित (पर परागित) फसल है। इसके मुंडक में दाना भरने एवं  अच्छी उपज के लिए परसेचन क्रिया नितान्त आवश्यक है। वैसे तो यह क्रिया भौरों एवं मधुमक्खियों के माध्यम से होती है। जहां इनकी कमी हो, वहां हाथ द्वारा परसेंचन की क्रिया आवश्यक है। अच्छी तरह फूल खिल  जाने पर हाथ में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोंयेदार कपड़ा हाथ में लपेट कर सूरजमुखी के मुंडकों पर चारों ओर धीरे-धीरे फेरते जायें । पहले फूल के किनारे वाले भाग पर, फिर बीच के भाग पर यह क्रिया प्रातःकाल 8-10 बजे तक की जा सकती है।

फसल सुरक्षा

            सूर्यमुखी की फसल में बहुत से कीट-रोगों का प्रकोप होता है। यदि सही समय में कीट रोग प्रबंधन के उपाय नहीं अपनाये जाते है तो उपज में भारी क्षति होने की संभावना रहती है. रोगों से सुरक्षा हेतु बीजों को उपचारित करके बोना नितांत आवश्यक है. फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के नियंत्रण के उपाय निम्नानुसार है.
दीमक: इस कीट के श्रमिक फसल को भारी क्षति पहॅचाते है। इसके नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व 2.5 किग्रा। ब्यूवेरिया बैसियाना को लगभग 75 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह छाया में फैलाने के बाद प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।  खडी फसल में दीमक अथवा कट वर्म का प्रकोप दिखाई देने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 ई०सी० 2.5-3.5 लीटर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
हरे फुदके : इस कीट के प्रौढ़ तथा बच्चे पत्तियों से रसचूसकर हानि पहुंचाते हैं। इससे पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं। इसके नियन्त्रण हेतु मिथाइल ओडिमेटान 25% ई०सी० 1 लीटर या डाइमेथोएट 30% ई०सी० की 1.00 लीटर मात्रा का 600-800 लीटर पानी के साथ प्रति.हे. या इमिडाक्लोपिड 250 ग्राम छिड़काव करें। यह छिड़काव अपरान्ह देर से करना चाहिए ताकि परसेंचन क्रिया प्रभावित न हो।
केपिटूलम बोरर : इस कीट की सूडियों मुडक मे बन रहे बीजो को खाकर काफी क्षति पहुचाती है।  सायपरमेथ्रिन (0.005 %) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
कटाई-मड़ाई एवं उपज
जब सूरजमुखी के बीज पक कर कडे ( 20 % नमीं) हो जाये तो मुडको की कटाई कर लेना चाहिये। पके हुए मुडको का पिछला भाग पीले-भूरे रंग का हो जाता है। मुडको को काटकर छाया  मे सुखा लेना चाहियें। मुंडकों को ढेर बनाकर नही रखना चाहियें. अच्छी प्रकार सूखने के बाद डण्डे से पीटकर अथवा थ्रेसर से मड़ाई संपन्न करें । सूरजमुखी फसल की उपरोक्तानुसार वैज्ञानिक ढंग से खेती करने पर संकुल प्रजातियों से  औसत उपज 12-15  क्विंटल  तथा संकर प्रजातियों से  20-25 क्विंटल  प्रति हेक्टर तक प्राप्त हो सकती  है। बीजों को सुखा कर (10 % नमीं) उचित स्थान पर भण्डारण करें अथवा बाजार में बेचा जा सकता है । बीज से तीन महीने के अन्दर तेल निकाल लेना चाहियें। अन्यथा तेल मे कडुवाहट आ सकती है। 
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