डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्यविज्ञान),इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा,महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भोजन एक बुनियादी और मौलिक मानव अधिकार है। आज विश्व खाद्य दिवस है और इस वर्ष इस खास दिवस को मनाने की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है क्योंकि विश्व की बहुत बड़ी आबादी कोरोना संकट से प्रभावित है और संकट के इस दौर में बहुत सारे लोग दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं । कोविड-19 की महामारी ने विश्व समुदाय के समक्ष खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए भयंकर संकट पैदा कर दिया है। लोगों की घटती आमदनी और वितीय संकट के चंगुल में फंसी दुनियां की एक बड़ी आबादी के सामने रोजी-रोटी का संकट आन पड़ा है । ऐसे में आम आदमी के लिए पुष्टिकर आहार की जुगत लगाना मुश्किल हो गया है ।
कृषि एवं खाध्य संगठन की 75वी वर्ष गांठ के अवसर पर भारत शासन द्वारा 75 रूपये का सिक्का लांच |
कोविड-19
महामारी से त्रस्त विश्व समुदाय के लिए सयुंक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन
ने विश्व खाध्य दिवस-2020 हेतु ऐसी एकजुटता का आह्वान किया है, जिससे सबसे कमजोर
लोगों की उचित सहायता की जा सके और साथ ही खाद्य-प्रणालियों को अधिक टिकाऊ और
मजबूत बनाकर संभावित खतरों से बचा जा सकें। कोरोना महामारी के इस नाजुक दौर में, खाद्य
एवं कृषि संगठन द्वारा जनसमुदाय के लिए अतिमहत्वपूर्ण सन्देश भी दिए गए है, जो
संकट की इस घड़ी में मददगार साबित हो सकते है,जैसे सामर्थ्य के अनुसार अपने भोजन
में से कुछ अंश अन्य जरुरतमंदों के साथ भी साझा करना, भोजन-बैंक की स्थापना करना,
निःशुल्क आहार वितरण करने वाले सामाजिक-धार्मिक संगठनों को आर्थिक प्रोत्साहन देना
आदि कार्य, ताकि एक-दूसरे के परस्पर सहयोग से इस जोखिम भरे समय में मानवता की
रक्षा की जा सकें ।
भारत
विविध संस्कृति और परंपरा का एक विशाल देश है। देश के प्रत्येक राज्य में विभिन्न
त्यौहारों को अलग-अलग शैलियों में मनाया जाता है लेकिन हर उत्सव में भोजन आम तत्व
होता है। विवाह भारतीयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवसरों में से एक है जहाँ विभिन्न
खाद्य पदार्थ तैयार कर सैकड़ों लोगों को परोसा जाता है । इन अवसर पर बहुत सारा खाना व्यर्थ हो जाता है। हमें अतिरिक्त भोजन
सुरक्षित रखना चाहिए और गरीबों और जरूरतमंद लोगों में इसे वितरित करना चाहिए। यह
कदम बहुत अंतर उत्पन्न कर देगा क्योंकि इससे भूखे और जरूरतमंद को खाना मिल जायेगा और
भोजन भी व्यर्थ नहीं रहेगा। निजी कंपनियां और सरकारी संगठन के कर्मचारियों को वेतन से कुछ प्रतिशत स्वैच्छिक रूप से खाद्य
बैंक के लिए दान करना चाहिए ताकि प्राकृतिक
आपदाओं,
विपत्तियों के समय में इस इकट्ठा किए गए धन का उपयोग किया जा सकेगा।
देश के अन्नदाता और कोरोना
योद्धाओं का आभार
आज कोविड-19 महामारी के चलते हमारे खाद्य नायकों-किसानों एवं श्रमिकों को खाध्य प्रणाली में भरपूर समर्थन देने की परम आवश्यकता है। देश को भुखमरी से आजादी दिलाने में किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों और नीत निर्माताओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है । कोरोना काल में भी हमारे अन्नदाता किसान अपने खेत-खलिहान के कार्यों का संपादन करते रहे तभी तो हमें खाद्यान्न, फल-फूल सब्जी आदि उपलब्ध हो रही है। इसके लिए हमें अपने किसानों के साथ-साथ पूरी खाद्यान्न श्रंखला जैसे परिवहन, वितरण एवं बाजार व्यवस्था में लगे जन साधारण का भी आभार व्यक्त करना नहीं भूलना चाहिए की उन्होंने समय पर खाद्यान्न और खाद्य सामग्री की आपूर्ति बनाएं रखने में अपना अमूल्य सहयोग दिया। यही नहीं प्रवासी श्रमिकों को भोजन उपलब्ध कराने तमाम सामाजिक-धार्मिक संगठनों के अलावा सरकारी प्रतिष्ठानों के अधिकारी-कर्मचारी तथा सक्षम लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है. इसके अलावा कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ रहे और मानवता की खुशहाली में लगे चिकित्सक, सुरक्षा, सफाई और मीडिया क्षेत्र के योद्धाओं के योगदान को सदैव याद रखा जायेगा कि संकट की इस घड़ी में वे पूरे जोश और जज्बे के साथ कोरोना पीड़ित मानवता की सेवा में समर्पित भाव से अपने कर्तव्य का निर्बहन करते आ रहे है । पूरा देश इन योद्धाओं को नमन करता है आभार प्रगट करता है ।
पारिवारिक खेती का दशक
दुनिया में खद्यान्न उत्पादन में किसानों का अहम योगदान है परन्तु वैश्विक करोना महामारी के चलते उनकी आजीविका पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा में इन किसानों की महती भूमिका को रेखांकित करने के उद्देश्य से सयुंक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने एक मुहिम शुरू की है.वैश्विक खाद्य सुरक्षा में पारिवारिक खेती के महत्त्व के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के प्रयास के फलस्वरूप वर्ष 2019-2028 को पारिवारिक खेती का यू एन दशक' घोषित किया है. कोविड-19 महामारी के दौर में भी किसान खेती-किसानी की गतिविधियों को निर्बाध तरीके से संपन्न कर रहे है और जन-मानस को भोजन उपलब्ध करा रहे है. कृषि को समोन्नत करने और किसानों को सशक्त करने के लिए यू एन एजेंसी ने पारिवारिक खेती के लिए ज्ञान मंच बनाया है जिसमें खाद्य-प्रणालियों पर कोविड-19 के असर के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाई है.
केंद्र और राज्य सरकारों
का सराहनीय प्रयास
हमारे देश में खाद्य सुरक्षा कानून लागू है जिसके तहत देश के हर नागरिक तक पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न की पहुँच और उपलब्धतता के लिए सरकार कार्य कर रही है। इस वर्ष कोविड-19 महामारी के चलते देश में 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन के अगले ही दिन 26 मार्च को केंद्र सरकार द्वारा 1.75 लाख करोड़ के विशेष गरीब पैकेज की घोषणा कर 81 करोड़ गरीबों को आठ महीने 40 किलो मुफ्त अनाज व प्रति परिवार 8 किलो दाल अथवा चना उपलब्ध कराने का भगीरथ प्रयास किया गया । तदुपरांत,50 हजार करोड़ रुपयों के ‘गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ के माध्यम से 6 राज्यों के 116 जिलों में प्रवासी मजदूरों को उनके घर के निकट ही रोजगार उपलब्ध कराने की योजना भी प्रारम्भ की है खाद्य गरीब परिवारों को रसोई-गैस सिलिंडर मुफ्त में देने के साथ-साथ दिव्यांग-जनों, गरीब-बुजुर्गों एवं माताओं-बहनों को 1000 रूपये की सहायता राशी भी उनके खतों में स्थानांतरित किये गए खाद्य प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुँचाने हेतु निःशुल्क परिवहन व्यवस्था और उनके गाँव में ही मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया । केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी इन विकत परिस्थितयों से निबटने के लिए अनेक महत्वाकान्छी योजनायें संचालित की है। इसके बावजूद भी कृषि और किसानों तथा गरीबों के लिए बहुत कुछ किया जाना बांकी है।
भोजन जीवन का सार है और हमारे समुदाय एवं संस्कृतियों का आधार भी है। ऐसे में हमें दुनिया के हर व्यक्ति खासतौर से गरीबों एवं कमजोर समुदाय के लोगों के तक सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की पहुंच को सुनिश्चित करना होगा । इसके लिए हमें खाद्य-प्रणाली को टिकाऊ बनाते हुए प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की आवश्यकता है. इसलिए इस वर्ष खाद्य दिवस पर बढती आबादी, विशेषरूप से कमजोर वर्ग को भूख और कुपोषण से उबारने के लिए वर्तमान खाद्य-प्रणाली को अधिक लचीला एवं मजबूत बनाने के प्रयास करने के लिए वैश्विक एकजुटता का आह्ववान किया गया है ।
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