डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर इस वर्ष मानसून की स्थिति सामान्य मानी जा सकती है । इस वर्ष सितम्बर माह में हुई वर्षा से खरीफ और रबी फसल दोनों को लाभ मिलने की उम्मीद है। रबी की प्रमुख फसलें गेंहू,चना,सरसों आदि पर विशेष ध्यान देकर अधिक से अधिक क्षेत्र में इन फसलों को लगाकर तथा उनका यथोचित प्रबंध करके लक्षित उत्पादन हासिल किया जा सकता है। बीते वर्ष 2019-20 में 29 करोड़ 66 लाख 50 हजार टन रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन प्राप्त हुआ। इसके लिए देश के अन्नदाता किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि नीति निर्माता बधाई के पात्र है। अच्छे मानसून और खरीफ के तहत अधिक रकबे को देखते हुए इस वर्ष 2020-21 के लिए 30.1 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से गेंहू उत्पादन के लिए 10 करोड़ 80 लाख टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है,जबकि पिछले वर्ष 10.76 करोड़ टन गेंहू उत्पादन प्राप्त हुआ था। रबी का राजा गेंहूँ भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। बीते कुछ वर्षो में गेंहूँ उत्पादन एवं उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि के चलते हमारा देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। परन्तु बदलते परिवेश में निरंतर बढती हुई आबादी के उदर पोषण के लिए गेंहू उत्पादन में सतत वृद्धि समय की मांग है।
1.बुवाई की परिस्थितयों के अनुसार खेती: हमारे देश में गेंहू तीन-चार परिस्थितयों में
बोया जाता है। पहली खरीफ पडती वाले खेतों को तैयार करके उसमें गेंहू की बुआई
की जाती है। दूसरी स्थिति में खरीफ फसल काटने के उपरान्त पलेवा (सिंचाई) देकर खेत
तैयार करके बुवाई की जाती है । इसमें भी दो स्थितियां होती है-सीमित सिंचाई और
भरपूर सिंचाई। तीसरी अवस्था धान कटाई के बाद खेतों की बिना जुताई के जीरो टिलेज
तकनीक से बुवाई की जायें और चौथी अवस्था में धान की देर से पकने वाली किस्मों की
कटाई के बाद गेंहूँ की बुवाई अर्थात गेंहू की बिलम्बित बुवाई। इस प्रकार खेती की
हर एक स्थिति में बुवाई हेतु उन्नत तकनीक का सहारा लिया जाए तो बिपुल उत्पादन
प्राप्त किया जा सकता है।
2.समय पर बुवाई: पौधों की अधिकतम वृद्धि एवं अच्छी उत्पादकता हेतु समय पर
बुवाई सबसे महत्वपूर्ण है। असिंचित अवस्था में गेंहू की बुवाई 30 अक्टूबर तक और
सीमित पानी की स्थिति में बुवाई 15 नवम्बर तक पूरी कर ले जाए। पर्याप्त पानी
उपलब्ध होने पर 30 नवम्बर तक बुवाई संपन्न कर लेना हितकर होता है । किसी कारणवश
समय पर बुवाई न होने पर 15-20 दिसंबर तक बुवाई अवश्य कर लेनी चाहिए। सामान्यतौर पर
बुवाई के लिए औसत तापमान 21-250 सेल्सियस उत्तम रहता है। विलम्ब से बुवाई
करने पर प्रतिदिन की देरी के हिसाब से उत्पादन में निरंतर कमीं आती जाएगी । ज्ञात
हो कि गेंहू फसल की वृद्धि एवं विकास के लिए कम से कम 90 दिन ठंडे दिनों की
आवश्यकता होती है और देरी से बोये गए गेंहू के लिए 90 ठन्डे दिनों में कमीं आना
स्वाभाविक है।
3.उन्नत किस्मों का इस्तेमाल: गेंहू की अनुमोदित उन्नत किस्मों को बुवाई के
समय और उत्पादन परिस्थिति के अनुसार लगाना चाहिए. अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका
है कि उन्नत किस्म का बीज उपयोग करने मात्र से ही 25-30 प्रतिशत तक उत्पादन में
वृद्धि हो जाती है। कम सिंचाई एवं असिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहूँ की उन्नत
किस्मों में एच आई-8627,
एच आई-1531, एम पी-3288 आदि उपयुक्त रहती है.
समय पर बुवाई कर 1-2 सिंचाई देने पर इन किस्मों से 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
उपज प्राप्त हो जाती है। समय पर बुवाई एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए राज-4037,
एच आई-1544, राज-4120, एम
पी ओ-1215, राज-4083, एच आई-8713 आदि
किस्में उपयुक्त रहती है। उत्तम सस्य प्रबंधन करने से इन किस्मों से औसतन 50-60
क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है।
4.बीज दर एवं बीज उपचार: वर्षा आधारित क्षेत्रों में समय पर बुवाई के
लिए 125 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। सिंचित क्षेत्र,समय पर
बुवाई (नवम्बर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक) के लिए 100 किग्रा.
प्रति हेक्टेयर, सिंचित क्षेत्र देर से बुवाई (15 दिसंबर तक) हेतु 125 किग्रा.
प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है । बुवाई पूर्व बीज को उचित कवकनाशी एवं पी एस
बी कल्चर से उपचारित अवश्य कर लेवें। बीज उपचार से बहुत ही कम लागत में लाभ अधिक
होता है। बीज जनित रोगों से बचाव के हेतुकार्बोक्सिन (वीटावेक्स 75 डब्ल्यू पी) 2.5
ग्राम या कार्बेन्डाजिम (बाविस्टीन 50 डब्ल्यू पी) 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर
से बीज उपचारित करें। दीमक की समस्या वाले क्षेत्रों में 600 मिली. क्लोरोपायरीफ़ॉस
20 ईसी को आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर बीजों पर समान रूप से छिड़ककर उपचारित करें
एवं छाया में सुखाने के बाद दो घंटे के अन्दर बुवाई करें।
5.बुवाई ऐसे करें: सामान्यतः किसान पारंपरिक विधि से बीज को छिटककर
गेंहू की बुवाई करते है जो की गैर वैज्ञानिक तरीका है। इसी करण निराई-गुड़ाई एवं
अन्य सस्य क्रियाओं में बाधा आती है तथा पैदावार भी कम आती है. सीड ड्रिल या सीड
कम फर्टीड्रिल द्वारा बुवाई करना एक सर्वोत्तम तरीका है. इसमें बीज को बीज पेटी
(बॉक्स) में एवं उर्वरक को उर्वरक पेटी में डालकर दोनों कार्य (बेज बुवाई एवं
उर्वरक प्रयोग) एक साथ संपन्न होता है. पंक्ति में बुवाई करने से पौधों की संख्या
उचित एवं एक समान रहती है जिससे लगत में कमीं एवं पैदावार में वृद्धि होती है. उपयुक्त
नमींयुक्त भुरभरी मिट्टी वाले खेत में बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी
20-23 से.मी. एवं गहराई 5-6 से.मी. रखनी चाहिए। यदि किसान भाई देशी हल से बुवाई कर
रहे है तो दो नली सीड ड्रिल (पोरा विधि) का प्रयोग करें। जो नली मिट्टी में गहरी
खुले उसमें उर्वरक एवं थोडा ऊपर खुलने वाली नली से बीज को ऊरे ताकि बीज के नीचे उर्वरक
गिरे। पछेती बुवाई की दशा में पंक्तियों की दूरी घटाकर 16-18 से.मी. रखें ।
धान-गेंहू फसल चक्र में शून्य कर्षण (जीरो टिलेज) विधि से बुवाई करने से समय, श्रम और धन तीनों की बचत के
साथ-साथ अधिक उत्पादन भी प्राप्त होता है।इस विधि में बुवाई हेतु विशेष रूप से
तैयार की गई बीज संग उर्वरक डालने वाली मशीन अर्थात जीरो टिल कम फर्टीड्रिल का
प्रयोग किया जाता है। इस विधि से गेंहू की बुवाई लगभग 10 दिन पहले की जा सकती है
तथा 3-4 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। सीमित पानी वाले क्षेत्रों में
उठी हुई शैय्या (रेज्ड बेड) पर बुवाई करने से पानी की 25 प्रतिशत बचत होती है।
6.समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन: अधिकतम उत्पादन प्राप्त
करने के लिए समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन अति आवश्यक है. जैविक खाद 8-10 टन प्रति
हेक्टेयर, जीवाणु खाद (एजोटोबेक्टर व पी एस बी) तथा रासायनिक
उर्वरकों का समन्वित प्रयोग करना बेहतर होता है। मिट्टी परिक्षण के आधार पर
उर्वरकों का प्रयोग करने से कम लागत में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। समय से
बुवाई की जाने वाली किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 120 किग्रा.नत्रजन,60 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश का उपयोग करना चाहिए। असिंचित
क्षेत्रों में इन उर्वरकों की आधी मात्रा पर्याप्त होती है। जैविक अथवा जीवाणु खाद
का प्रयोग या दलहनी फसल के पश्चात गेंहू की बुवाई करने पर नत्रजन की मात्रा में 25
प्रतिशत तक की कमीं की जा सकती है। असिंचित क्षेत्रों
में उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा व सिंचित क्षेत्रों में आधी नत्रजन एवं पूर्ण
फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा बुवाई के समय ऊर कर देना चाहिए।नत्रजन के शेष आधी
मात्रा को दो हिस्सों में बराबर बांटकर प्रथम और द्वितीय सिंचाई के समय देनी
चाहिए. वर्तमान में कुछ गेंहू उत्पादक क्षेत्रों में गंधक एवं जस्ते की कमीं के
लक्षण फसल में देखे जा रहे है। अतः इस समस्या से निजात पाने के लिए मिट्टी की जांच
के आधार पर या 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिप्सम व 25-30
किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।
7.सिंचाई से भरपूर उपज: सामान्यतः गेंहू की फसल को
फसल की स्थित तथा भूमि में नमीं की उपलब्धतता को देखते हुए भारी मिट्टी में 4-6
सिंचाइयों और हल्की मिट्टी में 6-8 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई
फसल बोने के 20-25 दिन पर शीर्ष जड़े निकलने के समय करें। आगे की सिंचाइयाँ मुख्यतः
कल्ले निकलते समय, बालियाँ निकलते समय और दानों की दूधिया
अवस्था में अवश्य करें। सिंचाई हेतु खेत में आवश्यकतानुसार मेड़ें बना लेना चाहिए
ताकि पानी का अपव्यय कम से कम हो सकते।
8.खरपतवार मुक्त खेत: खरपतवार गेंहूँ फसल के साथ प्रतियोगिता कर उपज
को घटा देते है. अतः बुवाई के 35-40 दिनों तक खेत को खरपतवार मुक्त रखने का प्रयास
करें। प्रथम सिंचाई के 10-12 दिन के अन्दर कम से कम एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार
अवश्य निकाल दें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30 से
35 दिन बाद 1250 ग्राम 2,4-डी (वीडमार) रसायन प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर
छिडकाव करें। संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु गेंहू की
बुवाई के 30-35 दिन बाद पेंडीमेथालिन (स्टॉम्प) 2-3 लीटर या सल्फो सल्फ्यूरान+ मेट सल्फ्यूरान (टोटल) 40
ग्राम पाउडर का 300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
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