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रविवार, 22 मार्च 2020

कोरोना महामारी से डरो ना-जल सरंक्षण करो-ना


कोरोना जैसी महामारी को भगाना है तो जल सरंक्षण अपनाना है 

डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़  

दुनिया भर में कोरोना वायरस ने कोहराम मचा रखा है।  आम हो या ख़ास, हर कोई कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने की जुगत में लगा है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस यानि कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है।  समूची मानवता के लिए खतरे की घंटी बजा रहे कोरोना वायरस की महामारी से बचने के लिए  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)  ने लोगों को बार-बार हाथ धोने की सलाह दी है।  हमारे डॉक्टर भी कोरोना  वायरस से बचने के थोड़ी थोड़ी देर बाद साबुन से हाथ धोने की सलाह दे रहे है, जिससे इस महामारी से निपटने के लिए देश विदेश  में पानी की खपत में कई गुना इजाफा हो गया है । एक बार हाथ धोने पर लगभग 1.5-2 लीटर पानी खर्च होता है और दिन में बार-बार हाथ धोने के लिए प्रति व्यक्ति 15-20 लीटर पानी  की आवश्यकता होगी । इसका मतलब है, पांच सदस्य वाले परिवार को केवल हाथ धोने के लिए 100 लीटर पानी  लगेगा । जब लोगों के पास पीने के लिए  साफ पानी नहीं होगा, तो उनके पास हाथ धोने के लिए और  बीमारी को फैलने से रोकने के लिए स्वस्छ पानी कहाँ से लायेंगे । विश्व स्वास्थ्य संघठन के अनुसार, एक व्यक्ति को अपनी बुनियादी जरूरतें जैसे पीने, खाना पकाने और स्वच्छता को पूरा करने के लिए प्रत्येक दिन 7.5 से 17  लीटर पानी की आवश्यकता होती है। लेकिन, कोविड-19 से निपटने में जल की आवश्यकता बढती जा रही है । एक रिपोर्ट के अनुसार, तीन अरब लोगों के पास बुनियादी रूप से हाथ धोने के लिए जल की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। क्लाईमेट ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 17 देश अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें पहले 12 मध्य-पूर्व तथा अफ्रीका के हैं तथा 13वां स्थान भारत का है। कोविड-19  के संक्रमण का मामला चीन, इटली, स्पेन, अमेरिका और यूरोप के बाद अब जल की कमी वाले देशों भारत आदि में भी पैर पसार चूका है।   आज हम सबको सबक लेने की जरुरत है कि कोरोना जैसी  महामारी से बचने के लिए पानी कितना कारगर साबित हो रहा है लेकिन दुनिया में तीन अरब लोगों के पास बार-बार हाथ धोने के लिए पानी की उपलब्धता नहीं है। हमारे देश के 60 करोड़ लोग गंभीर पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। एक आंकलन के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण से दोगुनी हो जाएगी। देश के  नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक दूषित जल हर साल 1.75 लाख लोगों की जान ले रहा है। किसी भी महामारी के दौरान लोगों को शुद्ध जल न मिलना उन्हें आसानी से काल के गाल में धकेल देता है। 
जल की महिमा
मनुष्य सहित पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतु एवं वनस्पतियों का जीवन जल पर निर्भर है. जल जीवन के लिए अमृत है. जल की महिमा का बखान और जल से प्रार्थना करते हुए ऋग्वेद में कहा गया है कि " इदमाप: प्र वहत यत् किं च दुरितं मयि, यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वा शेष उतानृतम्”. हे जल देवता ! मुझसे जो भी पाप हुआ हो, उसे तुम दूर बहा दो अथवा मुझसे जो भी द्रोह हुआ हो, मेरे किसी कृत्य से किसी को पीड़ा हुई हो अथवा मैंने किसी को गालियाँ दी हों, अथवा असत्य भाषण किया हो, तो वह सब भी दूर बहा दो. जल पर ही मनुष्य का जीवन, प्रकृति और जीव-जंतु निर्भर हैं। जल धरती पर सबसे महत्व पूर्ण पदार्थ है। पेड़-पौधों, जानवरों, मनुष्य के पास जीवित रहने के लिए जल का होना अति आवश्यक है। अगर जल न हो तो धरती पर जीवन संभव नहीं है। आज पानी का मूल्य बदल गया है और जल एक महत्वपूर्ण व मूल्यवान वस्तु बन चूका है।  एक आदमी खाने के बिना कई दिनों तक जिन्दा रह सकता है परन्तु जल के बिना वह ज्यादा दिन तक जिन्दा नहीं रह सकता है. जल के बिना पेड़-पौधे और जीव जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। 

विश्व जल दिवस की सार्थकता

विश्व जल दिवस-2020  फोटो साभार गूगल 
सयुंक्त राष्ट्र के आवाहन पर 1993 से प्रति वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है इस दिवस का उद्देश्य विश्व के सभी विकसित देशों में स्वस्छ, सुरक्षित जल की उपलब्धतता सुनिश्चित करवाना है और जनमानस में जल सरंक्षण के महत्त्व पर ध्यान केन्द्रित करना है। दुर्भाग्य से कोरोना वायरस-19 की महामारी के संक्रमण से भयभीत विश्व समुदाय की आँखों से इस वर्ष का  "विश्व जल दिवस' ओझल सा हो गया। यह एक ऐतिहासिक त्रासदी है जिससे पूरी दुनिया एकजुटता से लड़ रही है।   इस वर्ष विश्व जल दिवस-2020 की थीम है 'जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावयानी लोगों को यह जागरूक करना है कि, जलवायु परिवर्तन का किस तरह से जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ रहा है।आज हम जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस भी कर सकते हैं।भारत में वर्तमान में प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता 2,000 घनमीटर है लेकिन यदि परिस्थितियाँ इसी प्रकार रहीं तो अगले 20-25 वर्षों में जल की यह उपलब्धता घटकर 1,500 घनमीटर रह जायेगी जल की उपलब्धता का 1,680 घनमीटर से कम रह जाने का अर्थ है पीने के पानी से लेकर अन्य दैनिक उपयोग तक के लिए जल की कमी हो जाना। सिंचाई के लिए पानी की कमीं से खाध्य संकट भी उत्पन्न हो जायेगा । जलवायु परिवर्तन के साथ अनावृष्टि (सूखा और अकाल), जंगलों में आग, जल की गुणवत्ता में गिरावट तो कही अतिवृष्टि के कारण बाढ़ की बिभिषिका का सामना करना पड़ रहा है इसके अलावा जलवायु परिवर्तन से  आम लोगों के स्वास्थ्य और उनकी उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पानी के वर्तमान जल स्तर में  20 प्रतिशत गिरावट के लिये जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण है। विश्व मौसम संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ते उत्सर्जनों के कारण इस सदी में धरती के ताप में 1.4 डिग्री सेंटीग्रेड से 5.8 डिग्री सेंटीग्रेड ताप की वृद्धि अवश्यंभावी है। जलवायु परिवर्तन के कारण आहिस्ता-आहिस्ता ग्लेशियरों द्वारा जल की आपूर्ति में भी कमी आती जा रही है। जिसके फलस्वरूप नदियों में जल स्तर प्राय कम होता चला जा रहा है। जलवायु में तीव्र बदलाव से सूखा, बाढ़, तूफान आदि कि भयावर स्थिति पैदा हो गई है और आईपीसीसी 2007 कि रिपोर्ट के अनुसार औसत वैश्विक समुद्र जल स्तर में लगभग 18 सेमी से 140 सेमी कि वृद्धि संभावित है जिससे तटीय शहरों के डूबने की आशंका है. जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर कुप्रभाव के अलावा फसल उत्पादन, मानव स्वास्थ्य और आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं अल्प वर्षा तो कही अति वृष्टि और ओला से फसलोत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है खाद्यानों, तिलहन, रेशा, मीठाकारकों,फल-फूल, सब्जियों और औषधीय वनस्पतियों के उत्पादन में जल संसाधनों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। भारत में कुल उपलब्ध जल का 84 प्रतिशत खेती में, 12 प्रतिशत उद्योगों में और 4 प्रतिशत घरेलू कामों में उपयोग होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलकर कम होते जा रहे हैं अतः सिंचाई हेतु सतही जल का विस्तार करना कठिन है। ऐसी परिस्थिति में, विशाल कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए भूजल दोहन ही एक मात्र विकल्प बच जाता है जिसके फलस्वरूप देश के अधिकतर हिस्सों में भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है। वर्षा की अनियमितता और अनिश्चितता, जलवायु परिवर्तन की समस्या को और प्रज्ज्वलित कर रही है। चीन और अमेरिका की तुलना में भारतीय किसान एक इकाई फसल पर दो से चार गुना अधिक जल उपयोग करते हैं। देश की लगभग 55 प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई के साधन नहीं हैं, जहाँ प्रति इकाई फसल उत्पादकता बहुत कम है । भूजल का लगभग 60 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। हमारे देश में लगभग 80 प्रतिशत घरेलू जल आपूर्ति भूजल से ही होती है। इससे भूजल का स्तर लगातार घटता जा रहा है। अतः जल की अनावश्यक बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया और जल सरंक्षण हेतु जरुरी कदम नहीं उठाये गए तो आगामी समय में सिंचाई की लिए और अन्य प्रयोजनों के लिए  आवश्यक जल का संकट निश्चित है। दरअसल प्रकृति से खिलवाड़ करने के फलस्वरूप उपजे जलवायु परिवर्तन के कारण कोरोना वायरस जैसी महामारी फैल रही है।  आज 22 मार्च 2020 विश्व जल दिवस के अवसर पर हम सबको  मिलकर जल की बर्बादी रोकने और  जल को सहेजने का  संकल्प लेना  होगा तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा की देश में  उपलब्ध सभी  जल स्त्रोतों के पुनर्भरण  और  कुशल जल प्रबंधन के लिए उसी गंभीरता से यथोचित कदम उठाएंगे  जितना हम अभी कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के खिलाफ देश को सुरक्षित करने के लिए उठा रहे है। 

जल का नहीं सही जल प्रबंधन का अकाल
प्रकृति द्वारा हमें पर्याप्त मात्रा में जल निःशुल्क प्राप्त होता है परन्तु जल के उपव्यय और भूगर्भीय जल के अतिदोहन तथा जल के कुप्रबंधन कारण दिन प्रति दिन  जल संकट गहराता जा रहा है।  पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल से घिरा हुआ है, 29 फीसदी भाग पर स्थल है। इस 29 प्रतिशत क्षेत्र पर ही इंसान और दूसरे प्राणी रहते हैं। पृथ्वी पर कुल उपलब्ध जल लगभग 01 अरब 36 करोड़ 60 लाख घन किमी. है, परंतु उसमें से 96.5 प्रतिशत पानी समुद्र में पाया जाता है, लेकिन खारा होने के कारण इस पानी को पीने के लिए और सिंचाई में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। शेष 3.5 प्रतिशत पानी ही हमारे लिए उपयोगी है जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, इसलिए हमें इस उपलब्ध जल को बचाना चाहिए। इसकी एक बूंद बूंद बहुत कीमती है, इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए। मौजूदा जल संसाधनों में से सर्वाधिक हिस्सा कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जाता है. सिंचाई में जल दुरूपयोग रोकना आवश्यक है।  देश के किसानों की अधिक पानी अधिक उपज की धारणा को बदलना होगा क्योंकि फसलोत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-20 प्रतिशत होता है. फसल के लिए भरपूर पानी का तात्पर्य मिट्टी में पर्याप्त नमीं बनाये रखना होता है परन्तु वर्तमान में नहरी क्षेत्र के किसान सिंचाई का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे है।  भूगर्भीय जल की आखिरी बूँद को खीचने की कवायद बदस्तूर जारी है. इस प्रवृति को तत्काल रोका जाना चाहिए. उपलब्ध जल के किफायती उपयोग के लिए सिंचाई की बूँद-बूँद पद्धति और फव्वारा तकनीक, नाली-मेंड़ विधि से सिंचाई, एकांतर कतार विधि से सिंचाई तरकीबों से जल की बचत कर अधिक क्षेत्र में सिंचाई कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।  फसलों में जीवन रक्षक या पूरक सिंचाई देकर दोगुना उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।  सतत जल आपूर्ति के लिए भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है।  प्रकृति प्रदत्त वर्षा जल का सरंक्षण किया जाना बेहद जरुरी है।  किसानों को गाँव का पानी गाँव में तथा खेत का पानी खेत में सरंक्षित करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।  ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ें तालाबों का निर्माण और उनके रखरखाव हेतु जरुरी कदम उठाए जाने चाहिए तक वर्षा जल का अधिकतम सरंक्षण किया जा सकें. इसके अलावा अत्यधिक जल दोहन रोकने के लिए कड़े कानून बनाकर उनका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।  शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। देश की नदियों को परस्पर जोड़ने की कवायद को सफल बनाना होगा जिससे हमारी नदियों में वर्ष भर जल का प्रबाह कायम हो सकें। उपलब्ध जल का कुशल उपयोग तथा वर्षा जल सरंक्षण तकनीकों को अपनाने से जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न जल संकट की समस्या का कुछ हद तक निराकरण कर मानवता की रक्षा की जा सकती है। 
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