डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
पर्यावरण सरंक्षण के लिए जितनी जरुरत धरती की हरियाली को बचाने और बढ़ाने की है, उतनी ही जरुरत कूड़े-कचरे के सही निष्पादन और प्रबंधन की भी है। शहरों में घरेलु कूड़ा-कचरा और गावों में कृषि अपशिष्ट पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे है। मिट्टी, पानी और बयार, इन पर करों ना अत्याचार। यह एक नारा ही नहीं अपितु आज समय की नज़ाकत भी है क्योंकि आज हमारे देश में प्रति व्यक्ति के हिसाब से करीब 500 ग्राम कचरा प्रति दिन पैदा किया जा रहा है जो की मिटटी, पानी और बयार की सेहत ख़राब करने में अहम् भूमिका अदा कर रहा है। आम आदमी थोड़ी-बहुत मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ इधर-उधर फेंकता ही है। घरों में यह अपशिष्ट सब्जियों और फलों के छिल्के, बचा हुआ खाना-जूठन, अण्डों के छिल्के, कागज आदि के रूप में होता है और ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं का मल-मूत्र, फसलों के अवशेष,पशुओं को खिलाया जाने वाला चारा-दाना, सूखी पत्तियां आदि होते है। इन अपशिष्ट के ढेर शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बखूबी देखे जा सकते है। इन सभी पदार्थो के पुनःचक्रीकरण से एक ओर अपशिष्ट पदार्थो को यहाँ-वहां फेकनें की समस्या से निजात मिल सकती है, वही हम अपने आस-पास सुन्दर-स्वच्छ वातावरण का भी निर्माण कर सकते है।
केंचुआ का परिचय: केंचुआ फाइलम एनिलिडा, आर्डर आलिगोकीटा,कुल लंब्रीसाइडी तथा वंश आईसेनिया के अन्तर्गत आता है। इसकी दो जाति-लम्ब्रीकस टेरेस्ट्रिस और आईसेनिया फोटिडा प्रसिद्ध है। केंचुआ खंडित शरीर का एक लंबा कृमि है। इनमे आँखे और श्रवणेन्द्रियाँ नहीं होती है। ये उभयलिंगी होते है। ये भूमि के अंदर रहते है तथा इनको अँधेरा प्रिय होता है। गर्मियो में ये नमीं की खोज में नीचे चले जाते है। केंचुए भूमि में ऊपरी सतह से 30-40 सेमी तक की गीली कचरे युक्त भूमि में रहना पसंद करते है। ये बिना रुके निरंतर मिट्टी और कचरे को खाते रहते है और भूमि की ऊपरी सतह पर कास्ट (दानेदार खाद) इकठ्ठा करते रहते है। लाल रंग के केंचुए वर्मी कल्चर के लिए अधिक उपयुक्त पाए गए है। सादे गले पदार्थों को जैविक खाद में परिवर्तित कर देने की केंचुओ में अदभुत क्षमता होती है। केंचुओ की सहायता से कचरे से खाद तैयार करना ही वर्मी कल्चर कहलाता है। केंचुओ के मल को वर्मी कम्पोस्ट कहते है।
1. इनडोर पद्धति : यह छायादार (ढंके हुए स्थानों) स्थानों पर खाद तैयार करने की व्यावसायिक पद्धति है। इसमें नालीदार चददरों अथवा एस्बेस्टस की चादरों से बड़े-बड़े शेड या ढंके हुए छप्पर तैयार किये जाते है। छप्पर की फर्श पर ईट, सीमेंट या पत्थर के टेंक या क्यारियां बनाई जाती है. पक्की क्यारियां प्रायः 10 फ़ीट लंबी, 3 फ़ीट चौड़ी एवं 2 फ़ीट ऊंची रखी जाती है। इस पद्धति में जैविक पदार्थ के रूप में शहरी व्यर्थ पदार्थ या कल कारखानों के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
2. आउटडोर पद्धति : यह एक खुले स्थानों में खाद बनाने की पद्धति है जिसका उपयोग बगीचों, खेतों, खलिहानों, पशुशाला या छायादार वृक्षों के आस-पास खाद बनाने के लिए किया जाता है। बड़ी मात्रा में व्यर्थ पदार्थो से खाद तैयार करने के लिए यह उत्तम विधि है क्योंकि व्यर्थ जैविक पदार्थ बहुत मात्रा में आसपास ही उपलब्ध हो जाते है जिससे जैविक पदार्थो को लाने ले जाने में समय, श्रम और पैसा की वचत होती है तथा तैयार खाद को बेचने और उपयोग करने में सुगमता होती है।
सभी प्रकार के बेकार जैविक पदार्थ जैसे रसोई घर का कचरा (सब्जियों और फलों के छिल्के,अंडो के छिल्के,, कागज, पत्तियां, सड़े-गले फल-फूल सब्जियां, लकड़ी आदि), पशुपालन, मुर्गी पालन से प्राप्त होने वाले बेकार पदार्थ, जानवरों और पक्षियों को खिलाया जाने वाला चारा, भूषा, दाना आदि) तथा कृषि अवशिष्ट से उत्तम श्रेणी का वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। केंचुआ खाद बनाते समय अधोलिखित बातों पर ध्यान देन चाहिए;
इस प्रकार से हम कह सकते है की कचरे से कंचन पैदा करने में वर्मी टेक्नोलॉजी पर्यावरण सौम्य और बेहद उपयोगी तकनीक है जिसके माध्यम से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लग रहे कचरे के ढेरों का सुगमता से निपटान हो सकता है। इस कार्य में न्यूनतम लागत में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बेरोजगार नौजवानों को आकर्षक रोजगार मिल सकता है। इस तकनीक के अपनाने से हम अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ, स्वस्थ और सुन्दर बना सकते है।
अतः कचरा निष्पादन के लिए ईमानदार पहल करते हुए हमारी सरकार और स्थानीय निकायों को जनभागीदारी की मदद से कुछ ठोस कदम उठाना पड़ेगें। इस कार्य में बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी मुहैया हो सकता है। हमारे अन्नदाता किसानों को कम कीमत उपयोगी जैविक खाद प्राप्त हो सकेगी और सबसे ऊपर हम अपने गांव, नगर, शहर, को स्मार्ट गांव, नगर और स्मार्ट शहर बनाकर भारत सरकार के निर्मल भारत और स्वच्छ भारत अभियान की महत्वकांछी परिकल्पना को साकार करने में अपना योगदान दे सकते है।
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कचरा पैदा करने में अव्वल है भारत
हरित क्रांति की सफलता के उपरांत भारत भले ही अन्नोत्पादन में आत्म निर्भरता हासिल कर ली हो परंतु स्वंत्रता प्राप्ति के 67 वर्षो बाद भी देश में अमूमन सभी कृषि जिंसों की औसत उपज विश्व औसत और अनेको देशों से कम बनी हुई है। यहाँ तक की अनेकों क्षेत्रों में कृषि उत्पादन या तो स्थिर हो गया है या फिर उसमें गिरावट दर्ज की जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही कई फसलों का उत्पादन प्रभावित होने लगा है। विश्व में सबसे अधिक मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वाले देशों में चीन और अमेरिका के बाद भारत का नाम सुमार है। भारत में प्रति दिन लगभग 1,33,760 टन कचरा उत्पन्न किया जाता है। इसमें से 91152 टन कचरा प्रति दिन एकत्रित किया जाता है जिसमे से मात्र 25884 टन प्रति दिन कचरा नगर पालिकाओं द्वारा ठीक से निष्पादित (उपचारित) किया जा सका था। सर्वाधिक कचरा उत्पन्न करने वाले राज्यो में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,और तमिलनाडु राज्य आते है। इस प्रकार निष्पादन के बाद प्रति दिन लगभग 1,07,876 टन कचरे के बदबू मारते ढेर शहरों-कस्बों के आस पास या सड़कों किनारे देखे जा सकते है। समय रहते कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निष्पादन नहीं किया गया तो आने वाले वर्ष 2031 और 2050 तक देश में क्रमशः 165 और 436 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होने का अनुमान लगाया गया है। जनसँख्या वृद्धि के साथ ही गांव, नगर, हाट और बाजार बढ़ रहे है जिसके अनुपात में कचरे का उत्पादन भी बढ़ रहा है। एक समय बाद कचरे के ढेर इकट्ठा करने के लिए शायद जमीं भी ना मिलेगी, मात्र कचरा जलाना ही एकमात्र विकल्प रह जाएगा, जिससे उठते जहरीले धुएँ और उड़ती विषैली धूलों से जान स्वास्थ्य को भारी क्षति उठानी पड़ सकती है।सरकारी योजनाओं और जनभागीदारी से संभव है कचरा निष्पादन
उचित ढंग से कचरा प्रबंधन की खातिर ही भारत सरकार ने पहले निर्मल भारत अभियान और हाल ही में स्वच्छ भारत अभियान (क्लीन इंडिया मिशन) प्रारंभ किया गया है। वास्तव में शहरों और कस्बों के आस-पास बढ़ते कचरे के पहाड़ो के कारण हमारे पर्यावरण को भारी क्षति हो रही है। इनसे फैलती गंदगी से मच्छर और मच्छरों से मलेरिया और कचरे से उत्पन्न जहरीली गैसों से बढ़ते प्रदुषण से मनुष्य में घातक बीमारिया फ़ैल रही है। कचरा प्रबंधन के निष्पादन का कार्य सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं संभव है, इसके लिए देश के हर नागरिक को सक्रीय भागीदारी और सहयोग की भावना से कार्य करना होगा। अपने आस पास और सार्वजानिक स्थानों में न कचरा फैलाये और न ही किसी को फ़ैलाने दें, इसका पक्का संकल्प हम सब को लेना होगा । ऐसा अनुमान है की एक व्यक्ति अपने भार से तीन गुना कचरा उत्पन्न करता है। इसे तो आप और हम ही मिलकर कम कर सकते है। वास्तव में कचरे के उचित प्रबंधन से बड़ी मात्रा में बिजली पैदा की जा सकती है और इससे बेहतरीन जैविक खाद बनाई जा सकती है। इस दिशा में देश की कई नगर पालिकाएं और कुछ स्वयं सेवी संस्थाए सराहनीय कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ राज्य की धमतरी नगर पालिका ने कचरे से जैविक खाद तैयार करने का वीणा उठाया है, जिससे वहां के किसानों को जैविक खाद सुगमता से मिलना प्रारम्भ हो गया है। इससे वहां का वातावरण शुद्ध हो रहा है और नगर पालिका को अच्छी आमदनी भी हो रही है। देश के अन्य शहरों में भी इस प्रकार के मॉडल प्रारम्भ करने की महती आवश्यकता है।कचरे से कंचन-वर्मी टेक्नोलॉजी
घर और गांव के कूड़े-करकट (अवशिष्ट) को जैविक खाद के रूप में परिवर्तित करने में केंचुओं की महती भूमिका होती है। केचुएं सड़े-गले पदार्थो तथा कूड़े-करकट (रबर, प्लास्टिक,कांच, लोहा, कंकड़-पत्थर रहित कचरा) को अपना आहार बनाकर मिट्टी में उनका पुनः चक्रीकरण कर देते है। ऐसा अनुमान किया गया है की 1000 टन गीले कार्बनिक कचरे को केंचए 300 टन अति उत्तम जैविक खाद में तब्दील कर देते है। परीक्षणों से यह भी ज्ञात हुआ है की केंचुए सड़ने-गलने योग्य कचरे को मात्र 35 दिनों में उपयोगी खाद में परिवर्तित कर देते है। इस प्रकार फसलोत्पादन के लिए बेह्तरीन जैविक खाद प्राप्त होने के साथ-साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदुषण फैला रहे कचरे के अम्बार के निबटान की समस्या से भी शीघ्र मुक्ति मिल जाती है। यही नहीं केंचुओं द्वारा कार्बनिक कूड़े-कचरे को जैविक खाद में परवर्तित करने की प्रक्रिया में हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाई ऑक्साइड जैसे तेज दुर्गन्ध पैदा करने वाले योगिकों का निर्माण नहीं होने पाता है जो इस प्रक्रिया का सबसे बड़ी विशेषता है। यही कारण है की देश विदेश के कई महानगरों में शहरी कचरे के निष्पादन हेतु वर्मी टेक्नोलॉजी को अपनाने की मुहीम चल रही है। मानव जनसँख्या के अनियंत्रित विस्तार और विकास की रफ़्तार में सबसे आगे निकल जाने की होड़ के चलते हमारा पर्यावरण पहले ही काफी प्रदूषित हो गया है और अब कचरे से भी वातावरण जहरीला होता जा रहा है। स्वच्छ, स्वस्थ और सुन्दर शहर और गाँव बनाने में केंचए महत्वपूर्ण किरदार की भूमिका निभा सकते है जो हर प्रकार के जैविक कचरे को तीव्र गति से अमूल्य खाद में तब्दील कर देते है। अतः घरेलू कार्यो, कृषि कार्यों और उद्योगों से उत्पन्न बेकार जैविक कचरे से जैविक खाद (वर्मी कम्पोस्ट) तैयार करके वर्तमान प्रदूषण में काफी कमीं लाई जा सकती है, साथ जैविक खाद के प्रयोग से अपनी कृषि को भी समोन्नत करने में मदद कर सकते है।केंचुआ का परिचय: केंचुआ फाइलम एनिलिडा, आर्डर आलिगोकीटा,कुल लंब्रीसाइडी तथा वंश आईसेनिया के अन्तर्गत आता है। इसकी दो जाति-लम्ब्रीकस टेरेस्ट्रिस और आईसेनिया फोटिडा प्रसिद्ध है। केंचुआ खंडित शरीर का एक लंबा कृमि है। इनमे आँखे और श्रवणेन्द्रियाँ नहीं होती है। ये उभयलिंगी होते है। ये भूमि के अंदर रहते है तथा इनको अँधेरा प्रिय होता है। गर्मियो में ये नमीं की खोज में नीचे चले जाते है। केंचुए भूमि में ऊपरी सतह से 30-40 सेमी तक की गीली कचरे युक्त भूमि में रहना पसंद करते है। ये बिना रुके निरंतर मिट्टी और कचरे को खाते रहते है और भूमि की ऊपरी सतह पर कास्ट (दानेदार खाद) इकठ्ठा करते रहते है। लाल रंग के केंचुए वर्मी कल्चर के लिए अधिक उपयुक्त पाए गए है। सादे गले पदार्थों को जैविक खाद में परिवर्तित कर देने की केंचुओ में अदभुत क्षमता होती है। केंचुओ की सहायता से कचरे से खाद तैयार करना ही वर्मी कल्चर कहलाता है। केंचुओ के मल को वर्मी कम्पोस्ट कहते है।
किसानों के मित्र और प्राकृतिक हलवाहे है केंचुए
सामान्यतौर पर एक जोड़ी केंचुआ एक वर्ष में 250 नए केंचए पैदा करता है और प्रतिदिन अपने भोजन की तलाश में अपने नुकीले सिरे से 16-20 सुरंगे यानि बिल बनाता है। ये भूमि की ऊपरी सतह से लेकर 30-50 से.मी. की गहराई तक नमीं और तापमान के अनुरूप अपनी सक्रियता बनाये रखते है। अनुमान लगाया गया है की भूमि में सुरंग बनाने की प्रक्रिया में एक जोड़ा केंचुआ लगभग 4-9 किलोग्राम तक भूमि की निचली तह की उपजाऊ मिट्टी को बारीक़ अवस्था में भूमि की ऊपरी सतह पर पहुंचा देता है। दरअसल ये मिट्टी खाते है और उसको ही सेवइयों के रूप में भूमि की ऊपरी सतह पर फैला देते है। इससे भूमि की अच्छी जुताई हो जाती है और वह भुरभुरी हो जाती है जो की पौधों की वृद्धि के लिए महफ़ूज़ होती है। इसलिए सुप्रसिद्ध प्राणी विशेषज्ञ चार्ल्स डार्विन ने केंचुओ को धरती को प्राकृतिक रूप से जोतने वाला कहा था जो बिना दाम के ही भरपूर जुताई करते है। उनके मतानुसार एक एकड़ भूमि में लगभग 10,000 केंचए रहते है जो साल भर में 14-18 टन मिट्टी भूमि के नीचे से लाकर सतह पर इकट्ठी कर देते है और भूमि की ऊपरी सतह पर मिटटी की 1/5 इंच मोटी नई परत निर्मित कर देते है। केंचुओ के बिल खोदने के स्वभाव के कारण ही मिट्टी पोली और छिद्रित बन जाती है जिससे मिट्टी में जल और वायु संचार सुगमता से होने लगता है। इससे पेड़-पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है। केंचए जमीं की सतह फैली घांस और पत्तियों को भी मिट्टी के नीचे दबा देते है जिससे घांस-पत्तियां भी सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाती है और मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ाने में सहायक होती है। इसके अलावा केंचए मिट्टी की सतह के गहरे अवतलों में विद्यमान खनिज लवणों और कार्बनिक पदार्थों को भी भूमि की ऊपरी सतह पर लाने का भी कार्य करते है। इससे भी पेड़-पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते है।
गोबर खाद से भी बेहतर है वर्मी कम्पोस्ट
केंचुए जितनी अधिक मात्रा में जैविक अवशेष (कूड़ा-करकट और सड़े गले पदार्थ) निगलते है उसका मामूली अंश ही उनके जीवन के लिए उपयोगी होता है। इनके शरीर से निकलने वाले मल (वर्मी कम्पोस्ट) में पौध पोषण के लिए अनिवार्य सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में बचे रह जाते है। गोबर खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते है। गोबर खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्राएँ क्रमशः 0.5, 0. 25, और 0.5 प्रतिशत होती है जबकि केंचुए की खाद में इनकी मात्राएँ क्रमशः 1.5-2.5, 1.0-1.5 और 1.0-1.5 प्रतिशत से भी अधिक हो सकती है। इनके अलावा बहुत से सूक्ष्म पोषक तत्व भी वर्मी कम्पोस्ट में मौजूद होते है। केंचुए मिट्टी में बी-2 अर्थात सायनेकोबेलेमिन की मात्रा सात गुना तक बढ़ा देते है जिससे पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।ऐसे बनायें वर्मी कम्पोस्ट पिट
कचरे से केंचुआ खाद बनाने की दो पद्धतियां है: इनडोर (छायादार स्थान) और आउटडोर (खुले स्थान) पद्धति जिनका विवरण अग्र प्रस्तुत है.1. इनडोर पद्धति : यह छायादार (ढंके हुए स्थानों) स्थानों पर खाद तैयार करने की व्यावसायिक पद्धति है। इसमें नालीदार चददरों अथवा एस्बेस्टस की चादरों से बड़े-बड़े शेड या ढंके हुए छप्पर तैयार किये जाते है। छप्पर की फर्श पर ईट, सीमेंट या पत्थर के टेंक या क्यारियां बनाई जाती है. पक्की क्यारियां प्रायः 10 फ़ीट लंबी, 3 फ़ीट चौड़ी एवं 2 फ़ीट ऊंची रखी जाती है। इस पद्धति में जैविक पदार्थ के रूप में शहरी व्यर्थ पदार्थ या कल कारखानों के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
2. आउटडोर पद्धति : यह एक खुले स्थानों में खाद बनाने की पद्धति है जिसका उपयोग बगीचों, खेतों, खलिहानों, पशुशाला या छायादार वृक्षों के आस-पास खाद बनाने के लिए किया जाता है। बड़ी मात्रा में व्यर्थ पदार्थो से खाद तैयार करने के लिए यह उत्तम विधि है क्योंकि व्यर्थ जैविक पदार्थ बहुत मात्रा में आसपास ही उपलब्ध हो जाते है जिससे जैविक पदार्थो को लाने ले जाने में समय, श्रम और पैसा की वचत होती है तथा तैयार खाद को बेचने और उपयोग करने में सुगमता होती है।
आसान है वर्मी कम्पोस्ट पिट भरने की विधि
- केंचुआ क्यारियों में सबसे पहले तीन इंच (7-8 सेमी) मोटी गिट्टी या ईट के टुकड़ों अथवा बालू रेत की तह क्यारी के फर्श पर बिछा कर उसे पानी से भिंगो दें।
- पहली परत के ऊपर सूखे सख्त जैविक पदार्थ फसलों का भूसा, गन्ने की खोई या फिर लकड़ी का बुरादा आदि (जिन्हें सड़ने-गलने में ज्यादा समय लगता हो ) की तह बिछा कर उस पर पानी छिटककर गीला कर देंवे। यह परत हार्ड बैड (बिछावन) कहलाती है।
- तीसरी परत में 2-3 इंच मोटी (5-7 सेमी) गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट बिछा कर इसे भी पानी से गीला कर देवें।
- चौथी परत में केंचुओं सहित वर्मी कम्पोस्ट (जिसमें लगभग 1000 केंचुए हो) की एक समान पतली तह बिछा देवें। औसतन 9 वर्ग मीटर में 1000 केंचुए मिलाना चाहिए।
- पांचवी परत में शीघ और आसानी से सड़ने वाले व्यर्थ पदार्थ जैसे सब्जियो-फलों के छिल्के और अवशेष, खरपतवार,गोबर या बॉयोगैस स्लरी आदि की 10-15 इंच (25-37 सेमी ) मोटी तह बिछाए या ढेर लगाएं।
- छटीं और अंतिम परत में सूखी घांस, पत्तों, भूसा या धान का पुआल आदि डालकर जुट के बोरे से उसे ढँक देते है ताकि नमीं सरंक्षित रहे और केंचुओं की सक्रियता के लिए उचित वातावरण कायम बना रहे।
- इस विधि में तली में बिछाई गई हार्ड बेड विपरीत परिस्थितियों में भोजन के रूप में केंचुओं द्वारा उपयोग में ली जाती है। ऊपर की भोजन सामग्री समाप्त होने के उपरांत केंचुए नीचे की तह को खाते है। नई खाद्य सामग्री (व्यर्थ जैविक पदार्थ) ऊपर डालने से केंचए पुनः ऊपर आ जाते है और खाद बनाने का कार्य करते रहते है। आवश्यकतानुसार 2-3 माह में एक बार क्यारियां खाली करके हार्ड बैड को नए सिरे से बिछा कर उपरोक्तानुसार अन्य परतें जमाकर खाद तैयार करते रहें।
सभी प्रकार के बेकार जैविक पदार्थ जैसे रसोई घर का कचरा (सब्जियों और फलों के छिल्के,अंडो के छिल्के,, कागज, पत्तियां, सड़े-गले फल-फूल सब्जियां, लकड़ी आदि), पशुपालन, मुर्गी पालन से प्राप्त होने वाले बेकार पदार्थ, जानवरों और पक्षियों को खिलाया जाने वाला चारा, भूषा, दाना आदि) तथा कृषि अवशिष्ट से उत्तम श्रेणी का वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। केंचुआ खाद बनाते समय अधोलिखित बातों पर ध्यान देन चाहिए;
- खाद बनाने में उपयोग में लाये जाने वाले जैविक पदार्थों में कांच,पत्थर, धातु के टुकड़े, प्लास्टिक आदि नहीं होना चाहिए।
- वर्मी कम्पोस्ट तैयार किये जाने वाली क्यारियों में झारे से प्रतिदिन पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए।
- केंचुओ को अँधेरे और नम स्थान अधिक पसंद है अतः केंचुआ पालन का स्थान छाया दार (सघन पेड़ों की छाया अथवा खुले में छप्पर आदि) होना चाहिए क्योंकि केंचुए रोशनी से विकर्षित होते है। अधिक धूप और तेज गर्मी ये वर्दाश्त नहीं कर पाते है।
- केंचुआ घरों को गर्मी और वर्षा से सुरक्षा के लिए उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। केंचुओं की अच्छी क्रियाशीलता के लिए न्यूनतम 7-8 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त पाया गया है।
- केंचुआ घरों के आस-पास जल जमाव नहीं होना चाहिए अन्यथा केंचुए अन्य सूखे स्थानों की तरफ भाग सकते है। केंचुआ घर हवादार (वायु संचार की पर्याप्त व्यवस्था) भी होना चाहिए।
- केंचुओ को प्राकृतिक शत्रुओं जैसे छिड़ियां, सांप, मेढक, दीमक, चीटियां आदि से बचने के लिए समय-समय पर क्यारियों के चारोँ और नाली खोद कर उसमे क्वीनलफास या फालीडाल डस्ट डाल देना चाहिए।
- अनुकूल परिस्थितियों में केंचुए 35-45 दिनों के अंदर कचरे और गोबर को उत्तम खाद में परिवर्तित कर देते है। तैयार खाद के क्यारियों में ढेर बना दें जिससे ऊपर के केंचुए नीचे की तह में चले जावें। खाद निकालने का कार्य हाथ से करना चाहिए।
- तैयार जैविक खाद को छायादार स्थानों में ढेर लगाकर रखना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार खेत में उपयोग करें और आवश्यकता से अधिक खाद दूसरे किसानों को बेच कर लाभ कमा सकते है ।
खेती किसानी के लिए वरदान है केंचुआ खाद
वर्मी कम्पोस्ट के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति, पानी सोखने और वायु संचार की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। सघन खेती से बिगड़ती मिट्टी की सेहत सुधारने में यह खाद बहुत उपयोगी है। केंचुओ द्वारा तैयार यह जैविक खाद पेड़-पौधों, सब्जियों, फल-फूलों के लिए बेहतरीन प्राकृतिक एवं सम्पूर्ण खाद है। वर्मी कम्पोस्ट जैविक खाद का उपयोग विभिन्न फसलों में अलग अलग मात्रा में किया जाता है। खेत की तैयारी के समय 2.5 से 3.0 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। खाद्यान्न फसलों में 5-6 टन प्रति हेक्टेयर तथा फलदार पेड़ों में 1-10 किलो प्रति पेड़ की दर से वर्मी कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जा सकता है। किचन गार्डन तथा गमलों में 100 ग्राम प्रति गमला खाद का प्रयोग करें. सब्जी वाली फसलों में 8-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इस खाद का प्रयोग लाभकारी रहता है।इस प्रकार से हम कह सकते है की कचरे से कंचन पैदा करने में वर्मी टेक्नोलॉजी पर्यावरण सौम्य और बेहद उपयोगी तकनीक है जिसके माध्यम से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लग रहे कचरे के ढेरों का सुगमता से निपटान हो सकता है। इस कार्य में न्यूनतम लागत में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बेरोजगार नौजवानों को आकर्षक रोजगार मिल सकता है। इस तकनीक के अपनाने से हम अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ, स्वस्थ और सुन्दर बना सकते है।
मशीनों की मदद से भी कचरे से कम्पोस्ट
भारतीय पशु चीट्स अनुसन्धान संसथान, बरेली और भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान , रुड़की ने घर के कूड़े-कचरे से जैविक खाद तैयार करने के वास्ते एक मशीन का निर्माण किया है जिसे 'मैकेनिकल काऊ कम्पोस्टिंग' नाम दिया गया है। इस मशीन की सहायता से महज साथ दिन में बिना बदबू वाली उत्तम जैविक खाद तैयार की जा सकती है। जबकि परम्परागत विधि से खाद तैयार करने में छह माह का समय लगता था। इस मशीन में शुरुवात में प्रति दिन देसी गाय का गोबर 40 दिन तक डालना पड़ेगा, ताकि उसमे सूक्ष्मजीवी पैदा हो सकें. इसके साथ ही हर दिन 100 किलो घर का जैविक कूड़ा-करकट भी डाला जा सकता है। पहली बार में ४० दिन में खाद तैयार हो जाती है। एक बार मशीन के अंदर सूक्ष्मजीवी जमा हो जाने के बाद घर के जैविक कूड़े से साथ दिन में ही उत्तम जैविक खाद तैयार हो सकता है। इस प्रकार की मशीनें शहरों के विभिन्न मुहल्लों और कालोनियो में स्थापित करने से वहां के कचरे का निष्पादन सुगमता से किया जा सकता है। इससे प्रदुषण से मुक्ति मिलेगी और स्थानीय निकायों की आमदनी में भी इजाफा हो सकता है।अतः कचरा निष्पादन के लिए ईमानदार पहल करते हुए हमारी सरकार और स्थानीय निकायों को जनभागीदारी की मदद से कुछ ठोस कदम उठाना पड़ेगें। इस कार्य में बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी मुहैया हो सकता है। हमारे अन्नदाता किसानों को कम कीमत उपयोगी जैविक खाद प्राप्त हो सकेगी और सबसे ऊपर हम अपने गांव, नगर, शहर, को स्मार्ट गांव, नगर और स्मार्ट शहर बनाकर भारत सरकार के निर्मल भारत और स्वच्छ भारत अभियान की महत्वकांछी परिकल्पना को साकार करने में अपना योगदान दे सकते है।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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