डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
यह जानकार बहुत से लोगों को हैरानी हो सकती है कि कांटों से भरा
कैक्टस भी खाया जा सकता है। प्रकृति में
विद्यमान ऐसे तमाम पेड़-पौधे है जिनके गुणों से अनभिज्ञ होने की वजह से हम उनका
इस्तेमाल नहीं कर पा रहे है। नागफनी की
एक प्रजाति नाशपाती कैक्टस दुनियां की
सबसे महत्वपूर्ण एवं आर्थिक रूप से उपयोगी प्रजाति है।
अमेरिकी मूल के नाशपाती कैक्टस को नागफनी, कांटेदार नाशपाती,
कैक्टस नाशपाती, नोपल फ्रूट, भारतीय अंजीर आदि, अंग्रेजी में प्रिकली पियर केक्टस, इंडियन
फिग ओपुन्टिया तथा वनस्पति विज्ञान में ओपंटिया फिकस
इंडिका के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान जैसी अत्यंत गर्म जलवायु में जब सब फसलें सूख जाती है,
उस समय यदि कोई फसल बचती है, तो वह नागफनी ही है।
इसके पौधे 3-5 मीटर ऊंचे बहुशाखित नुकीले कांटेयुक्त होते है। इसके कांटो में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाने के कारण
पहले लोग बच्चो के कान छेदने के लिए इसके कांटे का इस्तेमाल किया करते थे।
कैक्टस की ज्यादातर प्रजातियों में पत्ते नहीं होते है। नाग के फन अथवा अंडाकार आकृति की हरे रंग की रचना होती है, जो एक प्रकार का परिवर्तित तना (स्टेम) है, जिसे हत्था (पैड) कहते है। इनमें छोटे-छोटे पैने कांटे पाए जाते है। नाशपाती कैक्टस में पीले-लाल रंग के फूल आते है। इसके फल लाल, बैंगनी, पीले, नारंगी एवं हरे रंग वाले तथा बारीक कांटे युक्त होते है, जो आकार में नाशपाती समान होते है, इसलिए इस पौधे को प्रिकली पियर कहा जाता है। जलवायु एवं प्रजाति के अनुसार कैक्टस नाशपाती में पुष्पन एवं फलन बसंत एवं ग्रीष्मकाल में होता है।
नाशपाती कैक्टस के नए पैड को नोपल एवं फलों को टुना कहा जाता है.इसके पैड (परिवर्तित तने)को सब्जी, सलाद एवं अचार के
रूप में खाया जाता है।इसके तने अर्थात
पैड एवं फलों का खाने के लिए उपयोग करने से पहले इनमें उपस्थित छोटे-छोटे काँटों
(हाथों में दस्ताने पहनकर) को सावधानी पूर्वक निकालकर अथवा चाकू से छीलकर अलग कर
देना चाहिए।
कैक्टस नाशपाती के फल में 43-57 % गुदा (पल्प) होता है जिसमें 84-90
% जल, 0.2-1.6 % प्रोटीन, 0.09-0.7 % वसा,0.02-3.1 % फाइबर, 10-17% शक्कर एवं 1-41
मिग्रा विटामिन सी के अलावा खनिज
लवण (कैल्शियम, मैग्नेशियम, आयरन, सोडियम, पोटैशियम एवं फॉस्फोरस)
तथा विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्ल प्रचुर
मात्रा में पाए जाते है। इसके अलावा
इसके फल में बीटालेन रंजक पाया जाता है, जो खाध्य पदार्थ को प्राकृतिक रंग प्रदान
करने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके
हत्थे (पैड) में पेक्टिन, म्युसिलेज, खनिज एवं विटामिन्स भरपूर मात्रा में पाए
जाते है।
इसके फल अथवा जूस के सेवन से
थैलेसीमिया, मधुमेह जैसे रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
इसके सेवन पाचन तंत्र मजबूत होता है। इसके
फल मोटापा और कोलेस्ट्रॉल कम करने में
सहायक माने जाते है। इसके अलावा इसे
एनीमिया और रक्त संबंधी बीमारियों के उपचार में भी काफी कारगर माना जाता है।
कैक्टस नाशपाती की आजकल काँटा रहित किस्में भी विकसित हो गयी है जिन्हें फल, सब्जी एवं पशुओं के चारे के लिए व्यवसायिक
रूप से आसानी से उगाया जा सकता है।
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