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सोमवार, 5 जून 2023

प्लास्टिक कुप्रबंधन से उपजी प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान जरुरी

 विश्व पर्यावरण दिवस-2023 

डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

 

आज हम 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे है. संयुक्त राष्ट्र महासभा (1972) के आव्हान पर वर्ष 1974 से संसार के सभी देश प्रति वर्ष  5 जून को  विश्व पर्यावरण दिवस  के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण से संबंधित जन जागरूकता अभियान  संचालित करते आ रहे है. इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस-2023 के मुख्य विषय के रूप में प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान (बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन) रखा गया है, जो प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से उत्पन्न दुष्प्रभावों से मानव सभ्यता को बचाने के लिए एक विश्वव्यापी अभियान है आज से 115 वर्ष पूर्व बेल्जियम के रसायनज्ञ  श्रीमान लियो हेंड्रिक बैकलैंड द्वारा ईजाद किया गया प्लास्टिक आधुनिक युग में समूची मानव सभ्यता के लिए वरदान  साबित हुआ और आज विश्व के सभी देशों में जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक ने महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर लिया है.  वर्तमान समय में  जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है और दिनों दिन प्लास्टिक उत्पादों की मांग निरंतर बढती जा रही है  

यह  कड़वा सच है कि प्लास्टिक के बिना वर्तमान मानव आबादी की जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता है अर्थात इसके बिना सुखद जीवन यापन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । कृषि क्षेत्र को समोंनत बनाने  में प्लास्टिक का महत्वपूर्ण योगदान है आज बूँद-बूँद सिंचाई, प्लास्टिक मल्च, अन्न भंडारण अथवा कृषि उत्पादों की पैकिंग, खाद्य प्रसंस्करण एवं फ़ूड पैकेजिंग  बिना प्लास्टिक के असंभव है इसलिए प्लास्टिक के उपयोग को नाकारा नहीं जा सकता है

इस प्रकार हम कह सकते है कि प्लास्टिक के उपयोग से नहीं बल्कि प्लास्टिक उत्पादों के गैर जिम्मेदारना निष्पादन अर्थात कुप्रबंधन  से  ही प्रदूषण (मृदा एवं जल प्रदुषण) की समस्या उत्पन्न हुई है, जो हमारे पर्यावरण और मानव समाज के लिए अभिशाप बनती जा रही है  प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के लिए सरकार नहीं हम खुद ही जिम्मेदार हैं। क्योंकि इसका उपयोग कर हम ही यत्र-तत्र फैंक देते है, जो उड़कर नालियों को जाम करता है सडक या गलियों में भोज्य पदार्थों में इस्तेमाल की गई पॉलीथिन  जानवर खाकर बीमार हो जाते है अथवा मर भी जाते है. बरसात में नदी-नालों में प्लास्टिक बहकर समुद्र को भी प्रदूषित कर रही है, जिससे समुद्री जीव जंतुओं का जीवन भी संकट में आ गया है दरअसल भारत ही नहीं बल्कि समूची दुनिया में प्लास्टिक के उपयोग से ही नहीं इसके कुप्रबन्धन के कारण प्लस्टिक प्रदूषण की समस्या बढती जा रही है प्लास्टिक का उपयोग करो और फेंकों (यूज एंड थ्रो) की हमारी  प्रवृति ने हमारी धरती, जल और वायू को प्रदूषित करने का कार्य किया है प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने के लिए हम सब को मिलकर  यूज एंड थ्रो की प्रवृति पर तत्काल रोक लगाने के साथ-साथ प्लास्टिक के उपयोग को भी सीमित करना होगा   

वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की रिपोर्ट  मुताबिक अकेले भारत में प्रति वर्ष 56 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है। पूरी दुनिया द्वारा  जितना कूड़ा सालाना समुद्र में प्रवाहित किया जाता है उसका 60 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत  द्वारा प्रवाहित किया जा रहा है। भारतीय प्रति दिन 15000 टन प्लास्टिक कचरें में फेंकते हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित प्लास्टिक कचरे में से सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा सिंगल यूज प्लास्टिक का ही होता है और ऐसे प्लास्टिक में से केवल 20 फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है, करीब 39 फीसदी प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबा  दिया जाता है, जिससे मृदा प्रदूषित होने के साथ-साथ गैर उपजाऊ होती जा रही है यह  कृषि भूमि और जैव विविधिता के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है क्योंकि प्लास्टिक को अपघटित होने में 450 से 1000 वर्ष लग जाते हैं।  कुल प्लास्टिक का अमूमन  15 फीसदी  हिस्सा जलाकर नष्ट किया जाता है, जो पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है क्योंकि प्लास्टिक को जलाने की प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोक्साइड तथा कार्बन डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वातावरण में उत्सर्जित हो रही है, जो मानव में  फेफड़ों के कैंसर व हृदय रोगों सहित कई बीमारियों का कारण बन रही हैं। एक किलो प्लास्टिक कचरा जलाने पर तीन किलो कार्बन डाईऑक्साइड गैस निकलती है,  जो न केवल ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने का कारण बन रही है

पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम और आप भले ही  प्लास्टिक एवं इससे बने उत्पादों के उपयोग से उत्पन्न समस्याओं पर कितना भी चिंतन-मथन कर लें और इनका उपयोग न करने का संकल्प ले लेवें  अथवा हमारी सरकारें प्लास्टिक के उपयोग पर कितने भी प्रतिबंध लगा ले, लेकिन सच्चाई तो यही है कि बगैर किसी व्यवहारिक विकल्प के  प्लास्टिक को जन जीवन की दिनचर्या से दूर नहीं किया जा सकता है। वास्तव में प्लास्टिक उत्पादों के उचित रख रखाव और कुशल प्रबंधन के अभाव में ही प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। अतः पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्लास्टिक अपशिष्ट के हानिकारक प्रभावों को कम करने हेतु  प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन/निष्पादन की समुचित  व्यवस्था करना जरुरी है।

प्लास्टिक प्रदूषण को परास्त करने के लिए हमे चार आर (4 R) नियमों  अर्थात रिफ्यूज (इस्तेमाल न करना), रेड्युस (कम करना), रीयूज (पुनः उपयोग करना) और रीसायकल (पुनर्चक्रण करना) का पालन करना होगा । इसमें से पहले तीन नियम रेफ्यूज, रिड्यूज  और री-यूज करना हम सब और हमारे परिवार की जिम्मेदारी होना चाहिए. घर-घर से तथा गलियों से प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रहण करने की जवाबदेही नगर निगम एवं ग्राम पंचायतों  की होना चाहिए. भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश के ज्यादातर राज्यों की नगर निकाय यह कार्य कर भी रही है. इस कार्य में और मुस्तैदी लाने की जरुरत है. चौथा आर-रीसाईंकल अर्थात पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक को प्लास्टिक उत्पाद बनाने वालों को सौप दिया जाये और गैर पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक अपशिष्ट सीमेंट इंडस्ट्री में प्रयोग किया जाय अथवा सडक निर्माण जैसे कार्यो में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा  प्लास्टिक बैग, ग्लास, बोतल आदि के उपयोग और फेंकों  (यूज एंड थ्रो) प्रवृति पर लगाम लगाने अथवा पूर्णतः बैन करना भी आवश्यक है

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक  के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की अपील की थी। इसी तारतम्य में  भारत सरकार और  कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक के बैग पर पहले से ही पूरी तरह से रोक लगा रखी है, लेकिन यह काफी नहीं है। कोई भी आंदोलन तभी सफल होता है, जब उसमें जनमन की भागीदारी हो। इसलिए प्लास्टिक  प्रदूषण से मुक्ति अर्थात पर्यावरण में प्लास्टिक के प्रवेश को नियंत्रित करने नगर एवं ग्राम पंचायत स्तर पर प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से बच्चो, महिलाओं एवं बच्चो को  अवगत कराते हुए   प्लास्टिक उपयोग को नकारने, कम करने या पुनः उपयोग करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए  स्वच्छ गाँव-स्वच्छ शहर से ही स्वच्छ भारत की कल्पना साकार हो सकती हैइसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को हर संभव तरीके से अपना सकारात्मक  सहयोग देने का संकल्प लेना चाहिए, तभी हमारा वर्तमान एवं भविष्य सुरक्षित रह सकता है।