डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भारत दुनिया की तेजी से बढती अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है। आज हम खाद्यान्न
उत्पादन में सक्षम है और दुनिया में सबसे अधिक दूध उत्पादक, दूसरे सबसे अधिक
सब्जी, फल एवं मछली उत्पादक देशों में शुमार है, परन्तु देश की बहुसंख्यक आबादी गरीबी, भुखमरी और
कुपोषण की शिकार है। संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की एक रिपोर्ट ‘दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति-2019’
के मुताबिक़, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 14.5
प्रतिशत यानी 19.44 करोड़ कुपोषित भारत में
हैं। संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2018
के मुताबिक़ देश में हर दिन 3000 बच्चों की
कुपोषण से जुड़ी बीमारियों के चलते मौत हो जाती है। देश में खाद्यान्न सुरक्षा के
साथ-साथ बढती आबादी को पोषण सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है। देश की बहुसंख्यक
शाकाहारी आबादी की थाली में प्रोटीन और विटामिन से परिपूर्ण भोजन का अभाव है। भूमिहीन,सीमान्त और लघु किसानों के लिए खेती
अलाभकारी व्यवसाय बनता जा रहा है. ऐसे में देश में व्याप्त कुपोषण की समस्या को
दूर करने एवं किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि में विवधीकरण लाते हुए सीमित
भूमि एवं न्यनतम लागत में अधिकतम उत्पादन एवं आमदनी प्राप्त करने की कृषि तकनीकों
का अनुशरण करना पड़ेगा। किसानों की आमदनी बढ़ाने एवं कुपोषण की समस्या से निजात पाने में खेत की मेंड़ों पर फलदार एवं सब्जी के लिए उपयोगी वृक्षों
का रोपण अथवा खेती संग उद्यानिकी-वानिकी प्रणाली
कारगर सिद्ध हो रही है। इसके लिए सहजन एक आदर्श वृक्ष है। सहजन को मुनगा, मोरिंगा,
ड्रमस्टिक के नाम से भी जाना जाता है। सीमित लागत और कम समय में सहजन की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर 14-15 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर से अधिक का आर्थिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। देश को कुपोषण की समस्या से निजात दिलाने, कृषि को घाटे से उबारने और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भारत में बहुपयोगी वृक्षों विशेषकर सहजन की खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
सहजन के फलदार वृक्ष फोटो साभार गूगल |
सहजन की खेती के फायदे
- सहजन एक बहुपयोगी एवं बहुउद्देशीय वृक्ष है जिसकी जड़, तना, छाल, गोंद, पत्तियां, फूल, फल और बीज किसी न किसी रूप में मानव के लिए उपयोगी होते है।
- सहजना की खेती सभी प्रकार की भूमियों एवं जलवायु में सहजता से की जा सकती है। इसके वृक्षों से वर्ष में दो बार उत्पादन लिया जा सकता है।
- सहजन की खेती वर्षाधीन और सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके पौधों में सूखा सहने की क्षमता तथा कीट-रोग प्रतिरोधी होते है।
- सहजन की पत्तियों, फूल एवं फलियों में मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण, यह कुपोषण को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभा सकता है। पौष्टिक एवं स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होने के कारण सहजन की फलियाँ और पत्तियों की मांग बढती जा रही है।
- सहजन के तने से ईधन और कागज बनाने के लिए पल्प व
टहनियों से रेशा प्राप्त किया जा सकता है, जो रस्सियां एवं अन्य सामग्री बनाने के काम आता है। सहजन के टनों की कटाई छटाई करने के उपरान्त उच्च गुणवत्ता वाला गोंद प्राप्त होता है,
जिसका उपयोग रंगाई-छपाई उद्योगों तथा औषधि निर्माण में किया जाता है ।
- सहजन की
पत्तियों को काटकर हरी अवस्था में अथवा छांया में सुखाकर,
पीसकर चूर्ण तैयार कर बाजार में बेच कर अतिरिक्त मुनाफा कमाया
जा सकता है।
- सेंजना के बीजों
को पीसकर पाउडर बनाकर पानी में डालने से पानी साफ हो जाता है । बीजों का
पाउडर जल शुद्धिकरण के अलावा शहद एवं
चीनी का शुद्धिकरण करने में उपयोग
किया जाता है । इसके बीजों में 36-40 प्रतिशत खाने योग्य तेल
पाया जाता है जो गुणवत्ता में जैतून के तेल के समतुल्य माना जाता है । इसका तेल
सौन्दर्य प्रसाधनों तथा मशीनों में चिकनाहट पैदा करने के लिए किया जाता है।
- सहजन की पत्तियां एवं मुलायम टहनियां पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है. गर्मीं के समय पशुओं के लिए गुणवत्तायुक्त हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।
- सहजन के वृक्षों से छाया कम होती है। अतः मिश्रित और अंतरवर्ती खेती के लिए यह बहुपयोगी वृक्ष है। सहजन के साथ कम छाया चाहने वाली फसलें यथा हल्दी, अदरक, बेलदार सब्जियां आदि सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
- सहजन एक पर परागित फसल है। वृक्षों में पुष्पन के समय मधुरस के लिए मधुमक्खियां भारी तायदाद में भ्रमण करती है. अतः सहजन की खेती के साथ साथ मधुमक्खी पालन का व्यवसाय आसानी किया जा सकता है। सहजन का शहद उत्तम गुणवत्ता वाला होता है।
उपयुक्त जलवायु
सहजन की खेती शुष्क व गर्म जलवायु में आसानी से की जा सकती है । इसके पौधे प्रकाश एवं ताप प्रिय होते है अर्थात पर्याप्त धूप एवं गर्म वातावरण पौधों के विकास के लिए उपयुक्त रहता है । कम तापमान और पाला सहजन पौधों के लिए हानिकारक है। पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है लेकिन इसके पौधे ग्रीष्मकाल में कुछ समय तक 45 डिग्री तापक्रम को सहन कर लेते है। अधिक तापमान पर इसके फूल झड़ने लग जाते हैं।
भूमि का चुनाव एव खेत की तैयारी
सहजन के पौधों की खेती हेतु उचित जलनिकास वाली गहरी बलुई से बलुई दोमट व लैटेराइट मृदा उपयुक्त होती है। भूमि का पी एच मान 6.5-8.5 उचित रहता है। इसकी खेती जलभराव एवं ख़राब जल निकासी वाली भूमि में नही करना चाहिए क्योंकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधे नष्ट हो जाते है। सहजन का बगीचा लगाते समय खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई करने के उपरान्त भूमि को समतल कर लेना चाहिए । खेत तैयार होने के उपरान्त निष्चित दूरी पर पौधा लगाना चाहिए।
सहजन के पौधों की खेती हेतु उचित जलनिकास वाली गहरी बलुई से बलुई दोमट व लैटेराइट मृदा उपयुक्त होती है। भूमि का पी एच मान 6.5-8.5 उचित रहता है। इसकी खेती जलभराव एवं ख़राब जल निकासी वाली भूमि में नही करना चाहिए क्योंकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधे नष्ट हो जाते है। सहजन का बगीचा लगाते समय खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई करने के उपरान्त भूमि को समतल कर लेना चाहिए । खेत तैयार होने के उपरान्त निष्चित दूरी पर पौधा लगाना चाहिए।
उन्नत किस्में
मुनगा की देशी प्रजातियां बहुवर्षीय प्रकृति की होती है जिनमें जिनमें पुष्पन एवं फलन विलम्ब से होता है। इसके अलावा बहुवर्षीय वृक्षों की ऊंचाई भी अधिक होती है जिसके कारण फलियां तोड़ने में कठिनाई होती है। अब 5-7 माह में अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्मों का विकास होने के कारण सहजन की व्यवसायिक खेती होने लगी है। सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों से 8-10 वर्ष तथा वार्षिक किस्मों से 3-4 वर्ष तक आर्थिक रूप से लाभकारी खेती की जा सकती है . सहजन की प्रमुख देशी एवं उन्नत किस्मों के गुणधर्म अग्र प्रस्तुत है ।
मुनगा की देशी प्रजातियां बहुवर्षीय प्रकृति की होती है जिनमें जिनमें पुष्पन एवं फलन विलम्ब से होता है। इसके अलावा बहुवर्षीय वृक्षों की ऊंचाई भी अधिक होती है जिसके कारण फलियां तोड़ने में कठिनाई होती है। अब 5-7 माह में अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्मों का विकास होने के कारण सहजन की व्यवसायिक खेती होने लगी है। सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों से 8-10 वर्ष तथा वार्षिक किस्मों से 3-4 वर्ष तक आर्थिक रूप से लाभकारी खेती की जा सकती है . सहजन की प्रमुख देशी एवं उन्नत किस्मों के गुणधर्म अग्र प्रस्तुत है ।
जाफना मोरिंगा :
यह एक बहूवर्षिय अधिक उत्पादन देने वाली किस्म जिसकी फलियों की औसत लम्बाई 60
से 90 से.मी. होती है ।
फलियाँ मुलायम व ताजा होती तथा फलियों का रंग हरा होता है । प्रति पौधा 350-400
फलियाँ प्रतिवर्ष प्राप्त होती है ।
चैवाकाचेरी मुरिंगा:
यह सेंजना की बहुवर्षिय किस्म है जो वर्ष
भर फलियाँ देती है । इसकी फलियों की
लम्बाई 90
से 100 से.मी. होती है ।
इनकी फलीयाँ अचार बनाने के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है । फलियों में अधिक गूदा
होता है जो स्वादिष्ट होता है ।
येजपानाम मुरिंगा:
इस किस्म की फलियों का रंग गहरा हरा होता है । फलियों की लम्बाई 60
से 90 से.मी. तथा मोटी,
मुलायम
और स्वादिष्ट होती है । पौधों का आकार
अधिक फैलाव वाला होता है ।
पाल मुरंगईः
इस किस्म के पौधे 6
महीने की आयु में फलियाँ करने लगते है । इस किस्म की फलियाँ लम्बी व पतली अधिक स्वादिष्ट होती
है । प्रति पौधा फलियाँ 350-400
प्रतिवर्ष उत्पादन देती है ।
रोहित-1: सहजन की ये किस्म पौध
रोपण के लगभग 5-6 महीने बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती है। इसका पौधा वर्ष में दो
बार पैदावार देता है। इस किस्म के एक पौधे से 40-125 फली प्राप्त की जा सकती है। इसका पौधा लगभग 8-10 साल तक पैदावार दे सकता है। इस किस्म की फलियां
हरे रंग की 40-60 से.मी. लंबी, गुदा स्वादिष्ट, मुलायम और उच्च
गुणवत्ता वाला होता है। इसकी फलियों की लम्बाई एक से सवा फिट के बीच पाई जाती हैं।
सी.ओ. 1:
यह किस्म तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर
विकसित की गई है । इसके पौधे बीज व कटिंग
द्वारा आसानी से तैयार किये जा सकते है । यह किस्म 6
महीने से फूल, फलियाँ
देने लग जाती है । इस किस्म से प्रति पौधा 350-400
फलियों
का प्रतिवर्ष उत्पादन होता है । फलियाँ मुलायम व स्वादिष्ट होती है ।
पी.के.एम.-1: यह किस्म तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय,
उद्यान
अनुसंधान केन्द्र, पैरीयाकुलम
द्वारा विकसित की गयी ही । पौधे की ऊँचाई 4-6
मीटर होती है । इस किस्म में पौध रोपण के 8-9 माह पश्चात फलन प्रारंभ हो जाता है ।
प्रति पौधा प्रतिवर्ष 200-225
फलियाँ प्राप्त होती है । फलियों की लम्बाई 65-70
से.मी., 6.3 से.मी.
मोटी एवं 150
ग्राम वजन होता है । इस किस्म का पौधा 4 से 5 साल तक पैदावार देता
है।
पी.के.एम. 2: इस किस्म को उद्यान अनुसंधान केन्द्र,
(तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय),
पैरीयाकुलाम
द्वारा विकसित की गयी। इस किस्म की कच्ची फली हरे रंग
की और बहुत स्वादिष्ट होती है, जिनकी लम्बाई 45 से 75 से.मी. तक पाई जाती है। इसके एक पौधे से एक
बार में 300 से 400 फलियां प्राप्त होती है। सहजन की ये किस्म भी साल में दो बार ही
पैदावार देती हैं
धनराजः
यह एक बहुवर्षीय सेंजना किस्म है जो बीज द्वारा उगाई जाती है । फलियाँ लम्बी व हरे
रंग की होती है । औसत वार्षिक उत्पादन
प्रति पौधा प्रतिवर्ष 400-600
फलियाँ प्राप्त होती है । इसकी फलियाँ आचार बनाने के लिए काम आती है ।
सहजन की बुवाई/रोपाई का समय: सहजन की बुवाई या
रोपाई वर्षा आगमन के बाद जुलाई से लेकर अक्टूबर तक की जा सकती है। सिंचाई की सुविधा होने पर सहजन की पौध की रोपाई वर्ष पर्यन्त की जा सकती है।
सहजन की बुवाई/रोपाई
सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों
की प्रवर्धन वानस्पतिक विधि (कलम) से तथा वार्षिक किस्मों को बीज को सीधे तैयार
खेत में अथवा बीज से पौध तैयार कर रोपा जा सकता है.
1. बीज से बुवाई: सहजन की वार्षिक प्रकृति की उन्नत किस्मों को बीज से बोना लाभकारी होता है। बीज
को तैयार खेत में सीधे बोया जा सकता है या
बीज से पौध तैयार कर रोपाई की जा सकती है। एक हेक्टेयर में लगभग 650 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. आवश्यक बीज को रात भर पानी में भिंगोने के उपरान्त 100 ग्राम ऐज़ोस्पिरिलम कल्चर से उपचारित करने से अंकुरण शीघ्र होता है और पौधे स्वस्थ्य होते है। बीजों की बुवाई 3 x 3
मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 से.मी. के गड्ढों में 2.5-3.0 से.मी. की गहराई पर
करना चाहिए। बीज बुवाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमीं होना चाहिए। बुवाई के 8-10 दिन में बीजों का अंकुरण हो जाता है।
2.
बीज
से पौध तैयार कर रोपण : सहजन के बीज से नर्सरी/पौधशाला में पौध तैयार कर खेत में तैयार गड्ढों में रोपाई की जा
सकती है। इसके लिए 20 x 10 से.मी. आकार के पॉलीथिन बैग का उपयोग किया जा
सकता है। पॉलिथीन बैग को दो भाग मिट्टी, एक भाग बालू (रेत) और एक भाग सड़ी गोबर की खाद से भरने के उपरान्त प्रत्येक बैग
में दो से तीन बीज डालने चाहिए। बीजों को रात भर पानी में भिंगोने के बाद बुवाई
करने से बीज अंकुरण अच्छा होता है। बीजों की बुवाई बाद प्रतिदिन हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। बुवाई के बाद 8-10 दिन में बीज अंकुरित हो जाते है । पॉलिथीन बैग में एक स्वस्थ पौधा छोड़कर बांकी को निकाल देना चाहिए। अंकुरण के 30 से 40 दिन बाद अथवा 60-90 से.मी. ऊंची पौध को थैली से हटाकर निर्धारित दूरी पर तैयार गड्ढों में रोपाई कर देना चाहिए। पौध
रोपण का कार्य मानसून आने के पश्चात जुलाई-अगस्त में करना चाहिए।
3.
कलम रोपण: सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों का प्रबर्धन कलम से करना अधिक लाभकारी पाया गया है। कलम द्वारा तैयार
पौधे अच्छी गुणवत्ता वाले होते है। सहजन वृक्ष से 1-2 वर्ष पुरानी शाखाओं (कठोर लकड़ी) को कलम के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए । खेती में रोपाई अथवा पौध तैयार करने हेतु 45-100 से.मी. लंबी व 8-10 से.मी. गोलाई की शाखाएं उपयुक्त होती है। कलम को आई.बी.ए. के 50 पीपीएम के घोल में 24 घंटे डुबोकर लगाने से अंकुरण बेहतर होता है। कलम को सीधे खेत में लगाया जा सकता है / कलमों को नर्सरी या पोलीबैग में लगाकर पौध तैयार कर मुख्य खेतों में रोपा जा
सकता है । कलम का एक तिहाई हिस्सा मिट्टी में दवाना चाहिए अर्थात कलम की लम्बाई 90 से.मी होने पर उसे 30 सेमी गहरा लगाना चाहिए। पौधशाला या पॉलीबैग में लगाई गई कलमों से 2-3 माह में पौधे रोपाई योग्य हो जाते है। कलमों को सीधे खेत में लगाना है तो गड्डों में हल्की रेतीली मिटटी और गोबर की खाद मिलाकर कलमों की रोपाई करना चाहिए।
पौधरोपण का समय एवं विधि
सहजन के बीज की बुवाई अथवा पौध
रोपण का कार्य जुलाई-अगस्त मेंकरना चाहिए । सहजन की वार्षिक किस्मों को 3 X 3 मीटर (1111
पौधे प्रति हेक्टेयर) तथा बहुवार्षिक प्रजातियों को 5 x 5 मीटर की दूरी पर (400 पौधे प्रति हेक्टेयर) वर्गा कार
विधि से लगाना चाहिए। पत्ती उत्पादन के उद्देश्य से सहजन की खेती करने के लिए कतार से कतार की दूरी 1 x 1 मीटर की दूरी पर बुवाई/पौध रोपण करना चाहिए। कतारों में निर्धारित दूरी पर खूंटिया गाड़ कर 45 x
45 x 45
सें.मी. आकार के गड्ढे तैयार कर लेना चाहिए। यह कार्य मई-जून में करना चाहिये।
खोदे गए गड्ढों की ऊपरी मिट्टी में 10-15 किलो गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट मिलाकर
पुनः भर देना चाहिए। दीमक की संभावना होने पर मिट्टी व खाद के मिश्रण में 100
ग्रीम क्यूनालफ़ॉस (1-5
प्रतिशत चूर्ण) दवा भी मिला देनी चाहिए। गड्ढों की वापिस भराई के पश्चात सभी
गड्ढों के केंद्र बिन्दु पर लकड़ी या लोहे की
खूंटी गाड़ दे ताकि पौधे लगाने का केन्द्र बिन्दू ध्यान में रहें । वर्षा होने के बाद तैयार गड्ढों में पौधों की रोपाई कर आवश्यकता होने पर सिंचाई कर
देना चाहिए।
अधिक उत्पादन के लिए जरुरी है पौधों की कटाई-छंटाई
वार्षिक सहजन के पौधों की शाखाएं तेजी से ऊपर की ओर 10-12 मीटर ऊंचाई तक बढ़ती है। अधिक ऊंचे वृक्षों में शाखाएं कम बनने के कारण कम उत्पादन प्राप्त होने के अलावा फलियों को तोड़ने में कठिनाई भी होती है। अतः सहजन के पौधों की ऊंचाई 75 से.मी. होने पर या बुवाई के 60 दिन बाद (वार्षिक किस्म) उनके शीर्ष (चोटी) को तोड़ देना चाहिए। इससे पौधों में अधिक शाखाएं विकसित होती हैं। सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों की शाखाओं की कटाई छंटाई उनके शीर्ष से 70 से.मी. की लम्बाई तक करना चाहिए जिससे पुष्पन अच्छा होता है और फलिया अधिक बनती है। कटाई-छटाई प्रति वर्ष अक्टुम्बर-नवम्बर में करना लाभदायक होता है । छंटाई करते समय एक दूसरे से ऊपर से गुजरने वाली तथा नीचे की ओर झुकी हुई शाखाओं को धारदार सिकेटियर से कटाई कर देनी चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक साल में फल तोड़ने के बाद एक बार पौधे की कटाई-छंटाई करते रहने नई शाखाओं का विकास होता है जिससे पुष्पन व पैदावार में वृद्धि होती है। इसी तरह सूखी हुई टहनियाँ तथा रोगग्रस्त शाखाओं को समय- समय पर काटते रहना चाहिए।
वार्षिक सहजन के पौधों की शाखाएं तेजी से ऊपर की ओर 10-12 मीटर ऊंचाई तक बढ़ती है। अधिक ऊंचे वृक्षों में शाखाएं कम बनने के कारण कम उत्पादन प्राप्त होने के अलावा फलियों को तोड़ने में कठिनाई भी होती है। अतः सहजन के पौधों की ऊंचाई 75 से.मी. होने पर या बुवाई के 60 दिन बाद (वार्षिक किस्म) उनके शीर्ष (चोटी) को तोड़ देना चाहिए। इससे पौधों में अधिक शाखाएं विकसित होती हैं। सहजन की बहुवर्षीय प्रजातियों की शाखाओं की कटाई छंटाई उनके शीर्ष से 70 से.मी. की लम्बाई तक करना चाहिए जिससे पुष्पन अच्छा होता है और फलिया अधिक बनती है। कटाई-छटाई प्रति वर्ष अक्टुम्बर-नवम्बर में करना लाभदायक होता है । छंटाई करते समय एक दूसरे से ऊपर से गुजरने वाली तथा नीचे की ओर झुकी हुई शाखाओं को धारदार सिकेटियर से कटाई कर देनी चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक साल में फल तोड़ने के बाद एक बार पौधे की कटाई-छंटाई करते रहने नई शाखाओं का विकास होता है जिससे पुष्पन व पैदावार में वृद्धि होती है। इसी तरह सूखी हुई टहनियाँ तथा रोगग्रस्त शाखाओं को समय- समय पर काटते रहना चाहिए।
संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन
सहजन की अच्छी वानस्पतिक बढ़वार एवं फलन के लिए खाद एवं उर्वरक देना आवश्यक है. सहजन के बीज की बुवाई/रोपाई हेतु तैयार गड्ढों में ऊपर की मिट्टी के साथ 125 ग्राम यूरिया , 75 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटास प्रति गड्ढे के हिसाब से मिला देना चाहिए। इसके बाद बुवाई/रोपाई के तीन माह बाद 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधे की दर से थालों में मिलाकर सिंचाई कर देना चाहिए। पौधों में पुष्पावस्था के समय 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देना लाभकारी होता है।
सहजन की अच्छी वानस्पतिक बढ़वार एवं फलन के लिए खाद एवं उर्वरक देना आवश्यक है. सहजन के बीज की बुवाई/रोपाई हेतु तैयार गड्ढों में ऊपर की मिट्टी के साथ 125 ग्राम यूरिया , 75 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटास प्रति गड्ढे के हिसाब से मिला देना चाहिए। इसके बाद बुवाई/रोपाई के तीन माह बाद 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधे की दर से थालों में मिलाकर सिंचाई कर देना चाहिए। पौधों में पुष्पावस्था के समय 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देना लाभकारी होता है।
सिंचाई एवं जल निकास
सहजन के पौधों में सूखा सहन करने की क्षमता होती है। वर्षा के आभाव अथवा सूखे की स्थिति में सहजन की बुवाई/रोपाई से पूर्व और बुवाई रोपाई के तीसरे दिन बाद सिंचाई करना चाहिए। पौधों की रोपाई के प्रथम चार से छः माह में नियमित रुप से सर्दियों में 15 दिन तथा गर्मियों में 7-10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। वृक्षों में फलियां विकसित होते समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। व्यावसायिक खेती में सिंचाई की ड्रिप तकनीक का सहारा लिया जा सकता है जिसके तहत गर्मी के मौसम में प्रति पेड़, प्रतिदिन 6 लीटर पानी देने से उपज में दोगुनी बढ़ोत्तरी हो सकती है । वर्षा ऋतु में सहजन के खेती में जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था कर लेना चाहिए। जल भराव की स्थिति में सहजन के पेड़ क्षतिग्रस्त हो सकते है।
सहजन के पौधों में सूखा सहन करने की क्षमता होती है। वर्षा के आभाव अथवा सूखे की स्थिति में सहजन की बुवाई/रोपाई से पूर्व और बुवाई रोपाई के तीसरे दिन बाद सिंचाई करना चाहिए। पौधों की रोपाई के प्रथम चार से छः माह में नियमित रुप से सर्दियों में 15 दिन तथा गर्मियों में 7-10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। वृक्षों में फलियां विकसित होते समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। व्यावसायिक खेती में सिंचाई की ड्रिप तकनीक का सहारा लिया जा सकता है जिसके तहत गर्मी के मौसम में प्रति पेड़, प्रतिदिन 6 लीटर पानी देने से उपज में दोगुनी बढ़ोत्तरी हो सकती है । वर्षा ऋतु में सहजन के खेती में जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था कर लेना चाहिए। जल भराव की स्थिति में सहजन के पेड़ क्षतिग्रस्त हो सकते है।
सहजन के साथ अन्तरासस्य फसलें
सहजन को अंतरवर्ती फसल के रूप
में चना, मटर,आलू, अदरक, प्याज, लहसुन, हल्दी, अरवी, शकरकंद,टमाटर आदि फसलों की सहफसली खेती की जा सकती है. इनके अलावा
सहजन के साथ दूसरे पौधें जैसें सहजन के साथ खाली स्थान पर एलोवेरा,
सीताफल,
आंवला,अमरुद,बेर आदि फलदार वृक्ष लगा कर दौहरा लाभ अर्जित किया जा सकता है । सहजन केसाथ साथ निम्बू घास,एलोवेरा आदि लगाने पर अतिरिक्त उपज के साथ-साथ भूमि का कटाव रुकता है व मृदा नमी सरंक्षित होती है । अंतरवर्ती
खेती से सहजन में अधिक फूल व फलियाँ लगती है ।
फलियों एवं पत्तियों की कटाई
पत्ती उत्पादन के उद्देश्य से सहजन की खेती की जा रही है तो पौधों की ऊंचाई 1.5 से 2.0 मीटर (उर्वरा भूमियों में बुवाई के 60-90 दिन बाद) होने पर भूमि सतह से 20-45 सेमी. छोड़कर करना चाहिए। इसके बाद 35-40 दिन के अंतराल पर अन्य कटाइयां की जा सकती है। सहजन की वार्षिक प्रजातियों में वर्ष में दो बार पुष्पन एवं फलन होता है। अतः फलियों की तुड़ाई वर्ष में दो बार (फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर) में करना चाहिए। सहजन की हरी मुलायम फलियां 1-1.5 सेमी की मोटी होने पर पकने से पूर्व काट लेना चाहिए। फलन के समय पौधों की शाखाओं को बांस-बल्ली का सहारा देने से पेड़ों को गिरने और शाखाओं को टूटने से बचाया जा सकता है।
फलियों एवं पत्तियों की कटाई
पत्ती उत्पादन के उद्देश्य से सहजन की खेती की जा रही है तो पौधों की ऊंचाई 1.5 से 2.0 मीटर (उर्वरा भूमियों में बुवाई के 60-90 दिन बाद) होने पर भूमि सतह से 20-45 सेमी. छोड़कर करना चाहिए। इसके बाद 35-40 दिन के अंतराल पर अन्य कटाइयां की जा सकती है। सहजन की वार्षिक प्रजातियों में वर्ष में दो बार पुष्पन एवं फलन होता है। अतः फलियों की तुड़ाई वर्ष में दो बार (फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर) में करना चाहिए। सहजन की हरी मुलायम फलियां 1-1.5 सेमी की मोटी होने पर पकने से पूर्व काट लेना चाहिए। फलन के समय पौधों की शाखाओं को बांस-बल्ली का सहारा देने से पेड़ों को गिरने और शाखाओं को टूटने से बचाया जा सकता है।
सहजन की उपज
सहजन फसल की पैदावार मुख्य तौर पर जलवायु, भूमि के प्रकार, किस्म और सस्य प्रबंधन पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर सहजन के उत्तम सस्य प्रबंधन से औसतन 500-600 क्विंटल हरी फली उपज तथा 600-700 क्विंटल हरी पत्ती उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। तुड़ाई के बाद फलियों को समान आकार के बंडलों में बांधकर, श्रेणीकरण और टोकरियों आदि में पेकिंग करके बाजार में बेचने की व्यवस्था करना चाहिए। हरी पत्तियों की कटाई कर बाजार में बेचने की व्यवस्था करें अथवा उन्हें छाया में सुखाकर जूट के बोरों में भरकर नमीं रहित स्थानों में सरंक्षित करें। पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचने पर अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है। सहजन की वार्षिक किस्में 3-4 वर्ष तक आर्थिक उपज देती है। इसके बाद इनके पौधों को काटकर अन्य फसलों की खेती करना चाहिए।
सहजन फसल की पैदावार मुख्य तौर पर जलवायु, भूमि के प्रकार, किस्म और सस्य प्रबंधन पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर सहजन के उत्तम सस्य प्रबंधन से औसतन 500-600 क्विंटल हरी फली उपज तथा 600-700 क्विंटल हरी पत्ती उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। तुड़ाई के बाद फलियों को समान आकार के बंडलों में बांधकर, श्रेणीकरण और टोकरियों आदि में पेकिंग करके बाजार में बेचने की व्यवस्था करना चाहिए। हरी पत्तियों की कटाई कर बाजार में बेचने की व्यवस्था करें अथवा उन्हें छाया में सुखाकर जूट के बोरों में भरकर नमीं रहित स्थानों में सरंक्षित करें। पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचने पर अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है। सहजन की वार्षिक किस्में 3-4 वर्ष तक आर्थिक उपज देती है। इसके बाद इनके पौधों को काटकर अन्य फसलों की खेती करना चाहिए।
सहजन के खेती से आकर्षक आर्थिक लाभ
सहजन की खेती में कम
लागत और न्यूनतम रखरखाव में बहुत आकर्षक मुनाफा जा सकता है । बैसे तो सहजन की फलियों की बिक्री स्थानीय बाजार में आसानी से हो जाती है परन्तु इसकी बड़े पैमाने पर व्यवसायिक खेती करने के लिए इसके उत्पादों को देश की अन्य सब्जी मंडियों में भेजने की व्यवस्था कर लेना चाहिए । सहजन की खेती में लगभग 1.5 से 2.0 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर की लागत अनुमानित है। सहजन की हरी फलियां बाजार में 3500-4000 रूपये प्रति क्विंटल के थोक भाव में आसानी से बिक जाती है जो बाजार में इनकी आवक पर निर्भर करता है।एक हेक्टेयर में यदि 500 क्विंटल फलियाँ प्राप्त होती है जिन्हें 3500 रूपये प्रति क्विंटल के थोक भाव से बेचने पर कुल 17 लाख 50 हजार रुपये की आमदनी प्राप्त हो सकती है जिसमें से 2.5 लाख रूपये की अधिकतम उत्पादन लागत घटाने पर 15 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। सहजन की हरी पत्तियों को छाया में सुखाने के पश्चात उनका पाउडर बनाकर बेचने पर अतिरिक्त मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। इस प्रकार से परिवार को सुपोषण तथा रोजगार के साथ सहजन की खेती से प्रति वर्ष आकर्षक मुनाफा कमाया जा सकता है जो अन्य किसी व्यवसाय में संभव नहीं है।
कृपया ध्यान रखें: कृपया इस लेख के लेखक ब्लॉगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पते का उल्लेख करना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे। लेख प्रकाशित करने की सूचना लेखक के मेल profgstomar@gmail .com पर देने का कष्ट करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें