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बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

खरपतवारों पर काबू पायें रबी फसलों की उपज बढ़ाएं

                                                           डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर 
प्राध्यापक,सस्यविज्ञान
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,  
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

भारत  में खरीफ, रबी और  जायद  मौसमों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए नाना  प्रकार की फसलों  की खेती की जाती है लेकिन उनकी उत्पादकता विकसित देशों की तुलना से काफी कम है । फसलोत्पादन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों  यथा वर्षा जल, तापक्रम, आद्रता, प्रकाश आदि के अलावा  जैविक कारकों जैसे  कीट, रोग व खरपतवार प्रकोप  से फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । इन कारकों में से खरपतवारों  द्वारा सभी फसलों को सर्वाधिक नुकसान होता है । विभिन्न शोध परीक्षणों  से पता चला है कि  खरपतवार प्रकोप से रबी फसलों की पैदावार में 15-60 प्रतिशत तक की हांनि होती है, जिससे किसान भाइयों को भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ता है । प्रायः यह देखा गया है कीट-रोग प्रकोप होने पर उसके निदान  की ओर तो तुरंत ध्यान दिया जाता है परन्तु किसान भाई खरपतवारों को तब तक बढ़ने देते है जब तक हाथ से पकड़कर उखाड़ने योग्य न हो जाए।  उस समय तक खरपतवार फसल को ढंककर काफी नुक्सान कर चुके होते है। एक आकलन के  अनुसार देश में खरपतवारों  से लगभग 37 हजार करोड़ रूपये की सालाना हांनि हो जाती  है। इसलिए सही समय पर  खरपतवारों पर काबू पा लिया जावे तो  खाद्यान्न के लगभग एक तिहाई हिस्से को  नष्ट होने से बचा कर देश की खाद्यान्न सुरक्षा को  मजबूत किया जा सकता है ।
खरपतवार वे अवांक्षित पौधे होते है जो बिना बोये स्वतः उग कर फसल की वृध्दि और विकास को प्रभावित करते है। खेत में खरपतवार फसल के  साथ पोषक तत्वों, हवा, पानी और  प्रकाश के  लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिसके परिणामस्वरूप फसल उपज की मात्रा एवं  गुणवत्ता में भारी गिरावट होती है । रबी फसलों के साथ  उगने वाले प्रमुख खरपतवारों  को तीन वर्गों  में विभाजित किया गया है :
(अ) चौड़ी  पत्ती वाले खरपतवारः ये द्विबीज पत्रिय पौधे होते है जिनकी पत्तियां प्रायः चौड़ी होती है जैसे  बथुआ (चिनोपोडियम  एल्बम), कृष्णनील (एनागेलिस आरवेंसिस), जंगली पालक (रूमेक्स डेन्टाटस), हिरनखुरी(कन्वावुलस  आर्वेंसिस), सफ़ेद  सेंजी (मेलीलोटस  एल्बा), पीली सेंजी (मेलीलोटस  इंडिका) जंगली रिजका (मेडीकागो डेन्टीकुलाटा), अकरा-अकरी (विसिया प्रजाति), जंगली गाजर (फ्यूमेरिया पारविफ़्लोरा), चटरी-मटरी (लेथाइरस अफाका)सत्यानाशी (आरजीमोन  मेक्सिकाना) आदि ।
(ब) संकरी पत्ती अथवा घास कुल के  खरपतवारः ये एक बीज पत्रिय पौधे होते है जिनकी पत्तियां पतली और लम्बी होती है जैसे गेहूंसा या गुल्ली डण्डा (फेलेरिस माइनर), जंगली जई (एवीना फतुआ),दूबघास (साइनोडान  डेक्टीलोन) आदि ।
(स) मोथा  कुल के  खरपतवारः इस समूह के खरपतवारों की पत्तियां लम्बी होती है और इनकी जड़ों में गांठे (राईजोम) पाई जाती है जैसे मौथा  (साइप्रस प्रजाति ) आदि । 
खरपतवारों से फसल को नुकसान 
खरपतवार फसलों  के  साथ उगकर भूमि में उपलब्ध पोषक तत्व तथा प्रयोग  किये गये खाद-उर्वरक का एक तिहाई हिस्सा अकेले  ही ग्रहण कर लेते है । इसके  अलावा मृदा में उपलब्ध नमी को  खरपतवार तेजी से अवशोषित  कर लेते है । इसकी वजह से  फसलों के लिए आवश्यक पोषक  तत्व और  नमीं की कमी आ जाती है जिससे फसल बढ़वार,उपज  और फसल उत्पाद की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अनियंत्रित खरपतवारों से रॉबिन फसलों की उपज में  संभावित कमीं को सारिणी-1 में दर्शाया गया है। खरपतवार फसल के लिए अपरिहार्य  स्थान तथा  प्रकाश से भी वंचित रखते है । इसके  अतिरिक्त खरपतवार हांनिकारक कीट-रोगों के जीवाणुओं को  भी आश्रय प्रदान करते है । अतः उन्नत किस्म के  बीज, खाद एवं उर्वरकों के  संतुलित उपयोग, समसामयिक सिंचाई, कीट-रोग  प्रबंधन के  अलावा समय पर  खरपतवार नियंत्रण करना भी निहायत जरुरी है । 
सही समय पर जरूरी है खरपतवारों का  नियंत्रण
रबी फसलों से प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए  इन फसलों की बुआई से लेकर प्रारंभिक 25-30 दिन तक की अवस्था तक खेत को  खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक रहता है। दरअसल प्रारंभिक अवस्था में फसल के पौधे खरपतवारों की वृद्धि  दर से मुकाबला नहीं कर सकते है।  इसलिए खेत को प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक रहता है। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है की फसल को हमेशा न  खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है और ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है।  अतः फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था  (यह फसलों का वह समय अंतराल है जिसमे फसल को खरपतवारों से अधिक नुकसान होता है- सारिणी-1) में खरपतवारों को काबू में रखना अति आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन में भारी क्षति होने की सम्भावना रहती है।  
सारिणी 1. रबी फसलों  की उपज में खरपतवारों द्वारा हांनि एवं फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय
रबी फसलें 
उपज में संभावित कमीं (%)
फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय (बुवाई के बाद दिन)
गेंहू 
20-40
30-45
जौ 
10-30
15-45
रबी मक्का 
20-40
30-45
चना 
15-25
30-60
मटर 
20-30
30-45
मसूर 
20-30
30-60
राई-सरसों 
15-40 
15-30 
सूर्यमुखी 
30-45 
33-50 
कुसुम (करडी)
15-45 
35-60 
अलसी 
20-40
30-40 
गन्ना 
20-30
30-120
आलू 
30-60
20-40
गाजर 
70-80
15-20
प्याज व लहसुन 
60-70
30-75
मिर्च व टमाटर 
40-70
30-45
बैंगन 
30-50
20-60

नेपसेक स्प्रेयर फोटो साभार गूगल
रबी की प्रमुख फसलों  में खरपतवार नियंत्रण
परंपरागत रूप से खरपतवार नियंत्रण के  लिए निंदाई, गुड़ाई ही कारगर विधि मानी जाती थी । परन्तु प्रतिकूल मौसम  जैसे लगातार वर्षा अथवा मजदूर  न मिलने के  कारण यांत्रिक या सस्यविधियों  से खरपतवार नियंत्रण कठिन होता  जा रहा है । इन विषम  परिस्थितियों  में सीमित लागत तथा कम समय में अधिक क्षेत्रफल में फसल के  इन दुश्मनों  पर नियंत्रण पाने के  लिए रासायनिक विधियाँ कारगर साबित हो रही है । खरपतवारनाशियों के प्रयोग  से खरपतवार उगते ही नष्ट हो  जाते है जिससे उनकी पुर्नवृद्धि, फूल व बीज विकास रूक जाता है । यदि इन रसायनों को उचित मात्रा एवं सही समय  किया जाए तो खरपतवारों को आसानी से  नियंत्रित किया जा सकता है और फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता है।  खरपतवार नाशी या शाकनाशियों का चुनाव खरपतवारों के प्रकार एवं समय के आधार पर करना चाहिए। यहाँ पर यह भी ध्यान में रखना है कि  शाकनाशी रसायन के  सभी प्रकार  खरपतवारों को नष्ट  जा सकता है।  इसलिए इनके प्रभावी नियंत्रण के लिए दो या इससे अधिक  मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

सारिणी 2.  गेंहू फसल   में रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारनाशी का

रासायनिक नाम
खरपतवारनाशी का व्यपारिक नाम
प्रयोग दर  (सक्रिय तत्व/व्यापारिक दर प्रति हेक्टेयर)
प्रयोग का  समय
नियंत्रित खरपतवार का प्रकार  
मेटस्लफयूरोन मिथाइल 20% डब्ल्यू पी
आलग्रिप
4 ग्रा. सक्रिय तत्व (20-30 ग्राम)
बुआई के 25-30
की अवस्था पर
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पेन्डिमेथालिन 30 र्इ.सी. (स्टाम्प) 
स्टाम्प
796 मिली. सक्रिय तत्व  (1750 मिली.)
बुआई के तुरन्त बाद
चौड़ी पत्ती और सकरी पत्ती वाले खरपतवार ।
मैट्रीब्युजिन 70 % डब्ल्यू पी
सेंकार, टाटा मैट्री
175-210 ग्रा. सक्रिय तत्व (250-300 ग्रा.)
बुआई के 30-35 दिन बाद
सकरी एवं चौड़ी  पत्ती वाले खरपतवार
कारफेट्राजोन 40 डी.एफ.
एफीनिटी
20 ग्रा. सक्रिय तत्व (50 ग्राम)
बुआई के 25-30
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
क्लोडीनोपोप 15 डव्लू पी
टोपिक
60 ग्रा ए.आई /हे
(400 ग्राम/हे)
बुआई के 25-30
सकरी पत्ती वाले खरपतवार
फिनोक्सा प्रोपइथाईल 10 ई.सी
प्यूमासुपर, व्हिप सुपर
80-120 ग्रा सक्रिय तत्व (800-1200  ग्राम/हे )
बुआई के 35-40
सकरी पत्ती वाले.. गेहू और रार्इ के अंतरवर्तीय खेती के लिये उपयुक्त
सल्फोस्लफयूरोन
75% डब्ल्यू जी
लीडर, सफल, फतेह
25 ग्रा. सक्रिय तत्व (33 ग्रा..)
बुआई के 25-30
सकरी पत्ती वाले ए वम कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पीनोक्साडीन  5 या  10 र्इ.सी.
एक्सिल
35-40 ग्राम सक्रिय तत्व (400-800  मिली.)
बुआई के 35-40
सकरी पत्ती वाले खरपतवार
सल्फोसल्फुरोन 75% + मेटासल्फुरोन 5% डब्ल्यू.जी.
 टोटल, टोपेल, बैकेट टिवन
 32 ग्रा./हे सक्रिय तत्व (40 ग्रा /हे )
बोनी के 25-30 दिन बाद
चौड़ी  और संकरी पत्ती वाले
ट्रालकोक्सीडीम 10 ई सी
ग्रास्प
350 ग्रा.ए.आई./हे (3500  मिली/हे )
बोनी के 30 -35  दिन बाद
सकरी पत्ती वाले खरपतवार

नोट: खरपतवार नाशियों की संस्तुत मात्रा को  500  से 600 लीटर पानी (सल्फो सल्फ्यूरान एवं सल्फो सल्फ्यूरान +  मेट सल्फ्यूरान के लिए जल की मात्रा 300-400 लीटर) में घोलकर  प्रति हेक्टेयर की दर से फ़्लैटफैन नोजिल से छिडकाव करना  चाहिए। 
रबी दलहनों में खरपतवार नियंत्रण 
रबी दलहनों में मुख्य रूप से चना, मटर एवं मसूर की खेती की जाती है। इन फसलों में उगने वाले खरपतवारों को निम्न शाकनाशियो के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। 
  • बुआई से पूर्व फ्लूक्लोरेलिन 45 % ई सी  (बासलिन)  2.20 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करके मृदा में मिलाना चाहिए। 
  • बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व पेंडीमिथालिन 30 % ई सी (स्टाम्प) 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें। 
  • मेट्रिब्यूजिन (सेंकर) 500  ग्राम सक्रिय तत्व/हे. बुआई के तुरंत बाद अथवा बुआई के 15-20 दिन बाद केवल मटर में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जा सकता है। 
  • क़्यूजालोफाप (टरगा सुपर) 50 ग्राम सक्रिय तत्व/हे की दर से बुआई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करें।   
रबी तिलहनों में खरपतवार नियंत्रण 
रबी मौसम की तिलहनों में सरसों, तोरिया और अलसी प्रमुख फसलें है। इन फसलों के साथ उगने वाले  चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों में प्याजी, बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी,सत्यानाशी, अकरी प्रमुख है।  संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में गेंहू का मामा, जंगली जई, दूब घांस, मोथा आदि प्रमुख है।  इनके अलावा मोथा का भी प्रकोप बहुतायत में होता है। इन खरपतवारों के  नियंत्रण हेतु अधो लिखित खरपतवारनाशियों में से उपलब्धता के अनुसार 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से सामान रूप से नेपसैक स्प्रेयर में फ़्लैट फैन नोज़ल लगाकर सामान रूप से छिड़काव करना चाहिए। 
  • एलाक्लोर (लासो) 1000-1500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के तुरंत बाद  छिड़ककर मृदा में मिला देना चाहिए। 
  • फ्लूक्लोरेलिन (बासलिन) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के पहले छिड़ककर भूमि में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। 
  • पेंडीमिथालीन (स्टाम्प) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व अथवा क्लोडिनाफाप (टॉपिक) 60 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए। 
  • आइसोप्रोट्यूरॉन (ऐरीलान, धानुलान) 100 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से  बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
  • क़्यूजालोफोप (टरगा सुपर) 40 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से  बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए। 
  • चना + अलसी या चना + सरसों की अंतरवर्ती खेती में खरपतबार नियंत्रण हेतु  पेंडीमिथालीन (स्टाम्प) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
  • गेंहू + सरसों या अलसी + मसूर की  अंतरवर्ती खेती में खरपतबार नियंत्रण हेतु आइसोप्रोट्यूरॉन  1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर  की दर से छिड़काव करना चाहिए। 
गन्ना फसल में खरपतवार नियंत्रण
गन्ना  लगभग पूरे वर्ष भर की फसल है  इसलिए गन्ना फसल में  रबी, खरीफ और जायद ऋतू के खरपतवारो का प्रकोप होता है। गन्ने में खरपतवारों की समस्या  फसल की रोपाई से लेकर खरीफ ऋतु तक अधिक होती है। गन्ने में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था बुआई के बाद 40-70 दिन के बीच होती है। गन्ने की पंक्तियों के बीच खाली  स्थान में गन्ने की सूखी पत्तियों अथवा धान के  पुआल  की 7-12 सेमी. मोटी तह बिछा देने से खरपतवार प्रकोप कम होता है। दो कतारों के मध्य खाली स्थान में कम अवधि और तेजी से बढ़ने वाली फसलों की अंतरवर्ती खेती करने से भी खरपतवार प्रकोप कम होने के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होती  है। गन्ने की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु  खरपतवारों के प्रकार के अनुसार निम्न में से कोई भी उपाय अपनाये जा सकते है।
  • एट्राजिन (एट्राटॉफ) 2.0 -2.5 किग्रा. सक्रिय तत्व (भारी भूमि) तथा  1.0 -1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व (हल्की भूमि) प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़कना चाहिए।
  • मेट्रिब्यूजिन (सेंकार) 1.0 -1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति  हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़काव करने से संकरी पत्ती वाले खरपतवार कम उगते है।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार और मौथा के नियंत्रण हेतु 2,4-डी  1.5 -2.5 किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़कना चाहिए। गन्ने की फसल में अंकुरण के बाद इस रसायन की 1.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर मात्रा प्रयोग करने से चौड़ी  पत्ती वाले खरपतवार जैसे पत्थरचटा, नोनियाछोटा गोखरू आदि नियंत्रित रहते है।
  • डाईयूरान ( एग्रोमेक्स, कारमेक्स) की 2.5 -3.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु अंकुरण  से पहले प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण में रहते है।
  • पैराक्वाट (ग्रेमोक्सोन)  0.5-1.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से  10-20 % गन्ना उगने पर प्रयोग करने से सभी प्रकार के खरपतवारों पर काबू पाया जा सकता है।
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवारों  के नियंत्रण हेतु एलाक्लोर 2.0 -3.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु  अंकुरण से पूर्व प्रयोग करना चाहिए।
आलू की फसल में खरपतवार नियंत्रण
संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु पेंडीमेथालिन 30 % ई सी 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर बुआई के बाद 2-3 दिन के अन्दर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें. मेट्रिब्युजिन 70% डब्ल्यू पी को 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद 20-25 दिन की अवस्था पर 600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।
शाकनाशी रसायन  के प्रयोग में  सावधानियां
  • शाकनाशी रसायनों का प्रयोग सिफारिस गई मात्रा एवं समय  करें। इनके  डिब्बों पर अंकित निर्देशों  का पालन करें । रसायन को कभी भी देखकर या सूंघ  कर पहचान न करें क्योंकि  प्रत्येक शाकनाशी रसायन हाँनिकारक पदार्थ होता है । इन दवाओं को बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  • बुआई से पुर्व या बुआई के तुरंत बाद प्रयोग किये जाने वाले खरपतवार नाशियों का प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमीं होनी चाहिए।
  • हल्की भूमियों में रसायनों की कम मात्रा एवं भारी  भूमि में अधिक मात्रा का प्रयोग करें।  
  • शाकनाशी का प्रयोग तेज हवा रहने पर, अथवा तीव्र धूप के समय भी नहीं करना चाहिए । छिड़काव के समय वायु की दिशा पर भी ध्यान देना चाहिए।
  • शाकनाशी की संस्तुत मात्रा का उचित समय पर  प्रयोग करना चाहिए । संस्तुत मात्रा से कम मात्रा प्रयोग करने से वांछित खरपतवार-नियंत्रण नहीं होता तथा इससे अधिक मात्रा प्रयोग करने से फसलों पर कुप्रभाव पड़ सकता  है जिससे उपज कम होने की सम्भावना रहती है ।
  • फसलों मे प्रयोग हेतु संस्तुत शाकनाशी का ही प्रयोग किया जाए । संस्तुति के अतिरिक्त शाकनाशी का प्रयोग हानिकारक हो सकता है । 
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