डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर, प्रोफ़ेसर
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
आज विश्व मृदा दिवस है।! अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि’:, पुत्रो अहं पृथिव्या: अर्थात भूमि मेरी माता है
और मैं उसका पुत्र हूं… यजुर्वेद में भी कहा गया है-
नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्या: अर्थात माता
पृथ्वी (मातृभूमि) को नमस्कार है, मातृभूमि को नमस्कार है।धरती
माता हमारे जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख आधार है, हमारा भरण-पोषण
करती है। इसलिए वेद आगे कहते है - "उप सर्प मातरं भूमिम् " -- हे
मनुष्यो मातृभूमि की सेवा करो । वाल्मीकि रामायण में भी कहा गया है ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात जननी और
जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है। अतः प्रकृति के अनमोल रत्न भूमि की रक्षा,
सुरक्षा और सम्मान करना हम सब का कर्तव्य ही नहीं नैतिक दायित्व भी है. इसके उलट मानव अपने स्वार्थ की प्रतिपूर्ति के लिए
धरती का शोषण करने लगा है. आंकड़े बताते हैं कि अनुकूल परिस्थितियों में मिट्टी की
एक इंच मोटी परत बनने में करीब आठ सौ साल लगते हैं,
जबकि एक इंच मिट्टी को उड़ाने में आंधी और पानी को चंद पल लगते हैं।
हम सब को मिलकर भूमि को उर्वर एवं उपजाऊ बनाये रखने के सघन प्रयास करना चाहिए।
थाईलैंड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज द्वारा मृदा प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के महत्त्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये की गई आजीवन प्रतिबद्धता के चलते उनके जन्म दिन 5 दिसम्बर को हर साल “विश्व मृदा दिवस” मनाया जाता है। हम जानते हैं कि हमारा भविष्य स्वस्थ मिट्टी पर निर्भर करता है। मगर आपने कभी सोचा है कि कितनी बार आप अपने पैरों के नीचे की जमीन की सराहना करते हैं, उसका सम्मान करते है ? दुनियां में मिट्टी के बिना कोई खाद्य सुरक्षा नहीं हो सकती है बल्कि जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति भी संभव नहीं है । विज्ञान ने आज जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुओ को बना लिया है परन्तु मिट्टी और पानी बनाने में अभी तक कामयाबी हासिल नहीं कर पायी है और इसकी कोई संभावना भी नहीं है।
विश्व मृदा दिवस उस पृथ्वी के महत्त्व को जानने का दिन है जो हमारे
सुपोषण का ख्याल रखती है, स्वच्छ पेय जल देती है, हमें कपड़े-पोशाक उपलब्ध कराती है, हमारे आवास और
सैर-सपाटे का आधार बनती है और हमें सशक्त
बनाती है। खाध्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा विश्व
मृदा दिवस-2021 का विषय “मिट्टी की लवणता को रोकना, मिट्टी की उत्पादकता को
बढ़ावा देना (Halt
soil salinization, boost soil productivity) रखा गया है, जिसका उद्देश्य मृदा प्रबंधन में बढती चुनौतियों का समाधान
करते हुए, मिट्टी के लवणीकरण को समाप्त करना है।
कृषि की दृष्टी से
मृदा लवणता वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. शुष्क एवं अर्धशुष्क
क्षेत्रों में जहाँ निक्षालन हेतु पर्याप्त वर्षा का अभाव रहता है, वहां लवणता
गंभीर समस्या बनी रहती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट
में यह स्पष्ट होता है कि प्रति वर्ष 27 अरब टन मिट्टी का क्षरण जलभराव, क्षारीकरण के कारण हो रहा है। मिट्टी की यह मात्रा एक करोड़ हेक्टेयर कृषि
भूमि के बराबर है। एक अनुमान के अनुसार विश्व की 833 मिलियन हेक्टेयर (8.7 %) भूमि
लवण-ग्रस्त है.
वर्तमान समय में
जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा एवं जलवायु में असमानता के कारण आने वाले समय में
यह संकट विकराल रूप धारण कर सकता है। हमारे देश में लवणग्रस्त क्षेत्रो का विस्तार विभिन्न प्रदेशों
यथा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश,
हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि में फैला हुआ है। कुल लवण प्रभावित मृदाओं का लगभग
56 प्रतिशत क्षारीयता एवं 44 प्रतिशत लवणता की समस्या से प्रभावित है। सिन्धु-गंगा का
उपजाऊ मैदानी क्षेत्र, क्षारीयता की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित है। हमारे प्रदेश
छत्तीसगढ़ में मृदा लवणता की समस्या बहुत कम है परन्तु नहरी सिंचित क्षेत्रों में
हमें सतर्क रहते हुए सही जल प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए।
मिट्टी में पानी में
घुलनशील लवणों के निर्माण को लवणीकरण कहा जाता है। आमतौर पर इसमें सोडियम,
कैल्शियम तथा मैग्नीशियम
एवं उनके क्लोराइड एवं सल्फेट अधिक मात्रा में पाए जाते है। लवणीय मृदा प्रायः
जलभराव की समस्या से भी ग्रसित होती है। ऐसी मृदा में ऊपरी सतह पर सफेद पपड़ी बन जाती है।
पौधों की वृद्धि पर
मिट्टी की लवणता का मुख्य प्रभाव जल अवशोषण में कमी है। मिट्टी में पर्याप्त नमीं होने के
वावजूद भी पानी के अवशोषण में कमीं के कारण फसलें मुरझा जाती हैं और अन्त में मर
जाती हैं। तेजी से बढती हुई
आबादी को ध्यान में रखते हुए आने वाले वर्षों में सबको पर्याप्त पोषण उपलब्ध हो
इसके लिए देश में उपलब्ध लगभग 6.73 मिलियन हैक्टर लवणीय एवं क्षारीय भूमि को
उत्पादन योग्य बनाना अत्यन्त आवश्यक है। लवणता की समस्या नए क्षेत्रों में लगातार बढती जा रही है और ऐसी
संभाना है कि इसका वर्तमान प्रभावित क्षेत्र वर्ष 2050 तक तीन गुणा बढ़कर 20 मिलियन
हैक्टर हो सकता है। अनुपयुक्त मृदा एवं
जल प्रबंधन के कारण लवणों का जमाव होना विश्वभर में एक गंभीर समस्या बनती जा रही
है। मृदा लवणता फसल
उत्पादन को प्रभावित करती है जिसके फलस्वरूप खाध्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव
पड़ता है। लवणग्रस्त मृदाओं को
रोकने तथा सुधर करने के लिए एक समग्र प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है जिसमें सिंचाई
योजनाओं का सही प्रबंधन तथा निष्कासित जल का पुनः उपयोग तथा सुरक्षित निष्कासन आदि
सम्मलित है। जिप्सम का प्रयोग,
सही फसलों एवं किस्मों का चयन, उपयुक्त फसल चक्र, कुशल जल प्रबंधन, खाद एवं
उर्वरकों का संतुलित उपयोग, गहरी जुताई, मल्च का प्रयोग आदि ऐसे उपाय है जिनसे
मृदा लवणता को रोका जा सकता है।
वास्तव
में मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को बचाना
बेहद जरूरी है क्योंकि मृदा की उर्वराशक्ति के क्षीण होने का नुकसान किसी न किसी
रूप में समूचे राष्ट्र को चुकाना पड़ता है। ऊसर एवं बंजर होती भूमियों से फसल
उत्पादन कम होता है जिससे किसानों की आर्थिक दशा कमजोर हो जाती है और अंततः राष्ट्रिय
कृषि आय में कमीं आ जाती है।
मानव की भांति हमारी
मृदा भी बीमार हो जाती है। पौधों की बढ़वार के लिए सामान्यतौर पर 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता
होती है। प्रमुख रूप से एक या
एक से अधिक पोषक तत्वों की कमीं या अधिकता, भूमि का अम्लीय, लवणीय व क्षारीय होना
और जल भराव भूमि की प्रमुख बीमारियाँ है। इन्ही के कारण कोई भूमि उपजाऊ होते हुए भी उत्पादक नहीं होती है
और यही मुख्य बजह है कि देश के अनेक क्षेत्रों में फसल उत्पादकता कम होती जा रही
है या स्थिर हो गयी है।
आजादी के समय भारत के
मृदाओं में मुख्यतः नाइट्रोजन तत्व की ही कमीं थी लेकिन सघन खेती करने से अब लगभग
10 पोषक तत्वों की कमीं आ गई है. पौधों की वृद्धि एवं उपज के लिए पोषक तत्वों का संतुलित एवं आवश्यक मात्रा
में प्रयोग नितांत जरुरी है । आज
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश का आदर्श अनुपात बिगड़ गया है. उर्वरकों के असंतुलित
उपयोग ने समस्या बढ़ाई है।
भारत में 83 प्रतिशत
से अधिक मृदाओं में नाइट्रोजन की कमीं पाई गई है। फॉस्फोरस का स्तर मध्यम व पोटाश
का स्तर उपयुक्त पाया गया है। देश की मृदाओं में से 39.1 % में गंधक, 34 % में जिंक, 31% में
लोहा, 22.6 % में बोरोन, 4.8 % में तांबे की कमीं पाई गई है। फसलों की उपज अन्य विकारों से भी
कम हो जाती है। देश की लगभग 6.73
मिलियन हैक्टर मृदाओं में लवणी एवं क्षार
की मात्रा अधिक है।
मिट्टी
की गुणवत्ता में सुधार लाने और मिट्टी के स्वास्थ्य की जांच के लिए देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र
मोदी ने साल 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
(एसएचसी) की शुरूआत की थी । इस योजना के तहत किसानों की प्रत्येक जोत के जी पी
एस आधारित मृदा स्वास्थ कार्ड बनाये जा रहे है। इन कार्डों में भूमि में उपस्थित
पोषक तत्वों एवं मृदा विकारों को ध्यान में रखकर फसल के अनुसार उर्वरकों की सलाह
दी जा रही है। मृदा कार्ड योजना में अब तक देश के 22 करोड़ 56 लाख किसानों को कार्ड
वितरित किये गए है। इस योजना के तहत 429 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं, 102 चल मृदा
परिक्षण प्रयोगशालाएं और 8452 सूक्ष्म मृदा परिक्षण प्रयोगशालाएं मृदा परीक्षण का
कार्य कर रही है. छत्तीसगढ़ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार करने के लिए किसानों के
खेतो से 7.87 लाख मृदा नमूने एकत्रित कर मृदा परिक्षण करने के उपरान्त किसानों को
वितरित किये गए। मृदा परीक्षण प्रयोगशाला,इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
रायपुर ने रेफरल मृदा परीक्षण प्रयोगशाला के
रूप में सफलता पूर्वक कार्य संपादित किया जा रहा है ।
मृदा
के स्वास्थ्य के लिए मृदा परीक्षण सतत चलने वाला कार्य है। अतः किसानों को
अपने खेत की मिट्टी की जांच प्रति तीन वर्ष के अंतराल से करवाते रहना चाहिए । मृदा
स्वास्थ कार्ड आधारित उर्वरक उपयोग से जहाँ भूमि एवं फसल की आवश्यकता के अनुरूप
संतुलित मात्रा में उर्वरक दिया जा सकता है, वहीँ जहां किसान भाई आवश्यकता से अधिक
मात्रा में उर्वरक प्रयोग करते थे, वहां इनकी मात्रा कम हो जाने से फसल उत्पादन
लागत में कमीं आ रहीं है । यदि कार्ड में अधिक मात्रा में उर्वरकों की अनुसंशा है तो
निश्चित ही किसान को अधिक उतपादन प्राप्त होगा । एक सर्वेक्षण के अनुसार मृदा स्वास्थ कार्ड
बांटने के उपरान्त 8 से 10 प्रतिशत उर्वरक खपत में कमीं हुई है तथा फसलों की उपज
में भी 5-6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है ।
स्वस्थ मृदा से ही
भरपूर फसल उत्पादन की कल्पना साकार हो सकती है. हम सब को धारण करने वाली एवं पोषण प्रदान करने वाली धरती को
स्वस्थ एवं स्वच्छ बनाये रखने टिकाऊ मृदा प्रबंधन की महती आवश्यकता है. आइये आज विश्व मृदा
दिवस के शुभ अवसर पर हम सब मृदा के उत्तम स्वास्थ के लिए मृदा के पोषण प्रबंधन एवं
रखरखाव के लिए कारगर कदम उठाने का संकल्प लेते है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें