डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
अल्प उपयोगी दलहनी फसलों में बाकला (विसिया फाबा) एक पौष्टिक सब्जी और दाल है। यह फेवेसी कुल की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह सीदी बढ़वार वाली मजबूत 0.5-1.8 मीटर लम्बे तने युक्त
एक वर्षीय पोधा है। इसकी फलियाँ पूरी भरी हुई छोटे-छोटे रोयेयुक्त तथा 10-12 सेमी
लम्बी होती है। बाकला की नरम मुलायम फलियों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा सूखे दानों को दाल के रूप में प्रयोग किया जाता है। हरी फसल को पशुओं को चारे के रूप में
भी खिलाया जा सकता है। बाकला की हरी फलियाँ पौष्टिक होती है। इसकी प्रति 100
ग्राम खाने योग्य भाग (हरी फलियाँ) में 85.4 % नमीं, 4.5 ग्रा.प्रोटीन, 0.1 ग्रा
वसा, 2 ग्रा रेशा,7.2 ग्रा कार्बोहाईड्रेट, 0.8 ग्रा खनिज और 48 किलो कैलोरी उर्जा
पाई जाती है। इनके अलावा इसमें मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, सोडियम,
कैल्शियम,पोटेशियम,सल्फर,लोहा, थायमिन, नियासिन तथा विटामिन-सी भरपूर मात्रा में पाई
जाती है।बाकला की बहुत अधिक ताज़ी फलियां एवं कम पकाई गई फलियों के सेवन से फेविज्म की बीमारी होने की सम्भावना होती है। बाकला जैसी अल्प उपयोगी सब्जियों व्यावसायिक खेती कर लाभ कमाने के साथ साथ कुपोषण ग्रस्त लोगो को प्रोटीन और खनिज तत्वों से भरपूर सब्जी उपलब्ध कराने में भी योगदान दिया जा सकता है। बाकला की खेती से अधिकतम लाभ लेने हेतु इसकी उत्पादन तकनीक यहां प्रस्तुत की जा रही है।
जलवायु: यह एक ठंडी जलवायु की फसल है। अच्छी बढ़वार और पैदावार के लिए ठन्डे
मौसम की आवश्यकता होती है। शरद ऋतु में यह न्यूनतम 4 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान
को सह लेती है। बीज अंकुरण के लिए 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अनुकूल पाया गया
है।
भूमि का चुनाव एवं खेत की तैयारी : बाकला की खेती के लिए जीवांशयुक्त भारी
दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत में जल निकास की सुविधा होना चाहिए। खेत की तैयारी हेतु एक बार मिट्टी पलटने वाले
हल से जुताई करने के उपरान्त 2-3 बार कल्टीवेटर या हैरो चलाकर पाटा से खेत समतल कर
लेना चाहिए. बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमीं होना चाहिए।
उन्नत किस्में: बाकला की उन्नत किस्मों का विकास कम हुआ है। इसकी प्रमुख
उन्नत किस्मों में पूसा सुमित, सिलेक्सन बी आर-1, सिलेक्सन बी आर-2 एवं जवाहर
विसिया 73-81 है।
बीज दर और बुआई : उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में बाकला की बुआई
सितम्बर-अक्टूबर में की जाती है। बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 80-100 किग्रा. बीज
की आवश्यकता होती है . बुआई कतारों में करना चाहिए. क्तारोंके मध्य 45-50 सेमी.
तथा पौधों के मध्य 10-15 सेमी. का फासला रखना चाहिए. बीज को 5-6 सेमी. की गहराई पर
बोना उचित रहता है। बीज को बुआई से पहले थीरम या कार्बेन्डाजिम 2-3 ग्राम या 4
ग्राम ट्राईकोडरमा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक: बाकला की अच्छी उपज के लिए खाद एवं उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा
परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। खेत की अंतिम जुताई के समय 8-10 टन सड़ी गोबर की
खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इसके अलावा 20 किग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 किग्रा.
फॉस्फोरस तथा 30-40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना लाभकारी पाया गया
है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय
कूड़ों में देना चाहिए। नत्रजन की शेष आधी मात्रा फसल में फूल आने के समय देना
चाहिए।
जल प्रबंधन: सूखा सह फसल होने के कारण
बाकला को सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है
परन्तु अच्छी उपज लेने के लिए खेत में नमीं बनी रहना चाहिए। अतः मृदा में
नमी की स्थिति के अनुसार 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। खेत में
जल निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए क्योंकि जल ठहराव की स्थिति में फसलोत्पादन
पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
खरपतवार नियंत्रण: फसल की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों के नियंत्रण हेतु
आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए। खरपतवारनाशी पेंडीमेथलिन 3 मिली. मात्रा
प्रति लीटर पानी में घोल कर बुआई के 3 दिन के अन्दर छिडकाव करने से खरपतवार
नियंत्रित रहते है।
तुड़ाई एवं उपज : बाकला की पूर्ण विकसित हरी फलिओं की तुड़ाई मुलायम अवस्थ में
करना चाहिए देर से तुड़ाई करने पर फलियाँ कड़ी और रेशेदार हो जाती है। इसकी
सितम्बर-अक्टूबर में बोई गई फसल से 3-4 महीनों में फलियाँ तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। हरी फलियो को तुड़ाई उपरान्त छायादार स्थानों
पर रखना चाहिए। फलिओं को ताजा रखने के लिए इन पर बीच बीच में पानी का छिडकाव करते
रहना चाहिए। हरी फलिओं की औसत उपज 70-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है। सूखे दानों की औसत उपज 12-15 क्विंटल/हे. प्राप्त होती है। दानों को अच्छी प्रकार
सुखाकर (6-9% नमीं) भंडारित करना चाहिए।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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1 टिप्पणी:
क्या बाजार मे इसकी दाल मिलती है ? कृपया मार्ग दर्शन करें ।
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