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गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

उत्तम बीज ही आधुनिक कृषि का मूल मंत्र


डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि में फसलोत्पादन को  प्रभावित  करने वाले कारको में जलवायु सम्बंधी कारको के ऊपर प्रकृति का नियंत्रण है हम उनको न ही  बदल सकते है और न ही उन पर किसी प्रकार का नियंत्रण रख सकते है  । लेकिन अन्य कारक जैसे बीज आदि तो  किसान के नियंत्रण में होता  है । उत्तम किस्म का सही बीज इस्तेमाल करना उनका अधिकार ही नहीं एक दायित्व भी बनता है।  कृषि में बीजों का महत्व वैदिक काल से ही ज्ञात है। ऋग्वेद में “सुबीजम सुक्षेत्रे जायते सम्पद्यते” का उल्लेख मिलता है जिसका तात्पर्य है उत्तम बीज को उर्वर भूमि में बोने से अधिक उपज की प्राप्ति होती है।  मानव सभ्यता का जैसे जैसे विकास हुआ मनुष्य  फसल उत्पाद का कुछ अंश बीज के रूप में सुरक्षित रखने लगा ताकि उत्तम पैदावार प्राप्त की जा सके. आज के आधुनिक कृषि  युग में बीज अनुसंधान केंद्र और किसान को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है . सर्वोत्तम उत्पादन हेतु उत्तम बीजों का इस्तेमाल एक आवश्यक पहलू है।  अनुसंधान केन्द्रों से विकसित नित नई किस्मों का वास्तविक लाभ किसानों को तभी प्राप्त हो सकता है जब उन्हें उत्तम बीजों के बारे में समुचित जानकारी होगी।  कृषि में प्रयुक्त तमाम आदानों यथा बीज, खाद-उर्वरक, पौध रक्षक रसायनों, सिचाई जल और बुआई से लेकर विधायन  खर्च में सबसे प्रमुख आदान उत्तम श्रेणी का बीज ही है।  क्योंकि यदि बीज उच्च कोटि का नहीं है तो किसान द्वारा अन्य मदों पर किया गया निवेश व्यर्थ जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप किसान को भारी मानसिक और आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ती है।  इसलिए किसान भाइयों को हमेशा उत्तम श्रेणी के बीज ही बुआई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। उन्नत किस्मों का चयन करते समय अपने क्षेत्र विशेष के लिए अनुमोदित किस्मों का चयन करना चाहिए वर्ना उत्तम बीज होने के बावजूद भी उस किस्म की उत्पादन क्षमता का लाभ नहीं प्राप्त होगा।  अच्छे  फसलोत्पादन के लिए बीज एक महत्वपुर्ण कारक है । अच्छी उपज लेेने के लिए यह आवश्यक है की हर वर्ष अच्छा बीज बोया जाना चाहिए । यदि संम्भव हो तो हर वर्ष नया प्रमाणित बीज खरीदकर ही बोना चाहिए । खराब बीज बोने के बाद उर्वरक ,सिचाई इत्यादी कोई भी कारक ऐसा नही है जो बीज की कमी को सुधार सके। हां संकर किस्म का बीज किसान को प्रति वर्ष बदल कर ही बोना है। फसल  बोने के लिए सही बीज चुनते समय किसान भाइयों को बीजों के प्रकार और उनके उत्पादन और विक्रय से सम्बंधित सामान्य जानकारी  ध्यान में  रखना चाहिए। 

बीजो के प्रकार

प्रजनक बीज (ब्रीडर सीड)

प्रजनक बीज केन्द्रकीय बीज की संतति होती है जिसके उत्पादन का नियंत्रण पादप प्रजनक की देख रेख में किया जाता है।  इस प्रकार के बीज वर्धन के दौरान प्रजनक द्वारा बीजो की आनुवंशिक शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है।  यह बीज बहुत कम मात्रा में तैयार किया जाता है। प्रजनक बीज ही आगामी पीढियो यानि आधार बीज और प्रमाणित बीज के वर्धन का मुख्य स्त्रोत होता है।  इस श्रेणी का बीज आनुवंशिकता के आधार पर 100 % शुद्ध और सबसे मंहगा होता है। इसकी गुणवत्ता की पुष्टि विशेष तौर पर गठित “प्रजनक बीज मोनिटरिंग टीम” द्वारा की जाती है। इसका उत्पादन सिर्फ प्रजनक बीज उत्पादन इकाई के तहत कृषि शोध संस्थानों द्वारा ही किया जा सकता है। 

आधार बीज (फाउंडेशन सीड)

        प्रजनक बीज से जो बीज उत्पादित  किया  जाता है  उसे आधार बीज कहते है। इसका उत्पादन बीज प्रमाणीकरण संस्था  की देख रेख में किया जाता है जिसकी आनुवंशिक शुद्धता अधिकतर फसलों के लिए 98 % होती है।  आधार बीज उत्पादन की मुख्य जिम्मेदारी राष्ट्रिय बीज निगम और राज्य के बीज निगमों की होती है।  इस श्रेणी के बीज का उत्पादन निगम के बीज उत्पादन अधिकारी/विशेषज्ञ के कड़े निरिक्षण में सरकारी प्रक्षेत्रों , कृषि विश्वविद्यालयों के प्रयोग प्रेक्षेत्रों , अनुभवी व  निपुण बीज उत्पादकों  तथा कुछ प्रसिद्ध गैर सरकारी बीज कंपनियों द्वारा किया जाता है .आधार बीज प्रमाणित बीज की जन्मदात्री होती है और इसके थैले पर बीज प्रमाणीकरण सन्स्थ द्वारा जारी सफ़ेद रंग का टैग लगा होता है। 

प्रमाणित बीज (सर्टिफाइड सीड)

        फसल उत्पादन हेतु चुने  जाने वाले उन्नत किस्मो के उन बीजो को  प्रमाणित  बीज कहा जाता है जो आधार बीज से उत्पादित किये जाते है। इस श्रेणी के  बीज का उत्पादन व विक्रय राष्ट्रिय बीज निगम, राज्य बीज निगम, सरकारी कृषि संस्थाओ, शोध केन्द्रों, तथा गैर सरकारी बीज संस्थाओं द्वारा प्रमाणीकरण संस्था की  देख-रेख में किया  जाता है ताकि उसमे आनुवांशिक शुद्धता और बीज  गुणता के लक्षण विद्यमान रहे। यह बीज प्रजनक और आधार बीज से सस्ता होता है . इस श्रेणी के बीज के थैले पर नीज उत्पादको का हरे रंग का और प्रमाणीकरण संस्था का नीले रंग का टैग लगा होता है।  ध्यान रहे बीज प्रमाणीकरण की वैद्यता अवधि 9 माह होती है। 

सच्चा बीज (ट्रुथफुली लेबल्ड सीड)

           कभी कभी विशेष परिस्थितिओं में सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा उत्पादित बीज , बीज प्रमाणीकरण के मानकों को पूरा नहीं करते है . उन परिस्थितिओं में बीज की शुद्धता की सत्य प्रमाणिकता के लिए बीज उत्प्दादक संस्थाएं अपना लेबल लगाकर बीज बेचते है जिस पर उस बीज द्वारा प्राप्त मानकों जैसे शुद्धता, अंकुरण, जीवन क्षमता, % का उल्लेख रहता है।  प्रायः आजकल इसी बात का फायदा उठाकर गैर सरकारी बीज उत्पादक एवं विक्रय संसथान बीज प्रमाणीकरण की जटिल प्रक्रियाओं से बचते हुए ‘ट्रुथफुली लेबल्ड सीड यानि टी.एल.सीड’ धडल्ले से बाजार में बेच कर मोटा मुनाफा कमा रहे है।  कई बार ऐसा भी होता है की जब प्रमाणित बीज की वैद्यता अवधि  समाप्त हो जाती है और बीज बाजार में विक्रय के उपरान्त शेष बाख जाता है तो विक्रेता फिर से बीज मानकों का परिक्षण कराके प्राप्त मानकों को दर्शाते हुए टी.एल.सीड के रूप में बाजार में बेच देते है जिसका खामियाजा किसान को उठाना पड़ता है। 
यहाँ किसान को यह जानना जरुरी है कि  में टी.एल. बीज की गुणता का पूरा दायित्व विक्रेता का होता है।  लेबल पर दी  गई सभी जानकारी  सत्य होनी चाहिए तथा बीज की शुद्धता और जमाव लेबल बीज के लिए निर्धारित न्यूनतम मानकों से किसी भी दशा में कम नहीं होना चाहिए।  यह बीज शुद्धता और उत्पादकता में प्रमाणित बीज के लगभग बराबर और सभी श्रेणियों  से सस्ता होना चाहिए। बीज विक्रेता से बीज खरीदते समय पावती अवश्य ही ले लेना चाहिए ताकि वक़्त जरुरत पर काम आ सकें। 
अच्छे बीज में अग्र लखित विशेषताएं होना चाहिए:
  • बीज की अनुवाशिक तथा प्रजातीय, जिनमें बीज किस्म के अनुरूप आकार प्रकार ,रंग रूप  तथा भार के सभी लक्षण  हो  ।
  • बीजो की  भौतिक शुद्धता अर्थात बीज ढ़ेर में खरपतवार  के बीजो तथा अन्य फसलो के बीजो का मिश्रण नहीं  होन चाहिए । इसके अलावा  बीज परिपक्व हो  और टुटे फुटे न हो
  • बीज स्वस्थ एवं निरोग हो । रोगी बीज का अंकुरण प्रतिशत गिर जाता हैं। तथा इनकी रोग प्रतिरोधी सामर्थ कम होने से अनेक पौधे अंकुरण के बाद भी मर जाते है।
  • बीज  उच्च अंकुरण क्षमता  वाला हो जो खेत में पौधै की संख्या तथा   उपज से संम्बन्ध रखती है।
  • बीज  में आर्द्रता निर्धारित मात्रा 10-15 % से अधिक हेाती है तो भन्डारण के दौरान बीज के अंकुरण पर प्रतिकुल प्रभाव पडता है।
  • बीज में ओज न रहने  पर पौधैा कि बढवार धीमी गति से होती है जिसके कारण उपज पर प्रतिकुल प्रभाव पडता है। बीज ओज से  तात्पर्य बीज की  उस आकृति और क्रियात्मक स्वास्थ्ता  से है जिसमे तीव्रता से एक समान अंकूरण और पौधे   विकसित होते है।
         बीज को बोने से पूर्व किसान भाइयों  को बीज की अंकुरण क्षमता का ज्ञान होना भी  जरूरी होता है । क्योंकि अंकुरण प्रतिशतता ज्ञात होने पर ही बीज की सही मात्रा का निर्धारण किया जाता है । अतः बीज  बोने से पूर्व उनका  अंकुरण परीक्षण कर लेना चाहिए अथवा किसी प्रमाणित एजेंसी से बीज खरीदना चाहिए जिससे उसकी अंकुरण क्षमता ज्ञात हो सके। कई बार अच्छी अंकुरण क्षमता दर्शाने  वाला बीज भी खेत में कम अंकुरित होता है। ऐसा बीज की ख़राब गुणवत्ता या फिर अंकुरण के लिए आवश्यक दशाओं के प्रतिकूल होने के कारण भी हो सकता है। बीज की अंकुरण क्षमता इस सूत्र की मदद से निकली जा सकती है। 
बीज का अंकुरण प्रतिशत =अंकुरित बीजों की संख्या ×100/नमूने की बीजों की संख्या

बीज खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें 

  • हमेशा उच्च गुणवत्ता युक्त प्रमाणित क़िस्म का बीज विश्वसनीय संसथान से  ही ख़रीदें
  • हमेशा उपयुक्त टैग युक्त बैग का बीज खरिदे तथा कटे-फटे टैग  वाले या खुले हुए बैग न खरीदें।
  • प्रमाणीकरण की वैधता अवधि समाप्ति के उपरांत बीजों को न खरीदें और बीज विक्रय संस्था से पक्की रसीद अवश्य ले लेना चाहिए।   
  • फसल अथवा सब्जिओं की उसी किस्म का बीज ही खरीदें जो आपके क्षेत्र के लिए संस्तुत/अनुकूल हो। 
  • अधिक क्षेत्रफल में फसल लगाने के लिए प्रमाणित बीज तथा कम क्षेत्र के लिए आधार बीज खरीदें। 
  • संकर प्रजाति के बीजों को प्रत्येक वर्ष बदलना ना भूलें। 
अतः किसान भाइयों को चाहिए कि वे आकर्षण वाली बीज पेकिंग और दुकानदारों के लोक लुभावने वादों पर ना जाकर क्षेत्र के लिए संस्तुत  किस्मों के उच्च गुणवत्ता युक्त बीज का ही इस्तेमाल करें तभी उन्हें  खेती  में श्रम और पूँजी निवेश का भरपूर लाभ प्राप्त हो सकता है ।

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