बेहतर उत्पादन के लिए आवश्यक है धान की स्वस्थ पौध
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर, प्रोफ़ेसर
(सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय
एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
धान उत्पादक देशों में क्षेत्रफल एवं
उत्पादन के हिसाब से भारत का क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय स्थान है परन्तु हमारे देश
में धान की औसत उपज विश्व औसतमान 4112 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर) से काफी कम (3124
कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर) है। हमारी
उत्पादकता इजिप्ट, जापान,चीन, वियतनाम, अमेरिका, इंडोनेशिया देशों की तुलना में
बहुत कम है। भूमि एवं जल का अकुशल प्रबंधन
एवं धान उगाने की पुरातन पद्धति के कारण हमारे देश में धान की उपज कम आती है. भारत
में धान की खेती शुष्क, अर्द्ध शुष्क एवं नम परिस्थितियों में की जाती है। शुष्क
एवं अर्द्ध शुष्क पद्धति से धान की खेती वर्षा पर आधारित है जबकि नम पद्धति
सुनिश्चित वर्षा एवं सिंचित क्षेत्रों में की जाती है। सुनिश्चित वर्षा एवं सिंचित
क्षेत्रों में धान की खेती रोपण पद्धति से की जाती है। रोपण पद्धति में धान की
बेहतर पैदावार के लिए धान की उन्नत व स्वस्थ पौध तैयार करना अत्यन्त आवश्यक रहता
है। इसके लिए उत्तम किस्म के प्रमाणित बीज का चुनाव, पौध क्यारी के लिए उपयुक्त
जगह, उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक डालना, खरपतवार नियंत्रण, समय पर सिंचाई एवं
पौध सरंक्षण के उपाय अपनाना नितांत आवश्यक है।
धान की स्वस्थ पौध ऐसे तैयार करें
धान की पौधशाला फोटो साभार गूगल |
किसान भाई अधोप्रस्तुत उन्नत तकनीक
से धान की अच्छी पौध तैयार कर बेहतर उप्तादन प्राप्त कर सकते है:
खेत का चुनाव व तैयारी : पौधशाला
ऐसी भूमि में तैयार करनी चाहिए जो उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली व जल स्त्रोत के
नजदीक हो। धान की पौध शाला स्थापित करने के लिए चिकनी दोमट या दोमट मिट्टी का चुनाव करें।
खेत की 2
से 3 जुताई कर के खेत को समतल व खेत की मिट्टी
को भुरभुरी कर लें। खेत को समतल कर के करीब 1 से डेढ़ मीटर
चौड़ी, 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची व आवश्यकतानुसार
लंबी क्यारियां बनाएं। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लिए 1/10 हेक्टेयर (1000 वर्गमीटर) क्षेत्रफल में पौध
तैयार करना पर्याप्त होता है। खेत की ढाल के अनुसार नर्सरी में सिंचाई व जल निकास
की नालियां बनाएं।
पौधशाला में बुवाई का समय: धान
की पौधशाला की बुवाई का सही समय वैसे तो जलवायु, संसाधन एवं विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है, लेकिन
15 मई से लेकर 20 जून तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त पाया गया है। मध्यम व देर से
पकने वाली किस्मों की बोआई मई के अंतिम हफ्ते से जून के प्रथम पखवाड़े तक करें। जल्दी पकने वाली किस्मों की बोआई जून के
दूसरे पखवाड़े तक कर लेना चाहिए।
बीज का
चयन: अपने क्षेत्र एवं जलवायु परिस्थिति के लिए अनुशंसित धान
का बीज किसी विश्वसनीय स्त्रोत से ही क्रय करना चाहिए। यदि खुद का बीज प्रयोग रखना
हो तो ऐसे खेत से लें जिसमे कीड़े-बीमारी का प्रकोप न हुआ हो। अपना बीज प्रयोग करना
है तो बुवाई से पहले स्वस्थ बीजों की छटनी आवश्यक है। इसके लिए 10 प्रतिशत नमक के
घोल का प्रयोग करते है। नमक का घोल बनाने के लिए 2 किग्रा सामान्य नमक 20 लीटर
पानी में घोल लें और इस घोल में 30 किग्रा बीज डालकर अच्छी प्रकार से हिलाएं। इससे
स्वस्थ एवं भारी बीज नीचे बैठ जायेंगे और हल्के-थोथे बीज ऊपर तैरने लगेंगे।
बीज की
मात्रा :
धान की मोटे दाने वाली किस्मों के लिए 25 से 30 किलोग्राम व बारीक दाने वाली किस्मों के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत होती है। संकर
धान 15 से 20 किलोग्राम प्रति
हेक्टेयर लगता है। पौधशाला के लिए तैयार की गई क्यारियों में उपचारित किए गए सूखे
बीज की 50 से 80 ग्राम मात्रा का प्रति
वर्ग मीटर के हिसाब से छिड़काव करें.नर्सरी में ज्यादा बीज डालने से पौधे कमजोर
रहते हैं और उन के सड़ने का भी डर रहता है।
बीज उपचार:
बीजजतिन
रोगों से पौधों की सुरक्षा हेतु बीजों का उपचार किया जाता है। बीज उपचार के लिए 10
ग्राम बाविस्टीन और 2.5 ग्राम पोसामाइसीन या 1 ग्राम
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 25 लीटर पानी में घोल कर उसमें छांटे
हुए बीजों को 24 घंटे भिगो कर व सुखा कर बोआई करें। इस उपचार से जड़ गलन,
झोंका (ब्लास्ट) एवं पत्ती झुलसा रोग आदि बिमारियों के नियंत्रण में सहायता मिलती
है. आज कल धान उगाने वाले क्षेत्रों में सूत्रकृमि की समस्या देखने को मिल रही है।
इससे प्रभावित पौधों की जड़ें भूरी से लाल-भूरे रंग की हो जाती है, जिससे जड़ों की
बढ़वार रुक जाती है और पौधे पीले हो जाते है। पौधशाला में सूत्रकृमि के प्रकोप की संभावना होने पर पौधशाला के एक
वर्ग मीटर स्थान में 3-4 ग्राम कार्बोफ्युरान (फ्युराडान 3-जी) का प्रयोग करें।
बोआई की विधि :
बीजों को अंकुरित करने के बाद ही बिजाई करें। अंकुरित करने के लिए बीजों को जूट के
बोरे में डाल कर 16
से 20 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इस के
बाद पानी से निकाल कर बीजों को सुरक्षित जगह पर सुखा कर बिजाई के काम में लें।
बनाई गई क्यारियों में प्रति वर्ग मीटर 40 ग्राम बारीक धान
या 50 ग्राम मोटे धान का बीज बीजोपचार के बाद 10 सेंटीमीटर दूरी पर कतारों में 2 से 3 सेंटीमीटर गहरा बोएं। संकर धान के बीज की 20 से 25
ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से बुआई करें। बीजों को पौधशाला में सीधा
बोने पर 3 से 4 दिनों तक चिडि़या आदि
पक्षियों से बचाव करें जब तक कि बीज उग न जाएं।
पौधशाला में खाद व उर्वरक :
प्रतिवर्ग मीटर पौधशाला में 10 ग्राम
अमोनियम सल्फेट या 5 ग्राम यूरिया अच्छी तरह मिलाना चाहिए।
यदि रोपणी में पौधे नत्रजन की कमी के कारण पीले दिखाई दें तो 15 से 30 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 7 से 15 ग्राम यूरिया प्रति वर्ग मीटर रोपणी में
देवें। लौह तत्व की कमी वाले क्षेत्रों
में 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट के घोल के 2-3
छिडकाव (एक सप्ताह के अन्तराल पर) करने से पौधों में हरिमाहीनता
(क्लोरोसिस) की समस्या से निजात मिल जाती है। रोपाई में विलम्ब होने की संभावना हो
तो नर्सरी में नत्रजन की टाप ड्रेसिंग न करें।रोपणी में यदि खरपतवार हो तो उन्हें
निकालने के बाद ही नत्रजन का प्रयोग करें।
सिंचाई एवं जल निकास : बोआई
के समय खेत की सतह से पानी निकाल दें और बोआई के 3 से 4 दिनों तक केवल खेत की सतह को पानी से तर रखें। जब अंकुर 5 सेंटीमीटर के हो जाएं, तो
खेत में 1 से 2 सेंटीमीटर पानी भर दें.
ज्यादा पानी होने पर पानी को खेत से निकाल देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण :
पौधशाला में खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई
के 1-3 बाद 1.5 कि.ग्रा. सोफिट (प्रेटीलाक्लोर 30 ई सी + सेफनर) प्रति हेक्टेयर को
150 कि.ग्रा. सूखी रेत में मिलाकर प्रयोग
करने से काफी हद तक खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। पौध शय्या में बुवाई के 10-12 दिन बाद निराई अवश्य करें. सोफिट
के अभाव में ब्युटाक्लोर (मचैटी) 50 ई सी या बेन्थियोकार्ब नामक शाकनाशियों की 2.5
लीटर मात्रा को 150 कि.ग्रा. सूखी रेत में मिलाकर अंकुरित धान बोने के 6 दिन बाद
प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
रोपाई का समय : कम
अवधि वाली बौनी किस्मों की रोपाई जुलाई के प्रथम सप्ताह से लेकर जुलाई अंत तक करना
चाहिए। मध्यम अवधि वाली बौनी किस्मों एवं संकर धान की रोपाई 15 जुलाई तक संपन्न कर
लेना चाहिए।
रोपाई के लिए पौध की उपयुक्त आयु : शीघ अर्थात कम समय में पकने वाली धान की बौनी किस्मों की रोपाई 20 से 25 दिन के अन्दर (4-6 पत्ती अवस्था पर) कर देना
चाहिए । मध्यम या देर से पकने वाली किस्मों की रोपणी की उम्र 25 से 30 दिन उपयुक्त होती है।
रोपाई हेतु मुख्य खेत की तैयारी: यदि
धान के मुख्य खेत में हरी खाद वाली फसल ढैंचा आदि लगाई गई हो तो रोपाई के 6-8 दिन पूर्व ही हरी खाद को रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए । मुख्य खेत में
मचाई का कार्य रोटावेटर से करना चाहिए, इससे मचाई शीघ्र होने के साथ-साथ पानी की
भी बचत होती है। यदि खेत ऊँचा-नीचा हो तो पाटा चलाकार समतल कर लें। इसी समय
उर्वरकों की आधार मात्रा प्रदान करें। पौध रोपण से पहले खेत में पानी भर देवें।
पौध उखाड़ना: रोपाई
के लिए पौध को क्यारियों से उखाड़ने से 5 से 6 दिन पहले 1 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति 100 वर्ग मीटर नर्सरी के हिसाब से देते हैं ताकि स्वस्थ पौध मिल सकें। पौध
उखाड़ने के एक दिन पहले पौधशाला में पानी भर देना चाहिए, जिससे पौधों को आसानी से
उखाड़ा जा सके और पौध की जड़ों को कम से कम नुकसान हो। रोपाई के समय पौध निकाल कर
पौधों की जड़ों को पानी में डुबो कर रखें। पौध को क्यारियों से निकालने के दिन ही
रोपाई करना उपयुक्त होता है।
रोपाई का तरीका:
धान पौध की रोपाई कतारों में करें। कतारों व पौधों के बीच की दूरी 20 x 10 से.मी. (शीघ्र व मध्यम समय में तैयार होने वाली
किस्में) तथा 20 x 15 से.मी. (देर से
तैयार होने वाली किस्मों) रखना चाहिए। कम
उर्वरता वाले क्षेत्रों तथा देर से रोपाई की स्थिति में नजदीकी रोपाई लाभकारी होती
है। रोपा लगाते समय एक स्थान (हिल)पर 2 से 3 पौधों की रोपाई करें। पौधे सदैव सीधी लगाना चाहिए एंव गारा बैठने पर पौध को 2-3 से.मी. की गहराई पर ही लगाए। ऐसा करने से पौध शीघ्र
स्थापित हो जाती है। कल्ले अधिक बनते है और फूल भी एक साथ आते है ।
कृपया ध्यान रखें: निवेदन है कि लेखक/ब्लॉगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं भी प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
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