डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर(सस्य विज्ञान)
ड्रेगन फल (हायलोसिरस अनडेटस) कैक्टस प्रजाति का उष्णकटिबंधीय फल है जिसे अद्वितीय पौष्टिक गुण और स्वाद के कारण सुपर फ़ूड की उपाधि प्राप्त है। आकर्षक रूप- रंग, लाजबाव स्वाद, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के कारण मध्य अमेरिका में जन्मे ड्रेगन फ्रूट ने भारतीय बाजार में धमाकेदार प्रवेश किया है। इस अनोखे फल की बढती मांग एवं लोकप्रियता के कारण भारतीय किसानों को भी इस विदेशी फल की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है। मध्य अमेरिका से चलकर इज़रायल, वियतनाम, ताइवान, निकारागुआ,ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, थाईलेंड का लम्बा सफ़र करते हुए अब यह फल धीरे धीरे भारत के खेतों में भी दस्तक दे रहा है। भारत के अनेक राज्यों के किसान इस विदेशी फल की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे है। छत्तीसगढ़ में इस फल की खेती 8-9 वर्ष से की जा रही है और वर्तमान में छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा उच्च गुणवत्ता के ड्रेगन फलों को पैदा किया जा रहा है. इसके फलों की घरेलू खपत के साथ साथ देश के अन्य राज्यों में भी ऊंची कीमत (200-400 रूपये प्रति किलो) पर बेचा जा रहा है और विदेशों में निर्यात भी किया जा रहा है।
ड्रेगन फ्रूट कैक्टस (नागफनी)
कुल का लम्बे दिन वाला पौधा है। रात्रि
में खिलने वाले इसके फूल बहुत ही आकर्षक और सुन्दर होते है, जिसके
कारण यह फल 'नोबल वूमेन' और 'क्वीन ऑफ़ द नाईट' के नाम से प्रसिद्ध है।
इसे स्ट्राबेरी पियर, पिताया आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका फल दिखने बहुत ही
अजीब सा होता है और इसका बाहरी हिस्सा काफी उबड़ खाबड़ होता है परन्तु इसके अन्दर का
भाग (गूदा) काफी मुलायम और बहुत स्वादिष्ट होता है। अभी ड्रेगन फ्रूट की मुख्यतः तीन प्रजातियों की पहचानी हुई है जिनमे सफेद गूदा और गुलाबी
लाल छिलका (हायलोसिरस अनडेटस), लाल गूदा और गुलाबी लाल छिलका (हायलोसिरस
कोस्टारीसेंसिस) तथा सफेद गूदा और पीला छिलका
(हायलोसिरस मेगालनथस)। ड्रैगन फ्रूट की सभी प्रजातियों के गूदे के साथ अनगिनत काले
रंग के बीज गुथे होते हैं, जिसे गूदे के साथ
ही खाया जाता है। ड्रैगन फ्रूट का स्वाद हल्का मीठा होता है। आमतौर पर लाल गूदे
वाले फल को अधिक पसंद किया जाता है।
ड्रेगन
फ्रूट स्वादिष्ट होने के साथ साथ अमूमन सभी प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होते
है। यह विटामिन सी और आयरन का मुख्य स्त्रोत भी है। देश विदेश में प्रकाशित शोध
पत्रों के अनुसार ड्रेगन फल के 100 ग्राम
गूदे (लुगदी) में जल: 87 ग्राम, प्रोटीन: 1.1 ग्रा., फैट: 0.4 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट:
11 ग्राम, क्रूड फाइबर: 3 ग्राम, कैल्शियम: 8.5 मिग्रा.,फॉस्फोरस: 22.5 मिग्रा.,आयरन: 1.9 मिग्रा., विटामिन बी-1 (थायमिन): 0.04 मिग्रा., विटामिन
बी-2(राइबोफ्लेविन):0.05 मिग्रा., विटामिन बी-3 (नियासिन): 0.16 मिग्रा. एवं विटामिन
सी (एस्कोर्बिक एसिड): 20.5 मिग्रा. के अलावा बहुत से एंटी ओक्सिदेंट्स जाते है। इसके गूदे की ब्रिक्स वैल्यू 11-19 तथा
पी एच मान 4.7-5.1 होता है। इतने सारे पौष्टिक तत्वों से भरपूर होने के कारण ड्रेगन फल को 'स्वर्ग का फल' कहा जाता है.
ड्रेगन
फ्रूट स्वाद में उम्दा होने के साथ साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता
है। इसमें पर्याप्त मात्रा में उच्च कोटि का फाइबर उपस्थित होने के कारण मधुमेह
एवं ह्रदय रोगियों के लिए उपयोगी फल है। इसके नियमित सेवन से ब्लड शुगर संतुलित
रहती है, रक्तचाप नियंत्रित रहता है, आंखों की रोशनी बढती है और पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। इसमें अनेक
प्रकार के एंटी ऑक्सीडेंट्स एवं प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाई जाती है,जो
मिलकर शरीर में रक्त परिसंचरण बनाये रखते है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में मदद
करते है । इसे खाने से शरीर में कोलेजन का
उत्पादन होता है जो दांतों को स्वस्थ और त्वचा को सुंदर व स्वस्थ बनाता है। इसमें
कैलोरी कम होती है। अतः अधिक चर्बी वाले लोग भी इसका सेवन करके मोटापा कम कर सकते
हैं। इसके बीजों में पॉली अनसेचुरेटेड फेट ओमेगा-3 और ओमेगा-6
फेटी एसिड पाए जाते हैं। इसलिए इसे आसानी से चबाकर खाया जा सकता है।
इसमें मौजूद कैल्शियम दांतों और हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है। प्रचुर मात्रा में आयरन विद्यमान होने के
कारण, इसके सेवन से शरीर में खून की मात्रा बढती है और मांसपेशियाँ स्वस्थ और मजबूत
रहती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार, ड्रैगन फ्रूट में
पॉलीफीनॉल और फ्लावोनोइड पाया जाता है जो कई प्रकार के कैंसर की कोशिका को बनने और
बढ़ने से रोकने में कारगर है।
प्रतिकूल प्रभाव: ड्रैगन फ्रूट खाने से शरीर और स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु कुछ लोगों को ड्रैगन फ्रूट खाने से एलर्जी की शिकायत हो सकती है।
शुरूआती
दौर में ड्रेगन फल के एक पौधे पर 10-12 तक फल लगते हैं, बाद में इसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ जाती है। एक पोल पर 40 से 100 फल तक लग सकते है। एक फल का औसत भर 200-300
ग्राम संभावित है। एक एकड़ में अनुमानित 449 पोल स्थापित किये जाते है। प्रथम वर्ष में एक पोल से यदि 40 फल भी प्राप्त होते है, तो 200
ग्राम प्रति फल भार के हिसाब से कुल 3592 किग्रा फल प्रति एकड़ प्राप्त हो सकते है। बाजार भाव कम से कम 125
रूपये प्रति किलो मान लिया
जाये तो प्रथम वर्ष 4,4900 की आमदनी होती है, जिसमे से तीन लाख की उत्पादन लागत घटाकर 1
लाख 49 हजार रूपये प्रति एकड़ का शुद्ध मुनाफा प्राप्त हो सकता है जो आगे के वर्षो में
दो से चार गुना बढ़ जाता है। फलों की तुड़ाई बाद किसान भाई पौधों की कटाई छटाई करते समय अतरिक्त शाखाओं/टहनियों से पौध/कलम तैयार कर बेच कर अतिरिक्त मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। यही नहीं ड्रेगन फ्रूट के साथ दो कतारों के मध्य अंतरवर्ती फसल के रूप में शीघ्र तैयार होने वाली दलहन अथवा सब्जिओं की फसल लेकर बोनस लाभ भी कमाया जा सकता है। इस प्रकार भारतीय जन मानस की स्वास्थ्य रक्षा और देश
के लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए ड्रेगन फल की खेती आर्थिक दृष्टि से वरदान सिद्ध हो सकती है। ध्यान रहे की फलों की
संख्या, बजन पुर्णतः मौसम एवं जलवायु तथा सस्य प्रबंधन पर निर्भर करता है। बाजार
में मांग एवं पूर्ति के अनुसार इसकी खेती से लाभांश में उतार चढाव हो सकता है।
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
ड्रेगन फल (हायलोसिरस अनडेटस) कैक्टस प्रजाति का उष्णकटिबंधीय फल है जिसे अद्वितीय पौष्टिक गुण और स्वाद के कारण सुपर फ़ूड की उपाधि प्राप्त है। आकर्षक रूप- रंग, लाजबाव स्वाद, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के कारण मध्य अमेरिका में जन्मे ड्रेगन फ्रूट ने भारतीय बाजार में धमाकेदार प्रवेश किया है। इस अनोखे फल की बढती मांग एवं लोकप्रियता के कारण भारतीय किसानों को भी इस विदेशी फल की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है। मध्य अमेरिका से चलकर इज़रायल, वियतनाम, ताइवान, निकारागुआ,ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, थाईलेंड का लम्बा सफ़र करते हुए अब यह फल धीरे धीरे भारत के खेतों में भी दस्तक दे रहा है। भारत के अनेक राज्यों के किसान इस विदेशी फल की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे है। छत्तीसगढ़ में इस फल की खेती 8-9 वर्ष से की जा रही है और वर्तमान में छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा उच्च गुणवत्ता के ड्रेगन फलों को पैदा किया जा रहा है. इसके फलों की घरेलू खपत के साथ साथ देश के अन्य राज्यों में भी ऊंची कीमत (200-400 रूपये प्रति किलो) पर बेचा जा रहा है और विदेशों में निर्यात भी किया जा रहा है।
ड्रेगन फ्रूट एक परिचय
ड्रेगन फ्रूट-के पौधे (साभार-गूगल) |
बहुपयोगी
है ड्रेगन फ्रूट
ड्रेगन
फ्रूट का गूदा सफ़ेद और लाल रंग का स्वाद में हल्का मीठा होता है जिसमें असंख्य छोटे-छोटे काले रंग के बीज पाए जाते है। इसके ताजे
फलों को काटकर, इसका गूदा (बीज सहित) चाव से खाया जाता हैं। इसके फल का स्वाद हल्का मीठा तथा कुछ-कुछ कीवी और नाशपाती से मिलता जुलता
है। इसके फल से जैम,
जेली,आइस क्रीम, कैंडी, चॉक्लेट,पेस्ट्रीज,योगर्ट, शीतल पेय
पदार्थ आदि तैयार किये जाते है। इसके गूदे को पिज़्ज़ा में भी मिलाया
जाता है। मलेशिया में ड्रेगन फल की मदिरा (वाइन) लोकप्रिय हैं। इसके पुष्प कलियों और फलों से जायकेदार सूप और सलाद
तैयार कर तीन और पंच सितारा होटलों में गर्व से परोसा जाता है। इसके फूल का इस्तेमाल चाय बनाने में
फ्लेवर के लिए किया जाता है। इसके
मांसल तने के गूदे का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने में किया जाता है। ड्रैगन फ्रूट को सजावटी पौधे के
तौर पर भी घरों में लगाया जाता है।
पौष्टिकता और स्वास्थ्य के लिए अद्भुत फल
ड्रेगन फ्रूट-लाल छिलका सफ़ेद गूदा (साभार-गूगल) |
ड्रेगन फ्रूट-पीला छिलका सफ़ेद गूदा (साभार-गूगल) |
प्रतिकूल प्रभाव: ड्रैगन फ्रूट खाने से शरीर और स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु कुछ लोगों को ड्रैगन फ्रूट खाने से एलर्जी की शिकायत हो सकती है।
क्यों लाभकारी है ड्रेगन फ्रूट की खेती
वैज्ञानिक तरीके से ड्रेगन फल की खेती करने से भारत के लघु और सीमान्त किसानों एवं
उधमियों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। पौष्टिक गुणों से भरपूर
तथा स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होने
के कारण देश विदेश में इस फल की भरी मांग को देखते हुए ड्रेगन फ्रूट की खेती लम्बे
समय तक मुनाफा दे सकती है. हमारे देश में
अभी इस अद्भुत फल की खेती महाराष्ट्र,
गुजरात, कर्नाटक,आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू,
राजस्थान सहित छत्तीसगढ़ के कुछ किसानों द्वारा की जा रही है। इसकी खेती में एक बार
निवेश करने पर 4-5 वर्ष तक खासा मुनाफा लिया जा सकता है। अंतरवर्ती फसल अथवा कृषि
वानिकी के साथ सह फसल के रूप में इसकी खेती से कई गुना मुनाफा कमाया जा सकता है।
ड्रेगन फल यानि पिताया के पौधों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार है:
- स्वादिष्ट, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक बहुपयोगी फल है ।
- एक बार लगाने से 20 वर्ष तक लगातार उत्पादन और सुनिश्चित आमदनी।
- भारत की उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु के लिए उपयुक्त।
- भारत की उचित जल निकासयुक्त सभी प्रकार की मिट्टियो में खेती संभव।
- गमलों/प्लास्टिक के पात्रों और घर की छत पर भी ड्रेगन फ्रूट आसानी से पैदा किये जा सकते है।
- कृषि वानिकी के साथ अंतर्वर्ती फसल के रूप में और पेड़ों की छाया में भी खेती की जा सकती है।
- सूखा प्रतिरोधी एवं पानी की न्यूनतम आवश्यकता।
- फसल रखरखाव की न्यूनतम आवश्यकता होती है।
- फसल कीट-रोग प्रतिरोधी अतः पौध सरंक्षण पर न्यूनतम खर्च।
- फलों को 7-8 दिन तक छाया-हवादार स्थानों पर सुरक्षित रखा जा सकता है।
- दो से तीन वर्ष में निवेश वापसी और लाभप्रदतासुनिश्चित।
- आसान प्रवर्धन/प्रसारण और पुनर्विक्रय के लिए कटिगों का उपयोग किया जा सकता है
- फलों की स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग रहती है.
- फलों के मूल्य संवर्धित उत्पादों की
प्रीमियम दरों पर विक्रय सुनिश्चित।
कैसे करे ड्रेगन फ्रूट की खेती
भारत की मिटटी एवं जलवायु ड्रेगन फल की खेती के लिए अनुकूल पाई गई है। इसकी खेती में प्रारंभिक लागत अधिक आती है, परन्तु वैज्ञानिक ढंग से इसकी खेती और पौध प्रबंधन किया जाये तो दूसरे-तीसरे वर्ष से किसानों को अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त हो सकता है। भारत और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित विभिन्न शोध पत्र,आलेख तथा अनुभव के आधार पर भारतीय परिस्थियों में ड्रेगन फल की उत्पादन प्रोद्योगिकी अग्र प्रस्तुत है:
उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टियाँ
ड्रैगन
फल उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए अनुकूल पौधा है जिसकी खेती समुद्र तल से 1700 मीटर
की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। इसके पौधे मौसम परिवर्तन और
तापमान के उतर चढ़ाव को आसानी से सहन कर लेते है इसकी खेती 500-1500
मि.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है
परन्तु लगातार वर्षा इसकी फसल के लिए नुकसानदायक होती है। पौधों की बढ़वार और
विकास के लिए 20 से 35 डिग्री
सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। परन्तु इसके पौधे 40 डिग्री सेल्सियस तक का
तापमान भी सहन कर लेते है। अधिक ठण्ड में
पौधों की वृद्धि और विकास अवरुद्ध हो जाता है. फलों के विकास एवं पकाव के समय गर्म एवं शुष्क
जलवायु की आवश्यकता होती है। आद्र जलवायु में फलों की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है।
ड्रेगन
फ्रूट की खेती उचित जल निकास वाली अमूमन भारत की सभी प्रकार की मिट्टियों में सुगमता
से की जा सकती है। खेतों में जल भराव इस
फसल के लिए हानिकारक होता है। बेहतर उपज के लिए पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ युक्त दोमुट बलुई मिट्टी सर्वोत्तम रहती है। हल्की अम्लीय भूमि में भी ड्रेगन फ्रूट सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। खेत की मिट्टी का
पीएच मान 5.5 से 7 तक
उपयुक्त माना जाता है।
ड्रेगन
फ्रूट का प्रसारण/प्रवर्धन बीज और वानस्पतिक विधि द्वारा किया जा सकता है। बीज
द्वारा पौधे देर से तैयार होते है तथा बीजू पौधे धीमी गति से बढ़ते है और उत्पादन
भी 3-4 वर्ष में प्राप्त होता है। अतः व्यवसायिक खेती के लिए वानस्पतिक प्रवर्धन (टनों/टहनियों
की कलम) ही सबसे सरल और उत्तम विधि है। इस
विधि से लगाये गए पौधों में दुसरे वर्ष से फलन प्रारंभ हो जाता है। वर्ष भर कभी भी
कटिंग/पौध तैयार की जा सकती है, परन्तु पौधों से फल तोड़ने पश्चात ही सुबह के समय कलम काटना उचित रहता है। रोपण हेतु
15-60 सेमी की कलमे (शाखाएं/टहनियां) अच्छी मानी जाती है। लम्बी कलमों की
वानस्पतिक वृद्धि तेजी से होती है। कलमों को तेज धार वाले चाकू से तिरछा काटना चाहिए। इसके पश्चात
कलमों को फफूंद नाशक दावा से उपचारित करने के बाद 5-7 दिन तक सूखे-ठन्डे स्थान
पर रखना चाहिए। इन कलमों को सीधे मुख्य खेत में रोपा जा सकता है परन्तु नर्सरी
अथवा पोलिबेग में इनकी पौध तैयार करना उचित रहता है।
ऐसे
करें पौधशाला की तैयारी : मानसून आगमन से
2-3 माह पूर्व मुख्य खेत के पास पौधशाला तैयार कर कलम रोपण का कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।
कलमों से त्वरित जड़ों के प्रस्फुटन हेतु जड़ों के कटे हुए शिरों को पानी से गीला
करने के पश्चात उन्हें पादप हार्मोन जैसे आईबीए
10 ग्राम प्रति लीटर जल में 10 सेकंड तक डुबोना चाहिए। इस हार्मोन के स्थान पर बाजार में उपलब्ध कोई भी रूटेक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान्यरूप से कलमों में जड़
विकसित होने में 40-50 दिन का समय लगता है परन्तु पादप हार्मोन (रूटेक्स) के उपचार से 10-15
दिन में जड़े प्रस्फुटित होने लगती है और
पौधों का तेजी से विकास होता है। पादप वृद्धि
इसके बाद कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार पौधशाला में लगाना चाहिए। एक 10 x
10 मीटर की पौधशाला में 1100 पौधे तैयार किये जा सकते है। आवश्यकतानुसार पौधशाला का आकर बढ़ाया या कम किया जा सकता है। पौधशाला में नियमित रूप
से झारे से हलकी सिंचाई करते रहे। पौधशाला में जल भराव नहीं होना चाहिए।
ड्रेगन फ्रूट के पौधों को पोल पर चढ़ाना (साभार-गूगल) |
पौध रोपने का तरीका
ड्रेगन
फ्रूट के पौधों की वृद्धि और विकास के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक है। अतः खुले
क्षेत्र में रोपाई करना चाहिए. खेत की भली भांति सफाई एवं जुताई कर लेना चाहिए।
खेत में जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था करना आवश्यक है। इसके लिए खेत में जल निकास
नालियां बना लेना चाहिए। ड्रेगन फ्रूट के पौधे आरोही बेल प्रकृति की होते है। अतः
इनके चढने-बढ़ने के लिए 3 x 3 मीटर (कतार से कतार एवं पोल से पोल) की दूरी
पर सीमेंट कंक्रीट के पोल (100-150 मिमी
व्यास के 2 मीटर लम्बे) लगाये जाते है। प्रत्येक
पोल के ऊपर 2.5 फीट व्यास की रिंग (अथवा कंक्रीट का चौकोर ढांचा) लगाई जाती है, जिसमें चारों ओर एक-एक छेद होना
चाहिए। बेलों को सहारा देने अथवा चढाने के लिए लोहे या स्टील के तार का उपयोग कदाचित
न करे क्योंकि तारों से पौधे कट जाते है। वर्षा आगमन से पूर्व मुख्य खेत में 3 x 3
मीटर (कतार से कतार x पोल से पोल) की दूरी
पर 60 सेमी. गहरा एवं 60 सेमी. चौड़ा गड्डा खोदकर छोड़ देना चाहिए। ध्यान
रहे बेल को सहारा देने वाले खम्बे (पोल) इसी गड्ढे के बीचों-बीच गाड़कर चारो तरफ से
कंक्रीट बिछाकर पक्का कर देना चाहिए। वर्षा प्रारंभ होने के बाद जून- जुलाई में प्रत्येक पोल
(खम्बे) के चारों तरफ 4 पौधे रोपना चाहिए। मिटटी,बालू + गोबर खाद का 1:1 :2 के अनुपात में मिश्रण बनाकर उसमे 100 ग्राम सिंगल
सुपर फास्फेट मिलकर गड्ढो में भरते हुए पौध रोपण का कार्य सम्पन्न करें। गोबर की
खाद या वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा 8-10
किग्रा. प्रति गड्ढा रखना चाहिए। खेत में
3 x 3 मीटर की दूरी पर गड्ढे करने से एक एकड़ ज़मीन में
449 पोल स्थापित होंगे तथा प्रति पोल 4 पौधे लगाने से प्रति एकड़ 1796 पौधे लगाना चाहिए। सामान्य तौर पर ड्रेगन फल के पौधे जून-जुलाई अथवा फरवरी मार्च में रोपे जाने चाहिए। अधिक
वर्षा या अधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में इसे सितम्बर अथवा फरबरी-मार्च में लगाया जा सकता है।
आवश्यक है पौधों का रख-रखाव
ड्रेगन
फ्रूट के पौधे तेजी से बढ़कर शीघ्र ही पोल के ऊपर पहुँच जाते है, ऐसे में कुछ बेलें
जमीन पर गिरकर ख़राब हो सकती है। अतः बेलों को मुलायम रस्सी से बांधते रहना चाहिए।
जब बेल ऊपर की ओर चढ़ने लगे तो बाहरी मुख्य
शाखाओं को छोड़कर पार्श्व शाखाओं को काटते
रहना चाहिए। बेल के पोल के ऊपर पहुँचने के बाद सभी शाखाओं को स्वतंत्र रूप से
बढ़ने देना चाहिए। मुख्य तने के ऊपरी शिरे को तोड़ देने से पार्श्व शाखाओं की संख्या
बढती है। अच्छी प्रकार से बढ़वार होने पर प्रथम वर्ष में एक पौधे से 25-30 शाखाएं
बनती है जो चौथे वर्ष तक बढ़कर 110-125 तक हो सकती है। कमजोर/कटी-फटी और रोग ग्रसित शाखाओं को निकालते रहना
चाहिए। इसके अलावा तृतीयक शाखाओं को भी काट कर उनकी पौध तैयार की जा सकती है।
पौधों को दे संतुलित खुराक
ड्रेगन
फल से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए पर्याप्त और संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक
देना नितांत आवश्यक है। पौध रोपण के समय प्रति
पोल 10 से
15 किलो गोबर की खाद या कम्पोस्ट देना चाहिए। जैविक खाद् की
मात्रा प्रति दो वर्ष में बढ़ाते रहना चाहिए। पौधों के समुचित विकास और उत्तम फलन के लिए समय समय पर रासायनिक खाद् भी देना चाहिये
रोपण के समय जैविक खाद के साथ म्यूरेट ऑफ़ पोटाश
+ सिंगल सुपर फास्फेट +यूरिया को क्रमशः 30:70:50 ग्राम प्रति पौधा देना चाहिए.
फूल आने से पहले और फल आने के समय प्रति पौधा 40 ग्राम
यूरिया 40 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 80
ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश देना चाहिए। तीसरे
वर्ष से 300:500:600 ग्राम क्रमशः यूरिया: सिंगल सुपर फॉस्फेट और म्यूरेट ऑफ़
पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष देना चाहिए। इन उर्वरकों को चार किस्तों में देना लाभकारी होता है। प्रथम क़िस्त फलों की तुड़ाई पश्चात (सम्पूर्ण
जैविक खाद + 40 % नत्रजन एवं 30-30 % फॉस्फोरस और पोटाश), दूसरी क़िस्त दो माह बाद
(30 % नत्रजन+ 20 % फॉस्फोरस और 15 % पोटाश), तीसरी खुराक पुष्पन अवस्था से पूर्व
(10%:40 %: 40 %) और शेष उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा फल विकसित होने की अवस्था में
देना लाभकारी रहता है।
जमीन में कायम रहे नमीं
यद्यपि
ड्रेगन फ्रूट नागफनी कुल का कम पानी चाहने वाला पौधा है, फिर भी वानस्पतिक वृद्धि
एवं बेहतर उत्पादन के लिए भूमि में लगातार
नमीं बनाये रखना आवश्यक है। चूँकि इसकी रेसेदार जड़ें भूमि में 15-30 सेमी की गहराई में वितरित रहती है, जिसके कारण
मृदा को नम बनाये रखना जरुरी रहता है। अनावश्यक या अधिक सिंचाई हानिकारक होती है।
लम्बे समय तक सिंचाई न करने पर अथवा शुष्क भूमि में बेलों की बढ़वार प्रभावित होती
है तथा फलों का आकार भी छोटा रह जाता है। पुष्पन
से पूर्व फसल में पानी नहीं देना चाहिए परन्तु पुष्पन प्रारंभ होने से फल
विकसित होने तक भूमि में नमीं रहना आवश्यक है। इस दौरान खेत में नमीं और फिर
सूखे की स्थिति निर्मित नहीं होना चाहिए अन्यथा फल फटने की शिकायत आ सकती
है। ड्रेगन फ्रूट से अधिकतम उपज प्राप्त करने हेतु ड्रिप सिंचाई प्रणाली सबसे
उपयुक्त पाई गई है। पौधों के चारों तरफ धान के पैरा अथवा प्लाटिक मल्च बिछा देने
से मृदा से नमीं का ह्रास कम होता है।
खरपतवारों से करें फसल की सुरक्षा
ड्रेगन
फ्रूट के पौधों और खम्बों के बीच ज्यादा अंतरण होने के कारण खेत में खरपतवारों का
प्रकोप अधिक होता है। खरपतवारों को निंदाई गुड़ाई करके अथवा नीदानाशक दवाओं के
माध्यम से नियंत्रित करना आवश्यक है। ध्यान रखे बेल वाले खरपतवार पोल पर न चढ़ने
पाए अन्यथा ड्रेगन फल के पौधों को भारी नुकसान हो सकता है। ड्रेगन फ्रूट के साथ अन्य
दलहनी फसलें जैसे मूंग/उर्द अथवा सब्जी वाली फसलों को अंतरवर्ती फसल के रूप में उगाकर अतिरिक्त
लाभ ले सकते है और ऐसा करने से खरपतवार भी नियंत्रित रहते है। पोल के चारों तरफ
प्लास्टिक मल्च अथवा धान का पैर बिछा देने से भी खरपतवार प्रकोप कम होता है साथ ही
नमी सरंक्षण भी होता है। ड्रेगन फ्रूट के पौधों में सामान्य तौर पर किसी भी प्रकार के कीट-रोगों का प्रकोप नहीं होता है। अतः पौध सरंक्षण के उपाय अपनाने की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ पौधों को जमीन पर गिरने से बचाना है।
ड्रेगन फ्रूट पौधा- सुन्दर पुष्प (साभार-गूगल) |
पुष्पन एवं फलन का समय
ड्रेगन
फल के पौधे एक साल में ही फल देने के लायक
हो जाते है। अनुकूल परिस्थियों में इसके
पौधों में मई-जून महीने में फूल लगते है और अगस्त से दिसम्बर तक फल आते रहते है। यह एक पर परागित फसल है। इसके फूलों में परागण की क्रिया तितलियों, मधुमक्खियों द्वारा संपन्न होती है। यह कार्य सुबह के समय हाँथ से भी किया जा सकता है. कुछ पुष्पों को खोलकर उनमे से फलालेन के कपङे में पराग कण एकत्रित कर अन्य पुष्पों पर फैला देने से फलों का विकास अधिक होता है। आमतौर पर 40 से 45 दिनों में पुष्पों से फल तैयार हो जाते है ।
एक ऋतु में इसके पौधों में प्रायः 3-4 बार
फलन होता है। कच्चे फलों का रंग गहरा हरा तथा पकने पर
फलों का रंग गुलाबी लाल हो जाता है. फलो
का रंग 70 % लाल-गुलाबी या पीला हो जाने पर तुडाई कर लेना चाहिए।
आकर्षक है उपज और लाभ का गणित
मेहनत के फल-ड्रेगन फ्रूट विक्रय हेतु (फोटो-साभार-गूगल) |
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