हरे चारे के अभाव में साइलेज से पशुधन की पोषण सुरक्षा
डॉ.गजेंद्र
सिंह तोमर,प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी),
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय
एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
देश में पशुधन के पोषण हेतु हरे
और पौष्टिक चारे की बहुत कमी है। निरंतर घटती जोत के कारण मात्र 4
फीसदी कृषि भूमि पर हरे चारे का उत्पादन संभव हो पा रहा है। जबकि देश की कुल कृषि भूमि
में से 8 प्रतिशत जमीन पर हरे चारे की पैदावार होनी चाहिए। सघन
फलस चक्र में चारे की फसलें उगाने के बावजूद वर्ष में दो बार हरे चारे की कमी के अवसर आते हैं।
मानसून शुरू होने से पहले यानि अप्रैल-जून तथा मानसून समाप्त होने के बाद बाद यानी अक्तूबर-नवम्बर में हरे चारे की
कमी होती है। जबकि जनवरी-मार्च एवं अगस्त-सितंबर महीनों के दौरान हरा चारा आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध रहता है। इसके अलावा वर्षा एवं शीत ऋतु में चरागाहों में भी प्रचुर मात्रा में घास उपलब्ध रहती है। यदि आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादित हरे चारे को उपयुक्त तरीके से सरंक्षित कर लिया जाये तो चारा संकट/अभाव के दिनों में पशुधन को पौष्टिक आहार प्रदान किया जा सकता है। हरा चारा सरंक्षण हेतु साइलेज सर्वश्रेष्ठ विधि है। अधिकतर
पशुपालक पशुओं को अपौष्टिक भूसा या पुआल खिलाते है जिससे पशुओं के स्वास्थ और उनकी
उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि सूखे चारे में प्रोटीन, खनिज तत्व
एवं ऊर्जा की उपलब्धतता कम होती है। हरे चारे की कमी के समय साइलेज खिलाकर पशुओं
का दूध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। साइलेज की पाचनशीलता व स्वाद अच्छा होता है।
इसमें 80-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व मौजूद होते
हैं।
हरा चारा जिसमें नमी की
पर्याप्त मात्रा होती है, को हवा की अनुपस्थिति में जब किसी गड्ढे में दबाया जाता
है तो किण्डवन की क्रिया से वह चारा कुछ समय बाद एक अचार की तरह बन जाता है जिसे
साइलेज कहते हैं। दूसरे शब्दों में हरे चारे को हवा की अनुपस्थिती में गड्ढे के
अन्दर रसदार परिरिक्षित अवस्था में रखने से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है जो चारे
का पी.एच.कम कर देता है तथा हरे चारे को सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे
को साइलेज कहते है। हरे चारे की कमी के समय साइलेज खिलाकर पशुओं को स्वस्थ और उत्पादक बनाया
जा सकता है।
साइलेज बनाने हेतु उपयुक्त फसलें
साइलेज लगभग सभी घासों से
अकेले अथवा उनके मिश्रण से बनाया जा सकता है. चारे की फसलें जिनमें घुलन शील
कार्बोहाईड्रेट्स अधिक मात्रा में हो, उन्हें साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त माना
जाता हैं जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, नैपियर, गिन्नी घास, जई एवं प्राकृतिक घास । कार्बोहाईड्रेट
की अधिकता से दबे चारे में किण्वन क्रिया तीव्र होती है। मोटे तने वाले पौधे जैसे
मक्का, ज्वार, बाजरा अदि सालेज बनाने के लिए बेहतर होते है। दलहनी फसलों में कार्बोहाइड्रेटस कम तथा नमी की
मात्रा अधिक होती है। अतः इनका साइलेज अच्छा नहीं रहता
परन्तु दलहनी फसलों को अधिक कार्बोहाइड्रेटस वाली डेन वाली फसलों के साथ मिलाकर
अथवा शीरा या गुड का घोल मिला कर अच्छा साइलेज बनाया जा सकता है।
साइलेज हेतु फसल की कटाई
साइलेज बनाने के लिए दाने वाली
चारे की फसलों जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, जई आदि को 50 % पुष्पावस्था (फूल आने पर) से लेकर दानों के दूधिया
होने तक की अवस्था में काट लेना चाहिए। कटाई के उपरान्त हरे चारे को 60-70 प्रतिशत नमीं आने तक सुखा लेना चाहिए। चारे में नमीं की अधिक मात्रा होने
पर उसे थोड़ा सुखा लेना चाहिए।
साइलेज हेतु गड्ढे बनाना
साइलेज बनाने के लिए सबसे पहले
पशुशाला के समीप साइलो पिट (गड्ढा) बनाया जाता है। इसके लिए शुष्क एवं ऊंचे स्थान
पर का चयन करना चाहिए ताकि वर्षा के पानी का निकास अच्छी प्रकार से हो सके। साइलेज
जिन गड्ढों में बनाया जाता है उन्हें
साइलोपिट्स कहते हैं। साइलोपिट्स कई प्रकार के हो सकते हैं परन्तु ट्रेन्च साइलो बनाना सस्ता व आसान होता हैं। गड्ढों
का आकार उपलब्ध चारे और पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। सामान्यतौर पर 1x1x1 मीटर व्यास के गड्ढे में लगभग 4-5 क्विंटल साइलेज बनाया जा सकता है । साइलो के फर्श व दीवारें पक्की बनानी चाहिए और यदि ये
संभव न हो तो दीवारों की गोबर-मिटटी से लिपाई भी की जा सकती है। इसके बाद सूखे
चारे की एक तह लगा देना चाहिए या चारों ओर दीवारों के साथ पोलीथिन लगा देना चाहिए।कम मात्रा में साइलेज प्लास्टिक बैग में भी बनाया जा सकता है।
सायलोपिट को भरना एवं बंद करना
हरे चारे को उचित नमीं (60-70 %) तक सुखाने के बाद चारा काटने वाली मशीन से उसे छोटे-छोटे टुकड़ों (3-5 से.मी.) में काट लिया जाता है जिससे कम जगह में एवं वायु रहित वातावरण में भंडारित किया जा सके। हरे चारे की कुट्टी को
गड्ढों (साइलोपिट) में अच्छी प्रकार परत दर परत भरकर पैरों अथवा अन्य तरीके से भली भांति दबाना चाहिए, जिससे किसी भी कोने में हवा न रह जाये। कुट्टी को उस समय तक भरना चाहिए जब तक की कुट्टी की ऊंचाई साइलो की ऊपरी सतह से लगभग
एक मीटर न हो जाये । चारा भराई के बाद ऊपर की सतह को गुम्बदाकार
बनाने के पश्चात पोलीथिन अथवा सूखे घास से अच्छी प्रकार से ढँक कर उसके ऊपर मिटटी की 15-20 से.मी. मोटी तह बिछा कर मिटटी एवं गोबर से लीप देना चाहिए जिससे उसमे बाहर से पानी या हवा न प्रवेश कर सकें।इस प्रकार से सुरक्षित किया गया हरा चारा 45-60 दिन में साइलेज के रूप में परिवर्तित हो जाता है। उत्तम किस्म की साइलेज की महक अम्लीय होती है। दुर्गन्ध युक्त एवं तीखी गंध वाली साइलेज ख़राब होती है।
सायलोपिट को खोलना
अच्छी प्रकार से सायलोपिट भरने एवं बंद करने के 45-60 दिन बाद यानि डेढ़ से दो माह बाद चारा निकालने के लिए खोला जा सकता है। सायलोपिट का कुछ हिस्सा खोलकर साइलेज एक
तरफ से परतों में निकालना चाहिए और पुनः उसे अच्छी प्रकार से ढँक देवें। सायलोपिट खोलने के बाद
साइलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करन चाहिए। चिपचिपी फफूंद लगी
साइलेज को पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।
सभी
पशु खा सकते हैं साइलेज
सभी प्रकार के पशुओं को साइलेज
खिलाया जा सकता है। एक भाग सूखा चारा, एक
भाग साइलेज मिलाकर खिलाना चाहिए। गड्ढे को भरने के तीन महीने बाद उसे खोलना चाहिए।
खोलते वक्त एक बात का विशेष ध्यान रखें कि साइलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए।
एक सामान्य पशु को हरे चारे की 35-50 प्रतिशत मात्रा साइलेज के रूप में खिलाई जा सकती है। प्रारम्भ में साइलेज को थोड़ी मात्रा में अन्य चारों के साथ मिला कर
पशु को खिलाना चाहिए तथा धीरे-धीरे पशुओं को इसका स्वाद/आदत लग जाने पर इसकी मात्रा 20-25 किलो ग्राम प्रति पशु प्रति दिन तक बढायी जा सकती है। दुधारू पशुओं को साइलेज दूध
निकालने के बाद खिलाएं ताकि दूध में साइलेज की गंध न आ सके ।
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