डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसन्धान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारत में हरित क्रांति की सफलता में उन्नत किस्मों के
साथ साथ सिंचाई और उर्वरकों का अहम् योगदान रहा है और आने वाले वर्षों में भी
रहेगा. क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाये तो विश्व में सबसे अधिक क्षेत्रफल हमारे
देश में है परन्तु प्रति हेक्टेयर फसल उत्पादकता की दृष्टि से हमारा देश अभी भी
काफी पीछे है। बढती आबादी के भरण पोषण के लिए हमे प्रति इकाई उत्पादकता बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है । जलवायु परिवर्तन और वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण देश में प्रति वर्ष वर्षा की मात्रा कम होती जा
रही है जिससे कृषि के लिए सिंचाई जल की आपूर्ति में भी कमी होन स्वाभाविक है। ऐसे में
हमे उपलब्ध जल संसाधनों के सक्षम और कुशल उपयोग से ही फसलोत्पादन को बढ़ाना है। रासायनिकों के असंतुलित प्रयोग से हमारी उपजाऊ जमीने बंजर होने की कगार पर है, तो
दूसरी तरफ रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। फसलोत्पादन को टिकाऊ बनाने के लिए आवश्यक है की उपलब्ध जल की प्रति बूँद से अधिकतम
उत्पादन लिया जाए साथ ही उर्वरकों आदि कृषि आदानों के कुशल एवं संतुलित प्रयोग
करते हुए फसल उत्पादकता बढ़ाने हेतु आवश्यक उपाय किये जाने चाहिये। सूक्ष्म सिंचाई
प्रणालियों के अभ्युदय से जल तथा पोषक तत्वों के कुशल एवं संतुलित प्रयोग की आशा
जगी है। सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों को अपनाकर 40-70% पानी की बचत के साथ-साथ उर्जा
और मजदूरी में भी बचत होती है और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के साथ-साथ 30-40% तक उपज
में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है। फर्टिगेशन दो शब्दों फ़र्टिलाइज़र अर्थात उर्वरक और इरिगेशन
अर्थात सिंचाई से मिलकर बना है। सिंचाई के
पानी के साथ साथ उर्वरकों का सीधा प्रयोग कर पौधों की जड़ों तक
पहुँचाने की प्रक्रिया को फर्टिगेशन अर्थात सिंचाई के साथ उर्वरीकरण या उर्वर
सिंचाई कहते है। इस प्रक्रिया में सिंचाई जल के साथ आवश्यक घुलनशील उर्वरकों को
मिश्रित कर दिया जाता है। यह कार्य ड्रिप सिंचाई प्रणाली तंत्र की कंट्रोल यूनिट
पर स्थापित उर्वरक इंजेक्टर प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। इसमें उर्वरकों के
अलावा अन्य जल विलेय रसायनों तथा
कीटनाशकों का प्रयोग भी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों द्वारा किया जा सकता है। वास्तव में फर्टिगेशन फसल और मृदा की आवश्यकताओं के अनुरूप उर्वरक एवं जल का
संतुलित मात्रा में उपयोग करने के लिए प्रभावी तकनीक है। फसलोत्पादन में जल और
पोषक तत्वों का उचित समन्वय अधिक पैदावार
और उत्पाद की गुणवत्ता का आधार स्तम्भ है। फर्टिगेशन में उर्वरकों को कई बार में
सुनियोजित सिंचाई के साथ दिया जाता है, इससे पौधों उनकी आवश्यकता के अनुसार पोषक
तत्व उपलब्ध हो जाते है, साथ ही मूल्यवान उर्वरकों का अपव्यय भी नहीं होता है।
फर्टिगेशन तकनीक की आवश्यकता
यह सर्विदित है की कृषि में जल एवं उर्वरक
आवश्यक निवेश है एवं कृषि की सफलता या बिफलता इन दोनों तत्वों के समुचित बंधन पर
ही टिकी होती है। जल एवं उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से अनेक प्रकार की
पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही है। मसलन पंजाब के उत्तर-पश्चिम भाग में भू-जल
स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। जबकि दक्षिण-पश्चिम भाग में लवणता की समस्या तेजी से
बढ़ रही है। कमोवेश भारत के हर राज्य में जल एवं उर्वरक जनित समस्याएं उत्पन्न हो
रही है। ऊसर भूमि का क्षेत्रफल भी बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा मृदा के
भौतिक,रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी तेजी से गिरावट देखी जा रही है, जिसका मृदा
उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। फसलों और प्राणी जगत में नित नई बीमारियों का प्रकोप हो रहा है। इन सभी
समस्यायों के उद्भव में असंतुलित जल एवं उर्वरक प्रयोग का अहम् योगदान है। भारतीय मृदाओं में फसलोत्पादन के लिए आवश्यक नत्रजन, फॉस्फोरस,पोटाश के अलावा
जस्ता और सल्फर जैसे पोषक तत्वों का निरंतर क्षरण होता जा रहा है। भूमि में पोषक
तत्वों की कमीं की पूर्ती करने हेतु रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल साल दर साल
बढ़ता ही जा रहा है। उर्वरकों की बढती मांग की पूर्ति करने के लिए उर्वरकों का एक
बड़ा हिस्सा बाहर से आयात किया जाता है, जिस पर देश को प्रति वर्ष करोंड़ो रुपये खर्च
करने पड़ते है।फर्टिगेशन द्वारा उर्वरकों का प्रभावी उपयोग करके उर्वरक लागत को
काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा भूमंडलीकरण और विश्व व्यापारीकरण के
कारण विश्व कृषि बाजार का परिद्रश्य तेजी से बदल रहा है जिससे पारंपरिक फसलों के
स्थान पर बहुत सी नकदी फसलें, सब्जियां,
फल, पुष्पों आदि का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इन फसलों
को अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादित करने के लिए उर्वर सिंचाई प्रणाली (फर्टिगेशन) का
इस्तेमाल अति आवश्यक और समीचीन हो गया है।
फर्टिगेशन हेतु उपयुक्त उर्वरक
हमारे देश में नत्रजन धारी उर्वरकों
को ही मुख्यतः फर्टिगेशन द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। फॉस्फोरस और
पोटाश युक्त उर्वरक पुर्णतः जल विलेय न होने के कारण इस विधि से पौधों को आसानी से
उपलब्ध नहीं हो पाते है। इसके अलावा ये उर्वरक सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को भी
अवरुद्ध कर देते है. यद्यपि कुछ पोटाश युक्त उर्वरकों जैसे पोटैशियम सल्फेट,
पोटेशियम नाइट्रेट, पोटेशियम क्लोराइड को इस विधि से भी फसलों को दिया जा सकता है.
अनेक सूक्ष्म तत्व जैसे लोहा एवं जिंक को चिलेट के रूप में तथा ताबां को कॉपर
सल्फेट के रूप में फर्टिगेशन द्वारा फसलों को दिया जा सकता है। वैसे आज कल किसानों
के लिए फर्टिगेशन के माध्यम से देने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक बाजार में कई
कंपनीयो द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे है| किसान यह ध्यान रखे कई यूरिया, पोटाश पानी में अत्यधिक घुलनशील है, साथ ही
घुलनशील उर्वरक भी बाजार में उपलब्ध है| किसान फॉस्फोरस
पौषक तत्व के लिए उन उर्वरक को काम में ले जिनमें फॉस्फोरस का स्वरूप फास्फोरिक
एसिड के रूप में हो, इसे उर्वरक तरल रूप में बाजार में उपलब्ध है|
इसके अलावा
किसान मोनो अमोनियम फॉस्फेट (नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस), पॉलीफीड (N,
P, K), मल्टी K (N & K) और पोटैशियम सलफेट (पोटैशियम और सल्फर) आदि
उर्वरक फर्टिगेशन में उपयोग कर सकते है, यह उर्वरक पानी
में अत्यधिक घुलनशील है साथ ही इन उर्वरको से किसान अपनी फसल एवं पौधों को सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे Fe, Mn, Cu, B, Mo की आपूर्ति
भी कर सकते है।
नाइट्रोजन
फर्टिगेशन उर्वरक:- यूरिया, अमोनियम सलफेट, अमोनियम नाइट्रेट, कैल्शियम अमोनियम सलफेट,
कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, कुछ प्रमुख
नाइट्रोजन उर्वरक है जो किसान ड्रिप सिचाई के दौरान फर्टिगेशन के रूप में काम लिए
जासकते है।
फॉस्फोरस फर्टिगेशन उर्वरक:- फास्फोरिक एसिड एंड मोनो अमोनियम फॉस्फेट।
पोटैशियम
फर्टिगेशन उर्वरक:-पोटैशियम नाइट्रेट, पोटैशियम क्लोराइड, पोटैशियम सलफेट और मोनो पोटैशियम फॉस्फेट।
उर्वरक प्रयोग का उपयुक्त समय
फसल को आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों की
समान एवं सही समय पर आपूर्ति ही उर्वर सिंचाई की सफलता का मूल मन्त्र है. मृदा के
एक बड़े हिस्से के जल संतृप्त होने के बाद ही उर्वर सिंचाई प्रारंभ की जानी चाहिए
नत्रजन-नाइट्रेट अधिकाधिक मात्रा में मृदा के ऊपरी सतह में उपस्थित रहे और पौधों
को सुगमता से उपलब्ध हो सकें। इस प्रकार सिंचाई चक्र के अंतिम हिस्से से उर्वरक
प्रयोग प्रारंभ करना अधिक फायदेमंद होगा।
फर्टिगेशन में उर्वरक प्रयोग की शुरुआत
उर्वरकों की प्रकृति के साथ-साथ मृदा की भौतिक सरंचना पर भी निर्भर करती है। यदि
बलुई मिटटी में फर्टिगेशन करना है तो सिंचाई चक्र के अंतिम भाग में उर्वरक प्रयोग
शुरू करना चाहिए जिससे पोषक तत्वों के निक्षालन (लीचिंग) न्यूनतम या नगण्य सम्भावना रहे, जबकि चिकनी
मिटटी में उर्वरक प्रयोग सिंचाई चक्र की शुरुआत से ही प्रारंभ कर सकते है, क्योंकि
इसमें निक्षालन प्रक्रिया बहुत धीमी होती है और जल का मिट्टी में फैलाव क्षैतिज
दिशा में तेज होता है। इस प्रकार हर स्थान पर पोषक तत्वों की उपस्थिति में समानता
बनाये रख सकते है।
फर्टिगेशन तकनीक प्रयोग में कुछ सावधानियां
फर्टिगेशन के लिए उर्वरक घोल बनाने
से पहले हमे कुछ तकनिकी बातों पर विशेष ध्यान देनें की आवश्यकता है।
Ø जब भी हम घोल बनाये उस
समय घोलने के लिए आवश्यक जल का 50-75 % भाग पानी कंटेनर में भरें. साथ ही साथ इस
बात का भी ध्यान रखें की यदि तरल उर्वरक एवं पानी में घुलनशील उर्वरक दोनों का
प्रयोग एक साथ ही करना है तो पहले तरल उर्वरक को कंटेनर में डालें उसके बाद विलेय
उर्वरक को मिश्रित करें।
Ø यदि किसी अम्ल का प्रयोग
करना है तो हमेशा अम्ल को पानी में मिलायें। अम्ल में पानी घोलने का प्रयास न
करें।
Ø सूक्ष्म सिंचाई के लिए
प्रयोग होने वाले गंदे पानी के उपचार के लिए क्लोरीन गैस का प्रयोग करना है तो गैस
को कंटेनर के पानी में मिलायें परन्तु क्लोरीन गैस मिश्रण के समय इस बात का अवश्य
ध्यान रखना चाहिए कि कंटेनर में कोई अम्ल या अम्लीय उर्वरक नहीं है वरना विषाक्त
क्लोरीन गैस की उत्पत्ति संभव है।
Ø क्लोरीन एवं अम्ल का
भण्डारण एक ही स्थान पर अर्थात एक ही कक्ष में नहीं करना चाहिए।
Ø दो कंपाउंड (मिश्रण) को
मिश्रित करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कैल्शियम एवं सल्फेट युक्त
कंपाउंड तो नहीं है, वरना इनकी रासायनिक क्रिया से अघुलनशील या कम घुलनशील कंपाउंड
की उत्पत्ति होगी. उदाहरण के लिए यदि कैल्शियम नाइट्रेट एवं अमोनियम सल्फेट उर्वरक
का प्रयोग एक ही साथ करें तो ये दोनों मिलकर कैल्शियम सल्फेट (जिप्सम) नामक एक
बहुत कम घुलनशील कंपाउंड उत्पन्न करते है जो कि सूक्ष्म सिंचाई में प्रयुक्त होने
वाले सवेंदनशील उपकरणों जैसे फ़िल्टर, ड्रिपर, माइक्रोजेट आदि को अवरुद्ध कर देता
है, जबकि ये दोनों कंपाउंड अलग-अलग पानी में अति घुलनशील है और उर्वर सिंचाई में
बहुतायत में प्रयोग किये जाते है।
फर्टिगेशन हेतु उपयुक्त फसलें
उर्वर सिंचाई के दायरे में
सामान्यतौर पर कतार बोनी वाली सभी फसलों में लाया जा सकता है परन्तु प्रारंभिक
लागत अधिक होने के कारण इसका प्रयोग अधिक
आय देने वाली या नकदी फसलों तक ही सीमित है जैसे-
फसलें: गन्ना, आलू,कपास, चाय आदि।
सब्जियां :टमाटर, मिर्च,गोभी, ब्रोकली, शिमला मिर्च, भिन्डी, बेल वाली
सब्जियां-लौकी, तोरई, कुंदरू, करेला, खीरा आदि।
फल : आम, अनार, अनानास,संतरा, पपीता, संतरा,किन्नो,केला,अंगूर,स्ट्रॉबेरी आदि।
फूल:गुलाब,कारनेशन,आर्किड,जरबेरा, ग्लोडीओलस, लिलियम आदि।
फर्टिगेशन तकनीक से लाभ
§
फर्टिगेशन जल एवं पोषक तत्वों के नियमित प्रवाह
को सुनिश्चित करता है जिससे पौधों की विकास दर तथा फसलोत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
v इस प्रक्रिया द्वारा पानी और पोषक तत्वों को फसल की मांग के अनुसार उचित समय पर दे सकते
है। इस प्रकार फर्टिगेशन जल एवं उर्वरक के अनावश्यक व्यय को
नियंत्रित करने में सहायक है।
v फर्टिगेशन पोषक तत्वों की उपलब्धता और पौधों की
जड़ों के द्वारा उपयोग बढ़ा देता है।
v फर्टिगेशन उर्वरक देने की विश्वस्तरीय और
सुरक्षित विधि है। फर्टिगेशन से जल और उर्वरक पौधों के मध्य न पहुंचकर सीधे उनकी
जड़ों तक पहुंचते हैं इसलिए खरपतवार कम संख्या में उगते हैं।
v फर्टिगेशन के माध्यम से अत्यधिक जल और रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से होने वाले
पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने में सहायता होती है।
v परंपरागत उर्वरक उपयोग विधि की अपेक्षा फर्टिगेशन सरल और अधिक सुविधाजनक है जिससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है।
v इस प्रक्रिया में उर्वरक
कम मात्रा में परन्तु कई बार में सिंचाई जल के साथ देने से पोषक तत्वों एवं पानी
की नियमित बनी रहती है, जिससे पौधों की वृद्धि दर तथा गुणवत्ता में इजाफा होता है।
v ड्रिप द्वारा फर्टिगेशन से बंजर (रेतीली या
चट्टानी मिट्टी) में जहां जल एवं पोषक तत्वों
को पौधे के मूल क्षेत्र के वातावरण में नियन्त्रित करना कठिन होता वहां भी फसल ली
जा सकती है।
v सिंचाई के साथ पौध वृद्धि
कारकों (ग्रोथ हर्मोंन),खरपतवारनाशको, कीटनाशको और फफुन्द्नाश्कों का प्रयोग
प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
फर्टिगेशन पर देश विदेश में किये
गए अनुसंधानों से ज्ञात होता है कि इस प्रणाली को अपनाने से प्रचलित प्रणाली की अपेक्षा
जल एवं उर्वरक की काफी बचत होती है। इस विधि में उर्वरक उपयोग दक्षता अधिक होने के
कारण 20-40 % कम उर्वरक प्रयोग करके भी इष्टतम पैदावार और उत्पाद की उच्च गुणवत्ता
प्राप्त की जा सकती है।
फर्टिगेशन के प्रसार में बाधाएं
इस नवोदित तकनीकी के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा इसकी प्रारंभिक
लागत का अधिक होना है, जो भारत के सीमान्त और लघु किसानों क्रय क्षमता से बाहर है। इसके अतिरिक्त कुछ तकनीकी बाधाओं की वजह से भी इस प्रणाली का विकास धीमी गति से हो
रहा है।
v उर्वरक सिंचाई के तकनीकी पहलुओं तथा सुचारू संचालन के विषय
में किसानो को जानकारियों का आभाव जैसे उर्वरक की किस्म, मात्रा, प्रयोग का समय
एवं सांद्रता आदि के बारे में भारतीय किसान अन्विज्ञ है, जिसके कारण कृषको को इसका
लाभ नहीं मिल पा रहा है।
v फर्टिगेशन में पूर्णरूपेण जल में विलेय उर्वरकों का प्रयोग ही संभव
है। यदि रासायनिक उर्वरक पूरी तरह जल में घुलनशील नहीं है तो उनके प्रयोग से
प्रणाली के ड्रिपर एवं स्प्रिंकलर के छेदों के अवरुद्ध होने का खतरा बना रहता है।
v जल में पूर्ण विलेय उर्वरकों की बाजार में उपलब्धता कम है। इनकी
कीमत अधिक होने के कारण इनका प्रयोग अधिक आमदनी देने वाली फसलों तक ही सीमित है।
सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अब सरकार के मिशन मोड़ पर
भारत सरकार ने वर्ष 2005 में उपलब्ध पानी के
स्त्रोतों का उपयोग सूक्ष्म सिंचाई में करने हेतु सूक्ष्म सिंचाई योजना की शुरुआत
की जिससे पांच वर्षो में देशभर में 26 लाख हेक्टेयर खेती भूमि को सूक्ष्म सिंचाई
से आच्छादित हो गई। वर्ष 2010 से भारत सरकार ने इस योजना में परिवर्तन करते हुए
राष्ट्रिय सूक्ष्म सिंचाई मिशन के रूप में लागू किया है। यह मिशन सिंचाई जल की
उपयोगिता, दक्षता एवं उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए कारगर सिद्ध
होगा। भारत सरकार
द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लागू की गई है जिसके उपघटक 'पर ड्रॉप मोर
क्रॉप' – माइक्रोइरीगेशन कार्यक्रम के
अन्तर्गत ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को प्रभावी ढंग से विभिन्न फसलों
में अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। राष्ट्रिय सूक्ष्म सिंचाई
मिशन में लघु एवं सीमान्त किसानो को 50% केन्द्रांश और 40% राज्यांश कुल 90%
अनुदान ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति अपनाने पर दिया जा रहा है। देश में उपलब्ध जल संसाधनों के कुशल उपयोग और उर्वर क्षमता बढ़ाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के साथ उर्वरीकरण से भारत के किसान प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन लेकर ही अपनी आमदनी को दो गुना तक बढ़ा सकते है।
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