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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए करे एलोवेरा की वैज्ञानिक खेती


डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर 
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)  

एलोवेरा को धृतकुमारी और गवारपाठा के नाम से भी जाना जाता है।  एलोवेरा (एलोवेरा बार्बाड़ेंसिस)  एक बहुवर्षीय और विशिष्ट औसधीय महत्त्व का लिलियेसी कुल का पौधा है जिसका उपयोग एलोपेथी, होम्योपेथी, यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतिओं में बखूबी  से किया जाता है।  इसकी पत्तीओं पर क्यूटिकल की मोटी परत होती है तथा किनारों पर कांटे पाये जाते है।  ये मांसल पत्तियां अपने अन्दर पारदर्शक गाढ़ा तरल पदार्थ संचित किये रहती है जिसको एलो जैल कहा जाता है।  इसकी पत्तियों में 94 % पानी तथा अन्य 6 % में 20 प्रकार के अमीनो एसिड, कार्बोहायड्रेट एवं अन्य रासायनिक घटक होते है. एलोवेरा में मुख्य क्रियाशील तत्व  “एलोइन” नामक ग्लूकोसाइड समूह होता है , इसका मुख्य घटक बारबेलोइन है।  एलोइन त्वचा पर एक सुरक्षा परत का निर्माण करता है जो त्वचा को हानिकारक पराबैगनी विकिरण से बचाती है।  इसी गुण के कारण इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री निर्माण में किया जाता है।  इसके अलावा यह त्वचा पर पर्याप्त नमीं बनाए रखता है .इसकी पत्तीओं को काटने पर एक पीले रंग का तरल पदार्थ निकलता है जिसका इस्तेमाल आँख सम्बन्धी बीमारिओ में किया जाता है।  एलो को कच्चा खाने पर कब्ज में राहत मिलती है तथा अम्लता नियंत्रित होती है . बाजार में जीते भी अच्छे किस्म के हैण्डलोशन, बॉडी लोशन, हेयर शैम्पू, सेविंग लोशन, जनरल मोस्चुराइजर, काफ सीरप आदि उपलब्ध है, उन सभी में इसका उपयोग बहुतायत में किया जाता है .एलोवेरा को आजकल स्वास्थ्यवर्द्धक भोज्य पदार्थ के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। एलोवेरा फसल से अधिकतम पैदावार लेने के लिए उन्नत कृषि तकनीक प्रस्तुत है। 

उपयुक्त जलवायु एलोवेरा उष्ण और उपोष्ण जलवायु का पौधा है . आमतौर पर इसे भारत के  सभी शुष्क क्षेत्रों में सुगमता से उगाया जा सकता है। इसकी सफल खेती के लिए 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड औसत तापमान होना चाहिए।  शीत ऋतु में कम तापमान हो जाने से इसकी वानस्पतिक वृद्धि रुक जाती है।  इसको पानी की आवश्यकता बहुत कम है।

भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी

एलोवेरा को प्रायः सभी प्रकार की भुमिओं में उगाया जा सकता है , परन्तु बलुई व वलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। जल निकासी की उचित सुविधा होने पर चिकनी दोमट मृदा में भी इसे लगाया जा सकता है।  भूमि का पी.एच.मान 6.5-8.5 के मध्य होना चाहिए . वर्षा ऋतु में जलभराव वाली मृदाए इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।  खेत की तैयारी भूमि के प्रकार पर निर्भर करती है . हल्की मृदाओं में 1-2 जुताईयाँ काफी है जबकि चिकनी दोमट तथा पथरीली जमीनों में 3-4 जुताईयों की आवश्यकता होती है . भुरभुरी मिट्टी में इस फसल की वृद्धि अच्छी होती है। 

रोपाई  का समय

इसकी रोपाई  सिंचित क्षेत्रों मे सर्दी के महीनों को छोडकर वर्ष भर की जा सकती है परंतु अच्छी पैदावार के लिए इसकी रोपाई  जुलाई  अगस्त के महीनों मे करनी चाहिए।

रोपण समंग्री एवं रोपाई

एलोवेरा के पौधों से जड़ो के स्थान के समीप छोटे-छोटे पौधे निकल आते है।  ये पौधे बहुधा अगस्त से नवम्बर तथा फरवरी से अप्रेल के मध्य निकलते है।  एक मातृ पौधा लगभग 8-14 तक छोटे पौधे उत्पन्न कर सकता है . इन पौधों को निकालकर फरवरी-मार्च अथवा अगस्त-सितम्बर मुख्य खेत में लगा देना चाहिए। पौधों को 50 x 40  सेमी. की दूरी पर रोपने के लिए 60 से 65 हज़ार कल्लों (छोटे पौधों) की आवश्यकता होती है।  पौधे मेंड़ अथवा कूंड में लगाना अच्छा रहता है।   पौध लगाने के एक-दो दिन पश्चात खेत में सिचाई करना चाहिए।   

खाद एवं उर्वरक

एलोवेरा की पत्तीओं की अधिकतम उपज लेने की लिए खाद और उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग आवश्यक होता है . पोषक तत्वों की सही मात्रा का निर्धारण मृदा परिक्षण के आधार पर करना चाहिए।  एलोवेरा को मुख्य पोषक तत्वों के अलावा कुछ सूक्ष्म तत्वों की भी आवश्यकता होती है , क्योंकि सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता से इसमें पाए जाने वाले जैल की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होता है।  आज कल इसके हर्बल उत्पादों की अधिक मांग है।  इसे देखते हुए इसमें जैविक  खाद का इस्तेमाल करना उचित रहता है . भूमि की तैयारी के समय अंतिम जुताई से 15-20 दिन पूर्व 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद  या फिर 8-10 टन कम्पोस्ट मृदा में मिला देना चाहिए . इसके अलावा 30 किग्रा. फॉस्फोरस और 30 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के समय कुडों में देना चाहिए . रोपाई के एक माह के अंतराल पर 20 किग्रा. नत्रज़न्न प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार देना चाहिए . सूक्ष्म पोषक तत्वों में मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा., जिंक 5 किग्रा और नीला थोथा 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के समय अन्य उर्वरको के साथ दिया जा सकता है। 

सिचाई प्रबंधन

एलोवेरा शुष्क जलवायु वाली फसल होने के कारण इसे अधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  ग्रीष्मकाल में आवश्यकतानुसार 2-3 सिचाई करने से उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।  वर्षा ऋतु में खेत में जल निकास का उचित प्रबंध जरुरी होता है। 
घरेलु इस्तेमाल के लिए गमले में लगाये एलोवेरा
जमीन की उपलब्धता ना होने पर आप  ग्वारपाठा को गमलों में भी लगा सकते है।  इससे आपके परिवार को ताज़ी एवं पौष्टिक पातियाँ घर में ही उपलब्ध हो सकती है।  पौध वृद्धि और पत्तीओं के समुचित विकास के लिए धूप आवश्यक होती है।  गमलों में आवश्यकतानुसार झारे से पानी भी देते रहना चाहिए। 
निराई  गुड़ाई 
एलोवेरा के पौधे धीमी गति से बढ़ते है अतः प्रथम वर्ष फसल की खरपतवारों से रक्षा करना आवश्यक है।  रोपाई के एक माह पूर्व एट्राजीन 0.5 किग्रा.सक्रिय तत्व प्रति झेक्टेयर की दर से छिड़कने से खरपतवार प्रकोप कम होता है।  रोपाई के एक मास बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद 1-2 निराई- गुड़ाई प्रति डॉ माह बाद करना चाहिए।  निराई गुड़ाई प्रति वर्ष करनी चाहिए।  रोग ग्रस्त  तथा सूखे पोधों को निकाल देना चाहिए।
फसल की कटाई
एलोवेरा लगाने के समय के अनुसार इसकी पत्तियाँ लगभग 10-15 माह में काटने हेतु तैयार हो जाती है।  कटाई करने के लिए पूर्ण विकसित पत्तियों का ही चुनाव करना चाहिए जिनका रंग हल्का हरा अथवा हल्का पीलापन लिए हुए होता है।   दिसम्बर का महिना कटाई के लिए अच्छा माना जाता है।  एलोवेरा पौधों से हर तीन माह में नीचे से 3-5 पत्तियाँ धारदार हंसिये से मांग के अनुसार काटना  चाहिए तथा बीच की अविकसित पत्तियों को छोड़ देना चाहिए।  एलोवेरा की फसल एक बार  लगाने से 3-4 वर्ष तक इससे उपज  प्राप्त कर सकते हैं। एलोवेरा की फसल तीन साल तक अच्छी उपज देती है। 
फसल की पैदावार 
एलोवेरा की समय से रोपाई और उचित शस्य प्रबन्धन अपनाने पर लगभग  75-80  टन प्रति हेक्टेयर  पत्तियाँ  तथा 15,000  से 20,000 पौधे (कल्ले और सकर्स के रूप में)  प्रथम वर्ष में प्राप्त  हो सकते हैं। यह उपज अगले दुसरे और तीसरे वर्ष में और अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती है।  इसकी उपज मुख्यतः जलवायु, भूमि के प्रकार, उन्नत किस्में और शस्य प्रबंधन पर निर्भर करती है। इसकी पत्तियों को सीधे बाजार में अथवा इससे जैल निकालकर बेच दिया जाता है। 

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