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मंगलवार, 28 जुलाई 2020

आज की जरुरत है बिन माटी हवा में स्मार्ट खेती -हाइड्रोपोनिक्स

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कोडार रिसोर्ट, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

 

आमतौर पेड़-पौधे-फसलें भूमि या मिट्टी में ही उगाए जाते हैं। हम यह भी जानते है कि पेड़-पौधे-फसल उगाने और उनकी वृद्धि-विकास के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूर्य का प्रकाश जरूरी होता है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पौधे या फसल उत्पादन के लिये सिर्फ तीन चीजों अर्थात  पानी, पोषक तत्व और सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इस प्रकार से यदि हम बगैर मिट्टी के ही पेड़-पौधों को किसी अन्य माध्यम से पोषक तत्व उपलब्ध करा दें तो बिना मिट्टी के भी, पानी और सूरज के प्रकाश की उपस्थिति में पेड़-पौधे उगाये जा सकते हैं। दरअसल, बढ़ती आबादी, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण  ने खाद्ध्य और पोषण सुरक्षा की आबाद गति में रुकावट पैदा कर दी है. ऐसे में बिना मिट्टी के पौधे उगाने वाली स्मार्ट तकनीक एक नई उम्मीद के रूप में उभरकर आई है. न खेत की जरुरत, न मौसम का इन्तजार, दुकान, छत, छज्जे, कहीं पर माटी बिना साग, सब्जी, गेंहू, धान,चारा, फल, फूल सभी की फसलें उगाई जा सकती है. केवल पानी में या बालू या कंकड़, लकड़ी का बुरादा या नारियल का रेशा आदि  के बीच नियंत्रित जलवायु ( में बिना मिट्टी के सब्जी,चारा व फूलों के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते है. दूसरे शब्दों में, यह कृषि की एक ऐसी विधा है जिसमें मृदा का उपयोग किये बिना जल और पोषक तत्वों की सहायता से खेती की जाती है.

चित्र: मृदा  रहित खेती(हाइड्रोपोनिक) फोटो साभार गूगल 
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक वास्तव में अनादिकालीन उस प्रौद्योगिकी का परिष्कृत स्वरूप है जिसमें नदी-नालों व तालाबों में कुछ सीमित पौधों की खेती हुआ करती थी.बेबीलान के हैंगिंग गार्डन, एजटेक के तैरते खेत और भारत में नदी किनारे पनपी सभ्यता एक प्रकार की जलीय खेती के ही उदाहरण है.

क्या है स्मार्ट हाइड्रोपोनिक्स तकनीक

स्मार्ट हाइड्रोपोनिक्स, खेती की वो आधुनिक तकनीक है जिसमें वनस्पति वृद्धि और उपज का नियंत्रण जल और उसके पोषण स्तर के जरिये होता है. मृदा रहित खेती का अविष्कार जूलियस वों सचस और विलियम क्नॉप (1859-1875) ने किया. इसके बाद पहली बार वर्ष 1929 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सस्यवैज्ञानिक डॉ. विलियम एफ.गेरिक ने मृदा रहित माध्यम पर टमाटर की व्यवसायिक खेती की और इस तकनीक का नाम ‘हाइड्रोपोनिक’ रखा. हाइड्रोपोनिक्स शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों हाइड्रो तथा पोनोस से मिलकर हुई है. हाइड्रो का अर्थ है  पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य. हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितयों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस ताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है. सामान्यतया पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से ग्रहण करते है, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है. इस घोल में पौधों की बढ़वार के लिए जरुरी खनिज लवण मिलाये जाते है. पानी, कंकडों या बालू आदि में उगाये जाने वाले पौधों में इस घोल की माह में एक-दो बार केवल कुछ बूंदे ही डाली जाती है. इस घोल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, मैग्नेशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक विशेष अनुपात में मिलाया जाता है, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें.

हाइड्रोपोनिक्स अर्थात जलीय कृषि में जल को अच्छी प्रकार से उन सभी पोषक तत्वों को समृद्ध किया जाता है जो पौधों की वृद्धि और बेहतर उपज के लिए जिम्मेदार होते है. जल के पीएच को संतुलित रखा जाता है जिससे पौधों की अच्छी वृद्धि होती है. कृषि की इस पद्धति में पौधे जल और सूरज की रौशनी से पोषण प्राप्त कर उत्पादन देते है. हाइड्रोपोनिक्स कृषि के लिए यह सुनिश्चित करना होता है कि मिट्टी की बुनियादी क्रिया को जल के साथ बदल दिया जाए. आमतौर पर हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली में बालू या बजरी या प्लास्टिक का इस्तेमाल पौधों की जड़ों को समर्थन देने के लिए किया जाता है. हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को संतुलित पोषण प्रदान करने के लिए जल में उर्वरक मिलाया जाता है. इजराइल, जापान, चीन और अमेरिका आदि देशों के बाद अब भारत में भी यह तकनीक विस्तार ले रही है. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारा फसलों के अलावा स्ट्राबेरी, खीरा, टमाटर,पलक, गोभी, शिमला मिर्च जैसी सब्जिय उगाई जाने लगी है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों को पाइप के माध्यम से उगाया जाता है. पौधों के आकर एवं किस्म के अनुसार पाइप का चयन किया जाता है तथा एक निश्चित दूरी पर इनमे गोल छेद बनाकर जालीनुमा कप में पौधों को रखा जाता है तथा सभी पाइप को एक-दूसरे से नलियों के माध्यम से जोड़ दिया जाता है जिनमें पानी को बहाया जाता है. इसमें पौधों के विकास के लिए जरुरी पोषक तत्वों का घोल पानी में मिला दिया जाता है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की विशेषता यह है की इसमें मिट्टी के बिना परु पानी के सीमित इस्तेमाल से चारा फसलें, सब्जियां, फल-फूल पैदा किये जाते है. इसमें n तो अनावश्यक खरपतवार उगते है और न in पौधों पर कीड़े लगने का भय रहता है. यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियों के लिए काफी उपयुक्त है. वर्तमान में खेतों में प्रति एकड़ 25-30 हजार स्ट्राबेरी के पौधे लगये जाते है. इस तकनीक का उपयोग कर प्रति एकड़ 60 से 120 हजार पौधे लगाये जा सकते है तथा उत्पादन को कई गुना बढाया जा सकता है.

लाभकारी है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक

परम्परागत तकनीक से पौधे उगाने की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के अनेक लाभ है.

1.   इस तकनीक से विपरीत जलवायु परिस्थितियों में उन क्षेत्रों में भी पौधे उगाये जा सकते है, जहां भूमि की कमीं है अथवा वहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं है.

2.   इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती है. एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इन्च ऊंचाई वाले पौधे के लिए प्रति वर्ष एक रुपये से भी कम खर्च आता है. इसकी सहायता से आप कहीं भी पौधे उग सकते है.

3.   परंपरागत बागवानी की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बागवानी करने पर पानी का 20 प्रतिशत भाग ही पर्याप्त होता है.

4.   हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का प्रयोग बड़े पैमाने पर अपने घरों एवं बड़ी इमारतों में सब्जियां उगाने में किया जा सकता है.

5.   चूंकि इस विधि से पैदा किये गए पौधों और फसलों का मिट्टी और भूमि से कोई सम्बन्ध नहीं होता, इसलिए इनमें कीट-रोग का प्रकोप कम होने से कीट रोग नाशको का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है. अतः यह एक पर्यावरण हितैषी तकनीक है.   

6.   हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों में पोषक तत्वों का विशेष घोल डाला जाता है, इसलिए इसमें उर्वरकों एवं अन्य रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता नहीं होती है.

7.   इस विधि से उगाई गई फसलें और पौधे जल्दी तैयार हो जाते है. इस विधि के अंतर्गत क्षैतिज के साथ-साथ उर्ध्वाधर स्थान का भी उपयोग कर सकते हैं।  

8.   जमीन में उगाये जाने वाले पौधों की अपेक्षा इस तकनीक में बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है.

9.   इस तकनीक में पारम्परिक खेती के मुकाबले कम समय में फसल तैयार हो जाती है और इस प्रकार की खेती में श्रम की आवश्यकता भी कम होती है.

10. इस नई तकनीक के माध्यम से शुष्क क्षेत्रों और शहरों में वर्ष पर्यंत हरा चारा पैदा किया जा सकता है, जिससे अधिक दुग्ध उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.

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