मेंहदी की खेती बिना पानी एवं कम लागत में
एक लाभकारी व्यवसाय
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
मेंहदी (लासोनिया इनरमिस) जिसे हिना भी कहते है, एक बहुवर्षीय झाड़ीदार फसल है, जिसे व्यवसायिक रूप से पत्ती उत्पादन के लिए उगाया जाता है।इसके पुष्पों में मद्कारी सुगंध होने से इसे मदयन्तिका भी कहते है। मेंहदी की पत्तियों में ‘लासोन’ नामक रंजक योगिक होता है जो बालों एवं शारीर को रंगने के लिए उपयोग किया जाता है। मेहंदी एक ऐसा कुदरती पौधा है, जिसके पत्तों, फूलों, बीजों एवं छालों में औषधीय गुण समाए होते हैं। मेंहदी प्राकृतिक रंग का एक प्रमुख स्रोत है। त्यौहार और उत्सवों के पहले दिन सुहागिन स्त्रियों के लिये हथेलियों पर मेहंदी का श्रृंगार, सुंदरता एवं सौम्यता का प्रतीक माना जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके रोग-निवारक गुणों की महिमा का वर्णन मिलता है। सच पूछिये तो मेंहदी सौंदर्य में चार चांद लगा देती है। शादी ही नहीं बल्कि अनेक महत्वपूर्ण पर्व और त्योहारों पर हांथों पर मेहंदी लगाना सुंदर एवं शुभ माना जाता है। मेहंदी जहां हथेली और बालों की सुंदरता को निखारती है, वहीं स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत लाभदायक है।
उच्च रक्तचाप के रोगियों के तलवों तथा हथेलियों पर मेहंदी का लेप समय समय पर लगाना लाभप्रद होता है। ताजा हरी पत्तियों को पानी के साथ पीस कर लेप करने से गर्मी की जलन से आराम मिलता है। मेहंदी के फूल उत्तेजक, हृदय को बल देने वाले होते हैं। इसका काढ़ा हृदय को संरक्षण करने तथा नींद लाने के लिये दिया जाता है। मेहंदी के बीजों का उपयोग बुखार एवं मानसिक रोग में किया जाता है। मेहंदी की छाल का प्रयोग पीलिया, बढे़ हुए जिगर और तिल्ली, पथरी, जलन, कुष्ठ और चर्म रोगों में किया जाता है। जली हुई या छाले पड़ी हुई जगह पर मेहंदी का चूर्ण शहद में लिा कर लगा देने से तत्काल राहत मिलती है। मुंह के छालों, मसूड़ों की सूजन तथा गले की सूजन में मेहंदी पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से लाभ होता है।
मेंहदी से हथेली का श्रंगार फोटो साभार गूगल |
मेंहदी की खेती
मेहँदी शुष्क
एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बहुवर्षीय फसल के रूप में टिकाऊ खेती के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। मेंहदी की खेती पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है। बिना पानी एवं सीमित लागत में वर्षाधीन क्षेत्रों में मेंहदी की खेती लाभकारी साबित हो रही है । राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ राज्यों की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है। भारत में सबसे अधिक (90 %) क्षेत्रफल में मेंहदी की खेती राजस्थान के पाली जिले
में की जाती है और यहाँ पर सर्वोतम गुणवत्ता की विश्व प्रसिद्ध ‘सोजत की मेंहदी’ का उत्पादन होता है | भारत से मेंहदी पूरी दुनियां को भेजी जाती है। वर्ष 2015-16 में करीब 511 करोड़ रूपये की मेहँदी निर्यात की गई। सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री एवं औषधीय उत्पादों के निर्माण में मेंहदी की बढती मांग को देखते हुए इसकी खेती और व्यवसाय की अपार संभावनाएं है ।
- Ø मानसून की अनिश्चितता में मेंहदी निश्चित आय प्रदान करने वाली बहुपयोगी फसल है।
- Ø सीमित खाद-उर्वरक प्रयोग एवं न्यूनतम प्रबंधन में मेंहदी की वर्षा आधारित खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है ।
- Ø मेंहदी मृदा कटाव को रोकने, एवं मृदा आवरण को बनाये रखने एवं मृदा में जल सरक्षण बढ़ाने कारगर है।
- Ø सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में हर घर में इस्तेमाल होने के कारण इसके विपणन में आसानी रहती है।
- Ø बहुवर्षीय फसल होने के कारण प्रति वर्ष उपज एवं आमदनी सुनिश्चित तथा हर बार नई फसल लगाने की आवश्यकता नहीं यानि एक बार लगाओ और कई वर्षो तक उपज लो ।
- Ø खेतों में फसल सुरक्षा अथवा बगीचों की घेराबंदी के लिए उपयोगी है ।
- Ø मेंहदी के पौधे आस-पास के वातावरण को सुगन्धित रखता है ।
- Ø श्रृंगार के साथ-साथ मेंहदी आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधीय है ।
मृदा एवं जलवायु
मेंहदी की खेती कंकरीली, पथरीली, हल्की एवं भारी, लवणीय एवं क्षारीय सभी प्रकार की भूमियों में आसानी से की जा सकती है। उत्तम गुणवत्ता की पैदावार के लिए सामान्य बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है ।मिट्टी का पी एच मान 7.5 से 8.5 उपयुक्त रहता है । इसका पौधा शुष्क से उष्णकटिबंधीय और सामान्य गर्म जलवायु में अच्छी वृद्धि करता है। इसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों से लेकर अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। फसल वृद्धिकाल के दौरान लगभग 30–40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा अच्छी गुणवत्ता की पत्तियों की पैदावार के लिए गर्म, शुष्क एवं खुले मौसम की आवश्यकता होती है।
खेत की तैयारी
मेंहदी की सफल खेती हेतु वर्षा ऋतु पूर्व खेत की मेड़बन्दी करें जिससे खेत में पानी का सरंक्षण हो सकें । खेत से खरपतवार को उखाड़कर साफ़ करने के बाद मिट्टी पलटने
वाले हल से एक गहरी जुताई करे। वर्षा प्रारंभ होने के साथ खेत में डिस्क हैरो एवं कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।
मेंहदी
की
किस्में
मेंहदी की स्वस्थ, चौड़ी व घनी पत्तियों वाले एक समान पौधों से बीज एकत्रित करें. बीज पकने पर पौधों से डोडे तोड़कर धूप में सुखाने के
पश्चात कूटकर बीज निकाल कर बुवाई हेतु इस्तेमाल किया जाना चाहिए. देशी किस्में जिनकी टहनियां पतली और सीधी ऊपर की और बढती है, खेती के लिए उपयुक्त होती है. अधिक पैदावार देने वाली एस-8, एस-22 एवं खेड़ब्रुह्म काजरी, जोधपुर से विकसित की गई है ।
बुवाई व रोपाई का समय
मेंहदी की
बुवाई फरवरी-मार्च (जब वातावरण का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस हो) तथा रोपाई मानसून आगमन पस्स्चात जुलाई-अगस्त में करना चाहिए ।मेंहदी को सीधा बीज द्वारा या पौधशाला में पौध तैयार कर रोपण विधि से या कलम द्वारा लगाया जा सकता है लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए पौध रोपण विधि ही सर्वोत्तम है।
ऐसे करें मेंहदी पौध तैयार
एक हेक्टर भूमि में पौध रोपण
के लिए करीब 5-6 किलो बीज
द्वारा तैयार पौध पर्याप्त होती है। इसके लिए 10 मीटर लम्बी व 1.5 मीटर चौड़ी 8
से 10 क्यारियां अच्छी तरह बना लेना चाहिए। शीघ्र बीज अंकुरण हेतु बीज को
एक दिन 3 % नमक के
घोल में भिंगोकर रखने के बाद 8-10 दिनों तक साधारण पानी में रखकर धोना/भिंगोना चाहिए. भिंगोने वाले पानी को प्रतिदिन बदलते रहें। इसके बाद बीज को कार्बेन्डाजिम 2.50 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करने के बाद छायादार स्थान में सुखाने के बाद क्यारियों में बुवाई करें. इसके बाद क्यारियों पर बारीक़ सड़ा गोबर खाद
छिडककर हल्की झाड़ू
फेर कर बीज को ढँक देना चाहिए. क्यारियों में प्रति दिन हजारे से हल्की सिंचाई करते रहें।
पौध रोपण
कार्य
मेंहदी रोपण हेतु खेत की अच्छी प्रकार से जुताई कर समतल कर लिया जाता है। दीमक नियंत्रण हेतु
खेत में 25 किग्रा क्लोरपाइरीफ़ॉस डस्ट का छिडकाव करें। मानसून आगमन के पश्चात जुलाई-अगस्त माह में
जब पौधा 40 सेमी या अधिक बड़ा हो जावे तब पौधशाला से पौधे उखाड़कर सिक्रेटियर द्वारा थोड़ी-थोड़ी शाखाएँ काटकर पौध छोटी कर रोपना चाहिए। खेत में कतार से कतार 50 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध 30 से.मी. की दूरी पर नुकीली खूटी की सहायता से 10-15 से.मी. गहरा छेद बनाये तथा उनमें 2 पौधे एक साथ रोपकर, उँगलियों से
अच्छी तरह
दबा देते है ताकि जड़ क्षेत्र में हवा नहीं रहे । पौध लगाते समय खेत की मिट्टी गीली होनी चाहिए. हलकी बारिश के समय रोपण अत्यंत लाभकारी होता है ।
खाद व उर्वरक देने से अधिक उपज
खेत की अंतिम जुताई के समय 8-10
टन सड़ी गोबर खाद प्रति
हेक्टर की दर से भूमि में मिलावें और 60 किलो ग्राम नत्रजन तथा 40 किलो ग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टर की दर से खड़ी फसल में प्रति वर्ष प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा पहली बरसात के बाद निराई गुड़ाई के समय भूमि में मिलावें तथा शेष नत्रजन की मात्रा उसके 25 से 30 दिन बाद वर्षा होने पर दें। इसके बाद मेंहदी के स्थापित खेतों में प्रति वर्ष प्रथम निराई-गुड़ाई के समय 40 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों की कतारों के दोनों तरफ देनी चाहिए।
अधिक मुनाफा के लिए अंतरवर्ती खेती
खेत में
मेंहद की पंक्तियों के बीच उचित दुरी रखकर अंतरवर्ती फसलों की खेती कर अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है। मेंहदी की दो कतारों के बीच में एक या दो पंक्ति में मूंग, उर्द व ग्वार की
फसल ली जा सकती है लेवें।
निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई
मेंहदी की
खेती के अच्छे फसल प्रबन्धन में निराई गुड़ाई का महत्वपूर्ण स्थान है.जून से जुलाई में प्रथम वर्षा के बाद बैलों के हल व कुदाली से निराई गुड़ाई कर खेत को खरपतवार रहित बना ले। इससे भूमि में
वर्षा का अधिक से अधिक पानी संरक्षित हो जाता है। मेंहदी गहरी जड़ वाली फसल है अतः इसके पौधे एक बार स्थापित हो जाने के बाद सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे करें फसल की कटाई
सामान्यतौर पर मेंहदी की फसल वर्ष में 1-2 बार काटते है। प्रथम वर्ष मार्च-अप्रैल में कटाई करें तथा बाद के वर्षों में पहली कटाई अक्टूबर-नवम्बर में तथा दूसरी मार्च माह में की जनि चाहिए । शाखाओं के निचले हिस्से में पत्तियां पुर्णतः पीली पड़ने पर और स्वतः झड़ने से पहले ही फसल काट लेनी चाहिये। पत्तियों का आधा उत्पादन पौधों के निचले एक चौथाई भाग से प्राप्त होता है। पत्तियों से भरी टहनियों/शाखाओं की कटाई भूमि की सतह से 4–5 सेन्टीमीटर व बाद के वर्षों में 8–10 सेन्टीमीटर ऊपर से करें। कटाई तेज धार वाले हसिया से हाथ में चमड़े के दस्ताने पहनकर की जाती है। फसल काटने के बाद 2-3 दिनों तक सूखे खेत या अन्य खुले स्थान पर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद फसल को एकत्र कर ढेरी बना लें. ऐसा करने से मेंहदी की गुणवत्ता में सुधार आता है। मेहँदी की पत्तियां अच्छी तरह सूखने पर इसे हाथ या डण्डे से पीटकर या झाड़कर पत्तियों को अलग कर लें। पत्तों की झड़ाई का कार्य पक्के फर्श पर करना चाहिए। टहनियां व बीज पत्तियों से अलग कर लेना चाहिए। कटी फसल/पत्तियों को छाया या हल्की धुप में सुखाएं। हर दुसरे दिन दो बार पत्तियों को उलटते-पलटते रहे। कटाई, मढ़ाई के बाद मेहँदी की पत्तियों को जूट के बोरों में भंडारित करें। पत्ती उपज बाहर धूप या खुले स्थान में न रखें।
इतनी
होगी
पैदावार
मेंहदी की फसल रोपण के 3 से 4 साल बाद अपनी क्षमता का पूरा उत्पादन देना शुरू करती है, जो करीब 20-30 वर्षों तक बना रहता है। सामान्य स्थिति में उन्नत सस्य विधियाँ अपनाकर मेंहदी से प्रति वर्ष करीब 15 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टर सूखी पत्तियों का उत्पादन प्राप्त हो सकता है। पौध स्थापना के
प्रथम 2-3 वर्ष तक 7-8 क्विंटल उपज प्राप्त होती है।
लागत लाभ का गणित
मेंहदी की खेती में मुख्य लागत प्रथम वर्ष लगभग 16-18 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर आती है। बाद के वर्षो में इसका आधा व्यय रखरखाव,कटाई एवं पत्ती झड़ाई आदि पर होता है। इसकी खेती से कुल आमदनी एवं लाभ सूखी पातियों की उपज, गुणवत्ता और बाजार भाव पर निर्भर करती है। बाजार में सूखी पत्तियां 25-30 रूपये प्रति किलो की दर से बिक जाती है।
बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के सुनहरे अवसर
मेंहदी की खेती के उपरान्त इसकी उपज पत्तियों तथा पत्तियों का पाउडर बेचने हेतु बाजार आसानी से मिल जाता है । मेहंदी की पत्तियों से पाउडर बनाने का कुटीर व लघु उद्योग (मेंहदी पिसाई एवं पेकिंग कार्य) स्थापित कर बेहतर आमदनी प्राप्त की जा सकती है। आजकल तरल रूप में मेंहदी कोन अधिक प्रचलन में है. मेंहदी को गीला कर उसे प्लास्टिक या पेपर के कोन में पैक कर आस-पास के ब्यूटी पार्लर या सौंदर्य सामग्री बेचने वाले दुकानों में बेचकर अधिक आमदनी अर्जित कर सकते हैं। बाज़ार में इस समय एक मेहंदी का कोन लगभग 10 से 20 रूपये में मिल रहा है। इसी प्रकार से हिना इत्र उद्योग स्थापित कर सकते है। मेंहदी का इत्र (हिना) फ़्रांस, इटली, इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों को निर्यात किया जा सकता है। राजस्थान के पाली जिले में मेंहदी की व्यवसायिक खेती से किसानों, व्यापारियों और इससे जुड़े उद्योगों को प्रति वर्ष 40 करोड़ रूपये से अधिक की आमदनी होती है।
कृपया ध्यान रखें: लेखक/ब्लॉगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं भी प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।