डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर, प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
रा.मो. दे. कृषि महाविद्यालय, अंबिकापुर
(छत्तीसगढ़)
कुदरत के दिए गए वरदानों में पेड़-पौधों और वनस्पतियों का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनसे हमें नित नई खाद्य सामग्री,साग-भाजियां, फल-फूल, लकड़ी, शुद्ध हवा और पानी प्राप्त होता है। प्रकृति प्रदत्त हरी सब्जियां
हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हरी सब्जियां न केवल खाने में स्वाद लाती
हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लआवश्यक होती है। छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने विविध प्रकार की जलवायु, पर्याप्त वर्षा, भांति-भांति
की मिट्टियाँ, अकूत खनिज संपदा, सदानीरा नदियाँ, सदाबहार वनों के साथ साथ नाना प्रकार
की खाद्यान्न फसलें,फल-फूल और जड़ी-बूटियों से नवाजा है । यूँ तो छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है क्योंकि सर्वाधिक क्षेत्रफल में उगाया जाने वाला धान-चावल ही यहाँ की बहुसंख्यक आबादी का मुख्य आहार है. चावल और भाजी के बेहतरीन मेल को देखते हुए कुदरत
ने प्रदेश वासियों के सैकड़ों प्रकार की पौष्टिक भाजियां
भी तोहफे में दी है। वास्तव में भाजियां प्रदेश की संस्क्रती में रची बसी है । इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य को भाजियों का प्रदेश कहा जाये तो इसमें
कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि यहाँ 100 से अधिक किस्म की पौष्टिक भाजिया अलग-अलग मौसमों
में उपलब्ध होती है । इनमे से लगभग 50 से अधिक भाजियां बिना
पैसे के यानि निःशुल्क घर की बाड़ी, घास भूमि,खेतों से, सड़क किनारे अथवा जंगल से
प्राप्त हो जाती है जैसे करमत्ता भाजी, भथुआ भाजी, मुस्कैनी भाजी, बोहार भाजी, चौलाई भाजी, चेंच भाजी इत्यादि । इनके अलावा पालक, मेथी, चौलाई, चना भाजी, बर्रे भाजी, सरसों भाजी आदि ऐसी अनेक प्रकार की भाजियां
हैं जिन्हें हम अपनी बाड़ी में लगाते है अथवा बाजार से
खरीद कर खाते हैं।
पत्तीदार हरी शाक-भाजियां शरीर के उचित विकास एवं अच्छे स्वास्थ के लिए आवश्यक
होती है,क्योंकि इनमें सभी प्रकार के आवश्यक पोषक तत्व यथा प्रोटीन, रेशा, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण और विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाए
जाते है जो की मनुष्य को स्वस्थ्य रखते है
तथा विभिन्न रोगों से लड़ने की ताकत देते है। शरीर की हड्डियों व दांतों को मजबूत करने, आँखों को
स्वस्थ रखने, शरीर में खून बढ़ाने और पांचन
शक्ति को बेहतर बनाने में भाजियां अहम् भूमिका निभाती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कम से कम प्रति दिन
57 ग्राम फल, 116 ग्राम पत्तेदार सब्जियां एवं 95 ग्राम अन्य सब्जियां आवश्यक रूप
से आहार में रहनी चाहिए । इस ब्लॉग के माध्यम से मै, स्वयं अपने ज्ञान और अनुभव, विभिन्न
शोध पत्रों का अध्ययन करके तथा प्रदेश के
ग्रामीणों एवं वनवासियों से चर्चा कर प्रदेश के जनमानस द्वारा इस्तेमाल की जा रही
प्रमुख भाजियों के बारे में उपयोगी जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि परम्परागत और गैर परम्परागत रूप से उपयोग में
लाइ जा रही महत्वपूर्ण भाजियों के बारे
में प्रदेश और देश में जन जाग्रति पैदा की जा सकें . एक ही भाजी को अलग-अलग क्षेत्रों
में लोग विभिन्न नामों से जानते और पहचानते है. इस लेख में मैंने स्थानीय नाम के साथ-साथ हिंदी और वैज्ञानिक
नामों का उल्लेख किया है । छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली अथवा खाने में इस्तेमाल की जाने वाली भाजियों को
हम दो वर्गों में बाँट सकते है:
(अ) प्राकृतिक
रूप से उगने वाली बिना पैसे (मुफ्त) की भाजियां : प्रकृति प्रदत्त भाजिया जो बाड़ियों,
बंजर-घास जमीनों, गाँव की तीर, सड़क किनारे और जंगलों में पाई जाती है। इन भाजियों में मुख्यतः पोई भाजी,करमत्ता
भाजी,कौआ केनी भाजी,कोलिआरी भाजी,बुहार भाजी,मुश्केनी भाजी,चरोटा भाजी,बेंग
भाजी,सुनसुनिया/ तिनपनिया/चुनचुनिया भाजी,नोनिया भाजी, भथुआ भाजी,चनौटी/ चनौरी
भाजी, चिमटी भाजी,घोल भाजी, चौलाई भाजी, पथरी भाजी,गुमी भाजी, इमली भाजी, आदि है।
(ब) बोई
जाने वाली अथवा खरीद कर खाई जाने वाली भाजियां : ग्रामीणों और किसानों द्वारा अपनी बाड़ी
अथवा खेतों में बोई जाने वाली अथवा पैसे देकर बाजार से खरीद कर खाई जाने वाली
भाजियों में मुख्यतः पालक भाजी, मेथी भाजी, सरसों भाजी, बर्रे/कुसुम भाजी,चना भाजी,खेडा भाजी, अमारी/अम्बाडी
भाजी,कोचई भाजी,तिवरा /लाखड़ी भाजी,कुम्हड़ा भाजी, बरबटी भाजी,करेला भाजी, उरदा भाजी,
बुहार भाजी,प्याज भाजी, आलू भाजी, करेला भाजी, आदि।
इस आलेख में हम प्रदेश में उगाई जाने वाली अथवा बाजार से खरीद कर खाई जाने
वाली सर्व प्रिय प्रमुख शाक-भाजियों के
बारे में उपयोगी जानकारी प्रस्तुत कर रहे है।
बोई जाने वाली अथवा खरीद कर खाई जाने वाली भाजियां
जब हम
हरी पत्तेदार सब्जियों की बात करते है तो सबसे पहले पालक का नाम ही आता है भाजियों
में सबसे महत्वपूर्ण पालक लगभग हर घर में खाई जाती
है। यह ठन्डे मौसम की सबसे
स्वास्थ्य वर्धक भाजी मानी जाती है। गर्मीं में इसमें शीघ्र ही फूल आने लगते है। पालक पोषक तत्वों का खजाना है. इस में प्रोटीन, वसा, खनिज
तत्व, रेशा, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, मैग्नेशियम, आयरन, एवं विटामिन ‘ए’ ‘सी,
प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसकी 100
ग्राम पत्तियों में 92 ग्राम जल, प्रोटीन 2 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा
1 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 3 ग्राम, कैल्शियम 73 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 21 मि.ग्रा. और
आयरन 2 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसमें 43 कि
कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। पालक भाजी शीतल, स्वास्थ्यवर्द्धक, सुपाच्य, रक्तशोधक होती
है.यह पथरी, स्कैबीज, श्वेत कुष्ठ के रोगियों के लिए लाभकारी होती है। एनीमिया
से पीड़ित व्यक्तियों के लिए पालक का साग अथवा सूप बेहद फायदेमंद होता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ‘ए’ विद्यमान होने के कारण यह आँखों के लिए फायदेमंद है। इसके सेवन से पाचन तंत्र सुचारू रूप से काम करता है। पर्याप्त मात्रा में आयरन और विटामिन ‘सी’ होने के कारण यह
शरीर के मेटाबोलिज्म को सही करता है। मधुमेह और ह्रदय रोगियों के लिए भी पालक
गुणकारी है। पालक शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढाती है।
मेथी भाजी फोटो साभार गूगल |
2.मेथी भाजी (फेन्युग्रीक)
मेथी लोकप्रिय भाजियों में से एक है। सर्दी
का मौसम आते ही बाजार में मेथी खूब दिखने लगती है। मेथी दो प्रकार की होती है : सामान्य मेथी और
कसूरी मेथी। सामान्य मेथी शीघ्र बढती है तथा पत्तियां सीधी होती है, जबकि कसूरी
मेथी धीमी बढती है और पत्तियां मुड़ी रहती है। मेथी की पत्तियां सब्जी-भाजी के रूप
में तथा बीज मसाले के रूप में उपयोग में लाई जाती है। मेथी की भाजी और पराठे बनाकर
चाव से खाए जाते है। मेथी की पत्तियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन,
विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए मेथी की भाजी को अत्यंत
गुणकारी माना गया है। इसका बीज बोने के 30 दिन बाद काटने योग्य पत्तियां तैयार हो
जाती है। भाजी के लिए मेथी की तीन कटाईयां
ली जा सकती है। भाजी के लिए मेथी की बुआई 15 सितम्बर से 15 फरबरी तक की जा सकती है।
मेथी के पौष्टिक गुणों एवं स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी होने के कारण इसकी भाजी प्रत्येक घर में बनाई जाती है। मेथी की 100 ग्राम पत्तियों में 86 ग्राम
जल, प्रोटीन 4 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 6 ग्राम, कैल्शियम
395 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 51 मि.ग्रा. और
आयरन 2 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसमें 49
कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। इसके अलावा विटामिन सी, नियासिन,
फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम,
जिंक, कॉपर आदि भी मिलते हैं जो शरीर के लिए
बेहद जरूरी हैं। पेट ठीक रहे तो स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और खूबसूरती भी बनी रहती
है। मेथी पेट के लिए काफी फायदेमंद होती है। मेथी शरीर में मौजूद खराब कोलेस्ट्राल
को भी कम करते है। मोटापा को कम करने में
मदद करती है. इसके अलावा यह हाई बीपी, डायबिटीज, अपच आदि बीमारियों मे मेथी का सेवन लाभकारी पाया गया है ।
3.लाल भाजी (ऐमरेंथस ट्रिकलर)
लाल भाजी फोटो साभार गूगल |
हरी सब्जियों में
सर्व सुलभ और सदाबहार लाल भाजी (चौलाई) अर्थात खोटनी भाजी
अनेक प्रकार की होती है, मसलन छोटी चौलाई ((ऐमरेंथ सब्लिटम), बड़ी चौलाई (ऐमरेंथस ट्रिकलर), राजगिरा ((ऐमरेंथस काडेटस)
एवं खेड़ा भाजी (ऐमरेंथस
डूबियस) आदि । राजगिरा या रामदाना के
बीजों से स्वादिष्ट लड्डू बनाएं जाते है। चौलाई एक बहुप्रचलित
देशी साग है जिसकी
पत्तियां मीठी, शीतल,
सुपाच्य, मूत्रवर्धक, ज्वरनाशक, कफ, पित्त,रक्त विकार, ब्रोन्काइटिस,यकृत के रोग आदि में उपयोगी है। चौलाई
की हरी एवं रंगीन पत्तियों में प्रोटीन, खनिज तत्व, विटामिन-ए, रेशा जैसे अनेकों पौष्टिक तत्व प्रचुर
मात्रा में पाये जाते है। वैसे तो इसे वर्ष भर
उगाया जा सकता है, परन्तु गर्मियों में उगाई गई चौलाई अधिक पौष्टिक और लाभदायक होती
है। छोटी एवं बड़ी चौलाई से 5-6
बार कटाई कर भाजी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।
इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 82 ग्राम जल, प्रोटीन
5 ग्राम, रेशा 6 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 4 ग्राम, 38 कि. कैलोरी ऊर्जा, कैल्शियम 330 मि.ग्रा.,
फॉस्फोरस 52 मि.ग्रा. और आयरन 19 मि.ग्रा. पाया जाता है।
4.खेडा भाजी (ऐमरेंथस गैंजेटिकस)
खेडा
भाजी/जड़ी भाजी भी चौलाई का दूसरा प्रकार
है। खेड़ा भाजी के हरे कोमल पत्तों एवं तने से स्वादिष्ट भाजी एवं सब्जी
(मठा या दही के साथ) बनाई जाती है। आमतौर पर खेडा भाजी
अप्रैल-जुलाई माह में उपलब्ध रहती है। इसमें
प्रोटीन, खनिज तत्व, विटामिन ए और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.यह भाजी
वर्षा और शीत ऋतु में उपलब्ध रहती है। अप्रैल
से अगस्त तक मिलती है। इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 86 ग्राम जल, प्रोटीन
4 ग्राम, रेशा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेटस 6
ग्राम, ऊर्जा 45 कि. कैलोरी, कैल्शियम 397 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 83 मि.ग्रा. तथा
आयरन 3 मि.ग्रा. पाया जाता है ।
5.कांटा भाजी (अमरेंथस
स्पाईनोसस)
यह भी एक
प्रकार की चौलाई है, जिसके तनें में कांटे पाए जाते है इसकी मुलायम पत्तियों और
टहनियों का इस्तेमाल भाजी के रूप में किया जाता है। इसकी भाजी वर्षा एवं शरद ऋतु में उपलब्ध रहती है। खेतों में यह खरपतवार के रूप में भी उग आती है। इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 85 ग्राम जल, प्रोटीन 3 ग्राम, रेशा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 7
ग्राम, कैल्शियम 800 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 50 मि.ग्रा. और आयरन 23 मि.ग्रा. पाया
जाता है। इसमें 43 कि
कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है चौलाई की पत्तियों में वसा नहीं पाया जाता है।
बर्रे भाजी फोटो साभार गूगल |
6.बर्रे भाजी (कार्थेमस टिन्क्टोरिअस)
बर्रे
भाजी यानि कुसुम या करडी कम्पोसिटी कुल का पौधा है, जो
रबी (शीत ऋतु)
की तिलहनी फसल
है। प्रारम्भिक अवस्था में जब
इसके पौधे छोटे एवं वानस्पतिक अवस्था (बुआई के 30-35 दिन तक)
रहते है तब उनकी पत्तियां एवं कोमल ताने को भाजी
के रूप में इस्तेमाल किया
जाता है। कुसुम की भाजी
मेथी और पालक भाजी से अधिक पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्द्धक होती है । कुसुम की मुलायम नई पत्तियों में, प्रोटीन, आयरन तथा कैरोटीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता
है । इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 91
ग्राम जल, प्रोटीन 2 ग्राम, वसा 1 ग्राम,
रेशा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 4 ग्राम, 33 कि कैलोरी उर्जा,कैल्शियम 185 मि.ग्रा.,
फॉस्फोरस 35 मि.ग्रा. और आयरन 6 मि.ग्रा.
पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कैरोटीन 3540 माइक्रोग्राम, थाईमिन 0.04
मिग्रा., राइबोफ्लेविन 0.10 मिग्रा. तथा विटामिन ‘सी’ 15 मिग्रा. पाई जाती है। यही
नहीं कुसुम की पत्तियों में अन्य खनिज लवण जैसे मैग्नीशियम 51 मिग्रा.,सोडियम
126.4 मिग्रा.,पोटैशियम 181 मिग्रा.,कॉपर 0.22 मिग्रा., एवं क्लोरीन 235 मिग्रा.
पाया जाता है । कुसुम की पत्तियां अन्य आवश्यक एमिनो अम्ल में भी काफी धनी
होती है। इनमे पर्याप्त मात्रा में लाइसिन पाया जाता है। अतः धान्य खाध्य जिनमें लाइसिन की कमीं होती है उनके साथ
कुसुम भाजी का सेवन आहार को पौष्टिक बनता है । कुसुम के फूलों से स्वादिष्ट चाय बनाई जाती है, जो ह्रदय
और शुगर के मरीजों के लिए काफी लाभदायक होती है।
चना भाजी फोटो साभार गूगल |
7.चना भाजी (सिसर एराटिनम)
चना
जो लेग्युमिनोसी कुल के उपकुल पैपिलिओनेसी का सदस्य है जो शीत ऋतु (रबी) की
प्रमुख दलहनी फसल है। प्रारंभिक अवस्था
में जब पौधे छोटे रहते है तब उनकी मुलायम पत्तियों एवं फुन्गियों (शीर्ष) को तोड़कर
स्वादिष्ट भाजी तैयार की जाती है. सर्दियों की रात में खाने में चने के साग के साथ
मक्का या बाजरे की रोटी का स्वाद सिर्फ खाकर ही लिया जा सकता है। चने का साग खाने
में पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इसकी पत्तियों में पर्याप्त मात्रा में रेशा
तथा आयरन पाया जाता है। चने का साग हमारे शरीर में प्रोटीन की आपूर्ति करता है इसलिए
इसे प्रोटीन का राजा भी कहा जाता है. इसकी प्रति 100 ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 73.4 ग्राम जल, प्रोटीन 7 ग्राम, वसा 1.4 ग्राम, रेशा 2
ग्राम, कार्बोहाड्रेट 14.1 ग्राम,
कैल्शियम 340 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 120 मि.ग्रा., आयरन 23.8 मि.ग्रा.,के अलावा पर्याप्त
मात्र में कैरोटिन,थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन
पाया जाता है. इसमें 97 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है.चने की
पत्तियां औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है. यह खाने में शीतकारी प्रकृति की होती है।
पत्तियों में स्तंभक गुण होने के कारण अस्थमा रोगों में लाभकारी होती है। पत्तियों
का रस कब्ज, डायबिटिज, पीलिया आदि रोगों में बहुत फायदेमंद होता
है। इसकी पत्तियों को उबालकर चोट एवं जोड़ों की हड्डियों को ठीक करने के लिए प्रयोग
किया जाता है.
सरसों
मुख्य रूप से शीत ऋतु की तिलहनी फसल है । जब इसके पौधे प्रारम्भिक अवस्था में छोटे होते है और
पत्तियां मुलायम तथा रसीली होती है उस समय इसे भाजी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
बुवाई के 25-30 दिन पश्चात राई-सरसों की मुलायम टहनियां और पत्तों का साग के
रूप में प्रयोग किया जाता है। सर्दियों
में सरसों का साग का सेवन न केवल स्वाद में लज्जतदार होता है बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता
है। भारत के अनेक हिस्सों में
सरसों का साग और मक्के की रोटी (सरसों दा साग-मक्के दी रोटी) बहुत ही चाव से खाई
जाती है । इसकी 100
ग्राम पत्तियों में
90 ग्राम
जल, प्रोटीन 4 ग्राम, वसा
1 ग्राम, रेशा 2 ग्राम ,कार्बोहाड्रेट 3 ग्राम, कैल्शियम 155 मि.ग्रा., फॉस्फोरस
26 मि.ग्रा. और
आयरन 16 मि.ग्रा. पाया जाता
है। इसमें 34 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। इसके अलावा इसमें पोटेशियम,
विटामिन ए, सी, डी, बी 12, मैग्नीशियम,
आयरन और कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है। सरसों का साग एंटीऑक्सीडेंट्स
की मौजूदगी के कारण न सिर्फ शरीर से विषैले पदार्थो को दूर करते हैं बल्कि रोग
प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। सरसों के साग में फाइबर बहुत अधिक मात्रा में
होने के कारण पाचन क्रिया दुरूस्त रहती है, इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है और दिल के रोगों की आशंका भी कम हो जाती है। हड्डियों को मजबूत
बनाकर गठिया रोग और ऑस्टियोपोरोसिस से बचाता है।
अम्बाडी भाजी फोटो साभार गूगल |
9.अमारी भाजी (हिबिस्कस
केनेबिनस)
अमारी
यानि अम्बाडी भाजी भिण्डी (मालवेसी) कुल का एक वर्षीय झाड़ीदार पौधा है जिसे देश के ज़्यादातर हिस्सों में
सब्जी वाली फसल के रूप में उगाया और खाया जाता है। इसकी मुलायम पत्तियों एवं टहनियों को भाजी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी पत्तियों का स्वाद खट्टा होने के कारण इसका उपयोग रसम आदि दक्षिण भारतीय व्यजनों को बनाने में
किया जाता है । मुलायम पत्तियों के अलावा इसके वाह्य दल पुंज (पुष्प कलियाँ) को भी खट्टा भाजी,
कढ़ी,चटनी और सलाद आदि बनाने में इस्तेमाल
किया जाता है। इसकी पत्तियों में बीटा केरोटीन, आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अमारी भाजी की प्रति 100 ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 86.4 ग्राम जल, प्रोटीन 1.7 ग्राम, वसा 1.1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 9.9 ग्राम, कैल्शियम
172 मि.ग्रा., फॉस्फोरस
40 मि.ग्रा., आयरन 2.28 मि.ग्रा.,के अलावा कैरोटिन 2898 माइक्रोग्राम, थायमिन 0.07 मिग्रा.,राइबोफ्लेविन 0.39 मिग्रा.,नियासिन 1.1 मिग्रा. एवं विटामिन ‘सी’ 20 मिग्रा. पाया
जाता है। इसमें 56 कि. कैलोरी उर्जा
विद्यमान रहती है. इसमें पाए जाने वाले एमिनो अम्ल में लाइसिन की मात्रा अधिक होती
है जिसकी वजह से इसे अन्य धान्य फसलों (चावल, गेंहू) के साथ खाने से शरीर में
प्रोटीन का अच्छा संतुलन बनता है। अमारी के वाह्यदल पुंज में 3.74% साइट्रिक अम्ल और 3.19 %
पेक्टिन पाया जाता है, जिससे इसका उपयोग जेली आदि बनाने में भी किया जाता है.इसकी
भाजी जुलाई से फरवरी तक उपलब्ध रहती है।
कांदा अर्थात शकरकंद
एक वर्षीय कनवोल्वलेसी कुल की लता है, जिसे प्रमुख रूप से कंद के लिए वर्षा ऋतु
में लगाया जाता है । इसके कंद लाल या भूरे रंग के होते है । शकरकंद को कच्चा, भुन
कर अथवा पकाकर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। कंदों के साथ-साथ इसकी पत्तियां भी पौष्टिक
एवं स्वास्थ्य वर्धक होती है। इसकी कोमल एवं मुलायम पत्तियों से भाजी बनाई जाती है।
इसकी पत्तियों में 1.42 % रेशा, 6.4 % लिपिड, 13.5 % प्रोटीन, 67.8 % कार्बोहायड्रेट, 196 पी.पी.एम. आयरन और 100
ग्राम भाग में 328 किलो कैलोरी उर्जा पाई
जाती है । शकरकंद की पत्तियों का औषधीय महत्त्व भी है । इसमें विटामिन
सी और एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं जो शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। इसकी पत्तियों के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर
कम करने में मदद होती है। इसकी पत्तियों में एंटी-कार्सिनोजेन पाया जाता
है जो कैंसर से लड़ने में मदद करता है। शकरकंद की पत्तियों में फाइबर भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो
सूजन को दूर करने में कारगर होता है। इसके अलावा पत्तियों विद्यमान विटामिन, पोलीफेनॉलिक्स और एंथोसायनिन रक्त चाप को सामान्य बनाएं रखने में मदद
करते हैं।
11.कोचई भाजी (कोलोकेसिया
एस्कुलेन्टा)
कोचई भाजी फोटो साभार गूगल |
कोचई को अरबी, घुइयां और बोडा साग के नाम से भी जाना जाता है। अरबी बहुत प्राचीन काल से उगाया जाने वाला कंद
है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड,
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित कई
प्रदेशों में अरबी के पत्ते को बेसन में लपेटकर सब्जी और पकौड़ी बनाई जाती हैं। स्वाद के साथ-साथ
अगर देखा जाए तो अरबी पत्ता एक बेहतरीन औषधी भी है। इसकी 100
ग्राम पत्तियों में 83 ग्राम जल, प्रोटीन
4 ग्राम, रेशा 3 ग्राम , 46 कि कैलोरी
उर्जा, वसा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 7 ग्राम, कैल्शियम 227 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 82
मि.ग्रा. और आयरन 10 मि.ग्रा. पाया जाता है. इसके अलावा अरबी के पत्तियों में
विटामिन ’ए’, ‘बी’ ‘सी, पोटैशियम और एंटी-ओक्सिडेंट भी भरपूर मात्रा में पाए
जाते है। कोचई भाजी में बहुत से औषधीय गुण भी होते
है. इसके सेवन से जोड़ो के दर्द से राहत, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने, वजन कम
करने, पाचन तंत्र को दुरस्त रखने, आँखों को स्वास्थ्य रखने में यह लाभकारी होती है।
मुरई
यानि मूली की जड़ों/कन्दो का उपयोग सलाद और सब्जी बनाने तथा पत्तियों को भाजी के
रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मूली में गंध सल्फर यौगिक
की उपस्थिति के कारण होती है। मूली की पत्तियों में जड़ों की
अपेक्षा अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है। मूली की 100 ग्राम
पत्तियों में 91 ग्राम जल, प्रोटीन 4 ग्राम, रेशा 2 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 2 ग्राम, कैल्शियम 265
मि.ग्रा., एवं फॉस्फोरस 59 मि.ग्रा. पाया
जाता है. इसमें 28 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान
रहती है। इसके अलावा इसमें विटामिन बी, विटामिन सी
व विटामिन ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा मैशनिशियम व लौह तत्व
व क्लोरीन की मौजूदगी से मूली के पत्तों से मूत्र संबंधित विकारों में लाभ मिलता
है। मूली के पत्तों के सेवन से रक्त में ग्लूकोज कम करने में सहायता मिलती है,
जिससे बल्ड शुगर नियंत्रण में रहता है। मूली के पत्तों के सेवन से पेट की कब्ज,
गैस व एसीडिटी जैसी समस्याओं से निजात मिलती है।
मूली के पत्तों में मौजूद डीटाक्सीफिकेशन एजेंट शरीर में मौजूद विषैले तत्वों को
बाहर करते हैं और खून साफ रखने में भी सहायता करते हैं। इसके लिए आप मूली के
पत्तों का रस या इसका साग अथवा पाउडर खा सकते हैं।
13.गाजर (डाकस कारोटा)
गाजर भाजी फोटो साभार गूगल |
गाजर एक वार्षिक लता
है जिसे मुख्य रूप से कंद/जड़ों के लिए शरद
ऋतु में उगाया जाता है । गाजर सस्ता,
गुणकारी तथा लोकप्रिय मीठा कंद है जिसे कच्चा अथवा सलाद के रूप में स्वाद से खाया
जाता है। गाजर को अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर स्वादिष्ट मिक्स वेज तैयार किया
जाता है। गाजर से स्वादिष्ट
हलुआ और अन्य मिठाइयाँ तैयार की जाती है। गाजर तो स्वास्थ्य
के लिए अत्यंत लाभकारी है ही, इसकी पत्तियां भी सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती है।
गाजर की पत्तियों में गाजर से अधिक मात्रा में आयरन पाया जाता है। इसकी मुलायम
पत्तियों की भाजी पकाई जाती है। गाजर के पत्तों में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा
में पाया जाता है। इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 77 ग्राम जल, प्रोटीन
5 ग्राम, रेशा 2 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 13 ग्राम, कैल्शियम 340 मि.ग्रा., फॉस्फोरस
110 मि.ग्रा. और आयरन 9 मि.ग्रा. पाया
जाता है। इसमें 77 कि कैलोरी उर्जा
विद्यमान रहती है। गाजर की
पत्तियों में काफी मात्रा में आयरन पाया जाता
है जो हमारे शरीर को बीमारी और उसके कारण हुए नुक्सान से लड़ने में मदद करता है।
फूल गोभी शरद ऋतु
की लोकप्रिय सब्जी है। इसके फूल को पकाकर स्वादिष्ट सब्जी तैयार की जाती है। इसके
फूल से अचार भी बनाया जाता है। इसकी कोमल और मुलायम पत्तियों से भाजी भी बनाई
जाती है.गोभी की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. इन
पत्तियों में जितनी मात्रा में कैल्शियम होता है, उतना किसी दूसरी सब्जी में नहीं होता है ।साथ ही इसकी पत्तियां
फाइबर का भी अच्छा सोर्स होती हैं। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 80
ग्राम जल, प्रोटीन 6 ग्राम, वसा 1 ग्राम,
रेशा 2 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 8
ग्राम, ऊर्जा 66 की कैलोरी, कैल्शियम
626 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 107 मि.ग्रा. और आयरन 40 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसकी पत्तियों को खाने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं,
पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इसकी पत्तियां
शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी काफी कारगर होती है।
सुवा भाजी फोटो साभार गूगल |
15.सुवा भाजी (अनेथम ग्रेविओलेन्स )
इसे सुवा शेपू, सोया भाजी और अंग्रेजी में डिल
कहते है जो शीत ऋतु में उगाई जाती है अथवा गेंहू या चने के साथ स्वतः उग
आती है। सुवा के पत्ते और फूल सौंफ की तरह दिखते है। सुवा की पत्तियां और मुलायम तना भाजी के रूप में पकाई जाती है
अथवा अन्य सब्जियों में सुगंध लाने के लिए
उपयोग में लाई जाती है। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में प्रोटीन 3.6 ग्राम, वसा 1.12
ग्राम, रेशा 2.10 ग्राम ,कार्बोहाड्रेट 7 ग्राम, ऊर्जा 43
की.कैलोरी, कैल्शियम 208 मि.ग्रा.,
फॉस्फोरस 66 मि.ग्रा.,
मैग्नीशियम 55 मिग्रा., मैंगनीज 1.26 मिग्रा., सोडियम 61 मिग्रा., पोटैशियम 738
मिग्रा. और आयरन 6.59 मि.ग्रा. पाया जाता है. इसके अलावा इसकी पत्तियों में विटामिन ‘ए’,
‘सी, राइबोफ्लेविन, नियासिन,थायमिन फोलेट्स आदि भरपूर मात्रा में पाई जाती है। सुवा की भाजी को आहारीय झाड़ू की संज्ञा दी जाती क्योंकि पेट में गैस होना, अजीर्ण या कीड़े हो जाने जैसी तमाम समस्याओं का निदान करती है। इसके सेवन से डाह, शूल, नेत्र रोग, प्यास, अतिसार आदि का खात्मा होता है। इसकी भाजी भूख बढ़ाने वाली, मूत्ररोधक, बुद्धिवर्धक, कफ और वायुनाशक भी होती है।
मखना भाजी फोटो साभार गूगल |
16.मखना भाजी (कुकुरविटा मेक्सिमा)
मखना
को कद्दू, कुम्हड़ा और अंग्रेजी में पम्पकिन कहते है। मखना को प्रमुख रूप से उसके फलों (कुम्हड़ा) के लिए
ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में उगाया जाता है। फलों से तो बेहतरीन सब्जी बनती ही है, इसके कोमल पत्तों, कलियों और फूल
से लजीज भाजी पकाई जाती है। कुम्हड़ा के पत्ते उसके फूल और फल से ज्यादा
पौष्टिक होते है। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 82 ग्राम जल, प्रोटीन 5 ग्राम, वसा 1 ग्राम, खनिज रेशा 2 ग्राम , कार्बोहाड्रेटस 8 ग्राम, 57 कि. कैलोरी ऊर्जा, कैल्शियम 392
मि.ग्रा., एवं फॉस्फोरस 112 मि.ग्रा. पाया
जाता है । इसकी भाजी शरीर में खून बढाती है और पाचन तंत्र
को स्वस्थ्य रखती है ।
खीरा भाजी फोटो साभार गूगल |
17.खीरा भाजी (कुकुमस सेटाइवस)
मसालों
में जीरा और सलाद में खीरा बिना भोजन का स्वाद अधुरा रहता है । शरीर
की भीतरी शुद्धि हो या फिर बहरी ठंडक, खीरा/ककड़ी हर तरह से लाजवाब होता है। खीरा/ककड़ी
को कच्चा खाने में और भोजन के साथ सलाद के
रूप में इस्तेमाल किया जाता है ।खीरा वार्षिक लतायुक्त शाक है जिसे मुख्यतः फलों के लिए उगाया जाता है। इसकी
मुलायम पत्तियां एवं फूलों की भाजी तैयार की जाती है। बहुधा खीरा की हरी और मुलायम
पत्तियां दिसंबर और मार्च में उपलब्ध होती है। पेट की गड़बड़ी तथा कब्ज में खीरा
को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है । खीरा की पत्तियां पीलिया, ज्वर, शरीर की जलन और चरम रोग में लाभदायक है। खीरे
का रस पथरी,
पेशाब में जलन, रुकावट और मधुमेह में भी लाभदायक पाया गया है।
धनिया एक
महत्वपूर्ण मसाले की फसल है। भारतीय भोजन में
धनिया पत्ती का इस्तेमाल मुख्यरूप से खाने को सजाने के लिए किया जाता है । इसकी हरी
पत्तियों का प्रयोग सब्जी भाजी में स्वाद
और सुगंध लाने और चटनी बनाने में किया जाता है। धनियाँ में मधुर सुगंध कोरियिन्ड्राल एवं लिनाकोल
एल्कोहलिक पदार्थ उपस्थित रहने के कारण होती है। धनिया की पत्तियों में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में होता
है तथा विटामिन सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा आयरन मध्यम मात्रा में होता है। इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 86.3 ग्राम जल,
प्रोटीन 3.3 ग्राम, वसा 0.6 ग्राम, रेशा 1.2 ग्राम, कार्बोहाड्रेटस 6.3 ग्राम, ऊर्जा 44
कि. कैलोरी, कैल्शियम 184 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 71 ग्राम एवं आयरन
18.5 मि.ग्रा. तथा विटामिन्स पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। इसकी
पत्तियां स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले कोलेस्ट्रॉल
को कम करने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करती है। पाचन तंत्र के लिए
भी ये विशेष रूप से लाभकारी
होती है। ये लीवर की सक्रियता को बढ़ाने
में मदद करता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए धनिया पत्ती फायदेमंद होती है। ये ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने का
काम करता है। मुंह के घाव को ठीक करने में भी ये काफी कारगर पाई गई है। इसमें मौजूद
एंटी-सेप्टिक गुण मुंह के घाव को जल्दी भरने का काम करता है।
19. करी पत्ता
(मुरैया कोइनिगी)
करी पत्ता यानि मीठा नीम रूटेसी कुल का झाड़ीदार औषधीय महत्त्व का पौधा है। इसकी पत्तियों का उपयोग विविध प्रकार के व्यंजनों यथा दाल,
कढ़ी, सांभर,रसम, पोहा आदि में स्वाद-सुगंध उत्पन्न करने और जायका बढ़ाने के लिए किया जाता है। करी पत्ता में विटामिन ‘ए’ और फोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में
पाया जाता है । इसकी प्रति 100
ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 63.8 ग्राम जल, प्रोटीन 6.1 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा 6.4 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 18.7 ग्राम, ऊर्जा 108
कि. कैलोरी, कैल्शियम
830 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 57 मि.ग्रा.,
आयरन 7 मि.ग्रा.,के अलावा
पर्याप्त मात्रा में कैरोटिन,थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन पाया
जाता है । करी पत्ते में अनेक औषधीय गुण पाए जाते है। करी पत्ते का सेवन करने से लिवर और दिल से सम्बंधित बीमारियों में लाभ होता है। एनीमीआ के खतरे को कम करता है और शरीर में ब्लड-शुगर के स्तर को नियंत्रित रखता है। करी पत्ता त्वचा रोग और दाग-धब्बो और मुहांसो से निजात दिलाने में लाभकारी होता है।
कुट्टू भाजी फोटो साभार गूगल |
20.कुटटु भाजी(फैगोपाइरम
एस्कुलेंटम)
टाऊ अर्थात कुट्टू (बक व्हीट) पोलिगोनेसी कुल का शाकीय पौधा
है जिसे मुख्यरूप से इसके दाने के लिए उगाया जाता है जिसका आटा तैयार करके रोटी,
पुड़ी,ब्रेड, केक तथा पुरिज बनाने में प्रयोग किया जाता है। व्रत में टाऊ के आटे से बने विविध पकवान खाए जाते है। इसकी मुलायम पत्तियों को भाजी के रूप में प्रयोग किया जाता
है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन एवं अन्य खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते
है. इसकी पत्तियों में 57 % नमीं, 25.1 % प्रोटीन, 3.3 % वसा, 21.3 % खनिज, 7.7 %
रेशा, 36 % कार्बोहाईड्रेटस, 2.12 % कैल्शियम तथा पर्याप्त मात्रा में फॉस्फोरस
एवं आयरन पाया जाता है। टाऊ के फूल मधु का अच्छा स्त्रोत होते है. इसके खेतों के
आस-पास मधुमक्खी पालन बहुत लाभकारी होता है। एक एकड़ टाऊ की फसल
से 40-50 किग्रा. मधुरस पैदा किया जा सकता है। इससे प्राप्त मधु गहरे हरे रंग की
विशिष्ट सुगंध लिए होती है। छत्तीसगढ़ के मैनपाट तथा बलरामपुर एवं जशपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में टाऊ
की खेती (सितम्बर-अक्टूबर) बहुतायत में की जाती है। कुटटु के दाने तो गुणकारी है ही, इसकी पत्तियों और फूल में भी औषधीय गुण पाए जाते है। इसके पत्ते में रुटिन नामक तत्व पाया जाता है जो पैर के जोड़ो के दर्द और उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करता है परन्तु अधिक मात्रा में इसकी पत्तियां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
शलजम (टर्निप) सब्जी
और सलाद के रूप में उपयोगी है. पत्तियों का भाजी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है
। शलजम की पत्तियों में विटमिन ए और के,
मिनरल, अमीनो ऐसिड, कैरोटीन
और ल्यूटीन पाया जाता है। शलजम के छोटे-छोटे पत्तों को काटकर लोहे की कढ़ाई में पकाकर
खाने से आयरन अधिक मात्रा में प्राप्त
होता है । शलजम की पत्तियों को किसी दूसरी सब्जी के साथ मिला कर पकाने से उसका
कड़वापन खत्म हो जाता है। सलाद के रूप में शलजम की पत्तियों का खाना चाहिए। इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 81.9 ग्राम जल,
प्रोटीन 4 ग्राम, वसा 1.5 ग्राम, रेशा
1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 9.4 ग्राम,ऊर्जा 67 कि
कैलोरी के साथ-साथ कैल्शियम 710 मि.ग्रा.,
फॉस्फोरस 60 मि.ग्रा. एवं आयरन 28.4
मि.ग्रा. पाया जाता है । इसके अतिरिक्त शलजम की हरी पत्तियों में कैरोटिन,थायमिन, राइबोफ्लेविन,नियासिन आदि विटामिन्स भी भरपूर मात्रा में पाए जाते है।
चुकंदर को मुख्य रूप से कंद के
लिए शीत ऋतु में उगाया जाता है। इसके कंदों का इस्तेमाल मुख्य रूप से सलाद के रूप में किया जाता है. इसे अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर मिलवा तरकारी के
रूप में भी पकाया जाता है । इसकी 100 ग्राम
पत्तियों में 86.4 ग्राम जल,
प्रोटीन 3.4 ग्राम, वसा 0.8 ग्राम, रेशा
0.7 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 6.5 ग्राम,
कैल्शियम 380 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 30
मि.ग्रा., आयरन 16.2 मि.ग्रा.,के अलावा पर्याप्त मात्रा में कैरोटिन, थायमिन, राइबोफ्लेविन,नियासिन पाया
जाता है. इसमें 67 कि कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। स्वास्थ्य के लिए चुकंदर कंद बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और खून की कमीं दूर होती है। इसकी पत्तियां भी स्वास्थ के लिए बेहद लाभकारी होती है। पत्तों में कैल्शियम की मात्रा भरपूर होने के कारण यह हड्डियों के विकास में मदद करती है। चुकंदर के पत्ते भी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने, त्वचा में निखार लाने तथा शरीर में खून बढ़ाने में उपयोगी है। इसके अलावा इसके पत्तों का सेवन करने से याददाश्त बढ़ती है।
23.तिवरा/लाखड़ी भाजी
(लेथायरस सटीवा )
तिवरा/लाखड़ी एक
दलहनी फसल है जिसे बहुदा धान के खेतों में
उतेरा फसल के रूप में बोया जाता है। इसके कोमल पत्तों को कच्चा और पकाकर भाजी के
रूप में बड़े शौक से खाया जाता है। इसकी हरी फलियों से प्राप्त दानों से भी सब्जी
बनाई जाती है। इसकी 100 ग्राम पत्तियों
में 84.8 ग्राम जल, प्रोटीन 6.1 ग्राम, वसा 1
ग्राम, रेशा 2.1 ग्राम,
कार्बोहाड्रेटस 5.5 ग्राम, ऊर्जा 55 कि.कैलोरी, कैल्शियम 160 मि.ग्रा., फॉस्फोरस
100 मि.ग्रा., आयरन 7.3 मि.ग्रा.,के अलावा पर्याप्त मात्र में कैरोटिन 3000
माइक्रो ग्राम ,थायमिन 0.0 1 मिग्रा. एवं राइबोफ्लेविन 0.03 मिग्रा. पाया जाता है।
24.झुरगा/बरबट्टी भाजी
झुरगा
यानि बरबट्टी को मुख्यतः उसकी फलियों के लिए उगाया जाता है। इसकी फलियों और दानों की पौष्टिक तरकारी तो बनती ही है, इसकी
कोमल और मुलायम पत्तियों से स्वादिष्ट भाजी बनाई जाती है। इसकी प्रति 100 ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 89 ग्राम जल, प्रोटीन 3
ग्राम, वसा 1 ग्राम, खनिज तत्व 2 ग्राम, रेशा 1 ग्राम,
कार्बोहाड्रेट 4 ग्राम, ऊर्जा 38 कि.कैलोरी, कैल्शियम
290 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 58 मि.ग्रा. और
आयरन 20 मि.ग्रा. पाया जाता है।
प्याज के
पत्ते और मुलायम कंद को ही छत्तीसगढ़ में
कांदा भाजी कहा जाता है। प्याज कंद का
प्रयोग सब्जिओं और दाल अथवा मटन में तड़का लगाने हेतु किया जाता है । प्याज के छोटे कन्दो सहित मुलायम पत्तियों से स्वादिष्ट
भाजी तैयार की जाती है। हरे प्याज में
विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन बी2
भरपूर पाए जाते हैं. इसके अलावा ये थायमीन और विटामिन के का भी
एक अच्छा स्त्रोत है। विटामिन के साथ-साथ इसमें कॉपर, फॉस्फोरस,
मैग्नीशियम, पोटैशियम, क्रोमियम और मैगनीज जैसे स्वस्थ्य के लिए आवश्यक लवण भी पाए जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर शरीर को और बेहतर तरीके से पोषण देने का काम करते हैं। इसके साथ ही इसमें पैक्टिन की भी मात्रा उपलब्ध
होती है जो विभिन्न प्रकार के कैंसर से बचाव में सहयक है। सेहत के लिए आवश्यक बहुत
सारे विटामिन, लवण और दूसरे पोषक यौगिकों से पूर्ण
स्प्रिंग अनियन एक सेहतमंद विकल्प है। प्याज भाजी के सेवन से रक्त चाप और दिल से जुडी बिमारियों पर नियंत्रण होता है। इसके अलावा सल्फर धमनियों से जुड़ी
समस्याओं से बचाव में सहायक साबित होता है। इसके सेवन से सर्दी-जुकाम में राहत मिलती है ।
26.सूरन भाजी (एमोमोर्फिलस कैम्पैनुलेटस)
यह अरेकेसी कुल का एक वर्षीय शाक है। मुख्य रूप से इसे कंद
के लिए उगाया जाता है, जिसकी स्वादिष्ट और जायके दर सब्जी पूरे प्रदेश में बड़े ही
शौक से खाई जाती है। इसकी कोमल पत्तियों को तोड़कर छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर
भाजी पकाई जाती है। सूरन की ताज़ी हरी
पत्तियाँ जुलाई-अगस्त में उपलब्ध रहती है। इसके कंद की स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती
है जिसे पूरे प्रदेश में बड़े चाव से खाया जाता है।
खुनखुनिया अर्थात सन एक
ऐसा पौधा जिसका छोटे पर साग, थोड़ा बड़ा
होने पर सब्जी, और पूरी तरह तैयार होने पर उसके छिलके (रेशे) से अनेक प्रकार की रस्सियां बनाई जाती है और उसके डण्ठल का उपयोग रसोई में खाना पकाने तथा घर के छप्पर बनाने में
किया जाता है । सन को जब खेत में
बोते हैं तो उसके छोटे और मुलायम रहने पर उसका साग खाया जाता है। कुछ समय बाद जब
उसका फल लगता है तो उसका सब्जी बनती है। जब वो कड़ा हो जाता है तो उसके फल को आगे
बीज के लिए रख दिया जाता है। इसके तने के छिलके (रेशे) से तरह तरह की रस्सियां और चारपाई बीनने वाली रस्सी भी बनाई जाती हैं। रेशा निकालने के पश्चात डंडों
को छप्पड़ बनाने अथवा
जलाऊ लकड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता
है।
अगाथी को अगस्ती
लेग्युमिनोसी कुल का मुलायम लकड़ी वाला शीघ्र बढ़ने वाला पौधा है.इसकी मुलायम
पत्तियाँ एवं फूलों को भाजी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी पत्तियों में
विटामिन ‘सी’,कैल्सियम और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अगाथी की
पत्तियों के प्रति 100 ग्राम खाने योग्य
भाग में जल 73.1 ग्राम, प्रोटीन 8.4
ग्राम, वसा 1.4 ग्राम, खनिज 3.1 ग्राम,
रेशा 2.2 ग्राम, कार्बोहाड्रेटस 11.8 ग्राम, ऊर्जा 93 क.कैलोरी, कैल्शियम 1130
मि.ग्रा., फॉस्फोरस 80 मि.ग्रा. और आयरन 3.9 मि.ग्रा. पाया जाता है।इसके अलावा
कैरोटीन 5400 माइक्रोग्राम, थाइमिन 0.21
मिग्रा., राइबोफ्लेविन 0.0.9 मिग्रा., नियासिन 1.2 मिग्रा. एवं विटामिन सी 165
मिग्रा. पाया जाता है। इसकी पत्तियों में अनेक औषधीय गुण भी होते है। पत्तियाँ मूत्र
वर्धक एवं रेचक होती है। कटने पर इसकी पत्तियों की पुल्टिस बाँधी जाती है.मुंह में
छाले पड़ने पर इसकी पत्तियां चबाने से आराम मिलता है।
उपरोक्त भाजियों के अलावा और भी अनेक प्रकार की
भाजियां जैसे उरिदा भाजी, लौकी भाजी, बटरा भाजी, पुदीना भाजी, आदि भी खाने में इस्तेमाल की जाती है । छत्तीसगढ़
राज्य में प्राकृतिक रूप से उगने वाली और बिना पैसे (मुफ्त) में अनेक प्रकार की भाजियाँ उपलब्ध है, जिनका यहाँ के ग्रामीण और वनवासी उपयोग कर रहे है इन मौसमी भाजियों
के बारे में उपयोगी जानकारी हम अपने दूसरे आलेख/ब्लॉग में प्रस्तुत कर चुके है । इस आलेख में प्रस्तुत जानकारी आपको कैसी लगी, कृपया अपनी
प्रतिक्रिया से हमे अवश्य ही अवगत कराएँ और यदि आपके पास भाजियों से सम्बंधित कुछ
जानकारी है तो हमे भी अवगत कराएँ।
कृपया ध्यान
देवें : भाजियों के महत्त्व को दर्शाने के लिए मैंने विभिन्न
अपुष्ट स्त्रोतों से जानकारी संकलित कर उनके औषधीय उपयोग भी दिए है । परन्तु किसी भी रोग के
उपचार हेतु सम्बंधित भाजी के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक से परमर्श अवश्य कर
लेवें। इस आलेख को अन्यंत्र प्रकाशित करने के पूर्व लेखक से
अनुमति अवश्य ले लेवें और प्रकाशित करते समय लेख के साथ लेखक का नाम और पता अवश्य
अंकित करें तथा प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को अवश्य भेजें ।
3 टिप्पणियां:
bahut badhiya jankari
9873452224
उत्तर प्रदेश प्रयागराज
छतीसगढ़ से बेहद प्यार है।
It is really a very comprehensive collection of leafy vegetables of Chhatisgarh "hats off to Dr. Gajendra Singh Tomar"
एक टिप्पणी भेजें