डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
भारत विश्व का
एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जहाँ पर एक दर्जन से अधिक दलहनी फसलों की खेती की जाती है
. रबी दलहनों में चना, मटर,मसूर और खेसारी
की खेती प्रमुखता से की जाती है। अरहर, मूंग, उर्द, मोठ और कुल्थी खरीफ ऋतु की
प्रमुख दलहनी फसलें है। मोठ (विगना एकोंटीफ़ोलिया) दलहनी कुल की फसल है जिसे अंग्रेजी में मोथ बीन कहते
है। खरीफ की फसलों में मोठ सबसे ज्यादा सुखा सहन करने वाली फसल है। इसकी खेती
मुख्यतः दाल, जानवरों के लिए पौष्टिक चारा-दाना और हरी खाद के लिए की जाती है। मोठ की खेती मुख्यत: बारानी क्षेत्रों में शुद्ध
फसल अथवा जुआर, बाजरा, कपास, मक्का आदि फसलो के साथ मिश्रित या अन्तरावर्ती फसल के
रूप में लगाया जाता है। बलुई मृदा में इसकी खेती करने से मृदा अपरदन कम होता है।
मोठ के दानों पौष्टिक महत्त्व
मोठ के दानों का दाल के रूप में प्रयोग
करने के अलावा इसकी दाल से विविध प्रकार
के अल्पाहार (चाट, पापड़, भजिया आदि) तैयार किये जाते है। इसका दालमोठ बेहद लोकप्रिय नमकीन है। मोठ की हरी फल्लियाँ का सब्जी के रूप में प्रयोग
किया जाता है। पौष्टिकता के मान से मोठ के दानों में (प्रति 100 ग्राम भार) 330
किलो कैलोरी उर्जा, 24 ग्रा प्रोटीन, 1.5 ग्रा वसा, 61.9 ग्रा शर्करा , 9.6 मि.ग्रा.
लोह तत्व और 202 मिग्रा.कैल्शियम के अलावा 0.4 मिग्रा थायमिन, 0.09 मिग्रा राइबोफ्लेविन और1.5 मिग्रा नियासिन पाया जाता है।
मोठ की खेती की स्थिति
भारत में मोठ
की खेती 16.51लाख हेक्टेयर में की जा रही है जिससे 486 किग्रा/हे. औसत उपज के मान से 8.02 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता है। मोठ फसल
के क्षेत्र और उत्पादन में राजस्थान अग्रणीय राज्य है। राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर
में भी मोठ की खेती प्रचलन में है। भारत के अन्य वर्षा आश्रित क्षेत्रों और कम उपजाऊ जमीनों में भी मोठ की खेती आसानी से की जा सकती है। मोठ फसल की औसत उपज काफी कम है। अग्र
प्रस्तुत उन्नत शस्य तकनीक को व्यवहार में लाने से किसान भाई मोठ फसल से 6-8
क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक उपज प्राप्त कर सकते है।
भूमि का चयन और खेत की तैयारी
मोठ खरीफ ऋतु की दलहनी फसल है। इसकी
खेती समस्या ग्रस्त भूमि को छोड़कर सभी
प्रकार की भूमियों में की जा सकती है
परन्तु अच्छे जल निकास वाली हल्की बलुई दोमट मिटटी मोठ की खेती के लिये
सर्वोत्तम होती है। मोठ के बीजों का आकार छोटा होने के कारण ढेलेरहित मृदा की
जरूरत होती है। वर्षा होने पर मोठ फसल हेतु भूमि को आवश्यकतानुसार एक-दो बार हैरो
से जूताई करने के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर लेना चाहिए।
उन्नत किस्मों के बीज का इस्तेमाल
मोठ की अधिकतम
उपज के लिए अग्र प्रस्तुत किस्मों में उपलब्ध किस्म के बीज की बुआई कर सही शस्य प्रबंधन से अधिकतम उपज ली जा सकती है।
1. आर.ऍम.ओ.
257 : यह किस्म दाना चारा दोनों के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 62 -65 दिन में पककर 5 – 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन देती है।
2. आर.ऍम.ओ.
225 : यह क़िस्म 65 -70 दिन में पक कर औसतन 6-7.5 क्विंटल प्रति दाना उपज देती है . यह किस्म पीत मोजेक विषाणु के लिये
प्रतिरोधी है।
3. एफ.एम.एम.
96 : अति शीघ्र पकने वाली यह कम ऊंचाई
वाली,
सीधी बढ़ने वाली किस्म है जिसमे पकाव एक साथ आता है। यह
किस्म 58-60 दिन में पक जाती है और औसतन
पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आती है।
4. आर.एम.ओ.
40 : कम अवधि ( 55 -60 दिन ) में पकने
वाली यह किस्म सूखे से कम प्रभावित होती है। यह सीधी बढ़ने वाली तथा कम ऊंचाई की किस्म है जिसमें
पकाव एक ही समय पर आता है। इस किस्म में पीत मोजेक विषाणु के प्रति प्रतिरोधकता
है द्य इस किस्म की औसतन पैदावार 6-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
5. काजरी
मोठ-2 : यह किस्म 70-75 दिन में पककर 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज देती है . इस
किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 -12 क्विंटल सुखा
चारा भी प्राप्त होता है।
6. काजरी
मोठ-3 : यह किस्म 65 -70 दिन में पककर 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज देती है। इस
किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 -11 क्विंटल सुखा
चारा भी प्राप्त होता है।
बुवाई का उचित समय
मोठ की बुवाई खरीफ में जून के अंतिम
सप्ताह से लेकर 15 जुलाई तक की जा सकती है। शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों की बुआई 30 जुलाई तक की जा सकती है। देरी से बुवाई करने पर बीजों का अंकुरण कम होता
है तथा पैदावार में गिरावट आती है।
बीज दर एवं बुआई
मोठ की अच्छी
उपज के लिए खेत में 2-3 लाख पौधे स्थापित होना चाहिए .खेत में वांछित पौधों की
संख्या के लिये 30 -35 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है.
बीज की बुआई पंक्तिओं में 45 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए। बीज बोने की गहराई 3-4 सेमी से ज्यादा न रखें।
बीजोपचार
बीज और भूमि जनित रोगों से फसल की सुरक्षा हेतु मोठ के बीज को बुवाई से पूर्व 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इसके बाद मोठ के बीज को राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर से भी उपचारित करने से उपज में वृद्धि होती है ।
बीज और भूमि जनित रोगों से फसल की सुरक्षा हेतु मोठ के बीज को बुवाई से पूर्व 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इसके बाद मोठ के बीज को राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर से भी उपचारित करने से उपज में वृद्धि होती है ।
अधिक उपज के लिए उर्वरक का प्रयोग
अधिकांश किसान मोठ की फसल में खाद -उर्वरक का इस्तेमाल नहीं करते है, परन्तु
अच्छी उपज के लिए बुआई के समय 10-15 किग्रा नत्रजन, 30-40 किग्रा फॉस्फोरस और 10
किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से उपज बढती है और दानों की
गुणवत्ता में भी सुधार होता है। फॉस्फोरस तत्व की पूर्ति सिंगल सुपर फॉस्फेट उर्वरक
के माध्यम से करने से फसल के लिए आवश्यक सल्फर तत्व भी उपलब्ध हो जाता है।
आवश्यक होने पर करें सिंचाई
वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण मोठ की फसल में सिचाई की
आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा के आभाव में
फूल आने से पहले तथा दाना बनते समय सिंचाई करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती
है।
खरपतवार नियंत्रण
वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण फसल की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार प्रकोप से मोठ की
उपज में 25-30 % तक गिरावट आ सकती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालीन (स्टोम्प) की
3.30 लीटर मात्र को 500 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से अंकुरण
पूर्व खेत में छिड़कना चाहिए। बुवाई के 20 -25 दिन बाद
एक बार खेत में निराई-गुड़ाई करने से
खरपतवारों को नियंत्रित रखा जा सकता है। निराई गुड़ाई नहीं हो सके तो इमेजीथाइपर
(परसूट) नामक खरपतवार नाशी 750 मिली. पार्टी हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए।
समय पर फसल कटाई
जब मोठ की फलियाँ पक कर भूरी हो जाये तथा पौधे
पीले पड़ने लगे तो फसल की कटाई कर लेना
चाहिए। ज्यादा पकने पर फलियाँ चटकने लगती है तथा दाने खेत में बिखर जाते जिससे
उपज कम प्राप्त होती है। अत: मोठ की फसल में लगभग 80 प्रतिशत फलियाँ पकने पर तुरंत कटाई करनी चाहिए। फसल को अच्छी
प्रकार सुखाने के उपरांत हाथ से अथवा थ्रेशर द्वारा गहाई-मड़ाई कर लेना चाहिए।
भरपूर उपज
अनुकूल मौसम और उचित शस्य प्रबंधन से अपनाने पर 6-8 प्रति क्विंटल दाने की उपज प्रति हेक्टेयर
तक प्राप्त की जा सकती है। दानों के अलावा पशुओं के लिए 8-10 क्विंटल पौष्टिक भूषा भी प्राप्त होता है।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो लेखक और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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