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बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

थार का कल्पवृक्ष है शमी (खेजड़ी) वृक्ष

 डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर 

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)

कृषि महाविद्यालय, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

थार के कल्प वृक्ष अर्थात खेजड़ी (शमी) को राजस्थान  एवं तेलंगाना का राज्य वृक्ष  एवं संयुक्त अरब  अमीरात (UAE)  के  राष्ट्रिय वृक्ष होने का गौरवशाली स्थान मिला हुआ है. भारत में प्राचीन काल से शमी वृक्ष को पवित्र एवं पूज्यनीय माना जाता है.

शमी को खेजड़ी, छोंकर तथा संस्कृत में शिवा,केशहत्री कहते है जिसका वानस्पतिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरीया है,  जो मीमोसेसी कुल का  वहुवर्षीय वृक्ष है। इसका वृक्ष मध्यम आकार (10-20   मीटर ऊंचा), सदाहरित एवं कांटेदार होता है. शाखाएं पतली, झुकी हुई भूरे रंग की होती है. इसकी छाल खुरदरी भूरे रंग की होती है. शमी के पुष्प छोटे पीले-क्रीमी  रंग के 5 से 12 सेमी  लम्बे होते है. शमीं की जड़े 20 मीटर से अधिक गहराई तक जाती है. इसलिए इसमें सूखा सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है. जलवायु के अनुसार इसमें मार्च  से मई तक पुष्प  आते है. .

इसके हरे-पीले फूलों को मींझर कहलाते है और फली सांगरी कहलाती है. फलियाँ 15-20 सेमी लम्बी  हरे रंग की होती है, जो पकने पर हल्के भूरे रंग की हो जाती है. हरी फलियों एवं सूखी फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके सूखे फलों को खोखा कहते है, जिसे सूखा मेवा माना जाता है. इसकी सूखी फलियों से बने आटे का प्रयोग खाने में किया जाता है.राजस्थान की  पंचकूट नामक प्रसिद्ध सब्जी में सांगरी, गुंदा (लसोड़ा के फल), केर के फल, कूमटा के बीज एवं काचरी का उपयोग किया जाता है. सांगरी की फली बहुत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होती है. शुभ अवसरों पर शकुन के तौर पर सांगरी की सब्जी खायी जाती है. पकी हुई सांगरी (फली) में 8-15 % प्रोटीन, 40-50 % कार्बोहाइड्रेट, 8-15% शर्करा, 8-12 % रेशा (फाइबर), 2-3 % वसा, 0.4-0.5% कैल्शियम, 0.2-0.3 % आयरन पाया जाता है, जो इसे स्वास्थ्यवर्धक एवं गुणकारी बनाते है. भीषण गर्मी में छाया देने के साथ-साथ  ग्रीष्मकाल में इस वृक्ष से  जानवरों को हरा  चारा प्राप्त होता है. इन्हीं सब  खूबियों के कारण  अरबी की एक कहावत मशहूर है कि रेगिस्तान में भयंकर अकाल में अगर मनुष्य के पास एक ऊँट, एक बकरी और एक घाफ (शमी) का पेड़ हो टो जीवन को बचाया जा सकता है. इसलिए  शमी को रेगिस्तान (थार) का कल्पवृक्ष माना जाता है.

शमी को सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र वृक्ष माना जाता है.  शमी का पेड़ तेजस्विता एवं दृडता का प्रतीक माना जाता है. इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है और इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जुव्लित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इसकी  लकड़ी से विवाह का मंडप बनाया जाता है और इसकी सूखी टहनियों का उपयोग हवन सामग्री के रूप में किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि शमी भगवान राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा कर उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था.  महाभारत में भी शमी वृक्ष का उल्लेख मिलता है. अपने 12 वर्ष के अज्ञातवास के समय  पांडवों ने अपने अस्त्र शस्त्र  इसी वृक्ष पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था.  कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिए जाने से पूर्व भी पांडवों ने शमी वृक्ष की पूजा कर उससे शक्ति और विजय की कामना की थी. तभी से धारणा बन गई कि जो भी शमी वृक्ष की पूजा अर्चना करता है, उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है.इसलिए दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूर्जा की जाती है. यही नहीं शमी का पौधा घर में लगाने एवं नियमित रूप से जल चढ़ाने एवं पूजा करने से शनि देव एवं भगवान शिव की कृपा बनी रहती है. भगवान्ध शिव पर शमी का फूल चढाने से  वे प्रशन्न होते  है. शमी की पूजा करने से  शनि देव भी  प्रशन्न  होते है. घर में शमी का पौधा पूर्व दिशा या ईशान कोण में लगाना अथवा रखना शुभ माना जाता है.   शमी के सभी भाग अर्थात जड़, लकड़ी, छाल, पत्तियां, फूल एवं फल उपयोगी है और औषधिय गुणों से परिपूर्ण माने जाते है.

शमी का असली पेड़ ही फलदायी 

शमी से मिलते जुलते अनेक पेड़ होते है. ज्यादातर जगहों पर नर्सरी में नकली शमी के पौधे बेचे जा रहे है. जानकारी के आभाव में अधिकांश घरों में नकली शमी (वीर तरु का पेड़) देखने को मिलता है. शमी का पेड़ कांटेदार एवं छोटा होता है, शखाएं पतली एवं कांटे शंकुनुमा, सीधे होते है. शमी के पेड़ में फूल छोटे पीले रंग के मंजरियों में आते है. फलियाँ 12 से 25 सेमी लम्बी एवं पतली होती है., जो पकने पर हल्की भूरे रंग की हो जाती है. स्वाद में  पकी फलियाँ मीठी होती है.


नकली शमी के रूप में बेचा जाने वाला पेड़ वीर तरु का है जिसे खेरी, कुणाली, महाकपित्थ तथा अंग्रेजी में सिकल बुश कहते है. इसका वानस्पतिक नाम Dichrostachys cinerea है जो मिमोसी परिवार का सदस्य है.इस पेड़ पर द्विरंगी (आधा गुलाबी एवं आधा पीला) फूल लगते है. इसमें कांटे लंबे एकान्तर क्रम में पत्तियों की अक्ष में लगते है. इसकी शाखाओं के अग्र भाग में लंबे एवं पैने कांटे होते है. फलियाँ मुड़ी हुई हंसिया नुमा होती है. फलियाँ खाने योग्य नहीं होती है. वीरतरु के पेड़ में जुलाई-अगस्त में पुष्प आते है. इसके पेड़ पूजा में प्रयुक्त नहीं होते है परन्तु वीर तरु वृक्ष में औषधिय गुण पाए जाते है. 

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