डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,
कांपा, जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)
कृषि के प्रारंभ काल से ही फसलों के साथ कुछ अनचाहे पौधे उगते आये है जो फसलोत्पादन को कम करते है तथा कृषि कार्यो में बाधा उत्पन्न करते है. बिना बोये खेतों में उगने वाले अवांक्षित पौधों को खरपतवार कहते है. खरपतवार प्रकोप और परिस्थितयों के आधार पर अनियंत्रित खरपतवारों से फसलों की पैदावार में 5 से 85 प्रतिशत तक हानि हो सकती है. दरअसल खरपतवार फसलों के लिए भूमि में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्व एवं नमीं का बड़ा हिस्सा अवशोषित कर लेते है तथा साथ ही साथ फसल के लिए आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी वंचित कर देते है जिससे पौधों का विकास, उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता घट जाती है. खरपतवार प्रबंधन में हमेशा यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि फसल को हमेशा न तो खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है और न ही ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होता है. अधिकतम उपज के लिए फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि अर्थात नाजुक समय में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखा जाना आवश्यक है. खरपतवार-फसल प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था से तात्पर्य फसल जीवन चक्र के उस समय से है जब खरपतवार नियंत्रण से अधिक शुद्ध आर्थिक लाभ प्राप्त होता हो तथा खरपतवार नियंत्रण न करने पर उपज एवं लाभ में सबसे अधिक कमीं हो. अधिकाँश फसलों में यह समयावधि बुवाई के लगभग 30-40 दिन तक रहती है. इस समय फसल को खरपतवार रहित रखना नितान्त आवश्यक है. खरीफ की प्रमुख फसलों में खरपतवार-फसल प्रतियोगिता का क्रांतिक समय अग्र सारणी में दिया गया है.
सारणी:
खरीफ फसलों में फसल-खरपतवार प्रतियोगिता का क्रांतिक समय
फसल |
क्रांतिक अवधि (बुवाई के बाद दिन) |
फसल |
क्रांतिक अवधि (बुवाई के बाद दिन) |
धान (सीधी बुवाई) |
15-45 |
अरहर |
15-60 |
धान (रोपित) |
30-45 |
मूँग |
15-45 |
मक्का |
15-45 |
उड़द |
15-30 |
ज्वार |
15-45 |
लोबिया |
15-30 |
बाजरा |
30-45 |
सोयाबीन |
20-45 |
कपास |
15-60 |
सोयाबीन |
20-45 |
खरपतवारों का नियंत्रण भौतिक व यांत्रिक विधियों से किया जा सकता है परन्तु इन विधियों में समय,श्रम और पूँजी अधिक लगती है जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है. शाकनाशी रसायनों द्वारा खरपतवारों को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है. इससे प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है. लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है. खरपतवार नियंत्रण में शाकनाशी रसायनों के उपयोग में एक और विशेष लाभ है. हाथ से निदाई या डोरा (वीडर) चलाकर निदाई, फसल की कुछ बढ़वार हो जाने पर की जाती है और इन सस्य क्रियाओं में खरपतवार जड़ मूल से समाप्त होने की बजाय, ऊपर से टूट जाते है, जो बाद में फिर वृद्धि करने लगते है. शाकनाशी रसायनों में यह स्थिति नहीं बनती क्योंकि यह फसल बोने के पूर्व या बुवाई के बाद उपयोग किये जाते है जिससे खरपतवार अंकुरण अवस्था में हो समाप्त हो जाते है अथवा बाद में शाकनाशी के प्रभाव से पूर्णतया नष्ट हो जाते है. खेती में लागत कम करने के लिए रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण एक कारगर उपाय है, इसमें समय, श्रम और पैसे की बचत होती है.
खरीफ फसलों के प्रमुख
खरपतवार
खरीफ के मौसम में अनुकूल वातावरण होने के कारण खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता है. खरीफ मौसम में घास कुल एवं मोथा कुल के सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के अलावा द्विबीजपत्री चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रकोप होता है. विभिन्न खरपतवारों के नाम एवं फोटों अग्र प्रस्तुत है जिन्हें पहचान कर उनका नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है.
1.संकरी पत्ती वाले खरपतवार
खरीफ फसलों के सकरी पत्ती वाले एक बीज पत्रिय खरपतवार |
घास एवं मोथा कुल के सकरी पत्ती वाले खरपतवार |
खरीफ फसलों के सकरी पत्ती वाले एक बीज पत्रिय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ के चौड़ी पत्ती वाले द्विदलीय खरपतवार |
खरीफ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
1.बुवाई से पहले प्रयोग (Pre-plant Application): सक्रिय शाकनाशियों का बुवाई से 2-10 दिन पहले मिट्टी में प्रयोग करने को बुवाई पूर्व प्रयोग कहते है. इस प्रकार का प्रयोग उस समय किया जाता है जब शाकनाशी रसायन फसल के पौधों के लिए घातक हो. वाष्पशील (volatile) शाकनाशी जैसे फ्ल्युक्लोरालिन, ट्राईफ्ल्युरालिन का वाष्पीकरण रोकने के लिए इन्हें मिट्टी में मिला दिया जाता है.फसल लगने के बाद इन्हें मिट्टी में सुचारू रूप से नहीं मिलाया जा सकता है, इसलिए बोने के पहले इन्हें मिट्टी में मिलाया जाता है. सोयाबीन में फ्ल्युक्लोरालिन व ट्राईफ्ल्युरालिन का अंकुरण के समय प्रयोग करने की अपेक्षा बुवाई से पहले प्रयोग करना अधिक प्रभावी होता है. बुवाई से पहले इन शाकनाशियो को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाया जा सकता है और इस समय इनकी अधिक मात्रा का भी प्रयोग सुरक्षित रहता है.
2.अंकुरण के पहले प्रयोग (Pre-emergence Application): फसल की बुवाई के बाद एवं फसल व खरपतवार के अंकुरण से पूर्व शाकनाशी के प्रयोग को अंकुरण पूर्व प्रयोग कहते है. शाकनाशियों का प्रयोग बुवाई से 1-4 दिन बाद परन्तु अंकुरण से पहले किया जाता है. इसमें केवल वैशेषिक शाकनाशियों का प्रयोग किया जाता है. इस समय अधिक घुलनशील रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि इनके बह जाने का अंदेशा होता है. वैशेषिक शाकनाशी के प्रयोग से खरपतवार के अंकुरित होने वाले बीज मर जाते है और फसल पर इनका दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है.उदाहरण के लिए एट्राजीन,एलाक्लोर,पेंडीमेथालिन,ऑक्सीफ्लोरफेन आदि का प्रयोग अंकुरण के पहले किया जाता है.
3.अंकुरण के बाद प्रयोग (Post-emergence Application): फसल के अंकुरण के बाद शाकनाशी प्रयोग करने को अंकुरण के बाद प्रयोग कहते है. बुवाई के बाद प्रयोग तभी किया जाता है जब फसल के पौधे इतने बड़े हो जाय कि वे शाकनाशी दवा सहन कर सकें. गेंहू में 2,4-डी सोडियम साल्ट का प्रयोग बुवाई के 28-35 दिन बाद करने पर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते है.
सारणी : विभिन्न खरीफ फसलों में शाकनाशी
रसायनों का प्रयोग ऐसे करें
रसायन |
व्यवसायिक नाम |
फसल |
सक्रिय तत्व दर
(ग्राम/हे.) |
व्यवसायिक
मात्रा (ग्राम/हे.) |
छिडकाव का समय |
|||||
ट्राईफ्लूरालिन |
टेफ्लान |
दलहन व तिलहन |
1000 |
2083 |
बीज बुवाई से पूर्व |
|||||
खरपतवार अंकुरण से पूर्व प्रयोग होने वाले खरपतवारनाशी |
||||||||||
ब्युटाक्लोर 50 ईसी |
मचैटी |
धान रोपित,मूंगफली |
1500 |
3000 |
रोपाई/बुवाई के 3 दिन के अन्दर |
|||||
प्रेटिलाक्लोर 50 ईसी |
रिफिट/सोफिट |
धान सीधी बुवाई/रोपित |
750-1000 |
1500-2000 |
रोपाई/बुवाई के 3 दिन के अन्दर |
|||||
ऑक्जाडॉयरजिल 80 डब्ल्यू पी |
टॉप स्टार |
धान रोपित |
100 |
125 |
रोपाई/बुवाई के 3 दिन के अन्दर |
|||||
एनिलोफ़ॉस 30 ईसी |
एरोजिन/एनिलोगार्ड |
धान रोपित |
400 |
1333 |
रोपाई के 3-8 दिन के अन्दर |
|||||
पेंडीमेथलिन 30 ईसी |
स्टॉम्प |
धान सीधी बुवाई, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उर्द, मूंगफली, अरहर, तिल, कपास |
1000 |
3333 |
बुवाई के तुरंत बाद या 2-3 दिन के अन्दर उचित नमीं की अवस्था में |
|||||
एलाक्लोर 50 ईसी |
लासो |
मूंग,उर्द,अरहर,
तिल,सूरजमुखी |
1000-2500 |
2000-5000 |
-तदैव- |
|||||
एट्राजीन 50
डब्ल्यू पी |
एट्राटाफ |
मक्का,ज्वार,बाजरा
|
500-1000 |
1000-2000 |
-तदैव- |
|||||
मैट्रीब्युजिन 70
डब्ल्यू पी |
सैंकोर |
मूंग,उर्द,अरहर,सोयाबीन
|
250-750 |
357-1070 |
-तदैव- |
|||||
मेटालाक्लोर 50
ईसी |
डुअल |
मूंग,उर्द,अरहर |
1500 |
3000 |
-तदैव- |
|||||
ऑक्सीडायजोन
25 ईसी |
रॉनस्टार |
मूंगफली,तिल |
750 |
3000 |
-तदैव- |
|||||
ऑक्सीफ्लोरोफिन
23.5 ईसी |
गोल |
सूर्यमुखी,मूंगफली
|
100-200 |
425-850 |
बुवाई के 2-3 दिन
के अन्दर |
|||||
पेंडीमेथिलीन +
इमेजाथापर 32 ईसी |
वेल्लर |
सोयाबीन |
1000 |
3125 |
बुवाई के तुरन बाद
उचित नमी पर |
|||||
खरपतवार अंकुरण के बाद प्रयोग होने वाले खरपतवारनाशी |
||||||||||
इमेजाथापर 10 ईसी |
परसूट |
सोयाबीन,मूंगफली |
100-200 |
1000-2000 |
बुवाई के 10-15
दिन बाद |
|||||
2,4-डी (इथाइल
ईस्टर) 34 ईसी |
चैंपियन |
धान |
500 |
1470 |
रोपाई के 30-35
दिन बाद |
|||||
फ्यूजीफॉप 12.5
ईसी |
फ्लूजीलेड |
सोयाबीन,मूंगफली |
125-250 |
1000-2000 |
रोपाई के 30-35
दिन बाद |
|||||
साईंहैलोफॉप 10
ईसी |
क्लिंचर |
धान की सीधी बुवाई
|
80-100 |
800-1000 |
-तदैव- |
|||||
बिस्पाइरीबैक
सोडियम 10 एस सी |
नोमिनी गोल्ड |
सीधी बुवाई एवं
रोपित धान |
25 |
250 |
बुवाई के 15-20
दिन एवं रोपाई के 20-25 दिन बाद |
|||||
फिनाक्साप्रॉप
पी.इथाइल 9.3 ईसी |
व्हिप सुपर |
धान की सीधी
बुवाई,सोयाबीन |
60-100 |
645-1075 |
बुवाई के 20-25
दिन बाद |
|||||
प्रोपक्यूजाफॉप 10
ईसी |
एजिल |
सोयाबीन |
100 |
1000 |
5-7 पत्ती अवस्था |
|||||
हेलोक्सीफॉप 10
ईसी |
फोकस |
सोयाबीन |
125-250 |
1250-2500 |
बुवाई के 20 दिन
बाद |
|||||
मेटसल्फ्यूरान मिथाइल
20 डब्ल्यू पी |
आलमिक्स |
सीधी बुवाई एवं
रोपित धान |
4.0 |
20 |
रोपाई एवं बुवाई
के 25-30 दिन बाद |
|||||
2,4-डी डाईमिथाइल
एमाइन साल्ट 58 डब्ल्यू एस सी |
जूरा |
मक्क |
500 |
862 |
2-4 पत्ती अवस्था |
|||||
2,4-डी डाईमिथाइल
एमाइन साल्ट 80 डब्ल्यू पी |
वीड कट |
मक्का |
1000 |
1250 |
2-4 पत्ती अवस्था |
|||||
इथोक्सि सल्फ्यूरॉन
15 डब्ल्यू जी |
सनराइज |
धान की सीधी बुवाई
व रोपित धान |
12.5-25 |
83-167 |
रोपाई एवं बुवाई
के 25-30 दिन बाद |
|||||
आइसोप्रोट्युरान
75 डब्ल्यू पी |
आइसोगार्ड |
गेंहू |
500-750 |
667-1000 |
बुवाई के 10-15
दिन बाद |
|||||
क्युजेलाफॉप पी
इथाइल 5 ईसी |
टरगा सुपर |
मूंगफली, सोयाबीन |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई के 15-20
दिन बाद |
|||||
क्युजेलाफॉप पी
इथाइल 4.4 ईसी |
पटेरा |
सोयाबीन |
44 |
1000 |
-तदैव- |
|||||
क्लोरीम्यूरोन
इथाइल 25 डब्ल्यू पी |
क्लोबेन |
सोयाबीन |
9.0 |
36 |
-तदैव- |
|||||
इमेजाथापर 35 %
+इमेजामॉस 35 % डब्ल्यू पी |
ओडीसी |
सोयाबीन |
70 |
100 |
-तदैव- |
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- शाकनाशी की संस्तुत मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए. कम मात्रा में प्रयोग से खरपतवारों पर कम प्रभावी तथा अधिक मात्रा होने पर फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है.
- फसलों में प्रयोग हेतु संस्तुत वर्णात्मक शाकनाशियों का ही प्रयोग करना चाहिए.
- बुवाई से पूर्व तथा खरपतवार बीज अंकुरण से पहले प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी की क्रियाशीलता के लिए पर्याप्त नमीं का होना अति आवश्यक होता है.
- छिडकाव करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि शाकनाशीय घोल का समान रूप प्रक्षेत्र में वितरण हो जिससे सम्पूर्ण प्रक्षेत्र में खरपतवारों पर नियंत्रण हो सकें.