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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

सहजन से पोषण सुरक्षा और स्वास्थ्य रक्षा सुनिश्चित

                                                                    डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,महासमुंद (छत्तीसगढ़)

प्रकृति ने मानव को नाना प्रकार के उपहार दिए है। वायु, जल, प्रकाश, खनिज पदार्थ, खाद्यान्न फसलें, दलहन, तिलहन, रेशेदार फसलें, फलदार वृक्षों के अलावा औषधियों के काम आने वाले अनेक वनस्पतियां हमें वरदान स्वरूप मिली है। उन्हीं उपहारों में एक बहुपयोगी झाडी/वृक्ष है-सहजन यानि सह + जन यानि सबके जन के साथ और सहज उपलब्ध  । इसे सहजन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह एक ऐसा वृक्ष है जो सर्व सुलभ, सर्व स्वीकार्य और सहजता से उग जाता है।  इसकी फलियों एवं पत्तियों को  सदियों से मनुष्यों द्वारा भोजन एवं औषधि के रूप में उपयोग लाया जा रहा है।  सहजन (मोरिंगा ओलीफेरा) मोरिंगेसी कुल का सदस्य है जिसे हिंदी में मुनगा, सेंजना, संस्कृति में शोभांजन व दंशमूल तथा अंग्रेजी में ड्रमस्टिक प्लांट के नाम से जाना-पहिचाना जाता है।  सहजन को परंपरागत रूप से घरों के पिछवाड़े बाड़ी या बगीचे में लगाया जाता है।  यह 10-12 मीटर ऊंचाई में तेजी से बढ़ने वाला, सूखा सहनशील, सदाबहार, पर्णपाती पौधा है।  इसका तना सफेद-भूरे रंग का होता है जो मोटी छाल से ढंका रहता है. इसके फूल थोड़े पीले-क्रीमी सफेद और मधुर सुगंध वाले होते है।  इसके फल हरे रंग के छड़ीनुमा 20-45 से.मी. लम्बे और 2-2.5 से.मी. चौड़े होते है।  फली के अन्दर मांसल गूदा और मटर के आकार के  15-20 गहरे हरे रंग के बीज होते है।

सहजन की फलियां एवं पत्तियां फोटो साभार गूगल 
 सहजन का पोषकीय और औषधीय महत्व  
सहजन को दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा माना जाता है।  इसके प्रत्येक भाग (जड़, छाल, तना, पत्तियाँ, फल-फूल, बीज, तेल तथा गोंद) किसी न किसी रूप में मानव के लिए उपयोगी है । अफ्रीकन देशों में इस पौधे को 'माताओं का सबसे अच्छा दोस्त' माना जाता है तो पश्चिमी देशों में इस पौधे को 'न्यूट्रीशियन डायनामाईट' के नाम से पुकारते है।  इसकी पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण विद्यमान है।  इसमें प्रोटीन, विटामिन्स,खनिज लवण,रेशा, एंटीओक्सिदडेंट्स पाए जाने के कारण कुपोषण और  एनीमिया (खून की कमीं) के खिलाफ जंग लड़ने में कारगर सिद्ध हो रहा है। ऐसा माना जाता है कि  सिकंदर की सेना को हराने के लिए प्रसिद्द मौर्य सेना प्रमुख खाद्य सप्लीमेंट के रूप में मोरिंगा (सहजन) का सेवन किया करती थी । प्राचीनकाल से भारत में सहजन की हरी और सूखी पत्तियों को भाजी/करी तथा हरी फलियों की जायकेदार सब्जी बनाकर चाव से खाया जा रहा है। पौष्टिक गुणों की भरमार, स्वास्थ के लिए बेहद उपयोगी और किसानों के लिए आर्थिक रूप से बेहद लाभकारी सहजन को आज इक्कीसवी शताब्दी का कल्पवृक्ष, जादुई वृक्ष और सुपर फ़ूड के रूप में  जाना जा  रहा है। उपरोक्त पोषक तत्वों के अलावा सहजन की पत्तियों एवं फलियों में जिंक,मैंगनीज,विटामिन बी-5,बी-9 भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।प्रकृति प्रदत्त चमत्कारिक सहजन वृक्ष की पत्तियों, फलियों एवं पत्ती चूर्ण का  पोषक मान अग्र सारणी में प्रस्तुत है।
सारणी-1 सहजन की फलियों, हरी पत्तियों का पोषक मान (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग)
प्रमुख घटक
कच्ची फल्लियाँ
हरी पत्तियां
ऊर्जा (किलो कैलोरी)
37 
64 
कार्बोहाईड्रेट्स (ग्राम)
8.53
8.28
प्रोटीन (ग्राम)
2.10 
9.40 
वसा (ग्राम)
0.20 
1.4 
कोलेस्ट्राल (मि.ग्रा.)
0.0
0.0  
आहारीय रेशा (ग्राम)
3.2 
2.0 
कैल्शियम (मि.ग्रा.)
30
185 
मैग्नेशियम (मि.ग्रा.)
45 
147 
फॉस्फोरस (मि.ग्रा.)
50
112 
सेलेनियम (µg)
8.2  
0.9  
आयरन (मिग्रा.)
0.36 
4.0
जिंक (मि.ग्रा.)
0.45
0.60
सोडियम (मिग्रा.)
42 
9.0 
पोटेशियम (मि.ग्रा.)
461
337
विटामिन फोलेट्स (µg)
44
40
नियासिन (मि.ग्रा.)
0.680
2.220
पायरीडॉक्सिन (मि.ग्रा.)
0.120
1.200
रिबोफ्लेविन (मि.ग्रा.)
0.074
0.660
थायमिन (मि.ग्रा.)
0.053
0.257
विटामिन-ए (आईयू)
74
7564
विटामिन-सी (मि.ग्रा.)
141
51.7  
स्त्रोत: यू एस डी ए नेशनल न्यूट्रीएंट डाटा बेस       
पत्तियाँ  एवं फूलः संहजना की पत्तियाँ एवं फूलों में  विविध प्रकार के पोषक तत्व  प्रचुर मात्रा में पाये जाते  है । इनको भोजन के साथ पूरक रुप में  खाने पर यह बच्चों, गर्भवती स्त्रियों, नवजात शिशुओ की माताओं आदि के लिए  स्वास्थ्यवर्धक माना गया है । सहजन की पत्तियों में संतरे से 7 गुना अधिक विटामिन सी, गाजर से 4 गुना अधिक विटामिन ए, दूध से 4 गुना अधिक कैल्शियम, केले से 3 गुना अधिक पोटेशियम, एक अंडे जितना प्रोटीन, पालक से 3 गुना अधिक आयरन, बादाम से 3 गुना अधिक विटामिन ई के अलावा तमाम प्रकार के वृहद एवं सूक्ष्म तत्व, विटामिन्स, एंटीआक्सिडेन्ट्स तथा अमीनों  अम्ल भरपूर मात्रा में  पाये जाते है । इसके पोषक तत्वों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दक्षिण अफ़्रीका के कई देशों में कुपोषित लोगों के आहार में इसे शामिल करने की सलाह दी है।  सहजन की पत्तियों को छांया में सुखाकर, पीसकर चूर्ण तैयार कर इस  चूर्ण को सरंक्षित करके सूप, सॉस एवं सब्जियों में  उपयोग करने  से इनकी पौष्टिकता कई गुणा बढ़ जाती है । इसका चूर्ण भोजन के  साथ खिलाने से कुपोषण ग्रस्त मानव स्वस्थ हो सकते है । इसके फूलों से चटनी एवं सब्जी बनाई जाती है । सहजन के ताजे फूल हर्बल टॉनिक का काम करते है ।सब्जी-भाजी में फूलों के गुच्छो को मिलाकर पकाया जा सकता है।  सर्दी से बचने के लिए  इसके फूलों की चाय बनाकर पीना लाभदायक होता है ।
फलियाँ: सहजन के पेड़ से पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक फलियाँ प्राप्त होती है जिनसे स्वादिष्ट सब्जी और सूप बनाकर खाया जाता है. सहजन  की कच्ची हरी-मुलायम फलियाँ सब्जी के रूप में सर्वाधिक उपयोंग में लायी जाती है । इसकी फलियों में अन्य सब्जियों व फलों की तुलना में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, एमीनो  एसिड व खनिज पदार्थ  अधिक होते है ।
बीजः सहजन के दाने में पौलीपेप्टाइड नामक तत्व पाया जाता है, जो खराब पानी का शुद्धिकरण करता है।  इसके बीजों को पीसकर पाउडर बनाकर पानी में डालने से पानी साफ हो जाता है । तालाबों, नदीयों,कुओं इत्यादि  के पानी को स्वच्छ करने के लिए पानी को सेंजना के बीजों द्वारा उपचारित किया जा सकता है । इसके बीजों में 36-38  प्रतिशत नहीं सूखने वाला  तेल पाया जाता है, जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है । तेल सौन्दर्य प्रसाधनों तथा घडी आदि मशीनों में  चिकनाहट पैदा करने  के लिए किया जाता है । इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है। इसके तेल को खाध्य तेल के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो उपयोगिता एवं गुणवत्ता में जैतून (ओलिव) के तेल के समतुल्य एवं  स्वास्थवर्धक माना जाता है। 
तना: इसके तने से उच्च गुणवत्ता वाला गोंद प्राप्त होता है, जिसका उपयोग रंगाई-छपाई उद्योगों  तथा औषधि बनाने में किया जाता है । सेंजना से गोंद अप्रैल-मई में प्राप्त किया जाता है । गोंद का रंग भूरा -लाल होता है ।इसकी छाल से रेशा प्राप्त होता है जिससे रस्सियाँ आदि बनाई जा सकती है.
जड़ : जब पौधा 2 फीट का हा जाये तो उसे उखाड़कर जड़ को मसाले के रुप में काम लिया जाता है । इसकी जड़ का स्वाद तीखापन लिये  होता है । जड़ को मसाले के लिए उपयोग में लेने से पहले इसकी छाल हटा देनी चाहिए क्योकि इसमें मोरिन्जिनाइन नामक पदार्थ  पाया जाता है जो विषैला होता है । सेंजना की जड़ का अधिक सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इसमें हानिकारक तत्व पाए जाते है ।
अन्य उपयोग : सेंजना की पत्तियों  एवं नई शाखाएं पशुओं के लिए पौष्टिक चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।  इसकी पत्तियों का रस फसलों के लिए बेहतर टॉनिक का काम करता है। इसकी पत्तियों के रस के छिड़काव से फसल उत्पादन में आशातीत वृद्धि होती है। इसके पौधों को खेत में हरी खाद या कम्पोस्ट के रूप में मिलाकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढती है । शाखाओं से कम्पोस्ट तैयार कर मृदा की उर्वरा शक्ति बढती है।  चाय एवं कॉफ़ी बागानों में पौधों की बढ़वार के लिए सहजन  से प्राप्त वृद्धि हरमों का बागानों में छिडकाव किया जाता है. इसके अतिरिक्त तने से ईधन और कागज व टहनियों से रेशा प्राप्त किया जाता है । सहजन के पेड़ से छाया कम होती है अतः अंतरवर्ती खेती के लिए यह बहुउद्देशीय वृक्ष है।  
        सहजन के अतुलनीय पोषकीय, औषधीय एवं स्वास्थ्यवर्धक गुणों को देखते हुए इसे आज कलयुग का कल्पवृक्ष, जादुई वृक्ष और सुपर फ़ूड  की संज्ञा दी जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं । विश्वव्यापी कुपोषण का प्रमुख कारण आमजन के भोजन में  प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन्स की कमीं है। कुपोषण की समस्या से निपटने में सहजन अपने उच्चस्तरीय पोषकीय एवं औषधीय गुणों के कारण अत्यंत लाभकारी तथा कारगर साबित हो सकता है। 
आर्थिक रूप से लाभकारी है सहजन की खेती 
         ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए सहजन की खेती को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है. भारत ही नहीं पूरे विश्व में आज सहजन की पत्तियों एवं फलियों की मांग बढ़ती जा रही है  देश के लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए सहजन की खेती वरदान सिद्ध हो रही है। खाद्यान्न एवं अन्य फसलों के साथ-साथ यदि किसान भाई सस्य वानिकी के रूप में अथवा खेतों की मेंड़ पर सहजन के वृक्ष लगा लें तो उन्हें दो से तीन गुना अधिक आमदनी हो सकती है. इसके वृक्षों से खेतों में छाया अधिक नहीं होती है, अतः पेड़ों के नीचे अन्य फसलों की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके अलावा परिवा के सदस्यों एवं परिजनों को  सहजन की पत्तियां, फूल और फल  तोड़ने, प्रसंस्करण और विपणन में रोजगार और आमदनी के साधन उपलब्ध हो सकते है। 
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