डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसंधान केंद्र,
कोडार रिसोर्ट, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भारत के आर्थिक विकास में कृषि का महत्वपूर्ण
योगदान है। देश 60 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने जीवनयापन
के लिए कृषि पर निर्भर है। यही नहीं देश में शक्कर, गुण,सूती कपड़ा निर्माण के लिए
कपास, सब्जी,फल-फूल सभी कुछ कृषि पर निर्भर है । कृषि क्षेत्र में लगातार हो रही
तकनीकी विकास और किसान हितैषी सरकारी योजनाओं की बदौलत आज कृषि उन्नति और प्रगति
के राह पर है।स्वतन्त्रता के बाद देश में खाद्यान्न उत्पादन, दुग्ध उत्पादन, शक्कर
उत्पादन,फल और सब्जी उत्पादन आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई होने के फलस्वरूप आज
हम अनेक कृषि उत्पाद के मामले में आत्म निर्भर हो गए है।हरित क्रांति की सफलता की
वजह से खाद्यान्न उत्पादन एवं अन्य कृषि उत्पाद में वृद्धि संभव हो सकती है जिससे
अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों के साथ-साथ सिंचाई एवं पोषक तत्वों की अतुलनीय
भुमिका रही है। यह सर्विदित है की अनाज उत्पादन से लेकर कृषि की सभी जिन्सों के
उत्पादन में 50 प्रतिशत वृद्धि केवल उर्वरकों के उपयोग के कारण हुई है। उन्नत
किस्मों के विकास तथा सिंचाई सुविधाओं के प्रसार के करण देश में उर्वरक उपयोग में निरंतर
वृद्धि हो रही है। देखने में आया है की फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में से किसान
भाई नत्रजनयुक उर्वरकों का अधिक प्रयोग करते है, जिससे भूमि में अन्य आवश्यक पोषक
तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है जिसके फलस्वरूप उत्पादकता में वांक्षित वृद्धि नहीं
हो पा रही है। उत्तम गुणवत्ता युक्त बेहतर उपज के लिए पोषक तत्वों का संतुलित
मात्रा में उपयोग नितान्त आवश्यक है।
पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व
पौधों की अच्छी वृद्धि एवं
समुचित विकास के लिए मुख्यरूप से 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। भूमि में इन
पोषक तत्वों की कमीं से फसल की वृद्धि एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,
जिससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है। अतएव कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद एवं
उर्वरकों के माध्यम से पोषक तत्वों का उचित प्रबंधन आवश्यक हो जाता है. पौधों का
95 प्रतिशत भाग कार्बन,हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित होता है. जबक शेष 5
प्रतिशत भाग में अन्य पोषक तत्वों का योगदान रहता है। पौधों की आवश्यकतानुसार पोषक
तत्वों को मुख्यरूप से निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है:
1.मुख्य
पोषक तत्व: इस वर्ग में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश,
कैल्शियम, मैग्नेशियम एवं सल्फर पोषक तत्व आते है. इन पोषक तत्वों को पुनः तीन
भागों में विभाजित किया गया है:
(अ)आधारभूत पोषक तत्व: कार्बन, हाइड्रोजन एवं
ऑक्सीजन तत्व इस वर्ग में आते है जो पौधों को हवा एवं पानी के माध्यम से प्राप्त
हो जाते है. ये तत्व वायुमंडल में प्रचुर मात्रा में पाए जाते है, अतः इन्हें अलग
से देने की आवश्यकता नहीं होती है.
(ब)प्राथमिक पोषक तत्व: इस वर्ग में मुख्य रूप
से नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश को सम्मलित किया गया है. पौधों को इन तत्वों की
अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है और ये तत्व भूमि से जल के माध्यम से अवशोषित
किये जाते है.
(स) द्वितीयक पोषक तत्व: इसमें मुख्यतः कैल्शियम,
मैग्नेशियम एवं सल्फर तत्व आते है. ये पोषक तत्व भूमि से लिए जाते है, लेकिन
प्राथमिक पोषक तत्वों की अपेक्षा इनकी कम आवश्यकता पड़ती है।
2.सुक्ष पोषक तत्व: पौधों को इन पोषक तत्वों की
बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है परन्तु पौधों की वृद्धि एवं जीवन चक्र को पूरा
करने के लिए मुख्य पोषक तत्वों के सामान इनकी भी जरुरत होती है। आज कल सघन फसल
प्रणाली अपनाने के कारण बहुत सी मिट्टियों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमीं
परिलक्षित हो रही है। इस वर्ग में आयरन, जिंक, मैगनीज, बोरोन, तांबा, कोबाल्ट आदि
आते है।
पोषक तत्वों के प्रकार एवं
महत्त्व
पौधे अपना भोजन मुख्यतः
पत्तियों के हरे भाग (प्रकाशसंश्लेषण) के माध्यम से ग्रहण करते है। पौधे भूमि से आवश्यक
पोषक तत्व घोल अथवा द्रव के रूप में जड़ों द्वारा ग्रहण करते है। अधिक और
गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए यह आवश्यक है की भूमि में सभी आवश्यक पोषक तत्वों का
प्रबंधन किया जाए। जैसे बीज खेती का आधार है, उसी प्रकार अच्छी पौध वृद्धि, उपज
एवं गुणवत्ता का आधार पोषक तत्वों को माना जाता है। फसल की समुचित वृद्धि एवं
विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व खाद एवं उर्वरकों के माध्यम से दिए जाते है। खाद
एवं उर्वरकों को उनकी उपलब्धता के साधन एवं पोषक तत्वों की मात्रा के आधार पर
कार्बनिक, अकार्बनिक एवं जैविक खादों में बांटा गया है।
पशुओं के गोबर और जैविक कचड़ा
को मिलाकर कम्पोस्ट खाद बनाया जाता है। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है
जिससे इनकी अधिक मात्रा लगती है। फसलों की मांग के अनुरूप पोषक तत्वों की आपूर्ति
करने के लिए पर्याप्त मात्रा में जैवक खाद उपलब्ध न हो पाने की वजह से आज काल
किसान भाई रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल अधिक करते है। उर्वरक का उपयोग सस्ता और
आसान रहता है।
उर्वरक एक प्रकार के रासायनिक
यौगिक होते है जिन्हें कारखानों में तैयार किया जाता है तथा इनमें एक या एक से
अधिक पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है। मुख्य पोषक तत्वों यथा नाइट्रोजन,
फॉस्फोरस एवं पोटाश की आपूर्ति के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है. इन पोषक
तत्वों को फसल उत्पादन के लिए अधिक आवश्यकता होती है।उर्वरकों में पाये जाने वाली
पोषक तत्वों के आधार पर इनकों तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है:
(i)
नत्रजन धारी
उर्वरक: यूरिया, अमोनियम सल्फेट, कैल्शियम नाइट्रेट
(ii)
फॉस्फोरस धर
उर्वरक: सिंगल सुपर फॉस्फेट, डबल सुपर फॉस्फेट, ट्रिपल सुपर फॉस्फेट, डाईअमोनियम
फॉस्फेट (डी ए पी)
(iii)
पोटाशधारी उर्वरक:
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश.पोटेशियम क्लोराइड
पोषक तत्वों (उर्वरकों) का
उपयोग हमेशा निम्न बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए जिससे फसलों की अच्छी वृद्धि
एवं बेहतर उपज प्राप्त होने के साथ-साथ पोषक तत्व उपयोग क्षमता में वृद्धि हो सके।
(i)
फसल की किस्म (ii)
भूमि का प्रकार (iii) भूमि में नमीं की उपलब्धतता एवं (iv) भूमि की उर्वरता
खरीफ एवं रबी फसलों में पोषक तत्व
प्रबंधन
खरीफ फसलों की खेती सामान्यतौर
पर वर्षा पर आधारित होती है. कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मुख्य रूप से ज्वार,
बाजरा,मक्का के अलावा दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती की जाती है। जबकि अधिक वर्षा
वाले क्षेत्रों में इन फसलों के अलावा धान की फसल भी ली जाती है। सिंचाई की सुविधा
उपलब्ध होने पर रबी ऋतु में गेंहू, सरसों, चना, सूर्यमुखी, गन्ना आदि फसलों की
खेती की जाती है। इन सभी फसलों से अधिकतम पैदावार के लिए पोषक तत्वों को फसल में
उचित मात्रा में एवं सहीं समय पर देना अत्यंत आवश्यक है।
खरीफ फसलों में पोषक तत्व प्रबंधन
फसल |
पोषक तत्वों की मात्रा (नत्रजन:फॉस्फोरस:पोटेशियम,
किग्रा/हे.) |
उर्वरक देने का समय |
|
धान-बौनी किस्में |
80-100:40-50:20-25 |
20 % नत्रजन तथा फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण
मात्रा बुवाई/रोपाई के समय |
50 % नत्रजन बुवाई के 40-50 दिन तथा शेष 30%
बुवाई के 60-70 दिन बाद |
ज्वार |
80-100:40:20 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय |
½ नत्रजन बुवाई के 30-35 दिन बाद |
बाजरा |
80:40:20 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय |
½ नत्रजन बुवाई के 30-35 दिन बाद |
मक्का |
80-120:40:20 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय |
¼ नत्रजन बुवाई के 30 दिन बाद एवं ¼ नत्रजन 45-50
दिन बाद |
मूंग/उड़द/लोबिया |
20:30:10 |
सम्पूर्ण नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की
पूरी मात्रा बुवाई के समय |
|
अरहर |
30:40:20 |
सम्पूर्ण नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की
पूरी मात्रा बुवाई के समय |
|
मूंगफली |
20-30:60:20 |
सम्पूर्ण नत्रजन एवं फॉस्फोरस और पोटाश की
पूरी मात्रा तथा 250 किग्रा.जिप्सम बुवाई के समय |
|
तिल |
40-50:30:20 |
½ नत्रजन तथा फॉस्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा के अलावा 250 किग्रा
जिप्सम बुवाई के समय |
½ नत्रजन बुवाई के 30-35 दिन बाद |
रबी फसलों में पोषक तत्व प्रबंधन
फसल |
पोषक तत्वों की मात्रा (नत्रजन:फॉस्फोरस:पोटेशियम,
किग्रा/हे.) |
उर्वरक देने का समय |
|
गेंहूँ |
120:40:30 |
1/3 नत्रजन एवं फॉस्फोरस तथा पोटेशियम की पूरी
मात्रा बुवाई के समय |
1/3 नत्रजन पहली सिंचाई के समय एवं 1/3 नत्रजन
दूसरी सिंचाई के समय |
जौ |
80:40:10 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस तथा
पोटेशियम की पूरी मात्रा बुवाई के समय |
½ नत्रजन पहली सिंचाई के समय |
सरसों |
80-100:40:20 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस तथा पोटेशियम की पूरी मात्रा बुवाई के समय |
½ नत्रजन पहली बुवाई के 30-35 दिन बाद |
चना/मटर |
20:40:20 |
सम्पूर्ण नत्रजन एवं फॉस्फोरस तथा पोटेशियम
बुवाई के समय |
|
गन्ना |
120-150:80:60 |
½ नत्रजन एवं फॉस्फोरस तथा
पोटेशियम की पूरी मात्रा गन्ना लगाते समय |
½ नत्रजन बुवाई के 110-120 दिन बाद |
खाद एवं उर्वरक देते समय ध्यान योग्य बातें
1.
सभी पोषक तत्वों
को खाद एवं उर्वरक के माध्यम से भूमि में दिया जाना चाहिए. खाद एवं उर्वरक की
मात्रा फसल की किस्म, भूमि की दशा तथा मृदा में नमीं की मात्रा पर निर्भर करती है।
अनाज वाली फसले जैसे धान, ज्वार, बाजरा, गेंहू, मक्का आदि को दलहनी फसलों की
अपेक्षा अधि नत्रजन की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार तिलहनी फसलों को भी अधिक
नत्रजन की जरुरत होती है। जबकि दलहनी फसलों को नत्रजन कम एवं फॉस्फोरस की आवश्यकता
अधिक होती है। दलहनी फसलें अपनी जड़ों में वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर
नत्रजन की पूर्ती स्वतः कर लेती है।
2.
फसलों के लिए पोषक
तत्वों की सही मात्रा का निर्धारण मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. ऐसा करने
से उर्वरकों की बचत हो सकती है और फसल को संतुलित मात्रा में आवश्यकतानुसार पोषक
तत्व उपलब्ध हो सकेंगे।
3.
फसलों को पोषक
तत्वों की आपूर्ति खाद, उर्वरक एवं जैव उर्वरकों के माध्यम से कराई जाती है तो इस
विधा को समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन कहते है। इस तकनीक का उपयोग करने से भूमि की
उर्वरा शक्ति बरक़रार रहती है और फसल की उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है।
4.
तिलहनी फसलों को
गंधक (सल्फर) तत्व की आवश्यकता होती है। अतः 30-40 किग्रा. सल्फर या फिर 250
किग्रा. जिप्सम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल कर in फसलों की उपज और बीज में तेल की
मात्रा को बढाया जा सकता है.
5.
दलहनी फसलों की
अच्छी पैदावार के लिए बुवाई पूर्व बीज का राइजोबियम कल्चर से उपचार के साथ पौधों की शुरुआती बढ़वार एवं विकास के लिए बुवाई
के समय 20-30 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से देना आवश्यक होता है.
6.
फसल प्रणाली में
दलहनी फसलों का समावेश अवश्य करें अर्थात फसलों को हेर फेर कर (फसल चक्र) बोना
चाहिए ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति कायम रह सकें.
उपरोक्तानुसार
फसलों में पोषक तत्वों का उचित मात्रा में संतुलित एवं समन्वित प्रयोग करके न केवल
अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखा
जा सकता है जो हमारी भूमि के स्टेट एवं टिकाऊ उत्पादन के लिए बहुत आवश्यक है।
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