डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर, इंदिरा गाँधी कृषि
विश्व विद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
बदलते कृषि परिवेश में, बढ़ते तापमान, पर्यावरण
प्रदूषण, मृदा क्षरण तथा फसल पर कीट, बीमारियों और खरपतवारों के प्रकोप को कम करने
के लिए उत्तम एवं सुधरी कृषि क्रियाओं को अंगीकार करना नितांत आवश्यक है.
फसलोत्पादन में इसके प्रत्येक घटक जैसे
भूमि का चयन,खेत की तैयारी, फसल प्रबंधन,खरपतवार नियंत्रण, पौध सरंक्षण, फसल कटाई
आदि का महत्वपूर्ण योगदान है। उत्तम कृषि पद्धतियाँ कृषि उत्पादन तथा उत्पादन के
पश्चात की प्रक्रियाओं के सिद्धांतों का एक संग्रह है, जिनके इस्तेमाल से हम
सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित एवं स्वच्छ
कृषि उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
उत्तम कृषि प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य
v सतत कृषि उत्पादन और प्रति
इकाई उत्पादन बढ़ाना।
v प्राकृतिक संसाधनों का
समुचित और संतुलित उपयोग करना।
v खाद्ध्य श्रंखला के अंतर्गत
उत्पाद की गुणवत्ता एवं सुरक्षा का लाभ उठाना।
v खाद्ध्य आपूर्ति श्रंखला में
बदलाव करते हुए आधुनिक विपणन सुविधाओं का लाभ उठाना।
v कृषकों एवं कृषि आदान/उत्पाद
निर्यातकों के लिए नई विपणन सुविधाओं का विकास करना.
v सामजिक एवं आर्थिक मांगों की
पूर्ती करना।
चयनित
कृषि क्रियाओं हेतु उत्तम कृषि पद्धतियाँ
1.मृदा
स्वास्थ्य प्रबंधन
मृदा
के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में सुधार हेतु कार्बनिक तथा जैविक गतिविधियाँ कृषि
उत्पादन को सतत बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण है. ये सभी कारक एक साथ मिलकर मृदा
की उर्वरता और उत्पादकता को निर्धारित करते है।
v मृदा की जैविक गतिविधियों को
बढाकर पौधों को उपलब्ध नमी और पोषक तत्व उपयोग में सुधार करना।
v मृदा क्षरण और पोषक तत्वों
तथा हानिकारक रसायनों के निक्षालन से होने वाले नुकसान को कम करना।
v मृदा की भौतिक सरंचना में
सुधार हेतु जेविक खेती के मध्यम से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा और जल धारण क्षमता बढ़ाना।
v न्यूनतम जुताई क्रियाओं को
अपनाते हुए मृदा में नमीं सरंक्षण को बढ़ावा देना
v मृदा एवं वायु द्वारा हो रहे
मृदा क्षरण को कम करना।
v कार्बनिक और अकार्बनिक
उर्वरकों तथा अन्य कृषि रासायनिकों का उचित मात्रा, सही समय तथा प्रभावी विधि से
इस्तेमाल करना जिससे मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य को किसी भी
प्रकार से नुकसान न हो।
2. कुशल जल प्रबंधन
मात्रात्मक और गुणात्मक दृष्टि से जल संसाधनों
के बेहतर प्रबंधन में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कुशल सिंचाई
पद्दति, सही जल निकासी तथा लवणता द्वारा होने वाली हानि को कम करना आवश्यक है।
v सतही एवं मृदा जल के उचित
प्रबंधन हेतु मृदा सरंक्षण की समस्त क्रियाओं को अपनाना।
v फसलवार उचित सिंचाई
पद्धतियों का चयन और समयबद्ध फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई करना।
v खेत में अनावश्यक जल की
निकासी का प्रबंधन करना।
v मृदा में जैविक पदार्थो की
उचित मात्रा बनाएं रखते हुए जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना
v पानी की बचत अथवा सीमित जल
का उचित प्रबंधन हेतु सिंचाई की उचित विधियों जैसे बूँद-बूँद सिंचाई, फव्वारा
सिंचाई को अपनाना।
v पशुओं के लिए पर्याप्त
चारा-पानी की व्यवस्था करना।
3.उत्कृष्ट फसल उत्पादन प्रबंधन
उत्कृष्ट फसल उत्पादन हेतु
वार्षिक और बारहमासी फसलों एवं उन्नत किस्मों का चयन स्थानीय उपभोक्ता तथा बाजार
की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
v उपयुक्त फसल और फसल की उन्नत
किस्म का चुनाव क्षेत्र विशेष की जलवायु एवं स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार करना
चाहिए।
v ग्रीष्मकाल में खेतों की
गहरी जुताई करें जिससे खरपतवार, कीट-रोगों का प्रकोप कम हो.
v समय पर उन्नत/प्रमाणित
किस्मों के बीज की बुआई संपन्न करें।
v क्षेत्र और जलवायु के अनुसार
अनुसंशित अगेती/पक्षेती फसलें/किस्मों का चयन करें जिससे विषम जलवायुविक
परिस्थितियों में भी उत्पादन और आमदनी बढ़ सकें।
v बीज जनित रोगों की रोकथाम
हेतु उचित फफूंदनाशक से बीजोपचार करें।
v फसल की बुआई में उचित बीज दर
का प्रयोग करें. बुआई कतार विधि से करें. कतार से कतार तथा पौधे से पौधे के बीच
समुचित दूरी रखे. प्रति इकाई क्षेत्र में इष्टतम पौध संख्या स्थापित करें।
v खेत की जुताई और बुआई ढलान
के विपरीत करें जिससे वर्षा जल का अधिकतम सरंक्षण हो सकें.
v फसल चक्र अपनाये जिससे मृदा
की उर्वरता बरकार रहने के साथ साथ कीट-रोगों के प्रकोप में कमी आएगी . फसल चक्र
में दलहनी फसलों को अवश्य सम्मलित करें.
v दलहनी/तिलहनी फसलों में
जिप्सम का प्रयोग अवश्य करें.
v अन्तर्वर्ती फसल पद्धति को
अपनावे जिससे प्रति इकाई क्षेत्र से अधिकतम उत्पादन लिया जा सके. यह पद्धति में
वर्षाधीन क्षेत्रो के लिए बहुत लाभकारी है.
v मृदा परीक्षण के आधार पर फसल
की आवश्यकतानुसार संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का इस्तेमाल करें
v फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर
उचित विधि से सिंचाई करें तथा वर्षाकालीन फसलों में जल निकास का प्रावधान अवश्य
करें.
v जैविक खेती अपनाएं. जरुरत
पड़ने पर फसल में समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन करें.
v खरपतवार प्रकोप से फसल की
सुरक्षा हेतु एकीकृत खरपतवार प्रबंधन को अपनाया जाये.
v आवश्यकतानुसार फसल सरंक्षण
उपाय अपनाना चाहिए. कीट-रोग नियंत्रण हेतु सस्य वैज्ञानिक/जैविक विधियों का
इस्तेमाल करना चाहिए.
v फसल की कटाई सही समय पर
संपन्न करें.
4.उत्तम पौध सरंक्षण पद्धतियाँ
खेती में फसलों की उत्पादकता
बढाने के साथ साथ उत्पाद की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए कीट रोगों से फसल की
सुरक्षा करना अति आवश्यक है. इसके लिए समन्वित कीट-रोग प्रबंधन के सिद्धांतो को
ध्यान में रखते हुए कीट-रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना, समय पर फसलों की
बुआई, सही फसल चक्र अपनाना,ट्रेप फसल उगाना तथा रासायनिक विधि के माध्यम से
कीट-रोग-खरपतवार नियंत्रित करना आवश्यक होता है.
v कीट-रोग प्रतिरोधी/सहनशील
किस्मों का चयन कर बुआई करना तथा फसल चक्र और कर्षण क्रियाओं द्वारा कीट-रोगों से
फसल का बचाव किया जा सकता है.
v जैविक विधियों द्वारा भी
कीट-रोगों पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है.
v फसल सुरक्षा की दृष्टि से
हानिकारक और लाभदायक कीट-पतंगों के बीच संतुलित बनाना आवश्यक रहता है.
v आवश्यकता होने पर न्यायसंगत
तथा सुरक्षित कीटनाशकों/फफून्द्नाश्कों का फसल पर छिडकाव किया जा सकता है. परन्तु
कीटों की संख्या आर्थिक क्षति स्तर से अधिक होने पर ही कीटनाशकों का इस्तेमाल करना
चाहिए.
v किसी भी कीटनाशक का उपयोग
दुबारा न करें बल्कि फसल चक्र की भाँती कीटनाशी चक्र का उपयोग करना चाहिए।
v कीटनाशक/रोगनाशक के
छिडकाव/भुरकाव हेतु सही उपकरण और नोजल का उपयोग करें।
v कीट/रोग ग्रसित फसल अवशेष
जैसे धान/गेंहू/गन्ना के ठूठ, टमाटर, बैगन, गोभी आदि के बेकार फल, टहनियां, डंठल
आदि को इकठ्ठा कर कम्पोस्ट खाद बना लेवे या नष्ट करे देवें।
v परभच्ची चिड़ियाँ, मैना.
गौरईया,उल्लू, मोर आदि के बैठने के लिए खेत में लकड़ी के स्टेंड बनाये तथा इन
पक्षियों को खेत में आकर्षित करने हेतु एक दो दिन चुग्गा (दाना) डालें।
v कृषि रसायनों का
भण्डारण/उपयोग निर्धारित मापदंडो और निर्देशों के अनुसार ही करें।
v मित्र कीटों का सरंक्षण
करें, प्रकाश प्रपंच एवं फेरोमेन ट्रेप का उपयोग करें।
v समन्वित कीट प्रबंधन,
समन्वित रोग प्रबंधन और समन्वित खरपतवार प्रबंधन को बढ़ावा देवें।
5.फसल कटाई एवं भण्डारण
फसल की कटाई, उत्पाद की गुणवत्ता और भण्डारण
हेतु स्वीकार्य तकनीक के क्रियान्वयन पर निर्भर करती है।
v सब्जी/फल फसलों में उत्पाद
की कटाई कीटनाशी/रोगनाशी रसायनों के छिडकाव के बाद प्रतीक्षा अवधी समाप्त होने के
बाद ही करना चाहिए।
v फसल की कटाई उचित समय पर
उन्नत यंत्रों की सहायता से करें।
v अनाज को अच्छी प्रकार से साफ़
कर, सुखाकर (८-१० % नमीं स्तर) भंडारित करें.
v फसल उत्पाद का भण्डारण
वैज्ञानिक तरीके से उचित स्थान,तापमान,नमीं को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
इस प्रकार कृषक भाई उत्तम कृषि पद्धतियाँ
अपनाते है तो उन्हें फसलों से सतत गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त होता रहेगा. इसके
अलावा इन सस्य क्रियाओ के अपनाने से पर्यावरण सरंक्षण के साथ साथ किसानों को सीमित
लागत में अधिकतम उत्पादन और आमदनी प्राप्त हो सकती है।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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