सम्माननीय मुख्य अतिथि डा. रमन सिंह माननीय मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ का उद्बोधन
षष्ठम् दीक्षांत समारोह 20 जनवरी, 2013
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छत्तीसगढ़)
आज के दीक्षांत समारोह के अध्यक्ष माननीय राज्यपाल छत्तीसगढ़ एवं कुलाधिपति श्री शेखर दत्त जी, पद्मश्री डा. अनिल के. गुप्ता, कार्यपालक उपाध्यक्ष, नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन, प्रदेश के कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन एवं श्रम विभाग के माननीय मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू जी, कुलपति डा. एस.के. पाटील जी, प्रबंध मंडल तथा विद्या परिषद् के सम्माननीय सदस्यगण, अधिष्ठाता, संचालक, प्राध्यापकगण, उपस्थित अतिथिगण, उपाधि एवं स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले प्रिय छात्र एवं छात्राओं, मीडिया के महानुभाव, देवियों और सज्जनों।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मैं तेजी से कृषि विकास की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ राज्य के समर्पित वैज्ञानिकों, प्राध्यापकों, प्रसार विशेषज्ञों, कृषक प्रतिनिधियों, नीति निर्धारकों, विद्वानों और विद्यार्थियों के साथ विश्वविद्यालय के सबसे गरिमामय समारोह में उपस्थित हूँ।
वर्तमान में भारत की 54 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या युवा है। देश एवं हमारे प्रदेश की प्रगति में भी युवाशक्ति का उल्लेखनीय योगदान है। यहां उपस्थित सभी छात्र-छात्राओं का आव्हान करता हूँ कि वे कृषि, शोध और प्रसार के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करते हुये, समाज व राष्ट्र को नई दिशा प्रदान करें । युवा जिज्ञासु, ऊर्जावान, आदर्शवादी, साहसी और सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत होते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था का दायित्व है कि युवाओं की इन प्रतिभाओं को निखारें। संस्कृत में बहुत सुन्दर श्लोक है:
विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्ध नमाप्नोति धनाद्धर्म ततः सुखम् ।।
तात्पर्य यह है कि शिक्षा ही जीवन में सुख और सम्पन्नता लाती है। छत्तीसगढ़ में हर विधा की उच्च शिक्षा के अवसर तथा सुविधाए उपलब्ध कराई जा रही हंै। व्यावसायिक शिक्षा के अवसर बढ़ाने के लिए विभिन्न संकायों में नवीन सुविधाओं तथा नवीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया जा रहा हैं। हमारा प्रयास है कि छत्तीसगढ़ में विकसित हो रही संभावनाओं के लिए कुशल मानव संसाधन राज्य में ही उपलब्ध हो सकें ताकि बुनियादी अधोसंरचना के साथ नई पीढ़ी का भविष्य संवर सके।
राज्य गठन को 12 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । इस बीच हमने हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है । छत्तीसगढ़ का नाम अब देश में सर्वाधिक तेजी से विकास कर रहे राज्यों में भी अग्रणी रूप में लिया जाता है । हम चाहते हैं कि राज्य के विकास में कृषि का सर्वाधिक योगदान दर्ज हो । अपनी उपलब्धियों और कमियों का आकलन करने का यह सही समय है। हम इस विश्वविद्यालय को देश की दूसरी हरित क्रांति का अग्रदूत बनाने का संकल्प लें। ग्रामीण क्षेत्रों को पुनः सशक्त बनाने का प्रण लें। भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एवं पुराने अनुभवों का उपयोग करते हुये, नए तरीकों और अन्वेषणों को खेत-खलिहान तक पहुँचाना होगा। इस हेतु उपलब्ध अपार प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग सुनिश्चित कर खेती को लाभप्रद बनाना होगा। पिछले वर्षों में विश्वविद्यालय की उपलब्धियाँ प्रशंसनीय रही हैं। विभिन्न फसलों की 50 से अधिक उन्नत किस्में विश्वविद्यालय ने विकसित की है। विश्वविद्यालय ने धान के 23070 जननद्रव्य संजोकर रखे हुए हैं, जिसमें प्रदेश के माटीपुत्र डा आर.एच. रिछारिया का विशिष्ट अविस्मरणीय योगदान है। कृषि विश्वविद्यालय ने एकफसली क्षेत्र को बहुफसली क्षेत्र में परिवर्तित करने, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में आय एवं रोजगार के अवसर बढ़ाने के उद्देश्य से उपयुक्त फसल पद्धति विकसित करने में सराहनीय कार्य किया है। विश्वविद्यालय का कृषि अभियांत्रिकी संकाय भी राज्य के विकास में सक्रिय सहयोग दे रहा है। इस संकाय ने 40 विभिन्न उन्नत कृषि यंत्रों का विकास एवं उत्पादन कर उन्हें राज्य के किसानों तक पहुंचाया है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आपका विश्वविद्यालय कृषि फसलों का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही कृषि उपकरणों के निर्माण में
भी आगे आ रहा है। किसानों की सुविधा के लिये विश्वविद्यालय की निर्माण इकाई ने अभी तक 5 करोड़ 24 लाख रूपये मूल्य के 1 लाख 11 हजार कृषि यंत्र/मशीनों का निर्माण कर उन्हें किसानों तक पहुंचाया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इन उपलब्धियों के लिये बधाई के पात्र हैं। वस्तुतः कृषि कार्यों में हाई-टेक मशीनरी जैसे कम्बाइन हार्वेस्टर, सेल्फ-प्रोपेल्ड ट्रांसप्लांटर, सेल्फ-प्रोपेल्ड रीपर का उपयोग कर मजदूरों की कमी की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। शासन भी इन्हें किराये पर किसानों को उपलब्ध कराने हेतु प्रयासरत् है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य सरकार के सहयोग से संचालित कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों एवं प्रसार अधिकारियों को प्रशिक्षण एवं प्रक्षेत्र प्रदर्शनों के आयोजन से राज्य में कृषि तकनीकी प्रसार में बहुत मदद मिल रही है। मुझे ज्ञात है कि सरगुजा और बस्तर के कृषि विज्ञान केन्द्रों को उत्कृष्ट कार्य के लिए पूर्व में राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। इसी तरह आदिवासी अंचल के एक कृषक ने सस्ता और सुन्दर बीज बोआई यंत्र विकसित कर पूरे राष्ट्र में सराहना व सम्मान प्राप्त किया। कृषि यंत्रीकरण की बढ़ती हुई उपयोगिता एवं मांग को देखते हुये वर्ष 2012-13 में 50 नये कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किये जायेंगे। इस हेतु 10 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। इन सभी उपलब्धियों तथा उत्कृष्ट कार्यों के लिए यहां के कुलपति, वैज्ञानिक, छात्र तथा किसान भाई बधाई के पात्र हैं। इनके सतत् प्रयास से प्रदेश की कृषि को नई पहचान मिली है।
यह कृषि विश्वविद्यालय राज्य के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रम चलाता है। विश्वविद्यालय ने आधारभूत सुविधाओं तथा मानव संसाधन की कमी के बावजूद ‘‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’’ की पहचान स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। हमारे राज्य में स्थापित किया जाने वाला ’’राष्ट्रीय बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेन्ट इंस्टीट्यूट’’ कृषि विकास की दिशा में एक बढ़ता हुआ कदम है। राज्य में धान और गन्ना के राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्रों की भी आवश्यकता है। राज्य में स्थापित 3 शक्कर कारखानों के संचालन के लिये गन्ने पर शोध की जरूरत है। राज्य की मुख्य फसल धान की औसत उपज में हमारे किसान अभी पिछड़े हुए हैं अतः धान उत्पादकता बढ़ाने हेतु गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। राज्य की लगभग 32 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है जिसकी कृषि प्रणालियाँ भिन्न हैं तथा उत्पादकता कम है ।
पिछले 9 वर्षों में छत्तीसगढ़ ने अनेक उपलब्धियाँ हासिल की है। आज छत्तीसगढ़ अनेक क्षेत्रों में, देश में अव्वल स्थान पर है। पूर्व में हमें धान उत्पादन के क्षेत्र में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था, तो इस वर्ष भी राज्य में न्यूनतम बेरोजगारी हेतु भारत शासन द्वारा पुरस्कृत किया गया है। हमने ’’गांव, गरीब और किसान’’ की बेहतरी का वादा पूरा किया है।
वर्ष 2012-13 में पहली बार 6244 करोड़ रूपये का अलग से कृषि बजट बनाया गया है। यह कुल बजट का 17 प्रतिशत है। सिंचाई क्षमता में विस्तार को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुये बजट में 16 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। किसानों को अब केवल एक प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। कृषि बीमा प्रीमियम में राज्य सरकार ने अंशदान 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया है। पशुपालन क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान के प्रोत्साहन के लिए ’’कामधेनु विश्वविद्यालय’’ की स्थापना की गई। सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत् लघु और सीमांत किसानों को ड्रिप, स्प्रिंकलर के लिए 75 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जा रहा है। किसान को मात्र दो रूपये में मिट्टी परीक्षण की सुविधा दी गई है। किसानों को सिंचाई पम्पों के ऊर्जाकरण के लिए पूर्व के 50 हजार रूपये के स्थान पर अब 75 हजार रूपये का अनुदान दिया जा रहा है।एक से तीन हार्सपावर तक के सिंचाई पंप वाले किसानों को 5000 यूनिट तथा पाँच हार्सपावर पंप वाले किसानों को 7500 यूनिट बिजली प्रति वर्ष मुत में दी जा रही है। किसानों को मीटर किराया, फिक्स चार्ज और विद्युत उपकर से मुक्ति मिली है। राज्य सरकार द्वारा पिछले 9 वर्षों में 2.90 लाख पम्पों का ऊर्जाकरण किया गया है। कृषि उत्पादन बढ़ाने और खेती की लागत कम करने हेतु प्रदेश में नई कृषि नीति तैयार की गई है।
हमने कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने का सतत् प्रयास किया है। राज्य गठन के समय जहां कृषि, पशुपालन और दुग्ध प्रौद्योगिकी के एक-एक महाविद्यालय थे, वही वर्तमान में 7 शासकीय कृषि महाविद्यालय तथा 1-1 कृषि अभियांत्रिकी व उद्यानिकी महाविद्यालय संचालित किये जा रहे हैं। इसके अलावा निजी संस्थाओं द्वारा संचालित 15 महाविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय से संबंद्ध हैं। अगले वर्ष हम 3 नये कृषि एवं 1 नवीन कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय प्रारंभ कर रहे हैं। समग्र प्रयासों से छत्तीसगढ़ को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाना है। इस बात को मैं अटलजी के शब्दों में कहता हूँ। -
कमर कसें, बलिदान करें,
जो पाया उसमें खो न जाएं।
छत्तीसगढ़ राज्य की 80 प्रतिशत आबादी की आजीविका कृषि एवं कृषि से संबंधित क्षेत्र पर आधारित है। कृषि पर निर्भर 33 लाख परिवारों में से 54 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान हैं। राज्य में कृषि विकास को गति देने की आवश्यकता है। आज भी बहुतेरे कृषक परम्परागत तरीके से खेती किसानी करते आ रहे हैं, जिससे उन्हें उत्पादन कम मिलता है। यहाँ उपलब्ध अपार प्राकृतिक संसाधनों तथा फसल उत्पादन, बागवानी, पशुपालन एवं वन-आधारित उद्यमों से जुड़े अवसरों को देखते हुए नई कृषि तकनीकी के इस्तेमाल से राज्य में ग्रामीण जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने की प्रबल संभावनाएँ हैं। बागवानी के क्षेत्र में फल, सब्जी, फूल, औषधीय एवं खुशबूदार पौधों का विशिष्ट महत्व है। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में सब्जी, मांस, अण्डे, मशरूम, शहद और वन-उत्पादों से जुड़ी तमाम संभावनाएँ हैं।
छत्तीसगढ़ संभावनाओं से भरा हुआ राज्य है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलकर इस क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करें और समाज के अन्तिम व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का लक्ष्य रखें। इस हेतु राज्य कृषि विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विश्वविद्यालय तथा कृषकों के बीच आपसी सामन्जस्य एवं सहयोग की आवश्यकता है। मैं उपाधि और पदक प्राप्त करने वाले युवा कृषि छात्र-छात्राओं एवं वैज्ञानिकों से अपील करूँगा कि वे कृषक समुदाय की सेवा समर्पण, निष्ठा, संवेदनशीलता और सहानुभूति के साथ करें। मैं सभी उपाधि प्राप्तकर्ताओं और गुरूजनों को बधाई देता हूँ जिन्होंने दक्ष वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आशा करता हूँ कि देश और राज्य के सर्वांगीण विकास में आप सब अपना बहुमूल्य योगदान देते रहेंगे।
जय किसान, जय जवान, जय विज्ञान, जय हिन्द, जय छत्तीसगढ़।
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