रबी
फसलों के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती
डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी),
डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी),
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय
एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारत
में खरीफ एवं ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलों में मूँग का महत्वपूर्ण स्थान है. देश की शाकाहारी
आबादी के लिए यह प्रोटीन आवश्यकता की पूर्ति का मुख्य स्त्रोत है। मूंग के डेन में 24-25 % प्रोटीन, 56 %
कार्बोहाईड्रेट एवं 1.3 % वसा पाया जाता है। सिंचाई की पूर्ण सुविधा होने पर किसान
भाई गेंहू, सरसों, चना, मटर, आलू आदि फसल
के बाद तीसरी फसल के रूप मे ग्रीष्मकालीन
मूँग की खेती कर अल्प अवधि में आर्थिक लाभ
अर्जित कर सकते है। धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में
सुधार लाया जा सकता है। फली तोड़ने के बाद फसलों को भूमि में पलट देने से यह हरी
खाद की पूर्ति भी करती है।
भूमि
एंव उसकी तैयारी : मूंग की खेती के लिए दोमट
भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। उचित जल निकास वाली मटियार और बलुई दोमट मिट्टियां में भी मूंग की खेती की
जा सकती है। मिटटी का पी एच मान 7-7.5
होना चाहिए। रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद खेत की जुताई कर छोड़ देना चाहिए। इसके
बाद पलेवा करके देशी हल या कल्टीवेटर से दो जुताइयां
कर पाटा लगाकर खेत को समतल कर बुवाई करना चाहिए ।
उन्नत किस्में: रबी फसलों
की कटाई पश्चात ग्रीष्मकाल में मूंग से अधिकतम पैदावार लेने के लिए अग्र लिखित
उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए.
1.पी.डी.एम.-11: यह किस्म 60 से 65 दिन मे पककर
10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज
देती है।
2.पूसा विशालः यह किस्म 60-65 दिन मे पककर 12 से 14 क्विटंल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
3.सम्राट (पी.डी.एम.-139): यह किस्म 60 से 65 दिन मे तैयार होकर 9 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है तथा पीला मौजेक प्रतिरोधक किस्म
है।
4.आर.एम.जी.-62 : यह किस्म 60 से
80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
5.आई.पी.एम.-99-125: यह किस्म 60-65 दिन मे पकती है। इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टर है।
6. मालवीय जाग्रति (एच.यू.एम.-2): यह किस्म 65 से 70 दिन में पकती हैं। इसकी उपज 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है।
7. मालवीय जन चेतना (एच.यू.एम.-12): यह किस्म
60-62 दिन में तैयार होकर 12-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है.
बुवाई
का समय एवं बीज दर : मूंग की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 10
मार्च से 10 अप्रैल तक है। बुवाई में देर करने
पर फूल आते समय तापमान में वृद्धि के कारण फलिया कम बनने के कारण उपज में कमीं हो सकती है ।
अच्छी उपज की लिए स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करना चाहिए. ग्रीष्मकालीन बुवाई हेतु 20-25 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
गन्ने के साथ सहफसली खेती के लिए मूंग की बीज दर 7-8 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखनी
चाहिए।
बीज उपचार
: बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को तीन
ग्राम थाईरम या 2.5 ग्राम थाईरम एवं
एक ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मां से
उपचारित करे। बीज की कीड़ों से सुरक्षा के
लिए मूँग मे इमिडाक्लोप्रिड 5 मिलीलीटर/किलोग्राम बीज दर के
हिसाब से बीजोपचार करे। इसके बाद बीजो को राइजोबियम से उपचारित करें । आवश्यकतानुसार गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बनावे तथा ठण्डा होने पर उसमे 600 ग्राम मूँग का जीवाणु संवर्ध मिला देवे। एक हेक्टर में बोये जाने वाले बीजो को उक्त जीवाणु सवंर्ध में भली भाँति मिलाकर छाया मे सुखाकर बुवाई करे। राइजोबियम
कल्चर के साथ साथ फास्फेट की उपलब्धता बढ़ाने के लिये पी.एस.बी. कल्चर का भी प्रयोग करने
से उपज में वृद्धि होती है।
बुवाई
की विधि: मूंग की बुवाई देशी हल के पीछे नई
या चोंगा बाँध कर अथवा सीड ड्रिल से पंक्तियों में करना
चाहिए। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और
पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखें। बीज
4-5 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक
का प्रयोग : उर्वरक का प्रयागे मृदा परीक्षण के
आधार पर किया जाना चाहिए। सामान्यतयाः जायद मूँग में 20 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस, 20
कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। उर्वरक की पूरी मात्रा बुवाई
के समय कूंडों में बीज से 2-3 से.मी. की
गहराई पर देना चाहिये ।
सिंचाई
आवश्यक : मूंग में सिंचाई भूमि की किस्म तथा वायुमंडल के
तापमान पर निर्भर करती है. सामान्यतौर पर 3-4 सिंचाई देने से मूंग की अच्छी उपज
प्राप्त होती है. पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद और फिर 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। फसल में फूल आने से पूर्व तथा फलियो मे दाना बनते समय सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है।
खरपतवार
प्रबंधन: पहली सिंचाई के बाद निकाई करने से
खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ भूमि से वायु का भी संचार होता है. मूँग की फसल मे घास
कुल के खरपतवारो के नियंत्रण के लिए क्यूजालोफॉप इथाइल (टरगा सुपर) 50
ग्राम प्रति हेक्टर की दर
से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करे। घास कुल,
मोथा तथा चौड़े पत्ती वाले खरपतवारों के
नियंत्रण के लिए इमेजेथापायर 100 ग्राम प्रति हेक्टर की दर से
500 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 20 दिन बाद छिडकाव
करें ।
फसल
की कटाई एवं उपज: मूंग की फसल सामान्य तौर पर
60-65 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे या काले रंग की होने पर कटाई कर लेना चाहिए। सामान्यतौर पर फसल में 70-80 प्रतिषत फलियाँ पकने
पर इनकी तुडाई कर लेना चाहिए। फलियों की
तुड़ाई 2-3 बार में करने के बाद सम्पूर्ण
फसल की कटाई करना चाहिए अथवा फसल को खेत में जुताई कर फसल को मिटटी में मिला देना
चाहिए. फलियों को घूप मे सूख्राने के बाद
मड़ाई कर लेना चाहिए । उन्नत तरीके से मूँग
की खेती करने से ग्रीष्मकाल में औसतन 10
से 12 क्विटंल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।
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