डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म में अपनी पैठ जमाये हुए चन्दन के वृक्ष विश्व में न केवल सबसे अधिक प्रसिद्ध है, बल्कि भारत के सफेद चन्दन के उत्पादों की मांग निरंतर बढती जा रही है। रामायण एवं महाभारत काल से ही भारत में सफेद चन्दन का उपयोग धार्मिक कार्यो, सौन्दर्य प्रसाधन एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धति में रोगों के उपचार में किया जा रहा है। श्रीराम चरित मानस में भी तुलसी दास ने चन्दन का जिक्र करते हुए लिखा है:
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर. तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक करे रघुवीर।।
चन्दन के गुणों के बारे में हमारे ग्रंथों में लिखा है
‘चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग’ इसका तात्पर्य ये बिलकुल नहीं कि चन्दन
के पेड़ों से साप लिपटे रहते है। चन्दन वृक्ष की सुगंध एवं शीतलता
के गुणों के कारण विषधारी सांप भी इसमें लिपटे रहे तो भी इसके वृक्षों पर सांप के
विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. चन्दन हमारे मन मस्तिक को शान्ति एवं स्थिरता
प्रदान करने वाला वृक्ष है।
चन्दन का
प्रयोग सनातन परंपरा में माथे पर तिलक लगाने से लेकर पूजा-हवन
सामग्री, माला एवं घरेलू साज-सज्जा वाली
वस्तुए तैयार करने में किया जाता है. चन्दन के सुगंधित तेल
का उपयोग उच्च गुणवत्ता युक्त इत्र
(परफ्यूम) से लेकर अगरबत्ती, साबुन तथा विभिन्न सौंदर्य प्रशाधन सामग्री के निर्माण, विभिन्न खाद्य सामग्री को
सुवासित करने के अलावा आयुर्वेद,
यूनानी, होम्योपैथी आधुनिक चिकित्सा पद्धति
में इसकी लकड़ी का पाउडर एवं तेल का प्रयोग
बहुतायत में किया जाता है।
चन्दन का के
तेल एवं पाउडर का इस्तेमाल श्वसन रोग (शर्दी, अस्थमा,गले कि खरास), लिवर रोग आदि
के उपचार में किया जाता है। इसके
तेल में विद्यमान अल्फ़ा बीटा सैंटेलाल (α-Santalol,β-Santalol) का प्रयोग कैंसर के उपचार
में किया जाता है।
सफेद चन्दन को रॉयल
ट्री का दर्जा
भारतीय चन्दन के महत्व एवं गुणवत्ता से प्रभावित मैसूर राज्य के मुग़ल शासक टीपू
सुलतान ने वर्ष 1792 में चंदन को रॉयल
ट्री घोषित किया था और इस फरमान को भारत सरकार ने आज तक जारी रखते हुए देश में
चन्दन के पेड़ों पर अपना आधिपत्य बनाये रखा है। चन्दन की बड़े पैमाने अवैध कटाई एवं तस्करी के
कारण चन्दन वन नष्ट होते जा रहे है और इनका रोपण नहीं के बराबर हो रहा है।
इसलिए चन्दन लकड़ी की देश में भारी कमी हो
गयी। अब देश
की कुछ राज्य सरकारे चन्दन की खेती को प्रोत्साहित करने लगी है, परन्तु चन्दन वृक्षों
की कटाई एवं विक्रय सरकार के वन विभाग की
देखरेख में ही किया जा रहा है।
चन्दन की खेती:
उभरता लाभकारी व्यवसाय
चंदन के 30 सेमी
ऊंचे पौधों को 50 वर्ग सेमी के गड्डे में कतार से कतार 3.5 मीटर एवं पौधे से पौधे
3.5 मीटर की दूरी पर लगाया जाना चाहिए। चन्दन का पेड़ अर्द्ध परिजीवी प्रकृति के होते है अर्थात इसके
पौधे दूसरे पौधों की जड़ों से पोषक तत्व ग्रहण कर बढ़ते है। इसलिए आश्रित पौधों (Host) के रूप में अरहर, मीठी नीम,
पपीता, अनार, अमरुद,सहजन आदि की अंतरवर्ती
फसलों की खेती से चन्दन के वृक्षों की
वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ अतिरिक्त मुनाफा भी अर्जित किया जा सकताहै। प्रारंभिक अवस्था आर्थात
पौधशाला में चंदन के बीजों के साथ छुई-मुई (Mimosa pudica)
के बीज मिलाकर बोने से पौध वृद्धि अच्छी होती है। एक एकड़ (0.4 हेक्टेयर) के खेत में 326 चन्दन के स्वस्थ पौधों के साथ 200 आश्रित पौधे
अंतरवर्ती फसल के रूप में लगाए जा सकते है।
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