डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रमुख वैज्ञानिक,सस्यविज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर
क्र. किस्म का नाम अवधि गन्ना उपज (टन/है.) सुक्रो स (%) अन्य विशेषताएँ
1 को .85004(प्रभा) शीघ्र तैयार 90.5 19.5 स्मट रोग रोधी, पेड़ी हेतु उपयुक्त
पेड़ी हेतु उपयुक्त
2 को.86032(नैना) मध्य देर 102.0 20.1 स्मट,रेड राॅट व सूखा रोधी,
सूखा एवं जलभराव सहन शील
3 को.87025(कल्यानी) मध्य देर 98.2 18.3 स्मट रोग रोधी
4 को.87044(उत्तरा) मध्य देर 101.0 18.3 स्मट रोग रोधी
5 को.8371 (भीम) मध्य देर 117.7 18.6 स्मट रोग रोधी, सूखा व
जलभराव सहनशील।
6 को.एम.88121(कृष्ना) मध्य देर 88.7 18.6 स्मट रोग रोधी
7 को.91010(धनुष) मध्य देर 116.0 19.1 स्मट रोग रोधी
8 को.94008(श्यामा) शीघ्र 119.8 18.3 लाल सड़न स्मट रोग रोधी
9 को.99004 मध्य देर 116.7 18.8 लाल सड़न रोग रोधी
10 को.2001-13 मध्य देर 108.6 19.03 लाल सड़न,स्मट, विल्ट रोधी
11 को.2001-15 मध्य देर 113.0 19.37 लाल सड़न, स्मट रोग रोधी
12 को.0218 मध्य देर 103.77 20.79 लाल सड़न रोग रोधी
13 को.0403 शीघ्र 101.6 18.16 लाल सड़न,स्मट रोग रोधी
1.गन्ना लगाने की नाली विधि (Trench Method)
प्रमुख वैज्ञानिक,सस्यविज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर
संसार को मिठास देने वाली भारतीय मूल की गन्ना फसल को देश में लगभग 4999 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में लगाया जाता है, जिससे 341200 हजार टन गन्ना उत्पादन प्राप्त होता है। दुनियां में ब्राजील के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक शक्कर पैदा (205 मिलियन टन) करने वाला राष्ट्र है। गन्ना भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । देश के लगभग 50 लाख किसान और खेतिहर मजदूर गन्ने की खेती में संलग्न हैं। चीनी प्रसंस्करण देश का दूसरा सबसे बड़ा कृषि उद्योग है। वर्तमान में हमारे देश में 529 चीनी मिलें, 309 आसवन संयत्र, 180 ऊर्जा उत्पादन इकाईयों के अलावा बहुत से कुटीर उद्योग कार्यरत है जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों से 50 लाख से अधिक कुशल और अर्द्ध कुशल श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। हमारे देश में कुल गन्ना उत्पादन का 60 प्रतिशत चीनी के उत्पादन के लिए उपयोग होता है, 15-20 प्रतिशत गुड़ और खांडसारी उत्पादन के लिए और बाकी बीज सहित अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है।
भारत में गन्ने की खेती उष्णकटिबंधीय (दक्षिण भारत) एवं उपोष्णकटिबंधीय (उत्तर भारत) जलवायुविक क्षेत्रों में प्रचलित है। भारतवर्ष में कुल गन्ने के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र यानी उत्तर भारत में है तथा 30 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाता है, जबकि उत्पादन की दृष्टि से उपोष्ण क्षेत्रों का योगदान महज 55 प्रतिशत ही बैठता है। इसका मुख्य कारण उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में औसत गन्ना उत्पादकता 54-56 टन प्रति हेक्टेयर और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 80-82 टन प्रति हेक्टेयर होना है । मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ में तो गन्ने की औसत उपज क्रमशः 44.4 टन एवं 27.42 टन प्रति हैक्टेयर है, जो कि भारत के सभी गन्ना उत्पादक राज्यों एवं राष्ट्रीय औसत उपज से काफी पीछे है। उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गन्ने की औसत पैदावार कम आने के अनेक कारण हैं जैसे मौसम की चरम सीमा के कारण गन्ना विकास के लिए केवल 4-5 महीने उपलब्ध ह¨ पाना, नमी तनाव, अधिक कीटों और रोगों विशेष रूप से लाल सड़न, चोटी बेधक और पायरिला का प्रकोप, वर्षा ऋतु में जल भराव से फसल क्षति, गेहूं की फसल के बाद देर से बुवाई के अलावा उत्तर भारत में लगभग 50 प्रतिशत गन्ना क्षेत्रफल पेड़ी गन्ने का है, लेकिन कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत ही पेड़ी से आता है। ऐसे में उत्तर भारत के राज्यों में औसत उपज बढ़ाने हेतु यहाँ के कृषकों को गन्ना उत्पादन की नवीन तकनीकों का अनुशरण करना चाहिए।
मौसम की तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद उपोष्णकटिबंधीय (उत्तर) क्षेत्रों के अनेक किसान उन्नत सस्य तकनीक के माध्यम से गन्ने की 100 टन प्रति हैक्टर से भी अधिक उपज लेने में कामयाब है। विभिन्न शोध केन्द्रों द्वारा तो 120-150 टन प्रति हैक्टेयर गन्ना उपज दर्ज की गई है। जाहिर है उत्तर भारत के सभी राज्यों में गन्ने की औसत उपज बढ़ाने की व्यापक संभावनाएं है। भारत में चीनी की खपत सर्वाधिक है। अभी प्रति व्यक्ति मीठे की खपत 23 किग्रा. प्रति वर्ष के आस-पास है। आगामी कुछ वर्षों मे शक्कर की खपत 35 किलो प्रति वर्ष तक पहुँचने का अनुमान है । आगामी वर्ष 2030 में भारत की जनसंख्या 1.5 बिलियन होने की संभावना है जिसके लिए 33 मिलियन टन चीनी की आवश्यकता पड़ेगी। विश्व्व्यापारीकरण एवं उभरते विश्व परिद्रश्य के दौर में गन्ने का उपयोग ऊर्जा क्षेत्र में ईंधन मिश्रण (इथेनॉल) के रूप में किया जा सकता है, जिसके लिए 330 लाख टन अतिरिक्त गन्ने की आवश्यकता होगी। इस प्रकार सन 2030 में हमारे देश को 5200 लाख टन गन्ना उत्पादन की आवश्यकता होगी । चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भरता बनाएं रखने के लिए प्रति इकाई भूमि में गन्ना की उत्पादकता में गुणात्मक वृद्धि लाना ही होगी और यह तभी संभव है जब कृषि शोध संस्थानों में किसानों के पास उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप नवीन तकनीकी ज्ञान का सृजन हो और इस ज्ञान का आम गन्ना उत्पादक कृषकों के गाँव-खेत तक प्रभावी प्रचार-प्रसार हो । गन्ना लगाने की उन्नत पद्धति और अधिक उपज देने वाली किस्मों के अनुशरण से गन्ने की वर्तमान औसत उपज को दोगुना तक बढ़ाया जा सकता है। भारतीय गन्ना शोध संस्थान द्वारा विकसित गन्ना की नवीन उन्नत किस्में एवं गन्ना लगाने की आधुनिक विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
उपयुक्त उन्नत किस्मों का चुनाव
गन्ने की उपज क्षमता का पूर्ण रूप से दोहन करने के लिए उन्नत किस्मों के स्वस्थ बीज का उपयोग क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुरूप करना आवश्यक है। रोग व कीट मुक्त बीज नई फसल (नौलख फसल) से लेना चाहिए। गन्ने की पेड़ी फसल को बीज के रूप में प्रयुक्त नहीं करना चाहिए। परंपरागत किस्मों की अपेक्षा गन्ने की नवीन उन्नत किस्मों की खेती करने से 20-30 प्रतिशत अधिक उपज ली जा सकती है क्योंकि पुरानी किस्मों में रोग-कीट का अधिक प्रकोप होता है तथा उपज भी कम आती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश के किसानों के लिए नवीन किस्मों की अनुशंषा की है जिनकी विशेषताएं सारिणी में प्रस्तुत है।
छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के लिए अनुशंसित उन्नत किस्मों की विशेषताएँ क्र. किस्म का नाम अवधि गन्ना उपज (टन/है.) सुक्रो स (%) अन्य विशेषताएँ
1 को .85004(प्रभा) शीघ्र तैयार 90.5 19.5 स्मट रोग रोधी, पेड़ी हेतु उपयुक्त
पेड़ी हेतु उपयुक्त
2 को.86032(नैना) मध्य देर 102.0 20.1 स्मट,रेड राॅट व सूखा रोधी,
सूखा एवं जलभराव सहन शील
3 को.87025(कल्यानी) मध्य देर 98.2 18.3 स्मट रोग रोधी
4 को.87044(उत्तरा) मध्य देर 101.0 18.3 स्मट रोग रोधी
5 को.8371 (भीम) मध्य देर 117.7 18.6 स्मट रोग रोधी, सूखा व
जलभराव सहनशील।
6 को.एम.88121(कृष्ना) मध्य देर 88.7 18.6 स्मट रोग रोधी
7 को.91010(धनुष) मध्य देर 116.0 19.1 स्मट रोग रोधी
8 को.94008(श्यामा) शीघ्र 119.8 18.3 लाल सड़न स्मट रोग रोधी
9 को.99004 मध्य देर 116.7 18.8 लाल सड़न रोग रोधी
10 को.2001-13 मध्य देर 108.6 19.03 लाल सड़न,स्मट, विल्ट रोधी
11 को.2001-15 मध्य देर 113.0 19.37 लाल सड़न, स्मट रोग रोधी
12 को.0218 मध्य देर 103.77 20.79 लाल सड़न रोग रोधी
13 को.0403 शीघ्र 101.6 18.16 लाल सड़न,स्मट रोग रोधी
1.गन्ना लगाने की नाली विधि (Trench Method)
इस विधि में सबसे पहले तैयार खेत में 20 सेमी. गहरी और 40 सेमी. चौड़ी नालियां बनाई जाती है। एक नाली और दूसरी समानान्तर नाली के केन्द्र से केन्द्र की दूरी 90 सेमी. रखी जाती है। इन नालियों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट या प्रेस मड खाद डालकर मिट्टी में मिला देते है। गन्ने के तीन आँख वाले टुकड़ों की बुवाई इन नालियों में की जाती है। इसके पश्चात 4-5 सेमी. मिट्टी डालकर टुकड़ों को ढंकने के बाद एक हल्की सिंचाई नालियों में करते है तथा ओट आने पर एक अन्धी गुड़ाई करने से अंकुरण अच्छा होता है। अंकुरण के बाद फसल की बढ़वार के हिसाब से नालियों में मिट्टी डालते जाते है। ऐसा करने से नाली के स्थान पर मेड़ और मेड़ के स्थान पर नाली बन जाती है, जो वर्षा ऋतु में जल निकास के काम आती है। सिंचाई की कमीं वाले क्षेत्रों के लिए गन्ना लगाने की यह विधि उपयुक्त है।
2. अन्तरालित प्रतिरोपड़ तकनीक (Space Transplanting-STP)
2. अन्तरालित प्रतिरोपड़ तकनीक (Space Transplanting-STP)
इस विधि में 20 क्विंटल गन्ना बीज की 50 वर्गमीटर क्षेत्र में नर्सरी (अच्छी प्रकार से तैयार खेत जिसमें गोबर खाद मिलाया हो ) तैयार की जाती है। नर्सरी की चौड़ाई एक मीटर रखते है। उन्नत किस्म के स्वस्थ गन्ने के ऊपरी आधे भाग से एक आँख वाले टुकड़े तैयार कर नर्सरी में लगाये जाते है। कटे हुए टुकड़ों को मिट्टी में इस प्रकार दबाएं ताकि टुकड़े की आँख भूमि की सतह से ठीक ऊपर रहे। इसके बाद पुआल या गन्ने की सूखी पत्तियोन से ढंके तथा 6-7 दिन के अन्तराल पर हल्का पानी देते रहना चाहिए। मुख्य खेत में रोपाई योग्य पौध एक माह में (3-4 पत्ती अवस्था) तैयार हो जाती है। अच्छी प्रकार से तैयार खेत में 90 सेमी. दूरी पर रिजर द्वारा कूंड बना लिये जाते है। रोपाई से पहले इन कूँड़ों में पानी भर देना चाहिए। नवोदित पौधों की ऊपरी हरी पत्तियों के ऊपरी भाग को रोपाई से पहले काट देना चाहिए। इन पौधों को कूँड़ों में 60 सेमी.की दूरी पर रोपा जाना चाहिए। बुवाई में देरी होने पर यह दूरी 45 सेमी. रखना चाहिए। इस तरह कुल 29000 पौधों की आवश्यकता होती है। रोपाई पश्चात यदि कुछ पौधे सूख जाए तो उस स्थान पर नये पौधें रोपना चाहिए। रोपाई के बाद 7-8 दिन के अन्तराल पर सिंचाई कर देना चाहिए जिससे पौधों की जड़े भूमि में अच्छी प्रकार से स्थापित हो जाए। इस विधि में प्रति हैक्टर 20 क्विंटल उन्नत किस्म के बीज की आवश्यकता होती है।
3.पाली बैग पद्धति (Polyculture Technique)
यह पद्धति अन्तरालित प्रतिरोपड़ तकनीक जैसी ही है। गन्ने की बुवाई में विलम्ब की संभावना होने पर इस विधि से पौध तैयार कर समय पर रोपाई की जा सकती है। इस विधि में नर्सरी तैयार करने के लिए सर्वप्रथम मिट्टी, रेत तथा ग¨बर की खाद क¨ बराबर-बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह मिलाते है। अब 5 इंच लम्बी व 5 इंच चौड़ी पालीथिन बैग में यह मिट्टी भरते है। जल निकासी हेतु बैग में चारों ओर तथा नीचे से कुछ छेद कर देते है,। नर्सरी तैयार करने के लिए गन्ने के ऊपरी दो तिहाई भाग को लेकर इसमें से एक आँख वाले टुकड़े काट लिये जाते है । इन कटे हुए टुकड़ों को 50 लीटर पानी में 100 ग्राम बाविस्टीन मिलाकर 15-20 मिनट तक डुबोकर रखा जाता है। उपचारित टुकड़ों को पालीथीन बैग में लम्बवत अवस्था में इस प्रकार रखते है कि आँख ऊपर की ओर रहे, तत्पश्चात इसके ऊपर 2-3 सेमी. मिट्टी की तह विछाकर एक हल्की सिंचाई करते है। नर्सरी में 5-6 दिन के अन्तराल से 2-3 बार पानी का छिड़काव करते है। लगभग 3-4 सप्ताह में पौधों में 3-4 पत्तियां (12-15 सेमी. लम्बी) निकल आती है । रोपाई से पूर्व पौधों की ऊपरी पत्तियों को 2-3 सेमी. काट देने से पौधों द्वारा पानी का ह्रास कम होता है। रोपाई किये जाने वाले तैयार खेत में रिजर की सहायता से 90 सेमी. की दूरी पर कूंड़ बना लिये जाते है। इन कूड़ों में 45 सेमी. दूरी पर पौधों की रोपाई करना चाहिए। इस प्रकार एक हैक्टेयर में लगभग 23500 पौधें स्थापित हो जाते है। रोपाई के तुरन्त पश्चात सिंचाई करनी चाहिए। रोपाई के 8-10 दिन बाद खेत का निरीक्षण करें, यदि किसी स्थान पर पौधें सूख या मर गये हो तो उस स्थान पर फिर से नये पौधें रोपित करना चाहिए। इस विधि से गन्ना लगाने हेतु प्रति हैक्टर 20 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
4. एक नवीन तकनीक-गड्ढा बुआई विधि(Ring Pit Method)
गन्ना लगाने की गडढा बुवाई विधि भरतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, द्वारा विकसित की गई हैं। दरअसल गन्ना बुवाई के पश्चात प्राप्त गन्ने की फसल में मातृ गन्ने एवं कल्ले दोनों बनते है । मातृ गन्ने बुवाई के 30-35 दिनों के बाद निकलते हैं, जबकि कल्ले मातृ गन्ने निकलने के 45-60 दिनों बाद निकलते है। इस कारण मातृ गन्नों की अपेक्षा कल्ले कमजोर होते है तथा इनकी लंबाई, मोटाई और वजन भी कम होता है । उत्तर भारत में गन्ने में लगभग 33 प्रतिशत अंकुरण हो पाता है, जिससे मातृ गन्नों की संख्या लगभग 33000 हो पाती है, शेष गन्ने कल्लों से बनते है जो अपेक्षाकृत कम वजन के होते है। इसलिये यह आवश्यक है कि प्रति हैक्टेयर अधिक से अधिक मातृ गन्ने प्राप्त करने के लिए प्रति इकाई अधिक से अधिक गन्ने के टुकड़ों को बोया जाए। गोल आकार के गड्ढों में गन्ना बुवाई करने की विधि को गड्ढा बुवाई विधि कहते हैं।
इस विधि को कल्ले रहित तकनीक भी कहते हैं। इस विधि से गन्ना लगाने के लिए सबसे पहले खेत के चारों तरफ 65 सेमी. जगह छोड़े तथा लंबाई व चौड़ाई में 105 सेमी. की दूरी पर पूरे खेत में रस्सी से पंक्तियों के निशान बना लें। इन पंक्तियों के कटान बिंदु पर 75 सेमी. व्यास व 30 सेमी. गहराई वाले 8951 गड्ढे तैयार कर लें। अब संस्तुत स्वस्थ गन्ना किस्म के ऊपरी आधे भाग से दो आँख वाले टुकड़े सावधानी पूर्वक काट लें। इसके पश्चात 200 ग्राम बावस्टिन का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 मिनट तक डुबों कर रखें। बुवाई पूर्व प्रत्येक गड्ढे में 3 किग्रा. गोबर की खाद 8 ग्राम यूरिया, 20 ग्राम डी.ए.पी., 16 ग्राम पोटाश, और 2 ग्राम जिंक सल्फेट डालकर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिलाते है। अब प्रत्येक गड्ढे में साइकिल के पहिये में लगे स्पोक की भांति, दो आँख वाले उपचारित गन्ने के 20 टुकड़ों को गड्ढे में विछा दें। तत्पश्चात 5 लीटर क्लोरपायरीफास 20 ईसी को 1500-1600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से गन्ने के टुकड़ों के ऊपर छिड़क दें । इसके अलावा ट्राइकोडर्मा 20 किग्रा. को 200 किग्रा. गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से टुकड़ों के ऊपर डाल दें। प्रत्येक गड्ढे में सिंचाई करने के लिए गड्ढों को एक दूसरे से पतली नाली बनाकर जोड़ दें । अब गड्ढो में रखे गन्ने के टुकड़ो पर 2-3 सेमी. मिट्टी डालकर ढंक दें। यदि मिट्टी में नमी कम हो तो हल्की सिंचाई करें। खेत में उचित ओट आने पर हल्की गुड़ाई करें जिससे टुकड़ो का अंकुरण अच्छा होता हैं। चार पत्ती की अवस्था आ जाने पर (बुवाई के 50-55 दिन बाद) प्रत्येक गड्ढे में 5-7 सेमी. मिट्टी भरें और हल्की सिंचाई करें तथा ओट आने पर प्रत्येक गड्ढे में 16 ग्राम यूरिया खााद डालें। मिट्टी की नमी तथा मौसम की परिस्थितियों के अनुसार 20-25 दिनों के अन्तराल पर हल्की सिंचाई और आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई भी करते रहें। जून के तीसरे सप्ताह में प्रत्येक गड्ढे में 16 ग्राम यूरिया डालें। जून के अंतिम सप्ताह तक प्रत्येक गड्ढे को मिट्टी से पूरी तरह भर दें। मानसून शुरू होने से पूर्व प्रत्येक थाल में मिट्टी चढ़ा दें। अगस्त माह के प्रथम पखवाड़े में प्रत्येक गड्ढे के गन्नों को एक साथ नीचे की सूखी पत्तियों से बांध दें। सितम्बर माह में दो पंक्तियों के आमने-सामने के गन्ने के थालों को आपस में मिलाकर (केंचीनुमा आकार में )बांधे तथा गन्ने की निचली सूखी पत्तियों को निकाल दें। अच्छी पेड़ी के लिए जमीन की सतह से कटाई करें। ऐसा करने से उपज में भी बढ़ोत्तरी होती हैं। सामान्य विधि की अपेक्षा इस विधि द्वारा डेढ से दो गुना अधिक उपज प्राप्त होती है। केवल गड्ढों में ही सिंचाई करने के कारण 30-40 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत ह¨ती है। मातृ गन्नों में शर्करा की मात्रा कल्लों से बने गन्ने की अपेक्षा अधिक होती है । इस विधि से लगाये गये गन्ने से 3-4 पेड़ी फसल आसानी से ली जा सकती हैं।
क्षेत्र विशेष के अनुसार उन्नत किस्म के गन्ने का चयन और बुआई की नवीनतम वैज्ञानिक विधि के अलावा गन्ना फसल की बुआई उपयुक्त समय पर (शरद्कालीन बुआई सर्वश्रेष्ठ ) करें तथा आवश्कतानुसार उर्वरकों एवं सिचाई का प्रयोग करें और पौध सरंक्षण उपाय भी अपनाएँ। समस्त सस्य कार्य समय पर सम्पन्न करने पर गन्ने से 100 टन प्रति हेक्टेयर उपज लेकर भरपूर मुनाफा कमाने का मूलमन्त्र यही है।
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