डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य
विज्ञान)
इंदिरा गांधी
कृषि विश्वविद्यालय, (छत्तीसगढ़)
भारतीय कृषि आज बहुत बड़े बदलाव से गुजर रही है। आर्थिक उदारीकरण के बाद पिछले दो दशकों के दौरान कृषि क्षेत्र में नित नए बीज, उर्वरक और दवाइयों की धूम मची है। खेती किसानी के तौर तरीकों में भी अमूल-चूल परिवर्तन हो चला है। बढ़ती जनसँख्या और घटते कृषि संसाधनों को देखते हुए खेती किसानी को लाभ का धंधा बनाने के लिए आवश्यक है कि हम अपने किसानों को कृषि विज्ञान की आधुनिक पद्धतिओं और सामयिक कृषि कार्यक्रमों से अवगत कराये ताकि वे उन्नत कृषि अपनाकर प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन और मुनाफा अर्जित करने में सफल हो सकें। जब हम खेत खलिहान
की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक
की तमाम सस्य क्रियाओं से किसानों को
रूबरू कराना चाहिए। कृषि को लाभकारी बनाने
के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के
कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध भूमि एवं
जलवायु तथा संसाधनों के अनुसार फसलों एवं
उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा
परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की
क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई
और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
शरद ऋतु के अक्टूबर यानी अश्विन-कार्तिक माह के वातावरण में प्रकृति परिवर्तन की स्पष्ट झलक मिलती है। तापक्रम,
सापेक्ष आद्रता तथा वायु गति कम होने लगती है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 31 एवं 11.8 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 5.3 किमी प्रति घंटा होती है। अंधेरे पर प्रकाश के विजय का पर्व दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या का बड़े ही उत्साह और धूम-धाम से मनाई जाती है. आज के दिन कमला के रूप में देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली के दुसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा करने का विधान है जिसमें हमारी कृषि प्रधान संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन हम गौ-माता और बैलों की पूजा करते है। दीपमाला के तीसरे दिन भैया दूज का त्यौहार मानते है जो भाई-बहिन के स्नेह भरे रिश्ते की याद दिलाता है। उत्तम और फायदेमंद खेती के लिए इस माह किसान भाइयों को निम्न तीन सूत्रों को व्यवहार में लाना चाहिए।
माह के मूल मंत्र
1. केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट): किसानों के हलवाहे केंचुओं की जहरीले रसायनों से रक्षा करें। इस समय खरपतवार तथा कृषि अवशिष्ट से उत्तम किस्म का केंचुआ खाद बनाया
जा सकता हैं। छायादार स्थान पर फसल अवशिष्ट,
खरपतवार आदि को एकत्रित कर केंचुआ खाद बनाएं तथा आगामी फसलों में इसका प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती और उपज में भी आशातीत वृद्धि होती है। यही नहीं कचरे से खाद तैयार करने से पर्यावरण प्रदूषण कम होता है और रासायनिक उर्वरकों पर हमारी निर्भरता कम हो जाती है।
2. अन्न भंडारण-खाद्यान्न सुरक्षाः खरीफ फसल उपज
भंडारण के समय कीड़ों से बहुत क्षति होती है। इस
हांनि से उपज को बचाने के लिए उसे धूप में भली भांति सुखाकर (लगभग 9-10 % नमीं स्तर तक) साफ
करने के उपरान्त ही नमीं रहित स्थान या पात्रों में भंडारित करें। नई बोरियां प्रयोंग में लायें
तथा उनको 0.1 प्रतिशत मैलाथियान के घोल में 10-15 मिनट तक डुबोने के पश्चात छाया में
सुखाकर उपज को ठंडा होने पर भरें। दलहनी फसलों की
उपज को सुखाकर उसमे सरसों या मूंगफली तेल 7.5 मिली. प्रति किग्रा. दानों की दर से अच्छी प्रकार मिलाकर उचित स्थान पर
भंडारित करें।
3. फसल विविधीकरणः एकल फसल प्रणाली की बजाय अन्न बाली फसलों के साथ-साथ विविध फसलों यथा गन्ना, सरसों, चना, कपास, सब्जी आदि फसलों की
खेती अदल-बदल कर अपनाने से आर्थिक लाभ अधिक होता है तथा कीट-रोग प्रकोप भी कम होता
है।
अश्विन-कार्तिक यानि अक्टूबर माह में शीत ऋतु (रबी) की फसलों की बौनी का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। इस माह में सम्पादित किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यों का संक्षिप्त विवरण अग्र प्रस्तुत है।
v धान: धान की शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों में 80 प्रतिशत दाने पीले पड़कर कड़े होने पर कटाई कर लेवें । देर से बोई गई फसल में फूल बनते
समय खेत में सिंचाई अवश्य करें ।
v धान फसल में भूरा माहो के अधिक प्रकोप की दशा में इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एस. का 125 मिली. प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें अथवा क¨र्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पौधों के निचले हिस्से में छिड़काव करें ।
v धान की गभोट अवस्था
में विगलन रोग (शीथ राट) तथा लाई फूटने (फाल्स स्मट) की समस्या के निदान हेतु प्रोपिकोनाजोल (1 मिली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
v धान की खड़ी फसल में उतेरा खेती हेतु अलसी,
तिवड़ा, चना या सरसों की बोनी
संपन्न करें। अलसी व सरसों के उतेरा के लिए 10-15 किग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर धान की फसल में फूल आते समय
डालना चाहिए। धान की फसल में गर्दन झुलसा रोग दिखने पर बीम या अन्य फफूंदनाशक 1000 ग्राम दवा को 600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
v मक्काः समय से बोई गई फसल की कटाई करे। संकर मक्का के पौधे पकने पर कभी-कभी हरे नजर
आते हैं अतः जब भुट्टों के ऊपर वाला छिलका पीला व भूरा हो जाए तो समझें कि फसल पक
गई है।
v ज्वार व बाजराः ज्वार व बाजरा के तुरन्त बाद रबी की
कोई फसल बोनी हो तो पौधों को नीचे से काटकर उन्हें खेत से बाहर एकत्र कर लें। यदि रबी में कोई फसल
नहीं लेनी हो तो पकी फसल से बाजरा की बाले काट लें और फसल को आवश्यकतानुसार हरे चारे के लिए काटते रहें।
v उर्द,मूंग व तिलः इन फसलों के पकने पर तुरन्त कटाई करें अन्यथा दानों के झड़ने से उपज में हांनि
हो सकती है। फसल सुखाने के बाद गहाई का कार्य भी संपन्न करें।
v मूंगफलीः शीघ्र पकने वाली किस्मों की खुदाई करें।
काली व सख्त मिट्टी वाले क्षेत्रों में
हल्की सिंचाई कर 2-3 दिन बाद खुदाई करने सभी फलियाँ आसानी से उखड़ जावेंगी।
वर्षा ऋतु समाप्त होने पर चेंपा कीट प्रकोप की संभावना रहती है। इस कीट की रोकथाम के
लिए मैलाथियान 50 ईसी 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें। टिक्का रोग
नियंत्रण के लिये खड़ी फसल पर जिंक मैग्नीज कार्बामेंट 2.0 किग्रा या जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किग्रा. दवा का प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में
घोलकर छिड़काव करें।
v सोयाबीन एवं सूरजमुखी: समय पर बोई गई ये फसलें अक्टूबर के अन्त तक कटाई योंग्य हो जाती है। दो-तिहाई पत्तियों के पीले पड़ने की अवस्था में कटाई कर लें ताकि दानें
नहीं छिटकें । देर से बोई गई फसल की चक्रभृग व पत्तीमोडक कीट से रक्षा के लिये
क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी. 1.5 लीटर या क्लोरोपाईरीफ़ॉस 20 ई.सी. 1.3 लीटर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। वर्षाकालीन सूर्यमुखी की
सभी किस्में 90-100 दिन में तैयार हो जाती है। सूरजमुखी
के दानों को तोते बड़े
चाव से खाते है तथा पकने पर फसल गिरने का भी अंदेशा रहता है। अतः समय पर फूल मुंडको
की कटाई करें।
v अरहरः खेत में नमीं की कमीं होने पर सिंचाई करें। फली छेदक इल्लियों के नियंत्रण के
लिए फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत चूर्ण या क्विनालफ़ॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हे. की दर से भुरकाव करें या क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी 0.05 प्रतिशत 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हे. या प्राफेनोफॉस 50 ई.सी एक लीटर प्रति हे. का छिड़काव करें।
v तोरिया (लाही): सितम्बर माह में बोई गई तोरिया की फसल में बुवाई के 15 दिन बाद घने पौधों को निकाल कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी. कर लेवें तथा एक निराई-गुड़ाई भी कर देनी चाहिए। यदि
सिंचाई उपलब्ध हो तो तोरिया में फूल निकलने पर अर्थात बुवाई के 25-30 दिन बाद एक सिंचाई अवश्य कर दें।
v राई-सरसों: राई-सरसों की बुवाई माह के अंत में प्रारम्भ करें । समय पर बुवाई करने से माहूँ-चेपा कीट का प्रकोप कम होता
है। उन्नत किस्में यथा वरूणा, रोहिणी, क्रान्ति, कृष्णा, वरदान, वैभव, आदि के प्रमाणित बीज की बुवाई करें।
v कुसुमः कुसुम-करडी की बुवाई इस माह के अंतिम सप्ताह में प्रारंभ की जा सकती है। वर्षा निर्भर क्षेत्रों में बुवाई हेतु 20-25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बीज कतारों में 45 सेमी. की दूरी पर बोया जाता है। कुसुम की जेएसएफ-1,जेएसआई-7, डीएसएच-129, नारी-6, परभणी कुसुम, नारी एच-17 व नारी एच-15 उन्नत किस्में है।
v चना, मटर, मसूरः असिंचित क्षेत्रों में चना, मटर, मसूर की बुवाई अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से प्रारंभ करें । इन फसलों को 30 सेमी. की दूरी पर कतार में बोना चाहिए। प्रति हैक्टेयर देशी
या छोटे बीज वाले चने के लिये 60-75 किग्रा. बड़े बीज वाले चना एवं मटर के लिये 80-100 किग्रा. तथा मसूर के लिये 30-35 किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
v कपासः समय पर बोये गये कपास में डोंडे खिलने पर चुनाई का कार्य करें तथा
आवश्यकतानुसार सिंचाई भी करते रहें। अनेक प्रकार की सूंडियाँ कपास के डेंडू में छेद कर फसल को क्षति पहुँचाती है। कीट रक्षा के लिए 400 मिली क्यूनालफ़ॉस 25 ई.सी. 1 लीटर साइपरमेथ्रिन 5 ई.सी. और क्लोरपाइरीफ़ॉस
50 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।
v गेहूं व जौः असिंचित क्षेत्रों में ड्यूरम गेहूं की बुवाई खेत में संचित नमी से अक्टूबर के
अंतिम सप्ताह से प्रारम्भ कर सकते है। क्षेत्र के लिये संस्तुत किस्मों का चयन
बुवाई के लिये करें। बुवाई हेतु 100-125 किग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज का प्रयोग करें तथा बुआई कतारों में 20-22 सेमी. की दूरी पर करें । शून्य कर्षण विधि से कतारों में बुवाई करने से समय,
श्रम व पैसे की बचत की जा सकती है।
v गन्नाः खाली खेतों में पर्याप्त नमीं होने पर उन्हे शीघ्र तैयार कर
शरदकालीन गन्ने की बुवाई प्रारम्भ करें।
खेत की तैयारी के समय यदि उपलब्ध हो तो जैविक खाद का प्रयोग अवश्य करें। बुवाई में देरी करने से तापमान गिर जाने के
कारण गन्ने के अंकुरण में कमी होती है। गन्ने की शीध्र पकने वाली,
किस्मों को.शा. 671, को.शा. 8014, को.जा. 86-141, को. 86032, को. 62175 तथा को.जा. 8338 आदि उन्नत किस्मों का चुनाव कर सकते हैं। शरदकालीन गन्ने की बुवाई
में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75-90 सेमी. एवं कूंड़ों की गहराई 6-8 सेमी. रखें। प्रति
हैक्टेयर 35-40 हजार तीन आँख वाले टुकड़े लगाये जाने चाहिए। प्रति हैक्टेयर
300:80:60 किग्रा. क्रमशः नत्रजन, स्फुर व पोटाश उर्वरक फसल में देवें । नत्रजन को तीन बराबर
भाग में बांटकर बुआई, कल्ले बनते समय और अधिकतम बढ़वार के समय देना चाहिए. गन्ने
में सफेद मक्खी तथा पाइरिल्ला कीटों की रोकथाम
के लिए इमीडेक्लोरप्रिड 17.8 प्रतिशत दवा 100-125 मिली या मेलाथियान 50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v गन्ने के साथ अन्तःफसली खेती: गन्ने की दो पंक्तियों के बीच आलू (1-2 पंक्ति),लहसुन (4 पंक्ति), मटर (2 पंक्ति) या शरदकालीन सब्जियां अन्तःफसल के रूप में उगाकर दोहरा लाभ कमायें। संशोधित
ट्रेन्च विधि से गन्ना बुवाई करके गन्ना व चीनी के उत्पादन में सार्थक वृद्धि की जा सकती है। लगभग 120 सेमी. की दूरी पर 30 सेमी. चौड़ी कूंड बनाकर दो आँख वाले टुकड़ों की बुवाई करें। खेत में नमीं की कमीं होने की दशा में टुकड़ों की 2 सेमी. मिट्टी से ढंकाई कर तुरन्त सिंचाई करें परन्तु
पर्याप्त नमी होने पर 1-2 इंच मिट्टी से ढकाई करके एक सप्ताह बाद हल्की सिंचाई करें।
v बसंत में बोये गये गन्ने में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा पत्तियों से गन्नों की बंधाई कार्य करने से फसल गिरने से बच जाती है ।
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