डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ के अंचल के जंगलों में इन दिनों महुआ और चिरोंजी की बहार देखने को मिल रही है. मौसम का मिजाज़ अच्छा होने के कारण चिरोंजी के वृक्ष फलों से लदे हुए है। भोर के समय जंगल की सैर करते समय in पेड़ों के नीचे ग्रामीणों/वनवासी महुआ के फूल और चिरोंजी के फल एकत्रित करते रहते है. पता चला की महासमुंद जिले के ग्राम गोपालपुर की सरहद के जंगल में चार का बागान है। उत्सुकताबस मै भ्रमण पर गया तो रायपुर-सरायपाली राष्ट्रिय राजमार्ग पर स्थित गोपालपुर गाँव में घुसते ही अद्भुत नजारा देखने को मिला. मैंने कभी चिरोंजी के पेड़ नही देखे थे। सडक के किनारे जंगल के कुछ पेड़ो पर गाँव के छोटे-छोटे बच्चे पेड़ों पर चढ़कर कुछ तोड़ रहे थे। मै गाडी रोककर नीचे उतरने लगा तो बच्चे भागने लगे। एक राहगीर से मैंने पूंछा कि ये कौनसा पेड़ है जिसके फल बच्चे तोड़ रहे है और खा भी रहे है। राहगीर ने बताया साहब ये चार का पेड़ है, इसके फल गाँव के बच्चे-बड़े तोड़कर एकत्रित करते है। खुद भी खाते है और बेच कर जेब खर्च के लिए कुछ पैसा भी कमा लेते है। फिर मैंने एक बच्चे से आग्रह किया की मेरे लिए भी कुछ फल तोड़ दो, मै खरीद लूँगा. उस बच्चे ने मुझे लगभग 250 ग्राम चार के सुन्दर ताजे फल दिए। पहली बार देशी बेर के आकार के जामुनी रंग के चार के खट-मीठे स्वादिष्ट फल खाकर आनंद आ गया। मैंने उस बच्चे को फलों के एवज में 60 रूपये दिए तो वह बच्चा बेहद प्रशन्न हो गया। ये यादगार लम्हे थे ।
चार-चिरोंजी वृक्ष परिचय
चिरौंजी (बुकानानिया लेन्जान) को चार, अचार, पियार, प्रियाल चारोली
आदि नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे अल्मन्डेटे कहते है। यह एनाकार्डिएसी कुल का सदस्य है।
चिरोंजी के पेड़ आमतौर पर शुष्क पर्णपाती जंगलों में पनपते है। यह मध्यम आकार (10-25 मीटर ऊंचाई) का गोलाकार छत्र वाला वृक्ष है. इसके पत्ते लम्बे महुआ पेड़ के पत्तो से मिलते जुलते है. इसके पेड़ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के जंगलों में पाए जाते है. छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सैकड़ों एकड़ में चिरोंजी-चार के जंगल पाए जाते है. सरगुजा संभाग और महासमुंद जिले में भी चिरोंजी के पेड़ बहुतायत में पाए जाते है। चार के पेड़ पर गोल और काले कत्थई रंग का एक अंगूर से भी छोटा फल लगता है। यह फल पकने पर मीठा और स्वादिष्ट होता है । इसके फल के अन्दर गुठली को तोड़कर उसकी मींगी (चिरौंजी) निकाली जाती है, जिसे काजू, बादाम की भांति सूखे मेवे की तरह इस्तेमाल किया जाता है। चिरोंजी का उपयोग मिष्ठान, लस्सी अथवा अन्य खाद्य पदार्थो को स्वादिष्ट एवं लिज्जतदार बनाने के लिए किया जाता है।
चिरौंजी बीज से प्राप्त तेल का प्रयोग कॉस्मेटिक और चिकित्सीय
उद्देश्य से किया जाता है. चिरौंजी के अतिरिक्त,
इस पेड़ की जड़ों , फल , पत्तियां
और गोंद का भारत में विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। चिरौंजी
का उपयोग कई भारतीय मिठाई बनाने में एक सामग्री की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
पौष्टिक मेवा (चिरोंजी) के अलावा इसके पेड़ के तनों से गोंद प्राप्त होता है जिसका
उपयोग वस्त्र उद्योग तथा औषधि आदि बनाने में किया जाता है। इसके पत्तो से दौना-पत्तल तैयार किये जाते है।
छत्तीसगढ़ की चिरोंजी की सर्वाधिक मांग
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सैकड़ों एकड़ में चिरोंजी-चार के जंगल पाए जाते
है। सरगुजा संभाग और महासमुंद जिले में भी चिरोंजी के पेड़ बहुतायत में पाए जाते है।
यहां के जंगलों की प्रमुख वनोपज-चिरोंजी अंचल के आदिवासी-वनवासियों के जीवकोपार्जन का प्रमुख
जरिया है। छत्तीसगढ़ के ग्रामवासी व ग्रामवासी पीढ़ी दर पीढ़ी चार-फल-बीज संग्रहण कर औने-पौने
दामो में बिचौलियो अथवा स्थानीय व्यापारियों को विक्रय कर अपनी जीवीकोपार्जन करते
आ रहे है। एक समय ऐसा था कि बस्तर में आदिवासी पहले नमक के बदले चिरौंजी
देते थे। नमक के भाव में चिरौंजी का मोल था। अब स्थिति बदल गयी है।
जशपुर एवं बस्तर की चिरौंजी को उच्च गुणवत्ता की चिरोंजी माना जाता है, जिसकी राष्ट्रिय और अन्तराष्ट्रीय बाजार में अधिक मांग है। स्थानीय व्यापारी ग्रामीणों से 700 से 800 रूपये प्रति किलो की दर से खरीद कर ऊंचे दामों में बेचते है।
चिरौंजी के पेड़ों में जनवरी-फरवरी में फूल आते है तथा अप्रैल-मई
में इसके फल पक जाते है. प्रारंभ में इसके फल हरे रंग के होते है जो पकने पर
बैंगनी-नीले रंग में बदल जाते है । जैसे ही इसके फल हरे से बैंगनी-नीले रंग के होने लगते है, तब इसकी फलों से लदी शाखाओं
को एक लम्बे बांस में हसियां बांधकर
सावधानी से काटा जाता है. चिरौंजी निकालने के लिए इस फल को रात भर पानी में डालकर
रखा जाता है।
इसके बाद हथेली व जूट के बोरे की
सहायता फलों को रगड़कर बीज अलग कर लिया
जाता है। इसके बाद इसे पानी से अच्छी तरह से धोकर 2-3 दिन धूप में सुखाया जाता है।
अब सूखी हुई गुठिलियों को सावधानी से फोड़कर चिरोंजी के दाने निकाल लिए जाते है । चार की गुठली से चिरोंजी निकालने के प्लांट लग
जाने से अब व्यापारी ग्रामीणों से चार की
गुठली ही खरीद लेते है, जिससे ग्रामीणों/वनवासियों को गुठली से दाना निकालने के
झंझट से छुटकारा मिल गया है। अब चार की गुठली
150-170 रूपये प्रति किलो के भाव से बिक जाती है।
चिरोंजी पेड़ों
का संरक्षण एवं संवर्धन जरुरी
चिरोंजी
के फल प्राप्त करने के लिए स्थानीय जन जाति के लोगों द्वारा पेड़ों की टहनियों को
तोडने या पेड़ों को ही काट देने तथा नवीन
पौध रोपण के अभाव की वजह से इन बहुपयोगी बहुमूल्य पेड़ों की संख्या धीरे-धीरे कम
होती जा रही है। पिछले कुछ दशकों से चिरौंजी की मांग शहरी
बाजारों में बढ़ने की वजह से जंगलों से इसका बड़ी मात्रा में संग्रहण और पेड़ों की गलत तरीके से छंटाई की वजह से
जंगलों में चिरौंजी के पेड़ तेजी से कम होते जा रहे हैं। यही कारण है कि इंटरनेशनल
यूनियन फ़ॉर कॉन्सर्वेशन ऑफ नेचर एंड नैचरल रिसोर्सेस (आईयूसीएन) ने इस बहुमूल्य
पेड़ को रेड लिस्ट में रखा है। अतः आज
जरुरत है की प्रकृति की बहुमूल्य धरोहर चार के पेड़ों का अंधाधुंध दोहन रोका जाये
तथा उचित तरीके से इनके फलों को तोड़ने/एकत्रित करने ग्रामवासी और वनवासियों को
शिक्षित/प्रशिक्षित किया जाए। इसके अलावा नये क्षेत्रों तथा खेतों की मेड़ों पर चार
के वृक्षों के रोपण को बढाया जाए। इससे ग्रामीणों और वनवासियों की आमदनी में इजाफा
होगा तथा चार के वृक्षों के विस्तार से प्रकृति में हरियाली और प्रदेश में खुशहाली
का वातावरण कायम रह सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें