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शुक्रवार, 19 मई 2017

उद्यानिकी:माघ-फाल्गुन (फरवरी) माह में बागवानी के प्रमुख कार्य


डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए। भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है ।  इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   
शिशिर ऋतु फरवरी यानी माघ-फाल्गुन माह में भी वातावरण ठंडा होता है परन्तु जनवरी माह की तुलना में तापक्रम अधिक होता है। गर्मी का थोड़ा आभास होने लगता है। वायुगति बढ़ जाती है और सापेक्ष आद्रता बीते माह की अपेक्षा कम हो जाती है। माह के  दूसरे पखवाड़े से मौसम सुहाना होने लगता है। औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.8 एवं 12.5 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 6 किमी प्रति घंटा होती है। बसंत पंचमी का त्योहार भी इसी माह पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं । चारों  तरफ पीले फूलों  की बसंती छटा मन को प्रफुल्लित कर देते है।  माघ-फाल्गुन यानि फरवरी  माह के दौरान उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत है। 

सब्जियों में इस माह

v आलूः आलू में पछेती अंगमारी रोग आने पर मेटालेक्जिल (1.5 ग्राम) या सायमाक्सीनील (2 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल  बनाकर छिड़काव करें। आलू की खुदाई से 10-15 दिन पहले पौधों  का ऊपरी हिस्सा (तना व पत्तियाँ) काट दें। खुदाई पश्चात मध्यम आकार एवं बिना कटे आलूओं को बोरों में भरकर शीतभण्डार में भेजने की व्यवस्था करें।
v टमाटरः यदि ग्रीष्मकालीन टमाटर की रोपाई नहीं की है तो  तैयार क्यारियों  में शीघ्र ही 60 कतार से कतार तथा 45 सेमी. पौध  से पौध  की दूरी पर  रोपाई संपन्न करें । रोपाई से पूर्व खेत में 100 किग्रा. नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर से डालें। रोपाई सायंकाल में की जाये एवं रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें। जनवरी माह में रोपी गई फसल में 50 किग्रा. यूरिया/हे. की दर से जमीन में निराई-गुड़ाई करते समय मिलायें।
v बैंगनः बैगन रोपाई के लिये यह उत्तम समय है। भूमि की तैयारी के समय 200-300 कुन्तल गोबर की खाद या कम्पोस्ट भूमि में मिला देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त 100 किग्रा. नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस  तथा 80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर दर से देवें । रोपाई कतारों  में 60 सेमी. की दूरी पर पौधों के  मध्य 45 सेमी. का फासल रखते हुए करें । रोपाई सांयकाल के समय की जाये तथा रोपाई के तुरन्त बाद तुरन्त हल्की सिंचाई करें।
v मटरः कीट एवं रोगग्रस्त फलियों को बाजार भेजने से पूर्व छांट दें। बीज वाली फसल से आवांछित पौधों को निकालें तथा चूर्णी फंफूदी नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.06 प्रतिशत कैराथेन नामक दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें। पकी फसल की अविलम्ब कटाई करें।
v फूलगोभी व पत्ता गोभी: फूलगोभी जब उचित आकार की हो जाये। तब उसकी कटाई करें। बीज वाली फसल में हल्की सी सिंचाई करें। पातगोभी के  अवांछित पौधों को निकालें तथा माहू के बचाव के लिये 0.15 प्रतिशत मैटासिस्टाक्स नामक दवा का छिड़काव करें।
v प्याज, लहसुन, हल्दी एवं अदरकः इन फसलों  में आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई व गुड़ाई करें व 50 किग्रा. यूरिया की खड़ी मात्रा फसल में डालें। यदि अभी तक रोपाई नहीं की है तो अविलम्ब खेत की तैयारी करें व 20 x 10 सेमी. की दूरी पर रोपाई करें। रोपाई सांयकाल में करें व तुरन्त बाद सिंचाई करें।फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई गुड़ाई करें व पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं होने पर  50 किग्रा. यूरिया खड़ी फसल की कतारों में देवें । हल्दी एवं अदरक की खुदाई करें ।
v पालक, मैंथी व धनियाँ: इन हरी सब्जियों की कटाई करें व तुरन्त गड्डिया बांधकर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। खरपतवारों  को निकालें, सिंचाई व निराई करें।
v भिण्डी एवं बरबटी: इस माह के पहले पखवाड़े में इन सब्जियों  की बोआई करें । पूसा सावनी, पूसा मखमली, परभनी क्रान्ति, अर्का अभय व अर्का अनामिका भिणडी की तथा पूसा सुकोमल, पूसा दो  फसली, पूसा फाल्गुनी, काशी व श् यामल बरबटी की उन्नत किस्में है । भिण्डी का 20 किलोग्राम एवं  बरबटी का 20-25 किग्रा. बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है। एक ग्राम कार्बन्डेजिम व 3 ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार कर बुवाई करें । भिण्डी को  कतारों  में 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे 12-15 सेमी. की दूरी पर बुवाई करें । बरबटी को  कतारों  में 50 सेमी. की दूरी पर लगाएं तथा पौध  से पौध  25 सेमी. का अन्तर रखें। भिण्डी में बुवाई के समय गोबर की खाद 120 से 200 क्विंटल क¢ अलावा 50 किलो नत्रजन, 40 किलो फॉस्फोरस तथा 30 किलो पोटाश बुवाई के पूर्व प्रति हैक्टेयर की दर से देवें। बरबटी में नत्रजन की मात्रा 25-30 किग्रा. प्रति हैक्टेयर तथा स्फुर व पोटाश भिण्डी की भांति देवें। सिंचाई, निराई गुड़ाई आवश्यकतानुसार करें।
v शिमला मिर्चः जनवरी माह में रोपित फसल में निराई-गुड़ाई करें व 50 किग्रा. यूरिया खड़़ी फसल में डालें। कीट तथा बीमारियों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इण्डोफिल-45 तथा 0.2 प्रतिशत थायोडान नामक दवा का एक छिड़काव अवश्य करें।
v बेल बाली सब्जियाँ : कद्दू, खीरा, तोरई, करेला की बुवाई करें । कद्दू की पूसा अलंकार, पूसा विश्वास, पूसा विकास, पूसा हाइब्रिड-1, लौकी की पूसा नवीन,पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी, पूसा संदेश, काशी गंगा, काशी बहार, नरेन्द्र संकर लौकी-4, तरोई की पूसा चिकनी, पूसा नसदार, पंजाब सदाबहार, पूसा स्नेह, पूसा सुप्रिया तथा करेला की पूसा विशेष, अर्का हरित,कलणपुर, बारामासी, पूसा हाइब्रिड-1,पूसा दो मौसमी उन्नत किस्में है।
v प्रति हैक्टेयर कद्दू का 5-6 किग्रा.,खीरा का 1 किग्रा.,तोरई का 4-5 किग्रा. लौकी का 3-5 किग्रा. एवं करेला का 4-5 किग्रा. बीज लगता है। कतार से कतार एवं पौध  से पौध  की दूरी कद्दू के  लिए 2.5 मीटर व 60 सेमी., खीरा के  लिए 1.5 मीटर व 90 सेमी., तोरई के  लिए 1.5 मीटर व 50 सेमी.,लौकी  के  लिए 2.5 मीटर व 60 सेमी. तथा करेला के  लिए 1.2 मीटर व 50 सेमी. रखना चाहिए। नालियाँ बनाकर इन फसलों की  नाली के ऊपर मेंड़ो के  किनारे लगाएं। बुवाई के  समय 10 टन गोबर  की खाद, 1 बोरा  यूरिया, 1.5 बोरा  सिंगल सुपर फॉस्फेट  तथा आधा बोरा  म्युरेट ऑफ़ पोटाश  मिट्टी में मिलाएं। बेल बाली सब्जियां  होने के कारण इन्हे बांस या लकड़ी के सहारे ऊपर चढ़ाने से उपज अधिक प्राप्त होती है और गुणवत्ता अच्छी होने के कारण  बाजार दर भी अच्छी प्राप्त होती है।
फलोत्पादन में इस माह
v आम, लीची, किन्नो,संतरा व नींबू आदि फल वृक्षों  में फूल एवं फल लगना प्रारंभ ह¨ जाता है। इन पौधों  के  थालों  की गुड़ाई कर खाद-उर्वरक डालें तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
v आम फसल में मिलीबग कीट से बचाव हेतु पेड़ में जमीन से लगभग एक फीट ऊपर ग्रीस बैंड लगाएँ तथा पेड़ के  नीचे जमीन की जुताई कर क्लोरपायरीफ़ॉस  1.5 प्रतिशत चूर्ण का भुरकाव करें। फुदका कीट प्रकोप  होने  पर मिथाइल डिमेटान 25 मिली. या डायमिथोएट 30 ईसी 2 मिली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.4 मिली. प्रति लीटर पानी में घोललकर छिड़काव करें। शाम के  समय आम के  बगीचे में सूखा कचरा जलाकर उसमें गंधक चूर्ण डालकर पौधों के  पास धूम्रण करें।
v इस माह तरबूज एवं खरबूज की फसलें लगाई जा सकती है। तरबूज 3 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से 75-90 सेमी. की दूरी पर बनी मेंड़ों  पर बोयें  तथा बीज से बीज 60 सेमी. की दरी रखें। बुवाई से पहले बीज को 1 ग्राम बविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलें  तथा 10-15 घंटे तक भिंगोने के  पश्चात अंकुरित कर लें । बुवाई के  पूर्व खेत में 10 टन जोबर की खाद, 2 बोरा यूरिया, 2 बोरा  सिंगल सुपर फॉस्फेट और  1 बोरा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश  मिट्टी में मिलाएं। खरबूज को 60-75 सेमी. की दूरी पर मेंड़ों  पर लगाएं ।
फल-सब्जी संरक्षण कार्य 
v इस माह आलू, फूलगोभी, मटर गाजर आदि सब्जियों के विभिन्न प्रकार के अचार, मोटी लाल मिर्च का भरवा अचार, आलू के चिप्स तथा पापड़ बनाये जा सकते है। गाजर व आंवले का मुरब्बा तथा कैण्ड़ी टमाटर का कैचप तथा अन्य उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसके अलावा जाड़े वाली सब्जियों को सुखाकर सुरक्षित किया जा सकता है।
v पुष्पोत्पादन में इस माह
v गुलाब के सूखे फूलों व अनावश्यक अंकुरों को तोड़ना, नये पौधे लगाना तथा बंडिग का कार्य। नियमित निराई-सिंचाई करते रहें तथा माहूं के रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। गलैडियोलस की मुरझाई हुई टहनियों को निकालें। स्पाइक के नीचे के फूल थोड़ा खिलने के बाद डण्ठल को काटकर बाजार भेजें।
v रजनीगन्धा के बल्बों के रोपण से 10-15 दिन क्यारियों में 10 किग्रा गोबर की खाद प्रतिवर्गमीटर तथा सिंगल सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट आफ पोटाश प्रत्येक 80-100 ग्राम प्रतिवर्गमीटर की दर से बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें ।

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