Powered By Blogger

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

गन्ने का विकल्प- चुकंदर से चीनी

                                        शक्कर कारखानों के लिए वरदान हो सकती है चुकंदर की खेती 

 

डॉ.ग़जेन्द्र सिंह तोमर

प्राध्यापक (सस्य विज्ञानं विभाग)

इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

    

               शर्करा देने वाली फसलों में गन्ने के बाद चुकन्दर का स्थान आता है। विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत भाग चुकन्दर द्वारा तैयार किया जाता है।  गर्मी के दिनों में जब चीनी मिलें  बन्द होने लगती हैं, उस समय चुकन्दर से चीनी निर्माण किया जा सकता है। गन्ने की फसल 10-12 माह में तैयार होती है जबकि चुकन्दर की फसल से 5-6 माह में ही चीनी प्राप्त की जा सकती है । इस प्रकार फसल विविधिकरण   में चुकन्दर की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।  इसकी जड़ों में 15 -16 प्रतिशत तक शर्करा पायी जाती है जिससे औसतन 10-12 प्रतिशत चीनी प्राप्त हो जाती है। चुकन्दर से 10 -15 टन प्रति हेक्टयेर हरी पत्तियाँ प्राप्त होती है जिनका प्रयोग गर्मियों में पशुओं के खिलाने में किया जा सकता है। इसकी पत्तियों में 10 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन तथा 60 प्रतिशत सम्पूर्ण पाचक तत्व पाये जाते हैं। इसकी जड़ों से चीनी निकालने के बाद बचे हुए गूदे  में 5 प्रतिशत पाचक प्रोटीन तथा 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है जिससे ताजा साइलेज बनाकर या सुखाकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। एक टन चुकन्दर से 50 किग्रा. सूखा गूदा तथा 300 किग्रा. गीला गूदा प्राप्त होता है। चुकन्दर के शीरे से ग्लिसरीन, लैक्टिक अम्ल, एसीटोन, ब्यूटाइल एल्कोहल, एन्टीबायोटिक आदि तैयार किया जाता है। एक टन चुकन्दर से 45 किग्रा. शीरा प्राप्त होता है। इसका उपयोग विशेष प्रकार के किण्वन तथा औषधि निर्माण में किया जाता है। चुकन्दर की पत्तियों में नत्रजन अधिक होता है। अतः इसे हरी खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। भारत में चुकन्दर की खेती 1974 से प्रारम्भ हुई। 

खेती के लिए कैसी हो जलवायु

                  चुकन्दर के लिए शुष्क और ठण्डे  मौसम की आवश्यकता होती है। चुकन्दर के लिए 30 - 60 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते हैं। उन सभी क्षेत्रों में यह फसल ली जा सकती है जहाँ अक्टूबर से मई तक 12 से  . 45 डिग्री से. तापमान रहता है। अंकुरण के लिए मृदा का तापक्रम 15 डिग्री से. होना आवश्यक है। पौधों की उचित बढ़वार तथा शर्करा निर्माण के लिए औसतन 20-22  डिग्री से. तापमान होना अच्छा रहता है। उच्च तापमान (30  डिग्री से. से ऊपर) पर शर्करा की मात्रा में कमी होने लगती है। शुष्क मौसम, चमकीले दिन व ठंडी रातें फसल बढ़वार के लिए सर्वोत्तम रहती हैं। चुकन्दर का पौधा दीर्घ प्रकाशपेक्षी  होता है। छत्तीसगढ़ के पहाड़ी-पठारी क्षेत्रो में चुकंदर की अच्छी फसल ली जा सकती है। मैदानी क्षेत्रो में भी अगेती फसल बेहतर हो सकती है।  यह द्विवर्षीय फसल है। पहली वर्ष में जड़ों का विकास होता है तथा दूसरे वर्ष बीज तैयार होते हैं।

भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी

    उचित जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मृदाएँ  चुकन्दर ख्¨ती के लिए अच्छी रहती हैं। भारी चिकनी मृदाओं  में भी चुकन्दर की खेती की जा सकती है, परन्तु खुदाई के समय जड़ों की मिट्टी की सफाई करने में कठिनाई होती है। चुकन्दर की खेती लवणीय मृदाओं में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है परन्तु  अम्लीय मृदायें इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त रहती है।
    चुकन्दर के पौधे में मूसला जड़ें  निकलती है। अतः जड़ों के पूर्ण विकास के लिए खेत की तैयारी अच्छी प्रकार से करनी चाहिए। खरीफ की फसल की कटाई के उपरान्त एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 - 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते है। प्रत्येक जुताई के बाद भूमि को भुरभुरा व समतल कर लेना आवश्यक है।

उन्नत किस्में

चुकन्दर की विदेशी किस्में: मेरीबो मेरोकपोली व मेरीबो मेगनापोल बहुगुणित प्रकार की किस्में है। रोमांस कावा - 06 एक द्विगुणीय  किस्म है। यूएस.75, यूएसएच.-9, ट्राईबेल, कावेमेगापोली आदि अन्य उन्नत किस्में है।
भारतीय किस्में: पन्त एस. 1, पन्त कम्पोजिट - 1, पन्त कम्पोजिट - 3, पन्त कम्पोजिट - 6 आई. आई. एस. आर. कम्पोजिट - 1 आदि। लवणीय क्षेत्रों के लिए पन्त एस - 1 तथा आई. आई. एस. आर. कम्पोजिट - 1 उपयुक्त पाई गई है।

बोआई का समय

    सामान्यतया चुकन्दर की बोआई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक की जाती है। देर से बोआई करने पर उपज में भारी कमी आ जाती है।

बीज एवं बोआई

    खरीफ की प्रमुख फसलें जैसे-मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, सोयाबीन आदि के बाद चुकन्दर की खेती की जा सकती है। गेहूँ के साथ अप्रैल में इस फसल की कटाई हो जाती है। रोग प्रकोप से बचने के लिए चुकन्दर को 2 - 3 वर्ष के फसल चक्र में एक बार ही बोना चाहिए। चुकन्दर को मिश्रित फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है। शरदकालीन गन्ने में दो पंक्तियों के बीच एक पंक्ति चुकन्दर की उगा सकते है। इस प्रकार एक ही खेत में एक समय में शर्करा वाली दो फसलें उगाकर प्रति इकाई शर्करा का उत्पादन बढ़ाया जा सकता हैै।
    बीज की मात्रा बोआई के समय, मृदा में नमी की मात्रा, बोने की विधि तथा किस्म पर निर्भर करती है। एक अंकुर वाली किस्मों के लिए 5 - 6 किग्रा. तथा बहु अंकुर वाली किस्मों के लिए 8 - 10 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। बुआई से पूर्व बीजों को 0.25 प्रतिशत एगलाल या एरेटान के घोल में रात भर भिगों देना चाहिए जिससे बीज अंकुरण अच्छा होता है और फफुँद जनित भी नहीं लगते है।

बोआई की विधियाँ    

    चुकन्दर की बोआई समतल खेत में या 15 सेमी. ऊँची मेड़ों पर की जाती है। देशी हल से 50 सेमी. की दूरी पर कूँड़ बना लिये जाते है। इनमें 10 - 20 सेमी. के अन्तर पर बीजों की बोआई की जाती है। बोने के बाद कूँड़ों को अच्छी प्रकार हल्की मिट्टी से ढँक देना चाहिए। नमी की कमी होने पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए। मेड़ों पर बुआई करने से जड़ों के उचित विकास के कारण अधिक उपज प्राप्त होती है। गन्ने या आलू की खेती की तरह इसके लिए मेड़ बनाई जाती है। मेड़ की ऊपरी सतह समतल व भुरभुरी होने से बीज समान गहराई पर बोया जा सकता है जिससे अकुरण अच्छा होता है। मेड़ की ऊचाई 10 - 12 सेमी. रखनी चाहिए। चुकन्दर का बीज 2 - 3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए प्रति हेक्टेयर 80,000 से 100,000 पौधे होना आवश्यक है।

सही पोषण का रखे ख्याल

    पोधों की उचित बढवार और जड़ो के विकास के लिए पोषक तत्वों का प्रबंधन निहायत जरूरी होता है। चुकन्दर की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए बुआई से 15 दिन पूर्व 10 - 12 टन गोबर की खाद  खेत में देना चाहिए। इसके अलावा 120 किग्रा. नत्रजन, 60 - 80 किग्रा. स्फुर तथा 40 - 60 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा को दो बराबर भागों में बाँटकर बुआई के 30 दिन बाद और तीन माह बाद देना चाहिए। मृदा में जस्ता, मैंग्नीज व बोरोन की कमी होने पर आवश्यकतानुसार इनकी पूर्ति करना चाहिए। बोरोन की कमी से पौधों का ऊपरी भाग पीला पड़ने लगता है तथा बीच की नई पत्तियाँ मर जाती है। जड़ को काटने पर ऊपरी भाग खोखला निकलता है तथा जड़ों का रंग  कत्थई हो जाता है। इस रोग को हर्ट शेड  कहते है। चुकन्दर में अधिक मात्रा में नत्रजन देने से शर्करा की मात्रा में कमी आती है तथा ऐसी जड़ों से चीनी बनाने में कठिनाई होती है। अधिक नत्रजन से जड़ों में कुछ ऐसे नत्रजन युक्त पदार्थ एकत्रित हो जाते है जो जड़ों से शर्करा निस्सारण  में बाधा डालते है। नत्रजन की कमी होने पर पौधों की बढ़वार रूकती है तथा उपज में भारी गिरावट आती है।

समय पर करें  सिंचाई

    चुकन्दर एक भूमिगत फसल है, अतः कंदों के विकास के लिए खेत में नमी बनाएँ रखनाजरूरी होता है।  सिंचाइयों की संख्या सर्दियों की वर्षा व मौसम पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर पहली दो सिंचाइयाँ बुआई के 15 - 20 दिन के अन्तर पर की जानी चाहिए। इसके बाद फसल की कटाई तक 20 - 25 दिन के अन्तराल पर सिंचाइयाँ करते है। चुकन्दर में पत्तियों के विकास तथा जड़ों के निर्माण  के समय मृदा में नमी  की कमी नहीं होना चाहिए । खेत से जल निकासी का उचित प्रबन्ध होना भी आवश्यक है। खुदाई के समय भूमि में कम नमी रखने से जड़ों में सुक्रोज की मात्रा बढ़ती है।

खरपतवार नियंत्रण

                  चुकन्दर की फसल को आरम्भ के दो माह तक खरपतवारों से मुक्त  रखना आवश्यक है। बुआई के 30 दिन बाद पहली निकाई - गुड़ाई तथा 55 दिन बाद दूसरी निकाई - गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पाइरेमीन 3 किग्रा. प्रति हेक्टेयर को 600 - 800 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से  खरपतवार  नियंत्रण में रहते है। बिटेनाल 2 किग्रा. प्रति हेक्टेयर 600 - 1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 25 - 30 दिन बाद छिड़काव करने से भी खरपतवार नियंत्रित रहते है। चुकन्दर की फसल में अंतिम टाप ड्रेसिंग करने के बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना भी आवश्यक रहता है ।

पौधों की छँटनी आवश्यक

             आमतौर पर चुकन्दर की बहु-अंकुर   किस्म के बीज से एक से अधिक पौधे निकलते है। अतः खेत में पौधे की वांछित संख्या रखने के लिए अंकुरण के लगभग 30 दिन बाद पौधों की छँटाई करना आवश्यक होता है। पौधों की छँटाई इस प्रकार करना चाहिए जिससे कतारों में पौधे-से-पौधे की दूरी 20-25 सेमी. रह जाए और एक स्थान पर केवल एक पौधा  स्थापित हो  जाए।

चुकन्दर की खुदाई और उपज 

             सामान्यतौर  पर चुकन्दर की फसल बुआई के 5 - 6 माह में पककर तैयार हो जाती है। पकने पर पत्तियाँ सूख जाती हैं। फसल की खुदाई के 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए। खुदाई के लिए फसल की दो कतारों  के बीच देशी हल चलाकर मेड़ियों को उखाड़ दिया जाता है और चुकन्दर की जड़ों को निकाल लिया जाता है। खुदाई के बाद चुकन्दर की पत्तियाँ काट दी जाती हैं। ऊपर की पत्तियाँ पशुओं के खिलाने के काम में ला सकते हैं। चुकन्दर  की पत्तियों में आक्जेलिक अम्ल काफी मात्रा में पाया जाता है। जड़ों से चिपकी मिट्टी को पानी से साफ नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे जड़ों में तेजी से विकृति आने लगती है।  खुदाई के बाद जड़ों का संग्रह ठन्डे छाया दार स्थान  पर करना चाहिए ।

              नवीन सस्य तकनीक से चुकन्दर की खेती  करने पर ओसतन  500 - 700 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है। इसकी जड़ों में चीनी की मात्रा 13 - 17 प्रतिशत तक होती हैं । चुकन्दर की जड़ों का रस केवल निर्वात पैन निष्कर्षक  द्वारा निकाला जा सकता है। चुकन्दर की जड़ों से शर्करा डिफ्यूजन विधि  द्वारा निकाली जाती है।

ताकि सनद रहे: कुछ शरारती तत्व मेरे ब्लॉग से लेख को डाउनलोड कर (चोरी कर) बिभिन्न पत्र पत्रिकाओ और इन्टरनेट वेबसाइट पर अपने नाम से प्रकाशित करवा रहे है।  यह निंदिनिय, अशोभनीय व विधि विरुद्ध कृत्य है। ऐसा करना ही है तो मेरा (लेखक) और ब्लॉग का नाम साभार देने में शर्म नहीं करें।तत्संबधी सुचना से मुझे मेरे मेल आईडी पर अवगत कराना ना भूले। मेरा मकसद कृषि विज्ञानं की उपलब्धियो को खेत-किसान और कृषि उत्थान में संलग्न तमाम कृषि अमले और छात्र-छात्राओं तक पहुँचाना है जिससे भारतीय कृषि को विश्व में प्रतिष्ठित किया जा सके।

 

कोई टिप्पणी नहीं: