डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर
सस्यविज्ञान
विभाग
इंदिरा गांधी
कृषि विश्व विद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र (छत्तीसगढ़)
कृषि प्रधान देश होते हुए
भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम
है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और संसार में औसतन 227 ग्राम है। संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की
मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए। भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में
की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल
और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की
आवश्यकता है । इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों
को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा
साबित हो सकती है। समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही
आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता
है। उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न
होना चाहिए। इसी तारतम्य में हम उद्यान
फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) के समसामयिक कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे है।
ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के
संधिकाल ज्येष्ठ-आषाढ़ यानि जून माह में वर्षा प्रारंभ हो जाने से वातावरण में कुछ
शीतलता महसूस होने लगती है। कृषि कार्य सुभारम्भ का यह महत्वपूर्ण समय होता है। खेतों की जुताई, जल निकास नालियों का सुधार और निर्माण, बीज और खाद की व्यवस्था
इसी माह करना होती है। ज्येष्ठ-आषाढ़ (जून) माह में बागवानी फसलों में संपन्न
किये जाने वाले प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त विवरण अग्र प्रस्तुत है।
सब्जी फसलों के प्रमुख कृषि कार्य
बैंगनः फसल से तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार सिंचाई तथा
निराई-गुड़ाई करें। जुलाई-अगस्त में रोपाई हेतु
पौधशाला तैयार करें । उचित जल निकास वाले खेत में क्यारियां 15 सेमी. ऊंची, 5 x 1 मीटर आकार वाली बनायें। प्रति हैक्टेयर की दर से 500 ग्राम बीज (संकर किस्म के लिए 150 ग्राम) पौधशाला में बोंये। आवश्यकतानुसार सिंचाई और गुड़ाई करें।
फूलगोभी: फूलगोभी की अगेती किस्में (पूसा रूबी,एस-101,पूसा अर्ली ) की रोपाई के लिए बीज की बुवाई पौधशाला में माह
के अंत में करें। क्यारियां 5 मीटर लंबी एवं 1 मीटर चौड़ी तथा 15 सेमी. ऊंची बनायें। एक हैक्टेयर के लिए पौधशाला में 400-500 ग्राम बीज बोयें।
भिण्डी:भिण्डी के तैयार फलों को नरम अवस्था में तोड़कर विक्रय हेतु बाजार
भेजें। फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई निकाई-गुड़ाई करें। चूर्णिल आसिता रोग के
प्रकोप होने पर 3 ग्राम घुलनशील गंधक या डिनोकेप 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें। पीतशिरा रोग नियंत्रण हेतु मेटासिस्टाक्स (0.04 प्रतिशत) का छिड़काव करें। फल तथा तनाछेदक किट नियंत्रण के लिए 500 पी.पी.एम. बी.टी.
कीटनाशक 1-1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें। किट प्रभावित तने व
फल तोड़ कर नष्ट करें। बर्षाती फसल की बुवाई करें। इसके लिए प्रति हैक्टेयर 8-10 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। बुवाई कतारों में 30 सेमी. की दूरी पर करें तथा पौध से पौध के बीच 10-15 सेमी. की दूरी बनाएं। फसल में 60 किग्रा.नत्रजन, 35 किग्रा. स्फुर एवं 30 किग्रा. पोटाश उर्वरक कतार में देवें ।
मिर्चः तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। फसल में
आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें। पकी हुई मिर्च की तोड़कर सुखायें तथा बीज निकालें।
वर्षाकालीन फसल के लिए पौधशाला में बीज बोयें। एक हैक्टेयर रोपाई के लिये 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। क्यारियां 15 सेमी.,ऊंची तथा 5 मी. चौड़ी एवं 1 मी. लंबी बनाएं ।
खीरावर्गीय सब्जियां: इस वर्ग की ग्रीष्मकालीन फसलों के फलों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। खरीफ की फसलों जैसे तोरई,
लौकी, करेला व खीरा की उन्नत किस्मों की बुवाई थालों में करें। थाले 1.5 मीटर कतार एवं 1.0 मीटर थाले से थाले की दूरी पर बनार्यें। प्रत्येक थाले में
4-5 बीज बोयें। खेत ऊंचा हो जिसमें वर्षा ऋतु का पानी न भरे।
अदरक,
हल्दी, अरबी,सूरन: इन फसलों की बुवाई
का कार्य पूरा करें । पूर्व में लगाई गई फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई व निराई करें। सभी कंद
वाली फसलों में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालकर सिंचाई करें। अरबी एवं
सूरन में 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
चौलाईः पूर्व में बोई गई चौलाई में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। तैयार पौधों को उखाड़कर
छोटी-छोटी गड्ड़ियाँ बनाकर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
फलोत्पादन में इस माह
आमः बाग की साफ़-सफाई करें। नए बाग लगाने के लिए पूर्व में खोदे गये
गड्ढ़ों में गोबर की खाद तथा मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर भराई का कार्य पूर्ण करें। दीमक नियंत्रण हेतु मिट्टी
में क्लोरपायरीफास दवा मिलाएं। मध्यम समय में तैयार होने वाली आम की किस्मो को तोड़कर बाजार भेजें।
नर्सरी में कलम बांधने का कार्य करें।
केलाः पिछले माह खोदे गए गड़ढ़ों को भर दें। बाग की सिंचाई करें। पर्णचित्ती रोग
की रोकथाम हेतु 0.25 प्रतिशत कॉपर ऑक्सी क्लोराइड के घोल का छिड़काव करें।
नीबूवर्गीय फलः नए बाग लगाने के लिए गड्ढ़ों की भराई करें। जल निकास की नालियों
की सफाई करें। फलदार पेड़ों में नाइट्रोजन व पोटाश की दूसरी मात्रा का प्रयोग करें।
अमरूदः फल वृक्षों के थालों की सफाई कर अनुशंसा अनुसार खाद-उर्वरक दें एवं सिंचाई करें। नए बाग लगाने
के लिए गड़ढ़े भर दें।
पपीताः अगेती किस्म के फलों को तोड़कर
विक्रय हेतु बाजार भेजें। पपीते की उन्नत किस्म की पौध जिसकी ऊंचाई 15-20 सेमी. हो, की रोपाई 2 x 2 मीटर की दूरी पर करें। प्रति गड्ढा 10 किलो गोबर की खाद, 300 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश, 50 ग्राम क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत डालने के बाद गड्ढा भरकर पौधे लगायें।
आंवला व बेरः इनके पुराने वृक्ष जिनकी कटाई मार्च-अप्रैल में की गई थी उनकी नई
शाखाओं में कलिकायन (बडिंग) का कार्य इस माह के अंत से प्रारम्भ कर दें। नए
बाग लगाने के लिए गड़ढ़ों की भराई करें।
कटहलः बाग में एक बार सिंचाई करें। फल विगलन रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब का
छिड़काव करें। नए बाग लगाने के लिए गड़ढ़ों की भराई करें। परिपक्व फलों को तोड़कर
विक्रय हेतु बाजार भेजें।
लीची: बाग़ में नियमित सिंचाई करते रहे। पके तैयार फलों को तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
लीची: बाग़ में नियमित सिंचाई करते रहे। पके तैयार फलों को तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
फल-सब्जी संरक्षणः आम के विभिन्न तरह के शरबत, अचार तथा चटनी बनाई जा सकती है। इससे जैम अमावट आदि भी बनाए
जा सकते है।
पुष्पोत्पादन में इस माह
शोभाकारी पौधे तैयार करने के लिए गमले एवं पोलीथिन की थैलियों में मिट्टी, बालू और खाद का
मिश्रण 3:1:2 के अनुपात में भरें।
रजनीगन्धा में पोषक तत्वों के मिक्सचर का 15 दिन के अन्तर पर पर्णीय छिड़काव करें तथा एक सप्ताह के
अन्तर पर क्यारियों की सिंचाई करें । माह के अन्त में गेंदा के फूलों की दूसरी कटाई-तुड़ाई करें।नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें